Monday, September 7, 2020
ट्रम्प खुद को श्वेत अमेरिकियों का रक्षक बता रहे; अश्वेतों पर हमलों की निंदा तो दूर उनका नाम तक नहीं लेते September 07, 2020 at 06:12PM
पहले जॉर्ज फ्लॉयड फिर जैकब ब्लेक। इन दो अश्वेतों के साथ पुलिसिया जुल्म का विरोध हुआ। अश्वेतों ने आरोप लगाया कि उनके साथ भेदभाव और जुल्म होता है। लोग सड़कों पर उतरे, हिंसा हुई और दंगे भी। लेकिन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का नजरिया दूसरा है। वे कहते हैं- अमेरिका में कोई नस्लवाद या रंगभेद नहीं है। अगर कुछ है तो श्वेत अमेरिकियों को लेकर गलत धारणा।
जैकब ब्लेक का नाम तक नहीं लिया
हाल ही में ट्रम्प केनोशा गए। यहां जैकब ब्लेक के साथ पुलिसिया जुल्म हुआ। ब्लेक अपाहिज हो चुके हैं। हैरानी की बात है कि ट्रम्प ने जैकब का नाम तक नहीं लिया। उल्टा पुलिस की तारीफ की, जिसे पुलिस ने सात गोलियां मारीं। ट्रम्प कहते हैं- अश्वेतों का मामला उछालकर अमेरिका के खिलाफ प्रोपेगंडा चलाया जा रहा है। ये मानसिक बीमारी जैसा है। इसे हम जारी नहीं रख सकते। फिर भी अगर ऐसा (नस्लवाद या रंगभेद) का कोई मामला सामने आता है, तो शिकायत कीजिए। जल्द एक्शन लिया जाएगा। मैं लिबरल्स के लिए सिर्फ दुख जता सकता हूं। संविधान की धारा 101 खत्म कर दी गई है।
पहले कभी ऐसा नहीं हुआ
अमेरिकी राजनीति में ऐसे पहले कभी नहीं कि कोई राष्ट्रपति साफ तौर पर खुद को सिर्फ श्वेत यानी व्हाइट अमेरिकियों का उम्मीदवार बता रहा हो। पिछले महीने रिपब्लिकन पार्टी के कन्वेंशन में यह दिखाने की कोशिश की गई जैसे अश्वेत और हिस्पैनिक ट्रम्प लगे नस्लभेद के आरोपों को खारिज कर रहे हैं। जबकि, यह ट्रम्प के एजेंडे में है। 2015 याद कीजिए। ट्रम्प ने कैम्पेन शुरू किया। मैक्सिको बॉर्डर क्रॉस करके आने वालों को रेपिस्ट्स करार दिया।
जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने की थी। ट्रम्प ने शुरू में तो इसकी निंदा की। लेकिन, बाद में वे पुलिस के साथ खड़े हो गए। उस पर लगाम लगाने से बचने की कोशिश की। जबकि, इस घटना के खिलाफ पूरे देश में हिंसा और प्रदर्शन हो रहे थे। फ्लॉयड की मौत के बाद ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ कैम्पेन चला। ट्रम्प ने इसे नफरत फैलाने वाली हरकत करार दिया। पुलिस को सख्त कार्रवाई के आदेश दिए।
फायदा भी हुआ
ये घटनाएं बताती हैं कि अपने बयानों और ट्वीट्स के जरिए ट्रम्प जो करना चाहते थे, उनमें कामयाब भी हुए। एक वर्ग है जो श्वेत अमेरिकियों को सबसे बेहतर मानता है। वो ट्रम्प के साथ हो गया। अश्वेतों के साथ हुई घटनाओं पर उन्होंने बहुत हल्का रवैया अपनाया। कहा- पुलिस ही क्यों। हर जगह कुछ गलत किस्म के लोग होते हैं। एक एक्सपर्ट शर्लिन आईफिल कहती हैं- ट्रम्प बेहद कट्टरपंथी हैं। इसके पहले कभी ये सब चीजें नहीं देखी गईं। लेकिन, यह खेल खतरनाक है। व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी ट्रम्प का बचाव करती हैं। कैली मैकेनी ने कहा- राष्ट्रपति सबको बराबर मानते हैं। नस्लभेद का तो कोई सवाल ही नहीं है।
सर्वे कुछ और कहते हैं...
सीबीएस न्यूज ने पिछले हफ्ते एक पोल कराया। 66 फीसदी वोटर्स ने माना कि ट्रम्प श्वेतों का समर्थन करते हैं। 50 फीसदी ने माना कि ट्रम्प ने अश्वेतों के खिलाफ काम किया। 81 फीसदी अश्वेत मानते हैं कि ट्रम्प ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। सर्वे में साफ तौर पर अश्वेत जो बाइडेन के साथ दिखे। इस बीच ट्रम्प के पूर्व वकील माइकल डी. कोहेन की किताब आई। उनके मुताबिक, 2016 में प्रचार के दौरान ट्रम्प ने कहा था कि अश्वेत उनका साथ नहीं देंगे।
ट्रम्प भी सियासत की नब्ज पहचानते हैं। अश्वेतों के बीच आधार मजबूत करने के लिए उन्होंने फुटबॉल स्टार हर्शेल वॉकर और पूर्व डेमोक्रेट सांसद वर्नेन जोन्स को अपने पक्ष में उतार दिया। ट्रम्प कहते हैं कि उन्होंने अश्वेतों के लिए किसी भी दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति से ज्यादा काम किया है।
कितने सही हैं ट्रम्प पर आरोप
ट्रम्प ने पिछले हफ्ते फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में नस्लवाद के आरोप खारिज कर दिए थे। डिस्कवरी इंस्टीट्यूट के टकर कार्लसन मानते हैं- ट्रम्प के श्वेत अमेरिकियों का समर्थन हासिल है। लेकिन, सभी का नहीं। नस्लवाद की मुद्दा जटिल है। अमेरिकी सरकार के विभागों में इसे आप महसूस कर सकते हैं। अब अमेरिकी सरकार इसे दूर करने के लिए स्टाफर्स को ट्रेनिंग देने जा रही है। केंद्र या ट्रम्प सरकार में ऑफिस मैनेजमेंट एंड बजट के डायरेक्टर रसेल टी. वॉट कहते हैं- सरकारी विभागों में नस्लवाद या रंगभेद के आरोप सिर्फ झूठ और प्रोपेगंडा के अलावा कुछ नहीं हैं। इस मुद्दे को गलत इरादे से उछाला जा रहा है। फिर भी अगर कुछ है तो इसके दूर करने के लिए कदम उठाएंगे। अमेरिका के विकास में अश्वेतों का बड़ा योगदान है।
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भारत, इजराइल और अमेरिका 5जी टेक्नोलॉजी डेवलप करेंगे, बेंगलुरु के अलावा तेल अवीव और सिलिकॉन वैली में इस पर काम होगा September 07, 2020 at 06:04PM
भारत, अमेरिकी और इजराइल 5जी कम्युनिकेशन नेटवर्क पर मिलकर काम करेंगे। एक अमेरिकी अधिकारी ने न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में इसकी जानकारी दी। इस टेक्नोलॉजी पर रिसर्च तीनों देशों के तीन टेक्नोलॉजी हब में होगा। ये तीन शहर हैं- बेंगलुरु, सिलिकॉन वैली और तेल अवीव।
अमेरिका, इजराइल और अमेरिका कतई नहीं चाहते कि चीन की कंपनियां इस मामले में विस्तार करें। दो महीने पहले अमेरिका ने ब्राजील से साफ कहा था कि वो 5जी नेटवर्क कॉन्ट्रैक्ट चीनी कंपनी हुबेई को न दे।
बेहतरीन टेक्नोलॉजी तैयार करेंगे
एक अमेरिकी अफसर ने न्यूज एजेंसी से इंटरव्यू में कहा- भारत, अमेरिका और इजराइल पारदर्शी, खुला और भरोसेमंद 5जी नेटवर्क तैयार करेंगे। तीन साल पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजराइल गए थे, तब इस पर शुरुआती बातचीत हुई थी। अब इस पर काम शुरू हो चुका है। अमेरिकी एजेंसी यूएसएड के एडमिनिस्ट्रेटर बोनी ग्लिक ने यह जानकारी दी। कहा- हम नेक्स्ट जेनरेशन टेक्नोलॉजीस पर मिलकर काम कर रहे हैं। इसके बेहतरीन नतीजे सामने आएंगे। इस बारे में पिछले हफ्ते भारत, अमेरिका और इजराइल की बेहद अहम मीटिंग हो चुकी है।
एम्बेसेडर भी शामिल हुए
तीनों देशों की मीटिंग वर्चुअल थी। खास बात ये है कि इसमें भारत और इजराइल के एम्बेसेडर भी शामिल हुए। ग्लिक ने कहा- दूसरी टेक्नोलॉजी के अलावा हमारा मुख्य फोकस नेक्स्ट जेनरेशन 5जी टेक्नोलॉजी पर रहेगा। भारत और इजराइल इस नेटवर्क को तैयार करने में अहम भूमिका निभाएंगे। सिलिकॉन वैली, बेंगलुरु और तेल अवीव टेक्नोलॉजी हब हैं। इन तीन शहरों में काम किया जाएगा।
चीन पर तंज
ग्लिक ने चीन का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारा उसी की तरफ था। कहा- एक बात बिल्कुल साफ है। 5जी नेटवर्क मामले में हम किसी एक देश का दबदबा कायम नहीं होने देंगे। ये गलतफहमी दूर हो जानी चाहिए। जब तीनों देश डिफेंस और दूसरे मामलों में सहयोग कर सकते हैं तो 5जी पर क्यों नहीं। कुछ चीजें पब्लिक नहीं की जा सकतीं, क्योंकि ये काफी संवेदनशील हैं। तीनों देश वॉटर मैनेजमेंट और सिक्योरिटी पर भी साथ काम कर रहे हैं।
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Covid-19 vaccine latest flashpoint in White House campaign September 07, 2020 at 05:03PM
चीन और रूस के साथ आया पाकिस्तान; भारत, अमेरिका और सऊदी अरब का नया गठबंधन तैयार : रिपोर्ट September 07, 2020 at 04:48PM
पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं। दोनों देशों के संबंध इतने खराब कभी नहीं रहे। यही वजह है कि पाकिस्तान अब हर तरह की मदद के लिए चीन पर निर्भर हो गया है। एक डिफेंस एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत, अमेरिका और सऊदी अरब एक अलायंस के तौर पर साथ आ चुके हैं। जबकि, चीन और रूस के अलावा ईरान भी पाकिस्तान के साथ नजर आता है।
पाकिस्तान अब अमेरिका से बहुत दूर
डिफेंस एनालिस्ट और साउथ एशियन पॉलिटिक्स की एक्सपर्ट आयशा सिद्दीकी ने न्यूज एजेंसी एएनआई को एक इंटरव्यू दिया है। आयशा के मुताबिक, पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में नाटकीय बदलाव आया है। ये बेहद खराब हो चुके हैं और इसे महसूस भी किया जा सकता है। चीन अब पाकिस्तान को हर तरह की मदद दे रहा है। आयशा ने कहा- इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान अब चीन के पाले में जा चुका है। वहां उसे रूस और शायद ईरान का भी साथ मिले।
पाकिस्तान को अब आर्थिक मदद नहीं
आयशा कहती हैं- पाकिस्तान भले ही यूएस-तालिबान के बीच बातचीत में मदद का दिखावा कर रहा हो, लेकिन इससे अमेरिका के रुख में बदलाव नहीं आया। यह साफ हो चुका है कि अमेरिका अब पाकिस्तान को आर्थिक मदद नहीं देगा। दुनिया के सामने यह सच्चाई बहुत पहले आ चुकी है कि तालिबान और ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान से मदद मिली। दरअसल, अमेरिका यह जानता है कि पाकिस्तान आतंकवाद का खात्मा करना ही नहीं चाहता।
इमरान की चीन पर नजर
आयशा कहती हैं- पाकिस्तान अब सिर्फ चीन की तरफ देख रहा है। वो अकेला ऐसा देश है जो उसकी मदद कर रहा है। कोरोना दौर के बाद तो इमरान सरकार पूरी तरह चीन पर निर्भर हो जाएगी। दुनिया तेजी से बदल रही है। भारत, अमेरिका और सऊदी अरब अब साथ आ चुके हैं। हो सकता है आने वाले वक्त में चीन और ईरान ज्यादा करीब आएं। पाकिस्तान भी इसमें शामिल होगा। वहां अब सलाह देने वाले लोग भी चुप हैं।
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रूस में वैक्सीन 'स्पुतनिक वी' को पब्लिक में रिलीज किया गया, यहां 10 लाख से ज्यादा मामले; दुनिया में अब तक 2.74 करोड़ केस September 07, 2020 at 04:38PM
दुनिया में कोरोनावायरस के अब तक 2 करोड़ 74 लाख 79 हजार 207 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 1 करोड़ 95 लाख 73 हजार 109 मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 8 लाख 96 हजार 421 लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं।
रूस ने अपनी कोरोना वैक्सीन को पब्लिक के लिए रिलीज कर दिया है। यहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। हालांकि, अभी ये नहीं बताया है कि किस तरह से इसे लोगों तक पहुंचाया जाएगा। सरकार खुद टीकाकरण कार्यक्रम चलाएगी या फिर इसे मार्केट में उपलब्ध कराया जाएगा।
इस वैक्सीन को रूस की गामलेया नेशनल रिसर्च सेंटर ऑफ इपिडेमियोलॉजी और रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (आरडीआईएफ) ने मिलकर बनाया है। मॉस्को के मेयर सर्जेई सोब्यानिन ने उम्मीद जताई कि कुछ ही महीनों में यहां बहुत से लोगों का टीकाकरण हो सकेगा। देश में कोरोना के 10 लाख 30 हजार 690 मामले आ चुके हैं।
इन 10 देशों में कोरोना का असर सबसे ज्यादा
देश |
संक्रमित | मौतें | ठीक हुए |
अमेरिका | 64,85,575 | 1,93,534 | 37,58,629 |
भारत | 42,77,584 | 72,816 | 33,21,420 |
ब्राजील | 41,47,794 | 1,27,001 | 33,55,564 |
रूस | 10,30,690 | 17,871 | 8,43,277 |
पेरू | 6,91,575 | 29,976 | 5,22,251 |
कोलंबिया | 6,71,848 | 21,615 | 5,29,279 |
साउथ अफ्रीका | 6,39,362 | 15,004 | 5,66,555 |
मैक्सिको | 6,37,509 | 67,781 | 4,46,715 |
स्पेन | 5,25,549 | 29,516 | उपलब्ध नहीं |
अर्जेंटीना | 4,88,007 | 10,129 | 3,57,388 |
इजराइल: 24 घंटे में रिकॉर्ड 3331 नए मामले
इजराइल में 24 घंटे में रिकॉर्ड 3331 नए मामले आए हैं। यहां जब से कोरोना फैला है तब से कभी एक दिन में इतने मामले नहीं आए। इससे पहले तीन सितंबर को 2991 मामले आए थे। देश में अब तक 1 लाख 33 हजार 975 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1026 लोगों की मौत हो चुकी है। देश में गंभीर मरीजों की संख्या 470 हो गई है और 1 लाख 5 हजार 455 लोग ठीक हो चुके हैं। यहां शाम 7 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक बाहर निकलने पर बैन है।
ब्राजील: अब तक 1.27 लाख की मौत
ब्राजील में कोरोना संक्रमण के एक दिन में 10 हजार 273 नए मामले आए और 310 लोगों की जान गई। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक अब तक 41 लाख 47 हजार 794 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1 लाख 26 हजार 960 लोगों की मौत हो चुकी है। यहां हफ्ते भर में 6 हजार लोगों ने दम तोड़ा है। देश में अब तक 33 लाख 55 हजार 564 लोग ठीक हो चुके हैं।
चीन: 15 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी
चीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को बताया कि पिछले 24 घंटे में 24 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दी गई है। देश में 85 हजार 134 लोग संक्रमित हुए हैं और 80 हजार 335 मरीज ठीक हो चुके हैं। अभी 175 लोग अस्पताल में भर्ती हैं, जिसमें दो की हालत गंभीर है।
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राफेल इंडक्शन सेरेमनी में शामिल होने 10 सितंबर को भारत आएंगी फ्लोरेंस पार्ली, गलवान झड़प के बाद भारत आने वाली पहली विदेशी नेता September 07, 2020 at 03:38AM
फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली 10 सितंबर को भारत पहुंचेंगी। वो अंबाला एयर फोर्स बेस पर होने वाली राफेल जेट्स इंडक्शन सेरेमनी में शामिल होंगी। फ्लोरेंस रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात करेंगी। पार्ली के साथ फ्रांस के रक्षा अधिकारी और डिफेंस इंडस्ट्री का डेलिगेशन भी भारत आएगा।
चीन से जारी तनाव के बीच ये किसी बड़े विदेशी नेता की पहली भारत यात्रा है। पार्ली की बात करें तो फ्रांस में कोरोना के कारण प्रतिबंध लगने के बाद वो विदेश यात्रा पर जाने वाली पहली मंत्री होंगी।
गलवान झड़प पर अफसोस जताया था
15 जून को गलवान वैली में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। इसके बाद फ्लोरेंस पार्ली ने राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखकर दुख जताया था।
जुलाई में पांच राफेल फाइटर जेट्स का पहला बैच मिला
भारत को जुलाई के आखिर में पांच राफेल फाइटर जेट्स का पहला बैच मिला। 27 जुलाई को 7 भारतीय पायलट्स ने विमान लेकर फ्रांस से उड़ान भरी थी और 7000 किमी का सफर तय कर 29 जुलाई को भारत पहुंचे थे। इन पायलट्स में 17 स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर ग्रुप कैप्टन हरकीरत सिंह, विंग कमांडर एमके सिंह, ग्रुप कैप्टन आर कटारिया, विंग कमांडर अभिषेक त्रिपाठी, विंग कमांडर मनीष सिंह, विंग कमांडर सिद्धू और विंग कमांडर अरुण कुमार शामिल थे।
परमाणु हमला करने में सक्षम है राफेल
राफेल डीएच (टू-सीटर) और राफेल ईएच (सिंगल सीटर), दोनों ही ट्विन इंजन, डेल्टा-विंग, सेमी स्टील्थ कैपेबिलिटीज के साथ चौथी जेनरेशन का फाइटर है। ये न सिर्फ फुर्तीला है, बल्कि इससे परमाणु हमला भी किया जा सकता है। इस फाइटर जेट को रडार क्रॉस-सेक्शन और इन्फ्रा-रेड सिग्नेचर के साथ डिजाइन किया गया है। इसमें ग्लास कॉकपिट है। इसके साथ ही एक कम्प्यूटर सिस्टम भी है, जो पायलट को कमांड और कंट्रोल करने में मदद करता है।
इसमें ताकतवर एम 88 इंजन लगा हुआ है। राफेल में एक एडवांस्ड एवियोनिक्स सूट भी है। इसमें लगा रडार, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम और सेल्फ प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की लागत पूरे विमान की कुल कीमत का 30% है। इस जेट में आरबीई 2 एए एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार लगा है, जो लो-ऑब्जर्वेशन टारगेट को पहचानने में मदद करता है।
36 में से 30 फाइटर जेट्स होंगे और 6 ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट
भारत ने फ्रांस के साथ 2016 में 58 हजार करोड़ रुपए में 36 राफेल फाइटर जेट की डील की थी। 36 में से 30 फाइटर जेट्स होंगे और 6 ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट होंगे। ट्रेनर जेट्स टू सीटर होंगे और इनमें भी फाइटर जेट्स जैसे सभी फीचर होंगे।
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Egypt's #MeToo crusader fights sex crimes via Instagram September 07, 2020 at 12:22AM
पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा- अगर 15 अक्टूबर तक ट्रेड डील नहीं हुई तो बिना शर्त यूरोपियन यूनियन छोड़ देंगे, ईयू एक बार फिर सोच ले September 06, 2020 at 11:23PM
ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के बीच ट्रेड डील मुश्किल में हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसके लिए 15 अक्टूबर तक की डेडलाइन तय कर दी है। अगर इतने समय में डील नहीं हुई तो ब्रिटेन बिना शर्त ईयू से पूरी तरह अलग हो जाएगा। जॉनसन ने कहा है कि समझौता तभी हो सकता है जब ईयू दोबारा से विचार करे। जबकि, ईयू ने ब्रिटेन पर डील को गंभीरता से नहीं लेने आरोप लगाए हैं।
क्यों जरूरी है डील?
ब्रिटेन ने ईयू को 31 जनवरी को छोड़ दिया था, जिसे ब्रेक्जिट कहते हैं। हालांकि, ट्रेड डील न हो पाने की वजह से अभी ईयू के कुछ नियमों को मान रहा है। ईयू का सदस्य रहने के दौरान ब्रिटेन को यूरोपीय देशों से व्यापार में छूट मिलती थी। ब्रिटेन के हटने के बाद से आपस में व्यापार करने में कई टैरिफ लग जाएंगे। इस वजह से दोनों (ईयू और ब्रिटेन) ऐसी डील चाहते हैं कि आपस में व्यापार पर अन्य देशों की तुलना में रियायत रहे।
हालांकि, अभी बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। ब्रिटेन और ईयू के बीच इस साल दिसंबर तक ही पुराने नियमों के मुताबिक व्यापार होगा। अगर डील नहीं हुई तो दोनों को इसका नुकसान होगा, लेकिन ब्रिटेन पर इसका ज्यादा असर होगा।
दिक्कत कहां पर?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक दो मुद्दों पर विवाद है। ईयू चाहता है कि यूरोपीय देशों को ब्रिटेन के समुद्र में मछली पकड़ने का अधिकार मिले और ब्रिटेन सरकार उद्योगों को सहायता दे। ब्रिटेन इस पर राजी नहीं है। ब्रिटेन के मुख्य वार्ताकार डेविड फ्रॉस्ट की ईयू के वार्ताकार माइकल बर्नियर की मंगलवार को लंदन में आठवें दौर की बातचीत होगी।
ब्रेक्जिट क्या है?
यूरोपियन यूनियन में 28 देशों की आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी है। इसके तहत इन देशों में सामान और लोगों की बेरोक टोक आवाजाही होती है। ब्रिटेन के लोगों को लगता था कि ईयू में बने रहने से उसे नुकसान है। उसे सालाना कई अरब पाउंड मेंबरशिप के लिए चुकाने होते हैं। दूसरे देशों के लोग उसके यहां आकर फायदा उठाते हैं। इसके बाद ब्रिटेन में वोटिंग हुई। ज्यादातर लोगों ने ईयू छोड़ने के लिए वोट दिया। इसके बाद 31 जनवरी 2020 को ब्रिटेन ने ईयू छोड़ दिया था। लेकिन, अभी भी आपस में व्यापार कैसे होगा, इस पर फैसला नहीं हुआ है।
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कैम्पेन के आखिरी दौर में मुकाबला सख्त; बाइडेन को ट्रम्प पर मामूली बढ़त September 06, 2020 at 10:09PM
लेबर डे के बाद अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार ज्यादा तनावपूर्ण नजर आ रहा है। जो बाइडेन को कुछ या कहें मामूली बढ़त हासिल है। वे इसे बरकरार रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ, डोनाल्ड ट्रम्प इसे कम करने में ताकत झोंक रहे हैं। अगस्त में दोनों पार्टियों के कन्वेशन्स के बाद कुछ प्राईवेट पोल्स हुए। इनके मुताबिक, ट्रम्प उन राज्यों में रिकवर कर रहे हैं, जहां कोरोना के दौर में उनका समर्थन या आधार कम हुआ था। ज्यादा आबादी वाले वे राज्य जहां कोरोना का असर काफी रहा, वहां ट्रम्प के खिलाफ नाराजगी को बाइडेन भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
ये आखिरी दौर के प्रचार की शुरुआत
लेबर डे या मजदूर दिवस के बाद चुनाव के आखिरी दौर के कैम्पेन की शुरुआत होती है। 1992 में जॉर्ज बुश के जमाने से यह चला आ रहा है। फ्लोरिडा जैसे राज्य में जीत जरूरी है। ट्रम्प यहां फोकस कर रहे थे। बाइडेन का नॉमिनेशन ही अप्रैल में हुआ। अब वे यहां बराबरी की कोशिश कर रहे हैं। 2016 में यहां डेमोक्रेट्स नर्वस थे और रिपब्लिकन्स को काफी उम्मीदें थीं। हालात ज्यादा नहीं बदले। ट्रम्प ने बाइडेन और उनकी पार्टी पर असामाजिक तत्वों के खिलाफ नर्म रुख अपनाने का आरोप लगाया। पिछले हफ्ते बाइडेन ने इसका जवाब देना शुरू किया। उन्हें पूर्व विदेश मंत्री जॉन कैरी का समर्थन भी मिला।
श्वेतों के बीच ट्रम्प लोकप्रिय
दोनों पार्टियां जानती हैं कि विस्कॉन्सिन और मिनेसोटा जैसे ज्यादा श्वेत आबादी वाले राज्यों में ट्रम्प का आधार मजबूत है। यहां श्वेत और अश्वेत के बीच वोटर्स को बांटने की कोशिश हो रही है। फ्लोरिडा, नॉर्थ कैरोलिना, एरिजोना और जॉर्जिया जैसे राज्यों में ट्रम्प डिफेंसिव मोड में नजर आते हैं। रिपब्लिकन पार्टी के दो पूर्व गर्वनर (टिम पॉलेंटी और स्कॉट वॉकर) मानते हैं कि कुछ राज्यों में भले ही अभी बढ़त बाइडेन के पक्ष में दिखती हो, लेकिन वहां हालात आसानी से ट्रम्प के फेवर में हो जाएंगे। कुछ शहरों में भले ही हिंसा हुई हो, लेकिन वहां भी वोटिंग पैटर्न बदल सकता है। विस्कॉन्सिन जैसे राज्य में लोग बाइडेन को लेकर बहुत खुश नहीं हैं।
खुद के लिए दिक्कतें खड़ी कर लेते हैं ट्रम्प
ट्रम्प खुद कई बार परेशानियां खड़ी कर लेते हैं। जैसे हाल ही में उन्होंने सैनिकों को लेकर बयान दिया। इससे कुछ लोग नाराज हो गए। डेमोक्रेट्स ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की। ट्रम्प के सामने प्रचार में आर्थिक दिक्कतें भी दिख रही हैं। वो टीवी पर प्रचार के लिए खर्च कर रहे हैं। वहीं, अगस्त में बाइडेन ने 365 मिलियन डॉलर जुटाए। बाइडेन कानून व्यवस्था के मुद्दे पर ट्रम्प को घेरने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन, वे यह भी जानते हैं कि जल्द ही इकोनॉमी और कोरोना वायरस पर फोकस करना होगा। मिशिगन और पेन्सिलवेनिया जैसे राज्यों में वोटर्स किस तरफ जाएंगे, पता नहीं। इसलिए बाइडेन अब यहां ज्यादा फोकस कर रहे हैं। दंगा प्रभावित केनोशा और पिट्सबर्ग जैसे शहरों में गए और अश्वेतों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की।
जानकार क्या कहते हैं?
नॉर्थ कैरोलिना के गर्वनर रॉय कूपर के टॉप एडवाइजर मोर्गन जैक्सन कहते हैं- बाइडेन के पास लीड है, भले ही यह मामूली है। सीनेटर एमी क्लोबाउचर कहती हैं- फिलहाल ही सही, बाइडेन सही रास्ते पर हैं। पिट्सबर्ग में बाइडेन ने कहा था- पुलिस रिफॉर्म और कानून व्यवस्था दोनों जरूरी हैं। पूरा अमेरिका यही चाहता है। बाइडेन कई जगह खुद नहीं पहुंच पाए। डेमोक्रेट्स चाहते हैं कि वे यह कमी जल्द पूरी करें। 2016 में विस्कॉन्सिन जैसे राज्य में हिलेरी क्लिंटन को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। यहां के डेमोक्रेट सांसद मार्क पोकन कहते हैं- मैं बाइडेन को बता चुका हूं कि वे जितने ज्यादा शहरों में जाएंगे, उतना फायदा होगा। ट्रम्प इस मामले में आगे हैं।
कोरोना से दिक्कत
डेमोक्रेट्स मानते हैं कि कोरोना की वजह से डोर टू डोर कैम्पेन आसान नहीं है। लेकिन, पेम्पलेट्स के जरिए वोटर्स को लुभाना आसान नहीं है। दौरे तो करने होंगे। ट्रम्प का खेमा टीवी के जरिए प्रचार पर ज्यादा खर्च कर रहा है। इस पर सवाल भी उठ रहे हैं। एक एक्सपर्ट ने कहा- 2004 की रणनीति 2020 में कारगर साबित नहीं हो सकती। पूर्व हाउस स्पीकर नेट गिनरिच कहते हैं- ट्रम्प को अमेरिकी राष्ट्रवाद का मुद्दा जोरशोर से उठाते रहना होगा।
ट्रम्प कैम्पेन ने सर्वे कराए
ट्रम्प कैम्पेन ने खुद भी सर्वे कराए हैं। वे इससे काफी खुश भी हैं। एक सूत्र के मुताबिक- इकोनॉमी के मुद्दे पर ट्रम्प अब भी बहुत मजबूत हैं। रिपब्लिक पार्टी की लेजिन हिके कहती हैं- लोग कोरोना से परेशान हैं और ये अब भी सबसे बड़ा मुद्दा है। स्कूल और कारोबार बंद हैं।
मिनेसोटा जैसे राज्यों में बाइडेन कानून व्यवस्था का मुद्दा उठा रहे हैं। यहां हमें रणनीति पर फिर विचार करना होगा। कुछ राज्यों में बाइडेन नहीं पहुंचे। वहां आक्रामक प्रचार करना होगा। वैसे ट्रम्प पर आरोप लग रहे हैं कि वे श्वेत और अश्वेत के मुद्दे पर समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। फ्लोरिडा और एरिजोना में उनके बयान कुछ इशारा करते हैं। इसका नुकसान भी हो सकता है।
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