यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) के अनुसार एच-1बी वीजा रजिस्ट्रेशन के लिए 2 लाख 75 हजार आवेदन प्राप्त हुए हैं। जिसमें से 67.7 प्रतिशत, यानी करीबदो लाख आवेदन केवल भारत से हैं। संस्थाहर साल अमेरिकी कंपनियों में विदेशी कर्मचारियों के लिए 85 हजार एच-1बी वीजा जारी करती है।
USCISने बुधवार को कहा कि, 20 मार्च से पहले प्राप्त सफल रजिस्ट्रेशन1 अप्रैल से अपना आवेदन जमा कर सकते हैं। संस्था के मुताबिक रजिस्ट्रेशन्स के दौरान करीब 40 हजार अकाउंट बनाए गए थे। जिसमें से 81 फीसदी आवेदन भारत और चीन से मिले थे। वहीं, रजिस्ट्रेशन के शुरुआती दौर में ही 2 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे। इनमें से करीब 46 फीसदी यूएस एडवांस डिग्री वालों के लिए थे।
नए इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्रेशन सिस्टम को मिल रहा अच्छारिस्पॉन्स
एच-1बी वीजा जारी करने के लिए नया इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्रेशन सिस्टम शामिल किया गया है।USCIS के डिप्टी डायरेक्टर फॉर पॉलिसी जोसिफ एड्लो ने बताया कि, नए एच-1बी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम सफल हुआ है। इस नई आधुनिक प्रक्रिया के कारण संस्था और आवेदकों के बीच होने वाले पेपर और डाटा शेयरिंग में काफी कमी आई है।
अमेरिकी कंपनियों को मिलती है मदद
एच-1बी एक नॉन इमिग्रेंट वीजा है, जिसके जरिए अमेरिकी कंपनियां दूसरे देशों से टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स को हायर करती है। सरकार के आदेशानुसार, USIC हर साल कुशल विदेशी कर्मचारियों के लिए 65 हजार एच-1बी वीजा जारी करती है। वहीं, अन्य 20 हजार वीजा एप्लीकेशन्स में वो लोग शामिल होते हैं, जिन्होंने अमेरिकी संस्था से मास्टर्स या कोई बड़ी डिग्री ली हो।
A Pakistan court on Thursday commuted the death sentence of the prime accused in the 2002 murder case of US journalist Daniel Pearl to seven years in jail, according to media reports. The Sindh High Court overturned the verdict earlier given by the anti-terrorism court (ATC) to UK-born Ahmed Omar Sheikh, the prime accused, The Express Tribune reported.
The repatriation from India is part of the massive effort being undertaken by the US for its citizens from across the world. So far, the US has repatriated over 30,000 citizens from over 60 countries on more than 350 flights. There are more than 80 flights scheduled or in the planning stages from various locations, principal deputy assistant secretary for consular affairs Ian Brownlee added
कोरोनावायरस के कारण ब्रिटिश एयरवेज के ज्यादातर विमान उड़ान नहीं भर रहे हैं। ऐसे में कंपनी ने 36 हजार कर्मचारियों को निलंबित करने का फैसला किया है। इसके लिए कंपनी ने यूनाइट यूनियन के साथ सौदा किया है। फैसले से 80% कर्मचारियों को निलंबित किया जा सकता है।
The ministry said that a 68-year-old male Indonesian national, who was a Singapore Work Pass holder, passed away from complications due to Covid-19 infection on April 2. The patient was admitted to the National Centre for Infectious Diseases (NCID) on March 22 and was confirmed to have Covid-19 infection on the same day. He had been in Indonesia from January 20 to March 16 and was in the intensive care unit (ICU) since March 26.
कोरोनावायरस के कारण वैज्ञानिक धरती की सतह पर मौजूद साउंड वाइब्रेशन में कमी महसूह कर रहे हैं। यह मानव गतिविधियों में कमी के कारण है। दुनिया में कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन है। सभी बड़े शहरों में लोगों का आना-जाना, मिलना-जुलना बंद है। वैज्ञानिकों ने
लोगों के घर में रहने से लंदन, पेरिस और लॉस एंजिलिस में सीसमिक डिटेक्टर ने वाइब्रेशन में कमी दर्ज की।
सीसमोमीटर, भूकंपीय तरंगों के साथ मानव गतिवििधयों से होने वाली ध्वनि को पकड़ने में भी काम आता है। ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा पूरे लंदन के सीसमोमीटर्स से जुटाए गए आंकड़ों से पता चला है कि मानवीय गतिविधियों में कमी आने के साथ ही धरती पर शोर का स्तर कम हुआ है।
न्यूयॉर्क. अमेरिका में कोरोनवायरस के कारण 6 हफ्ते के नवजात की मौत हो गई। इसकी जानकारीकनेक्टिकट के गवर्नर नेड लामॉन्ट ने बुधवार को ट्विटर पर दी। नवजात को पिछले सप्ताह एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उसे बचाया नहीं जा सका। बीती रात हुए टेस्ट में यह स्पष्ट हो गया कि नवजात कोरोना वायरस से पॉजिटिव था।
पिछले हफ्ते इलिनॉय के रहने वाले एक साल से कम उम्र के शिशु की मौत शिकागो में कोरोनावायरस के पॉजिटिव होने के कारण हो गई थी। स्थानीय मीडिया ने बच्चे की उम्र करीब 9 महीने बताई थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नेशविले में भी दाे महीने का बच्चा कोरोनावायरस से संक्रमित पाया गया था, लेकिन इस बीमारी से मरने वाला यह सबसे कम उम्र का अमेरिकी बच्चा है।
हमारा जीवन दूरी बनाए रखने पर निर्भर करेगा
गवर्नर नेड लामॉन्ट ने कहा, ‘‘यह दिल दुखाने वाला है। हमारा मानना है, यह सबसे कम उम्र की जान कोरोनावायरस के कारण गई है। यह एक वायरस बिना दया किए सबसे जीवन पर हमला करता है। यह हमें घरों में तनावपूर्ण रहने के लिए मजबूर करता, लेकिन हमारा जीवन इसी बात पर निर्भर करेगा कि हम एक दूसरे से कितनी दूरी बनाकर रह सकते हैं।’’
बच्चों की मौतों को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं
कुछ दिन पहले न्यू इंग्लैंड जर्नल में चायनीज शोधकर्ताओं का एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें 10 महीने के नवजात की मौत का जिक्र किया गया था। इसमें बताया गया था कि अस्पताल में भर्ती होने के चार हफ्ते बाद उसकी मौत हो गई थी। संक्रमण की वजह से बच्चे के ऑर्गन फेल हो गए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में गवर्नर जेबी प्रित्जकर ने कहा, 'नवजात को 24 घंटे पहले कोरोनावायरस का संक्रमण हुआ था। उसकी मौत की खबर ने मुझे हिलाकर रख दिया। उसके मौत की पूरी जांच की जा रही है।' उन्होंने बताया, 'मैं जानता हूं, एक नवजात की मौत की खबर कितनी दुखदायी हो सकती है। यह पूरे परिवार के बेहद दुखभरा समय है, जो पूरे साल भर से बच्चे के आने की खुशियां संजो रहा था।'
वायरस युवाओं की अपेक्षा बुजुर्गाें को ज्यादा प्रभावित करता है
यूएस के हेल्थ डायरेक्टर नेगोजी एजिक ने भी माना कि ऐसा मामला पहली बार देखा गया। उन्होंने कहा, 'वैश्विक महामारी का रूप ले रहे कोरोनावायरस से अब तक किसी नवजात की मौत का मामला उनके सामने नहीं आया था।' हालांकि, फ्रांस के स्वास्थ्य अधिकारी जेरोम सॉलोमन ने पिछले हफ्ते बताया था कि पेरिस के इले-द-फ्रांस इलाके में एक 16 साल की लड़की की मृत्यु कोरोनावायरस से हुई है। उन्होंने दावा किया था कि युवाओं में कोरोनावायरस के मामले दुर्लभ हैं, लेकिन जिनमें भी देखे गए हैं वे गंभीर हुए हैं।
एक शोध के मुताबिक, चीन में तीन महीनों में कोरोनावायरस बीमारी से 2100 बच्चे संक्रमित हुए थे, लेकिन मौत सिर्फ एक बच्चे की हुई। इसकी उम्र 14 साल थी। अध्ययन ने पाया कि संक्रमित 6% बच्चे ही गंभीर रूप से बीमार हुए। कई अध्ययनों में पाया गया है कि कोरोनावायरस बुजुर्गों, शारीरिक रूप से कमजोर और दूसरी बीमारियों से ग्रसित रोगियों को ज्यादा प्रभावित करता है, क्योंकि ऐसे लोगों की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम होती है और उन्हें इस वायरस से निपटने का मौका नहीं मिलता।
President Donald Trump cast doubt Wednesday on the accuracy of official Chinese figures on its coronavirus outbreak after US lawmakers, citing an intelligence report, accused Beijing of a cover up. "How do we know" if they are accurate, Trump asked at a press conference. "Their numbers seem to be a little bit on the light side."
कोरोनावायरस से अब तक 47 हजार 205 लोगों की मौत हो गई है और नौ लाख 35 हजार से ज्यादा संक्रमित हैं। वहीं, एक लाख 94 हजारलोग ठीक भी हुए हैं। अमेरिका में सबसे ज्यादा दो लाख 15 हजार संक्रमित हैं। यहां एक दिन में 917 लोग मारे गए हैं। इसके साथ ही कुल मौतों का आंकड़ा पांच हजार 109 हो गया है।
अमेरिका: व्योमिंग राज्य में एक भी मौत नहीं
अमेरिका के 50 राज्यों में केवल व्योमिंग ही ऐसा राज्य है, जहां एक भी मौत नहीं हुई है। यहां केवल 137 पॉजिटिव केस हैं। देश में न्यूयॉर्क सबसे ज्यादा प्रभावित है। यहां संक्रमितों की संख्या 83 हजार 712 हो गई है और लगभग 1941 लोगों की मौत हो गई है। अमेरिकी स्वास्थ्य विशेषज्ञ डेबोराह ब्रिक्स ने कहा कि कोरोनोवायरस का एंटीबॉडी टेस्ट इस महीने के भीतर उपलब्ध हो सकता है। मैंने हर यूनिवर्सिटी और राज्य से एलिसा (एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसोर्बेंट एसे) को विकसित करने की अपील की है। एलिसा रक्त में एंटीबॉडी की जांच और माप करता है। ब्रिक्स ने कहा कि टेस्ट उन स्वास्थ्यकर्मियों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जिन्हें कोरोनोवायरस हो और उन्हें इसकी जानकारी न हो। उधर, फ्लोरिडा में संक्रमितों की संख्या सात हजार से ज्यादा हो गई है। गवर्नर रॉन डेन्साटिज ने लोगों से घर में ही रहने की अपील की है।
कोरोना के कारण कई घरेलू उड़ानें रद्द हो सकती हैं : ट्रम्प
कोरोना को लेकर व्हाइट हाउस की ब्रीफिंग में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को कहा कि देश में कई घरेलू उड़ानों और ट्रेनों का रद्द किया जा सकता है। मैं देख रहा हूं कि कई उड़ानें कोरोना से प्रभावित शहरों के लिए जा रही है जो मुझे शुरू से ही पसंद नहीं है। हालांकि मैं सभी घरेलू उड़ानें रद्द करने के समर्थन में नहीं हूं, लेकिन जल्द ही कोई न कोई फैसला लिया जाएगा। जो शहर ज्यादा प्रभावित हैं, वहां यातायात पर पाबंदी लगाई जा सकती है।
इजरायल: 25 लोगों की मौत
इजरायल में अब तक 25 लोगों की मौत हो गई है। करीब छह हजार 92 लोग वायरस की चपेट में हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले 24 घंटों के दौरान देश में पांच लोगों की मौत हुई है। मंत्रालय की तरफ से जारी जानकारी के अनुसार 95 मरीजों की हालत गंभीर है और241 लोगों को ठीक होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
नीदरलैंड: लोगों को घर में रहने के निर्देश
नीदरलैंड में 24 घंटों में 134 लोगों की मौत हो गई है और एक हजार 19 नए मामले सामने आए हैं। इसके बाद देश में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 13 हजार 614 हो गई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण राष्ट्रीय संस्थान ने बुधवार को यह जानकारी दी। सरकार की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों में लोगों को कम से कम डेढ़ मीटर की दूरी बनाए रखने के लिए कहा गया है। लोगों को घरों में रहने के लिए ही कहा जा रहा है। सभी स्कूल, जिम, स्पोर्ट्स क्लब, रेस्तरां को भी बंद करा दिया गया है।
न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए लिखा गया येल यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. हारलेन क्रुमहोल्ज का लेख. अगर आप आजकल ज्यादा थके हुए रहते हैं, खांसी चल रही है, सांस लेने में भी परेशानी हो रही है और फिर बुखार भी है तो आपको यह जरूर लगेगा कि शायद आप भी कोरोनावायरस से संक्रमित हो गए हैं। आप डॉक्टर के पास जाएंगे तो आपको घर में ही आइसोलेट रहने की सलाह दी जाएगी। यह तब तक के लिए होगा, जब तक आपकी हालत और ज्यादा खराब न हो जाए। जब आपकी तबीयत और बिगड़ने लगेगी,तो डॉक्टर आपकी नाक से एक पट्टी चिपकाकर इंफ्लूएंजा का टेस्ट करेंगे और आपको कह दिया जाएगा कि आप निगेटिव हैं, आपको कोई संक्रामक बीमारी नहीं है।
आपका कोरोनावायरस संक्रमण काटेस्ट नहीं होगा। आपको कहा जाएगा कि बेहद ज्यादा खराब हालत में पहुंच चुके लोगों कीही कोरोनावायरस के संक्रमण की जांच होगी। अब डॉक्टरआपको सर्दी-जुकाम ठीक करने की कुछ एंटीबायोटिक्स देकर घर भेज देंगे, क्योंकि उन्हें भी नहीं पता है कि क्या करना है। फिर, आप घरआकर उन सेलिब्रिटिज के बारे में पढ़ने लगेंगे जो कोरोनापॉजिटिव पाए गए हैं, लेकिन उनमें भी ऐसे लक्षण नहीं मिले हैं। कुछ दिनों बाद भी जब आपकी तबीयत ठीक नहीं होती है तो आप फिर से डॉक्टर के पास जाते हैं। वे दोबारा आपकी नाक से एक पट्टी चिपकाकर टेस्ट करेंगे, लेकिन इस बारकोरोनावायरस की जांच की जाएगी।नतीजाआने में एक से दो दिन लगते हैं, इसलिए वे आपको घर जाकर इंतजार करने को कहते हैं। आखिरकार नतीजा आता है कि आप कोरोनावायरस से संक्रमित नहीं हैं।
दुनियाभर में ऐसे कई मरीज, जिनमें कोरोनावायरस के पुख्ता लक्षण थे, लेकिन टेस्ट निगेटिव आया
यह किसी एक मरीज की कहानी नहीं, कई लोग इस स्थिति से गुजरे हैं। जिनमें लक्षण होने के बावजूद कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आई।स्टेटिक्स में भी इन्हें शामिल नहीं किया जाता। इन्हें यह भी नहीं पता होता कि उनकी इस नई बीमारी का इलाज क्या है?
आप कोरोना नेगेटिव हैं, तो शायद आप संक्रमित न हों:सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन
कोरोनावायरस का पता लगाने के लिए सबसे आम टेस्ट रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेजचेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) है। यह तकनीक उन वायरस के कणों का पता लगा सकती है, जो संक्रमण की शुरुआत में श्वसन तंत्र में मौजूद रहते हैं। तकनीकी रूप से यह छोटे से छोटे वायरस का पता भी लगा सकती है, लेकिन हकीकत में नतीजे कुछ और ही मिले।यह तकनीक कोरोनावायरस को पहचानने में कई बार गलत साबितभी हो रही है। जैसा कि सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने कहा है कि अगर आप कोरोना निगेटिव पाए जाते हैं तो शायद आप संक्रमित न हों। यहां ‘शायद’ शब्द का मतलब यही है कि हो सकता है कि आप संक्रमित हों, लेकिन टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आई।
चीन में हुई एक स्टडी में बताया गया था, 30% से ज्यादा निगेटिव टेस्ट गलत थे
मैंने ऐसे कई किस्से अपने साथी डॉक्टर्स और मरीजों से सुने हैं कि पहले उनका टेस्ट निगेटिव आया, लेकिन बाद में जब उनकी हालत और ज्यादा खराब हुईतो दोबारा टेस्ट में वे पॉजिटिव पाए गए।फिलहाल, अमेरिका में हमारे पास इस तरह की टेस्ट रिपोर्ट काडेटा नहीं है। लेकिन चीन में इस पर हुई एक स्टडी में बताया गया था कि गलत निगेटिव टेस्ट का प्रतिशत 30 से ज्यादा है। मेरे साथी डॉक्टर्स, रिसर्चर और लैबोरेटरी मेडिसिन के एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका में इसका प्रतिशत और ज्यादा हो सकता है।
गलत टेस्ट रिजल्ट के कारण : सैम्पल लेने या तकनीक में गलती
किसी टेस्ट के निगेटिव आने के कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि सैम्पल सही तरीके से नहीं लिया गया हो। सामान्य तौर पर इस तकनीक में एक पट्टी को नाक के अंदर तक कई बार घुमाकर फ्लूड का सैम्पल लिया जाता है। यह आसान नहीं होता, मरीज के लिए भी इसे झेल पाना बहुत मुश्किल होता है। दूसरा कारणलैब में इस्तेमालकी जा रही तकनीकों और चीजों का गलत तरीके से इस्तेमाल भी हो सकता है।
फिलहाल, यही कहा जा सकता है कि अगर आप में कोरोनावायरस के संक्रमितों जैसे लक्षण हैं और आपका टेस्ट निगेटिव आया हो तो भी यह मान लीजिए कि आपके कोरोना संक्रमित होने की पूरी-पूरी संभावना है। इससे बचने के लिएहमें अपने व्यवहार में थोड़े बदलाव लाने ही चाहिए। लगातार हाथ धोते रहना, चेहरे को हाथ न लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना।
कोरोनावायरस या कोविड-19 के कहर से अमेरिका सकते में है। बुधवार रात तक यहां एक लाख 89 हजार 661 मामले सामने आए। इसी दौरान 4 हजार 097 की मौत हो गई। हालात भयावह हैं। महाशक्ति जूझ रही है। राष्ट्रपति ट्रम्प की कड़ी आलोचना भी हो रही है। हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी ने उन्हें ‘गैर जिम्मेदार और लापरवाह’ तक कह दिया। इसकी बाजिव वजह भी है। दरअसल, ठीक एक महीने पहले ट्रम्प ने कोरोनावायरस को मामूली फ्लू बताया था। अब जबकि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति इसी कोरोना को क्रूर और जानलेवा बता रहे हैं।
सात दिन पहले तक नहीं समझ पाए खतरा?
न्यूयॉर्क टाइम्सके मुताबिक, सात दिन पहले तक ट्रम्प इसे सामान्य फ्लू ही मान रहे थे। मंगलवार को जब संक्रमितों का आंकड़ा एक लाख 87 हजार हुआ तो उनके सुर बदल गए। अब वो इसकी तुलना 9/11 के हमलों से कर रहे हैं। महज 24 घंटे पहले उन्होंनें कोरोना को क्रूर और बेहद जानलेवा बताया। सच्चाई ये है कि वो अपने दावों के मकड़जाल में उलझ गए हैं।
ट्रम्प अब क्यों चिंतित?
व्हाइट हाउस ने करीब 15 दिन पहले कोरोना से निपटने के लिए टास्क फोर्स बनाई। इसके एक सदस्य और ट्रम्प के काफी करीबी डॉक्टर फौसी ने देश को आगाह किया। कहा कि यह वायरस 1 से 2 लाख 40 अमेरिकियों की जान ले सकता है।'मौजूदा हालात के आधार पर तैयार किए गए चार्ट भी यही आशंका जता रहे हैं। इन आशंकाओं को गलत साबित करने के लिए ट्रम्प सरकार रोज नए प्रतिबंध लगाने पर मजबूर है।
हालात काबू में नहीं हैं मिस्टर प्रेसिडेंट
कोरोना पर ट्रम्प के बयान बदलते रहे। कभी मामूली फ्लू बताया तो कभी क्रूर और खतरनाक। फिर ये भी कहा कि हालात काबू में हैं। अब इस बात की संभावना न के बराबर है कि अमेरिकी ईस्टर का पर्व भी मना पाएंगे। इसके संकेत मंगलवार को राष्ट्रपति ने खुद दिए। कहा कि मैं हर अमेरिकी से कहना चाहता हूं कि वो मुश्किल दिनों के लिए तैयार रहे। अगले दो हफ्ते हम पर बहुत भारी पड़ सकते हैं।'
दुनियाभर में कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा बुजुर्गों की मौत हो रही है। ऐसे में केरल के 93 साल के थॉमस अब्राहम और उनकी 88 साल की पत्नीमरियम्मा ने कोरोना को मात देकर डॉक्टरों को चौंका दिया। यह दोनों पिछले महीने इटली से लौटे बेटे, बहू और पोते के संपर्क में आने की वजह से संक्रमित हुए थे। हालांकि, अब परिवार के पांचों सदस्य संक्रमण मुक्त हो गए हैं।
बुजुर्ग दंपति के स्वस्थहोने का राज उनकी जीवनशैलीहै। इसका खुलासा दंपति के पोतेरिजो मोनसी ने किया। रिजो बताते हैं कि 93 साल के उनके दादा ने बिना जिम गए सिक्स पैक बॉडी बनाई है। कभी शराब या सिगरेट को हाथ नहीं लगाया।
आईसोलेशन में भी खानेका रखा ध्यान
केरल के पथानामथिट्टा जिले के रहने वाले थॉमस किसान हैं। रिजो के मुताबिक आइसोलेशन के दौरान उनके दादा-दादी ने हमेशा सादा और पौष्टिकखाने पर ध्यान दिया। दादा पझनखानजी(चावल से बनी डिश)खाना पसंद करते हैं। यह केरल का प्रसिद्ध भोजन है। यह दलिया और चावल को मिलाकर बनता है। इसके अलावा फल और कटहल की सब्जी खाते थे जबकिदादी मछली-कड़ी खानापसंद करती हैं।
बुजुर्ग दंपती जल्द अस्पताल से डिस्चार्ज होगी
बुजुर्ग दंपति का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि जब ये भर्ती हुए थे तो इनकी हालत काफी खराब थी। इनका बचना मुश्किल लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे ये सही होते गए। दोनों अंदर से काफी मजबूत हैं। इन्हें जिंदगी जीने की सही तरीका मालूम है। एक-दो दिन में इन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। डॉक्टरों ने बताया कि बुजुर्ग दंपति के पोतेने दोनों की जीवनशैली के बारे में बताया था। तब लगा कि येमजाक कर रहा है। लेकिन अब यकीन हो गया।डॉक्टर इसेकिसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे है।
राज्य सरकार ने की प्रशंसा
बुजुर्ग दंपति के ठीक होने पर केरल सरकार ने डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफकी तारीफकी। राज्य सरकार ने कहा- यह चमत्कार है कि बुजुर्ग दंपती महामारी से बच गए। डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसके लिए काफी मेहनत की है। दंपतीके इलाज में सात डॉक्टरों की टीम लगी थी। इसके अलावा 40 मेडिकल स्टाफ, जिसमें 25 नर्से भी शामिल थीं।
पोते को कहा था कि इटली से ज्यादा सुरक्षित है
रिजो इटली मेंरेडियोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने बताया किहम अगस्त में केरल आने की योजना बना रहे थे। लेकिन मेरे दादाजी ने जल्दी आने को कहा। यह वाकई में चमत्कार है। अब हमें लगता है कि यह आशीर्वाद था। नहीं तो ऐसी स्थिति में हम इटली में होते। जहां संक्रमण काफी फैला हुआ है और हजारों लोगों की जान जा चुकी है। दादाजी ने यह कहा था कि हम लोग इटली से ज्यादा सुरक्षित केरल में रहेंगे।
दक्षिण कोरिया में संक्रमण फैलने के बाद जो कुछ हुआ, वह बहुत से देशों के लिए सबक हो सकता है। पांच करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले साउथ कोरिया में अब तक कोरोनावायरस के संक्रमण के 9 हजार 786 मामले सामने आए हैं। इनमें से 162 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि 5 हजार 408 लोग स्वस्थ होकर घरों को लौट चुके हैं। दक्षिण कोरिया वह मुल्क है, जो देश में लॉकडाउन लगाए बिना संक्रमण पर काबू पाने में सफल हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि यहां पर बड़े पैमाने पर कोरोना टेस्ट (अब तक करीब 3 लाख) हुए। दक्षिण कोरिया में बहुत ज्यादा टेस्ट होने पर फरवरी में ही करीब 8 हजार मामले सामने आए। संक्रमितों की पहचान हो जाने पर संक्रमण को बड़े पैमाने पर फैलने से रोका जा सका। यहां फरवरी से अब तक सिर्फ 786 मामले सामने आए हैं। पढ़ें दक्षिण कोरिया ग्राउंड रिपोर्ट...
मैं इंदौर की रहने वाली हूं। अभी साउथ कोरिया की राजधानी सियोल में रहती हूं। यहां कोरिया यूनिवर्सिटी से पॉलीमर केमिस्ट्री में पीएचडी कर रही हूं। तीन फरवरी को मैं अपने घर इंदौर से वापस साउथ कोरिया आई। सफर की वजह से मुझे सर्दी हुई और फीवर आ गया। मैं जिस लैब में काम करती हूं, वहां जब इस बात का पता चला तो सब घबरा गए। मुझे तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। हॉस्पिटल पहुंचते ही वहां के स्टॉफ ने मेरे दोस्तों को दो मीटर दूर कर दिया और मेरे चारों ओर दो मीटर का घेरा बनाकर चलने लगे। इसके बीच में किसी को नहीं जाने दिया जा रहा था। मुझे हॉस्पिटल में पीछे की तरफ अलग से बनाए गए वार्ड में ले जाया गया और जांच की गई।
यह वह समय था, जब ज्यादातर देश कोरोनावायरस को गंभीरता से नहीं ले रहे थे और दक्षिण कोरिया में संक्रमण के गिने-चुने मामले आए थे। ऐसे में दक्षिण कोरिया में पहले से इतनी तैयारी और जागरूकता उनकी बेहतर समझ दिखाती है। हालांकि, बाद में मेरी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई।
दरअसल, साउथ कोरिया में संक्रमण की शुरुआत डाएगू शहर के शिनचोनची चर्च से हुई थी। यहां की एक महिला कोरोनावायरस के संक्रमण की चपेट में आई और उसकी पहचान नहीं हो सकी। इसके बाद वह महिला चर्च के 9 और 16 फरवरी को हुए समारोहों में शामिल हुई। इससे यहां संक्रमण के कम्युनिटी ट्रांसमिशन की शुरुआत हुई। इससे पहले यहां संक्रमण के गिनचुने 20 मामले थे। इसके बाद चर्च के आसपास अचानक मामले बढ़ने लगे। यहां 2015 में मर्स (mers) का भी कहर फैला था।
जब यहां पर संक्रमण तेजी से फैला तो सरकार की सबसे पहले कोशिश यही थी कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का कोरोना टेस्ट किया जा सके। इसकी वजह यह थी कि तब संक्रमण शुरुआती स्तर पर था और ऐसे में संक्रमित लोगों की पहचान कर उन्हें क्वारैंटाइन करना बहुत जरूरी था। इससे संक्रमण फैलने से तो रोका ही जा सका और मौतों पर लगाम लगाई जा सकी। भारत के लिए सबसे बड़ी बात यह है कि यहां की आबादी बहुत ज्यादा है। ऐसे में यहां टेस्ट भी कम हुए हैं। अगर संक्रमण को और घातक स्तर तक पहुंचने से रोकना है तो केवल ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट करना होगा इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।
बर्थ इयर के हिसाब से दिन तय कर मास्क बांटे गए
यहां पर शुरुआत में जब संक्रमण तेजी से बढ़े तो मेडिकल शॉप में मास्क और सैनिटाइजर लेने के लिए लोगों की भीड़ जुट पड़ी। इससे यहां इन चीजों की शॉर्टेज हो गई। इसके बाद यहां की सरकार ने एक नियम बनाया कि लोगों के बर्थ इयर के आखिरी नंबर के आधार पर मास्क और सैनिटाइजर बांटे जाएं। जैसे की अगर आपका बर्थ इयर 1995 है तो आखिरी का नंबर 5 है यानी आपको मास्क शुक्रवार को मिलेगा। इसके अलावा शनिवार और रविवार सबके लिए छूट रहती थी।
उल्टे हाथ से काम करने की सलाह
संक्रमण को रोकने के लिए यहां के हेल्थ एक्सपर्ट्स ने लोगों को उल्टे हाथ से काम करने की सलाह दी। मतलब जो लोग दाएं हाथ से काम करते हैं, वे बाएं हाथ का इस्तेमाल करें और जो बाएं का इस्तेमाल करते हैं, वे दाएं हाथ का इस्तेमाल करें। इसके पीछे वजह यह थी कि लोग रोज के कामों के लिए अपने जिस हाथ का इस्तेमाल करते हैं, वही हाथ आंख और चेहरे पर ले जाते हैं।
600 टेस्टिंग सेंटर शुरू किए
संक्रमण के मामले आते ही यहां 600 से ज्यादा टेस्टिंग सेंटर खोले गए। शरीर के तापमान और गले की जांच दस मिनट कर ली जाती है और एक घंटे के भीतर इसकी रिपोर्ट मिल जाती है। यहां हर जगह लगे फोन बूथों को टेस्टिंग सेंटर में बदल दिया गया है। 50 से ज्यादा ड्राइविंग स्टेशनों पर लोगों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था भी की गई है।
यहां की सबसे खास बात यह थी कि संक्रमण से निपटने के लिए तकनीक का बेहतर इस्तेमाल किया गया। यहां क्वारैंटाइन मे भेजे गए लोगों के फोन में एक मोबाइल एप्लीकेशन डाला गया। इससे सरकारी अधिकारियों को उस व्यक्ति की गतिविधि पर नजर रखने में मदद मिली। इसके अलावा हर नागरिक को फोन के जरिए पल-पल की सूचना दी जाती थी। मैसेज के जरिए बताया जाता था कि किस एरिया में कितने मामले सामने आए हैं। लोगों से 2 मीटर की दूरी बनाए रखने, कम यात्रा करने की अपील की गई। इससे लोग जागरूक हुए और अपनी जिम्मेदारी समझी।
बड़ी इमारतों में थर्मल इमेजिंग कैमरे
सरकार ने यहां सोसाइटी, बड़ी इमारतों, होटलों और सार्वजनिक स्थानों पर थर्मल इमेजिंग कैमरे लगाए हैं। मेरी बिल्डिंग और लैब में भी यह लगाया गया है। तापमान की जांच होने के बाद ही हमें एंट्री मिलती है। इसके साथ ही सरकार ने हर पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे- बस, सब-वे पर जगह-जगह पर सैनिटाइजर मौजूद करा रखा है। इसके साथ ही रोड पर हर 500 मीटर की दूरी पर आपको सैनिटाइजर मिल जाएगा।
जब से यह संक्रमण फैला इंडियन एम्बेसी, तभी से लगातार इंडियन कम्युनिटी से संपर्क में है। जब संक्रमण तेजी से फैल रहा था तो हर छात्र को पर्सनल मेल और मैसेज के जरिए बताया जाता था कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो आपको एयरलिफ्ट कर लिया जाएगा, घबराने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही एंबेसी इंडियन कम्युनिटी के लोगों को मास्क और सैनेटाइजर भी बांटती रही।
कोरोनावायरस से दुनियाभर में 8 लाख 58 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। चीन से शुरू हुए इस घातक वायरस का नया केंद्र अमेरिकाबन चुका है। दुनिया में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा, जब किसी महामारी के चलते इतनी जानें जा रही हों और हर कोई एक अजीब-सीबेचैनी, घबराहट और डर में हो। 102साल पहले 1918 में भी ऐसी महामारी आई थी। तब हजारों, लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। हम बात कर रहे हैं स्पेनिश फ्लू की, जिसने दुनिया की एक तिहाई आबादी को अपनी चपेट में ले लिया था। एक ही झटके में इसने पांच करोड़ लोगों की जान ली थी। यह आंकड़ा पहले वर्ल्ड वॉर के चार साल के दौरान हुई मौतों से चार गुना ज्यादा था। आज भी इस महामारी की तस्वीरें देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय इसका कहर कैसा रहा होगा।
सबसे पहले अमेरिका चपेट में आया था
स्पेनिश फ्लू ने सबसे पहले अमेरिका में दस्तक दी थी। इसके बाद ये यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में फैलना शुरू हुआ। नेशनल आर्काइव में मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, इस इन्फ्लुएंजा ने एक साल में दो अलग-अलग फेज में दुनियाभर पर हमला किया था। पहले दौर का असर तीन दिन के बुखार के साथ दिखना शुरू हुआ, वो भी बिना किसी खास लक्षण के। पीड़ित जैसे ही बीमारी से उबरने लगता, वैसे ही यह दोबारा हमला कर देती। दूसरे हमले के बाद पीड़ित की हालत इतनी गंभीर हो जाती कि उसके बचने की कोई उम्मीद ही नहीं बचती। इसके फैलते ही मौत की रिपोर्ट्स आनी शुरू हो गई थीं। 1918 में ही यह बीमारी दोबारा लौटकर आई। इसमें कई पीड़ित पहला लक्षण सामने आने के चंद घंटों से लेकर कुछ दिनों तक मौत के मुंह में चले गए।
बीमारी को पहचानना था मुश्किल
साइंटिस्ट्स, डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स के लिए इस बीमारी को पहचानना मुश्किल हो गया था। ये इतनी तेज से गहरा असर कर रही थी कि इसे काबू करना संभव नहीं था। उस दौर में इस महामारी के इलाज के लिए न तो कोई सटीक दवा थी और न ही कोई वैक्सीन। बस प्रभावित इलाकों में लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही थी। महामारी के चलते लोगों को मास्क पहनने के लिए कहा गया था। वहीं स्कूल, थिएटर और बिजनेस पूरी तरह से बंद कर दिए गए थे, ताकि लोग घरों से कम से कम निकलें। इस महामारी ने किसी को नहीं छोड़ा था। इसने शहरी इलाके से लेकर ग्रामीण इलाके तक, आबादी से भरे ईस्ट कोस्ट से लेकर अलास्का के रिमोट एरिया तक सबको अपनी चपेट में लिया।
तस्वीरोंमें देखिए स्पेनिश फ्लू ने कैसे कहरबरपाया था
जिस कोरोनावायरस से पूरी दुनिया लड़ रही है। बड़े-बड़े देश बर्बादी की कगार पर खड़े हो गए। ऐसे समयएक देश ऐसा भी है जहां कोरोना शब्द पर ही बैन लगा दिया गया है। यह देश मध्य एशिया में ईरान से सटातुर्कमेनिस्तान है। यहां कोरोना बोलने और लिखने वालों पर कार्रवाई होती है। सरकारने मास्क पहनने पर भी बैन लगाया हुआ है।इसका उल्लंघन करने पर जेल हो सकती है।इंडिपेंडेंट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक तुर्कमेनिस्तान की मीडिया भी महामारी के लिए इस शब्द का प्रयोग नहीं कर सकती है। स्वास्थ्य मंत्रालय संक्रमण ने स्कूलों, कार्यालयों और पब्लिक प्लेस में हेल्थ इंफॉर्मेशन ब्रोशर वितरित किया गया है। इसमें कहीं भी कोरोना शब्द का प्रयोग नहीं हुआ। तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बेयरडेमुकामेडॉव ने कोरोना शब्द परबैन लगाया है।गुरबांगुली 2006 से यहां के सत्ते पर काबिज हैं। इन्हें फादर प्रोटेक्टर भी कहा जाता है।हालांकिअभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर क्यों कोरोनाशब्द पर बैन लगाया गया है।
लोगों के बीच सरकारी एजेंट घूम रहे
रिपोर्ट के मुताबिक यहां कोरोना की चर्चा करने पर लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई रही है। इंडिपेंडेंट ने रेडियो अज़ातलिक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि जनता के बीच स्पेशल एजेंट्स सादे कपड़ों में घूम रहे हैं। लोगों की बातें सुनते हैं। अगर कोई कोरोना पर चर्चा करता पकड़ा जाएगा तो उसे जेल में डाल दिया जाता है। हालांकिइसके बावजूद सरकार वायरस की रोकथाम के लिए काफी कदम उठा रही है। रेलवे स्टेशन पर थर्मल स्क्रीनिंग हो रही है। लोगों के शरीर का तापमान जांचा जा रहा है। भीड़भाड़ वाली जगहों की साफ-सफाई की जा रही है। देश में जारी नागरिक आंदोलनों पर रोक लगा दी गई है।
ये बैन लोगों की जान खतरे में डाल सकती है
पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया डेस्क की रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर (आरएसएफ) की प्रमुख ज्यां कैवेलियर ने सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। उनका कहना है कि कोरोना वायरस से जुड़ा कोई भी बैन तुर्कमेनिस्तान के नागरिकों की जान खतरे में डाल सकता है। ज्यां ने तुर्कमेन अधिकारियों का हवाला देते हुए बताया है कि तुर्कमेनिस्तान के नागरिकों के पास इस महामारी के बारे में सीमित और एकतरफा जानकारी है। इसलिए यह और भी खतरनाक स्थिति है।
प्रेस फ्रीडम आर्गेनाइजेशन ने जताया ऐतराज
तुर्कमेनिस्तान सरकार की ओर से कोरोना शब्द पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रेस फ्रीडम आर्गेनाइजेशन ने आपत्ति जताई है। आर्गेनाइजेशन का कहना है कि गुरबांगुली की सरकार ने राज्य-नियंत्रित मीडिया को शब्द लिखने या उच्चारण करने से मना किया है। यह आदेश मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रहार है। सरकार को इससे बचना चाहिए। आर्गेनाइजेशन ने इसकी चर्चा करने को कहा ताकि सरकार ऐसी पाबंदी का आदेश वापस ले। बता दें कि तुर्कमेनिस्तान प्रेस फ्रीडम के मामले में 180 देशों की सूची में आखिरी स्थान पर है।
ईरान में भयावह स्थिति, तुर्केमिनिस्तान में भी लोग डरे
तुर्कमेनिस्तान ईरान के दक्षिण में स्थित है। ईरान में कोरोना के काफी ज्यादा मामले आ चुके हैं। अब तक यहां 2889 लोगों की मौत हो चुकी है। 50 हजार से ज्यादा संक्रमित लोगों का इलाज चल रहा है। ऐसी स्थिति में ईरान से सटे तुर्कमेनिस्तान में इस तरह की पाबंदी पर दुनियाभर ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। इंडिपेंडेंट के मुताबिक इस बैन के चलतेयहां केलोगों को वायरस केप्रति कम जागरूकता होगी। वायरस फैलने का खतरा अधिक रहेगा। तुर्क के लोग भी डरे हुए हैं।