Saturday, December 12, 2020
'Bomb and gun attacks in Afghan capital kill 3' December 12, 2020 at 08:34PM
इमरान ने चीन से लिए 11 हजार करोड़ रु, 3 महीने में दूसरी बार सऊदी का कर्ज चुकाने के लिए लोन मांगा December 12, 2020 at 07:57PM
पाकिस्तान पर चीन का कर्ज बढ़ता जा रहा है। एक बार फिर पाकिस्तान ने चीन से 1.5 बिलियन डॉलर (करीब 11 हजार करोड़ रु.) की मदद ली है। इस रकम में से यह सऊदी अरब के 2 बिलियन डॉलर( करीब 14 हजार) करोड़ रु के बकाया कर्ज की आधी रकम लौटाएगा। पाकिस्तान को स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) और पाकिस्तान वित्त मंत्रालय के मुताबिक, सोमवार तक सऊदी को 1 बिलियन डॉलर लौटा दिए जाएंगे। बाकी का 1 बिलियन डॉलर लौटाने के लिए जनवरी का समय तय किया गया है। 3 महीने में यह दूसरी बार है जब पाकिस्तान ने कर्ज उतारने के लिए लोन लिया है। इससे पहले सितंबर में भी उसने चीन से कर्ज लेकर सऊदी अरब का कर्ज चुकाया था।
चीन ने पाकिस्तान को इस बार स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज (सेफ) के तहत पैसे नहीं दिए, ना ही कमर्शियल लोन दिया है। यह रकम चीन ने करंसी स्वैप एग्रीमेंट की तहत दी है। पाकिस्तान और चीन ने द्विपक्षीय ट्रेड और इनवेस्टमेंट को बढ़ावा देने के लिए 2011 में यह एग्रीमेंट के किया था। इस एग्रीमेंट के तहत लिए गए पैसे को विदेशी कर्ज नहीं माना जाएगा। हालांकि, पाकिस्तान को ब्याज के साथ रकम लौटानी होगी।
सऊदी-अरब ने पाकिस्तान पर बढ़ाया कर्ज लौटाने का दबाव
पाकिस्तान और सऊदी अरब के रिश्ते बीते कुछ महीनों से बिगड़े हुए हैं। पाकिस्तान ने सऊदी अरब से कश्मीर मुद्दे पर इस्लामिक देशों की बैठक बुलाने के लिए कहा था। हालांकि, सऊदी अरब ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने उसकी आलोचना की थी। इसके बाद सऊदी ने पाकिस्तान पर अपना कर्ज लौटाने का दबाव बढ़ा दिया। इसके बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री और सेना प्रमुख ने भी सऊदी अरब से रिश्ते सुधारने की कोशिश की। हालांकि, इसका कुछ खास असर नहीं हुआ।
सऊदी ने पाकिस्तान को दिया था 6.2 बिलियन डॉलर का कर्ज
पिछले साल जून में पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर था। आईएमएफ और एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) लोन देने तो तैयार हो गए, लेकिन शर्तें बेहद सख्त थीं। इमरान ने सऊदी से मदद की गुहार लगाई। सऊदी ने 6.2 अरब डॉलर का लोन मंजूर किया। इसमें से 3 अरब डॉलर साधारण कर्ज था। इसके अलावा 3.2 अरब डॉलर पेट्रोल-डीजल क्रेडिट थी। पाकिस्तान को यह कर्ज एक साल में चुकाना था। अब तक वो सिर्फ वो एक किश्त (1 अरब डॉलर) चुका सका है।
सऊदी ने रोकी पाकिस्तान की फ्यूल सप्लाई
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, महामारी के दौर में ऑयल सप्लाई की डिमांड कम हुई। इससे सऊदी अरब की कमाई पर भी गंभीर असर पड़ा। इस साल सितंबर में महीने दुनिया की सबसे बड़ी ऑयल कंपनी सऊदी अरामको के मुनाफे में 72% की कमी आई। इसके बाद सऊदी ने पाकिस्तान को फ्यूल की सप्लाई रोक दी। सऊदी ने पाकिस्तान से कह दिया कि जब तक वह कर्ज की रकम नहीं लौटाता फ्यूल सप्लाई शुरू नहीं होगी। दूसरी तरफ, इमरान सरकार का खजाना खाली है। ऐसे में उसे चीन से पैसे लेकर सऊदी का कर्ज चुकाना पड़ रहा है।
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Canada warns allergic people against Pfizer vax December 12, 2020 at 07:26PM
अमेरिका में मौतों का आंकड़ा 3 लाख के पार, ब्राजील ने वैक्सीनेशन प्लान जारी किया December 12, 2020 at 04:51PM
दुनिया में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 7.16 करोड़ के ज्यादा हो गया। 4 करोड़ 98 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक 16 लाख से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिका में बीते 24 घंटे में 3 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही देश में अब तक मिले संक्रमितों की संख्या1.6 करोड़ से ज्यादा हो गई है।
अमेरिका में मौतों का आंकड़ा भी 3 लाख के पार हो गया है। देश के कई राज्यों में फाइजर की वैक्सीन पहुंचाने का काम तेज हो गया है। डोनाल्ड ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन के ऑपरेशन वार्प स्पीड के प्रमुख गुस्टावे पेरना ने बताया कि सोमवार को 145 जगहों पर फाइजर वैक्सीन की पहली डोज पहुंचाई जाएगी। मंगलवार को 425 और बुधवार को 66 जगहों पर वैक्सीन पहुंचाने की योजना है। यहां11 दिसंबर को फाइजर की वैक्सीन को इमरजेंसी में इस्तेमाल की इजाजत दी गई थी।
इस बीच, ब्राजील सरकार ने वैक्सीनेशन प्लान जारी कर दिया है। इसके तहत देश की एक चौथाई आबादी को वैक्सीन लगाई जाएगी। सरकार ने देश के सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए दस्तावेज में इसकी जानकारी दी। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, फर्स्ट फेज के लिए 10.08 लाख वैक्सीन जुटाई जाएगी। टीका लगाने में हेल्थ वर्कर्स, बुजुर्ग लोगों और आदिवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी। देश में अब तक 68 लाख से ज्यादा संक्रमित मिले हैं और 1.81 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं।
कैलिफोर्निया के अस्पतालों में बेड कम पड़े
अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थिति बिगड़ती जा रही है। संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह से अस्पतालों में बेड कम पड़ गए हैं। कैलिर्फोनिया में अब तक 10.4 लाख मामले मिल चुके हैं और 20 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं। बीते दो हफ्तों में अस्पतालों के आईसीयू में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 70% तक बढ़ी है। अब यहां के अस्पतालों में 10% बेड ही खाली रह गए हैं। कैलिफोर्निया के गर्वनर गेविन न्यूसम ने कहा है कि गैर जरूरी सर्जरी टालने पर विचार किया जा रहा है। ऐसा करने से अस्पतालों में इमरजेंसी मरीजों को बेड मिल सकेंगे।
जर्मनी में सख्त होंगी पाबंदियां
जर्मनी अगले हफ्ते से कोरोना से जुड़ी पाबंदियां सख्त करेगा। इस पर रविवार को जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की राज्यों के नेताओं की बैठक में लिया जा सकता है। देश में पिछले छह हफ्तों से आंशिक लॉकडाउन लागू हैं। बार और रेस्टोरेंट बंद हैं। हालांकि, स्टोर्स और स्कूल्स खुले हैं। कुछ इलाकों ने संक्रमण को देखते हुए कड़े नियम लागू किए हैं। यहां अब तक 13 लाख 20 हजार 592 मामले सामने आए हैं और 22 हजार 171 मौतें हुईं हैं।
साउथ कोरिया में 24 घंटे में रिकॉर्ड मामले
साउथ कोरिया में बीते 24 घंटे में संक्रमण के रिकॉर्ड 1030 नए मामले सामने आए हैं। इनमें से 1002 मामले लोकल ट्रांसमिशन के हैं। अब तक देश में 42 हजार से ज्यादा संक्रमित मिले हैं और 580 मौतें हुई हैं। बीते हफ्ते से यहां संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग से जुड़ी पाबंदियां सख्त कर दी है। इसे कड़ाई से लागू करवाने के लिए सेना की मदद ली जा रही है।
कोरोना प्रभावित टॉप-10 देशों में हालात
देश |
संक्रमित | मौतें | ठीक हुए |
अमेरिका | 16,301,064 | 302,805 | 9,511,786 |
भारत | 9,832,830 | 142,749 | 9,331,521 |
ब्राजील | 6,836,313 | 180,453 | 5,954,745 |
रूस | 2,625,848 | 46,453 | 2,085,958 |
फ्रांस | 2,351,372 | 57,567 | 175,891 |
ब्रिटेन | 1,809,455 | 63,506 | N/A |
इटली | 1,805,873 | 63,387 | 1,052,163 |
तुर्की | 1,780,673 | 15,977 | 1,154,333 |
स्पेन | 1,741,439 | 47,624 | N/A |
अर्जेंटीना | 1,489,328 | 40,606 | 1,324,792 |
(आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं)
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बोरिस जॉनसन ने बतौर पत्रकार जिनके खिलाफ खबरें लिखीं, आज वही ले रहे हैं उनकी खबर December 12, 2020 at 04:03PM
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हाल ही में कहा कि अब लगता है कि ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन के साथ नो डील ब्रेक्जिट करना होगा। यानी ब्रिटेन बिना किसी ट्रेड डील के ईयू से अलग हो जाएगा। जॉनसन ने डील की काफी कोशिश की लेकिन ईयू के नेता उनकी मांगों के आगे नहीं झुके। माना जा रहा है कि इसमें करीब तीन दशक पहले जॉनसन की बतौर पत्रकार लिखी कई खबरों की भूमिका अहम है।
जॉनसन 90 के दशक में ब्रिटिश अखबार डेली टेलीग्राफ के विदेश संवाददाता थे। तब उन्होंने ईयू और इसके अधिकारियों के खिलाफ कई खबरें लिखीं। इनमें कुछ खबरें आगे चलकर गलत भी साबित हुईं। ईयू के उस समय के कई अधिकारी आज भी प्रभावशाली स्थिति में हैं और वे जॉनसन की एक नहीं चलने दे रहे। जॉनसन अक्सर लिखते थे कि यूरोपियन यूनियन आखिरकार झुक ही जाता है। उसे मनवाने के लिए कड़ा स्टैंड रखना चाहिए।
जॉनसन ने यूरोपियन यूनियन की मौजूदा प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयिन को मनाने की भी काफी कोशिश की है, लेकिन उन्हें खास कामयाबी नहीं मिली। 90 के दशक में जॉनसन के साथ काम करने वाली साथी पत्रकार सोनिया पर्नेल कहती हैं, ‘आप जैसा काम करते हैं वैसा परिणाम मिलता है। मुझे नहीं लगता कि यूरोपियन यूनियन जॉनसन की डिमांड पूरी करेगा। जॉनसन की यह कोशिश भी समय की बर्बादी है।’
ईयू पर जॉनसन की कई खबरें गलत भी साबित हुईं
रिसर्च इंस्टीट्यूट यूरोपियन रिफॉर्म के डायरेक्टर चार्ल्स ग्रांट कहते हैं, 'बोरिस जॉनसन ने अपनी लेखनी से ईयू को बार-बार निशाना बनाया। कई खबरें आगे चल कर पूरी तरह गलत साबित हुईं। एक बार उन्होंने लिखा था कि ईयू का भवन धमाके से उड़ाया जाएगा और उसके स्थान पर नई इमारत बनेगी। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। पुराने भवन को रेनोवेट कर उसे काम के लायक बनाया गया।
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ट्रम्प प्रशासन की धमकी के बाद वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिली December 12, 2020 at 03:56PM
दुनिया में कोरोना महामारी की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले अमेरिका ने शुक्रवार को फाइजर और बायोएनटेक की वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की इजाजत दे दी। एक्सपर्ट पैनल ने दिन की शुरुआत में ही स्वीकृति दे दी थी। इसके बाद मामला वहां के ड्रग रेगुलेटर एफडीए के पास था। कुछ घंटे तक एफडीए से कोई स्वीकृति नहीं मिलने के बाद ट्रम्प प्रशासन की ओर से दबाव बढ़ाया गया।
सूत्रों के मुताबिक व्हाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ मार्क मीडोज ने एफडीए कमिश्नर स्टीफन हान को फोन कर कहा कि वे शुक्रवार शाम तक वैक्सीन को अप्रूवल दिलाएं या फिर इस्तीफा देकर नई नौकरी ढूंढें। माना जा रहा है कि इसके बाद एफडीए ने वैक्सीन के इस्तेमाल की स्वीकृति दे दी है।
अमेरिका इस वैक्सीन को स्वीकृति देने वाला दुनिया का छठा देश है। उससे पहले ब्रिटेन, बहरीन, कनाडा, सऊदी अरब और मैक्सिको ने स्वीकृति दे दी है। यूरोपियन यूनियन भी इस पर जल्द फैसला करेगा। फाइजर ने भारत में भी आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी है। स्वीकृति मिलने के बाद ट्रम्प ने लिखा कि 24 घंटे में टीकाकरण शुरू हो जाएगा।
यूरोप में 1 दिन में ही 5,494 लोगों ने कोरोना से जान गंवाई
अमेरिका में कोरोना का कहर थमता नजर नहीं आ रहा है। शुक्रवार को वहां 2 लाख, 46 हजार, 761 नए मामले सामने आए। वहीं, 3031 लोगों की मौत हो गई। अमेरिका में यह महामारी अब तक 3 लाख, 2 हजार, 762 लोगों की जान ले चुकी है। वहीं, दुनिया में लगातार चौथे दिन कोरोना से 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई। शुक्रवार को कुल 12,399 लोगों ने जान गंवाई। यूरोप में 2.23 लाख नए मरीज आए, वहीं 5,494 लोगों ने जान गंवाई।
पहले चरण में 64 लाख डोज यानी 32 लाख का टीकाकरण
फाइजर की योजना दिसंबर अंत तक अमेरिका को 64 लाख डोज देने की है। एक व्यक्ति को दो डोज लगनी है, लिहाजा पहले चरण में 32 लाख लोगों का टीकाकरण हो पाएगा। अमेरिका की आबादी 33 करोड़ है। अमेरिका में इस बात पर आम सहमति है कि शुरुआत में 2.1 करोड़ हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन लगनी चाहिए।
हालांकि, इस बात पर आम सहमति नहीं है कि उसके बाद वैक्सीन बुजुर्गों को लगनी चाहिए या एसेंशियल वर्कर्स को। फाइजर मार्च तक अमेरिका को 10 करोड़ डोज मुहैया कराएगी। मॉडर्ना की वैक्सीन को भी जल्द अप्रूवल मिल सकता है। अमेरिका का लक्ष्य है कि 2021 के जुलाई-अगस्त पूरे देश का टीकाकरण करा लिया जाए।
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नेपाल का 1300 करोड़ रुपए का सामान रोका, वापसी के लिए अब भारत ही बना सहारा December 12, 2020 at 03:23PM
नेपाल और चीन की दोस्ती में दरार पड़ रही है। क्योंकि, नेपाल से आने वाले सामान पर कोरोना की आड़ में चीन ने अघोषित ब्लाॅकेज लगा दिया है। पिछले 10 माह से तिब्बत सीमा पर नेपाल के 1200 कंटेनर फंसे हुए हैं। माल फंसने के कारण नेपाली कारोबारी राम पौडेल ने आत्महत्या कर ली।
परिजनों के अनुसार राम ने दो करोड़ का लोन लिया था, माल फंसने का कारण वह किस्त नहीं चुका पा रहा था। नेपाल के वित्त मंत्रालय में तैनात एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने बताया कि चीनी कस्टम अधिकारी सामान्य तौर पर नेपाली मजदूरों के कोरोना के आरटी-पीसीआर टेस्ट को भी नहीं मान रहे हैं।
लिहाजा हम भूमि मार्ग से माल लाने के लिए व्यापारियों को हतोत्साहित कर रहे हैं। हम उन्हें कोलकाता पोर्ट के रास्ते सामान लाने को कह रहे हैं। क्योंकि, हमें चीन से सहयोग नहीं मिल रहा। हमें बताया गया है कि कोरोना खत्म होने के बाद सामान आगे जाएगा।
ऊनी कपड़ों के भी कंटेनर
कस्टम अधिकारियों के मुताबिक तिब्बत सीमा पर फंसे कंटेनरों में ऊनी कपड़ों के भी कंटेनर हैं। ये माल तिब्बत की राजधानी ल्हासा, शिगत्से, न्यालम, केरूंग आदि में फंसा हुआ है। नेपाली व्यापारियों के अनुसार तिब्बत के शहरों में फंसे हुए माल की कीमत 1300 करोड़ रु. से ज्यादा है। वित्त मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि यह चीन का अघोषित ब्लाॅकेज है, क्योंकि आपातकाल में भी सप्लाई नहीं रोकी जा सकती। वहीं, माल भेजने के लिए चीनी सीमा शुल्क एजेंटों को रिश्वत देनी पड़ती है, नहीं देने पर चीनी एजेंट माल नहीं भेजता।
कारोबार की दृष्टि से चीन के साथ नेपाल के दो बॉर्डर प्वांइट मुख्य हैं, रसुवागड़ी-केरुंग और टाटोपानी-खासा। टाटोपानी पुराना प्वाइंट है। 2015 में आए भूकंप के बाद से ये बंद था, लेकिन इसे पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेपाल दौरे के बाद खोला गया। केरूंग-रसुवागड़ी को चीन ने इंटरनेशनल बॉर्डर प्वाइंट के तौर पर विकसित किया है। चीन केरुंग के रास्ते नेपाल के सिर्फ 5 कंटेनर्स और टाटोपानी-खासा के जरिए 2 कंटेनर ही जाने दे रहा है।
चीन ने 13 सीमा बिंदु खोलने पर सहमति व्यक्त की थी
पहले 30 से 40 कंटेनर माल प्रतिदिन जाता था। चीन ने मौखिक रूप से नेपाल-चीन के बीच 13 सीमा बिंदु खोलने पर सहमति व्यक्त की थी। लेकिन चीन ने दो सीमाओं पर भी आयात/निर्यात आसान नहीं किया। रसुवागड़ी में तैनात नेपाली कस्टम अधिकारी पुण्य बिक्रम खड़के बताते हैं कि बड़े कारोबारियों ने चीन के शहरों से माल भारत के कोलकाता पोर्ट पर भेज दिया है। कोलकाता पोर्ट के जरिए सामान 35 दिन में चीन से नेपाल वापस आ सकता है। हमें उम्मीद थी इस साल करोड़ों रुपए का राजस्व पैदा होगा, लेकिन अब तक हम 100 करोड़ रुपए के स्तर को भी नहीं छू सके।
टाटोपानी सीमा पर कस्टम अधिकारी लाल बहादुर खत्री कहते हैं कि इस रास्ते से गए करीब 800 कंटेनर्स तिब्बती हिस्से में फंसे हैं। कस्टम अधिकारियों ने चीन से कंटेनर्स प्राप्त करने के लिए अलग से एक यार्ड बनाया है। यहां नेपाली वर्कर्स को तैनात किया गया है। इन्हें हेल्थ प्रोटोकॉल से लैस किया गया है। लेकिन चीनी अधिकारी कोविड का डर बताते हुए कंटेनर भेजने में आनाकानी कर रहे हैं।
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बांग्लादेश में समुद्र के बीच बने कैंप में भेजे जा रहे राेहिंग्या, बाेले- हम दक्षिण एशिया के ‘फिलिस्तीनी’ बनाए जा रहे December 12, 2020 at 03:23PM
बांग्लादेश में चित्तगांग बंदरगाह से 60 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में एक द्वीप है ‘भासन चार’। ये नया ठिकाना है बांग्लादेश में रहने वाले म्यांमार से आए रोहिंग्या शरणार्थियों का। 4 दिसंबर 2020 काे चित्तगांग बंदरगाह से 1,642 शरणार्थियाें काे जबरन यहां भेजा गया। यहां सरकार ने इनके लिए पक्की छत ताे बनवा दी, पर तूफान और बाढ़ का खतरा यहां हमेशा बना रहता है। इसलिए दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर में दहशत है।
हालांकि, दावा है कि इन शरणार्थियों को जबरन द्वीप पर नहीं भेजा जा रहा। पर कुछ मानवाधिकार समूहों ने इस पर सवाल उठाएं हैं। यूराेपीयन राेहिंग्या काउंसिल की आंबिया परवीन कहती हैं, ‘मैं यहां लाेगाें काे धीरे-धीरे मरते हुए देख रही हूं। हम ‘दक्षिण एशिया के फिलिस्तीनी’ बनने जा रहे हैं।’ बांग्लादेश के कॉक्स बाजार स्थित शिविर में करीब 10 लाख रोहिंग्या हैं।
म्यांमार सेना द्वारा खदेड़े जाने के बाद ये जान बचाकर यहां आए थे। दरअसल, 16.5 कराेड़ की आबादी वाले बांग्लादेश के लाेग अब राेहिंग्याओं की मदद नहीं करना चाहते। उनके बारे में लाेगाें की धारणा बदल गई है। लाेगाें का मानना है कि ये म्यांमार सीमा से हथियार और ड्रग्स तस्करी तो करते ही हैं, हिंसा और बीमारियां भी फैला रहे हैं।
यूनाइटेड नेशन में मानव अधिकार पर रिपोर्ट कर रहीं येंगी ली के मुताबिक, ये कहना मुश्किल है कि ‘भासन चार’ आईलैंड इंसानों के रहने लायक है या नहीं। बिना ठोस योजना के रोहिंग्याओं को यहां भेजना नई मुसीबत पैदा कर सकता है।
20 साल पहले समुद्र में खाेजा गया ‘भासन चार’ द्वीप 13,000 एकड़ क्षेत्र में फैला है। यहां एक लाख रोहिंग्या रह सकते हैं। सरकार का दावा है कि यहां वे ही शरणार्थी भेजे जा रहे हैं, जो वहां जाना चाहते हैं। बांग्लादेश की नाैसेना ने 22 हजार कराेड़ रुपए से यह शिविर तैयार किया है। रोहिंग्याओं को यहां लाने की योजना 2017 से चल रही है।
कट्टरता रोकने 2017 से अब तक 100 रोहिंग्या का एनकाउंटर
रोहिंग्या शरणार्थियों के शिविर में बांग्लादेशी पुलिस ने जिहादी कट्टरता काे राेकने के लिए सुरक्षा बढ़ा दी है। 2017 से अब तक 100 से ज्यादा राेहिंग्या मुठभेड़ में मारे जा चुके। सरकार कट्टरता रोकने के लिए राेहिंग्याओं पर कड़े प्रतिबंध लगा रही है। वे इंटरनेट का इस्तेमाल न कर सकें, इसलिए उन्हें माेबाइल सिम नहीं दी जातीं।
उनके बैंक खाते भी नहीं खाेले जा रहे और न बच्चाें काे स्कूल में एडमिशन दिया जा रहा है। उनकी गतिविधियाें पर नजर रखने के लिए ‘भासन चार’ की गलियाें में सीसीटीवी भी लगाए गए हैं। यहां प्रशासनिक व्यवस्था के लिए बनाई गई कमेटी में भी किसी राेहिंग्या काे शामिल नहीं किया गया।
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बाइडेन की जीत और ट्रम्प की हार पर मुहर लगाएगा इलेक्टोरल कॉलेज, इस बारे में सब कुछ जानिए December 12, 2020 at 02:38PM
तीन नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए। जो बाइडेन जीते और डोनाल्ड ट्रम्प हारे। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया जटिल है। बाइडेन को प्रेसिडेंट इलेक्ट भले ही कहा जा रहा हो, लेकिन आधिकारिक तौर पर नतीजों का ऐलान 6 जनवरी को होगा। इसके पहले सबसे अहम चरण इलेक्टोरल कॉलेज वोटिंग है। यह 14 दिसंबर को होगी।
इलेक्टोरल कॉलेज पर हमेशा बहस होती रही है। हाल ही में गैलप के एक सर्वे में 61% अमेरिकी नागरिकों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज से नहीं, बल्कि पॉपुलर वोट से होना चाहिए। आइए, इलेक्टोरल कॉलेज को बहुत आसान तरीके से समझने की कोशिश करते हैं। ध्यान रहे, इलेक्टोरल कॉलेज का मतलब किसी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट से नहीं है। इसका मतलब है जन प्रतिनिधियों का समूह या निर्वाचक मंडल। यही समूह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनता है।
इलेक्टर और इलेक्टोरल कॉलेज के फर्क को समझिए
इसे हालिया राष्ट्रपति चुनाव से समझने की कोशिश करते हैं। ट्रम्प रिपब्लिकन कैंडिडेट थे। बाइडेन डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार थे। वोटर ने जब बाइडेन को वोट किया तो उनके नाम के आगे ब्रेकेट में एक नाम और लिखा था। ट्रम्प के मामले में भी यही था। दरअसल, मतदाता ने ब्रैकेट में लिखे नाम वाले व्यक्ति को अपना इलेक्टर चुना।
यही इलेक्टर 14 दिसंबर को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग करेगा। और आसान तरीके से समझें तो वोटर ने ट्रम्प या बाइडेन को वोट नहीं दिया, बल्कि अपना प्रतिनिधि चुना और उसे ही वोट दिया। अब यह प्रतिनिधि यानी इलेक्टर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनेगा।
मतदाता इलेक्टर्स चुनते हैं। और इलेक्टर्स के समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट या इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत है।
भारत से समानता
एक लिहाज से भारत में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जिस तरह चुने जाते हैं, वैसा ही अमेरिका में होता है। भारत में लोकसभा सांसद प्रधानमंत्री और राज्यों में विधायक मुख्यमंत्री चुनते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव भी सांसद और विधायक करते हैं। अमेरिका में सांसद और विधायकों की जगह मतदाता इलेक्टर्स चुनते हैं। फिर इलेक्टर्स राष्ट्रपति चुनते हैं। ये अप्रत्यक्ष या इनडायरेक्ट तरीका है।
इलेक्टर्स की संख्या कैसे तय होती है?
अमेरिका के झंडे में 50 सितारे हैं। इसका मतलब यहां 50 राज्य हैं। 1959 तक 48 राज्य थे। बाद में अलास्का और हवाई जुड़े। हमारी तरह संसद के दो सदन हैं। हाउस ऑफ रिप्रेंजेटेटिव (HOR) और सीनेट। HOR में 435 और सीनेट में 100 मेंबर होते हैं। ये बताना जरूरी है। क्योंकि, एक राज्य में इलेक्टर्स की संख्या उतनी ही होगी, जितने उसके HOR और सीनेट में सदस्य हैं।
आसान उदाहरण से समझिए
HOR को आप हमारी लोकसभा और सीनेट को राज्यसभा समझ सकते हैं। सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में कुल मिलाकर 535 सदस्य हैं। डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया (DC) के तीन सदस्य हैं। HOR के मेंबर राज्य की जनसंख्या के हिसाब से तय हैं। लेकिन, सीनेट में हर राज्य से सिर्फ 2 सदस्य हैं। यानी 50 राज्य और 100 सदस्य।
कैलिफोर्निया में HOR की 53 और सीनेट की 2 सीटें हैं। यानी कुल 55 सदस्य। इतनी ही संख्या इलेक्टर्स की होगी। मतलब यह हुआ कि इलेक्टोरल कॉलेज में कैलिफोर्निया के 55 वोट हैं। ये हमारे उत्तर प्रदेश की तरह है, जहां से सबसे ज्यादा सांसद चुने जाते हैं।
क्या इसमें कोई और पेंच भी है?
हां। दरअसल, राज्य छोटा हो या बड़ा। वहां इलेक्टर्स की संख्या 3 से कम नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए अलास्का। यहां HOR का सिर्फ एक मेंबर है। लेकिन, सीनेट में हर राज्य से 2 मेंबर्स होते हैं। लिहाजा अलास्का से तीन इलेक्टर्स चुने जाएंगे। ऐसे सात राज्य हैं, जहां इलेक्टर्स की संख्या 3 है। ये 7 राज्य 21 इलेक्टर्स चुनकर इलेक्टोरल कॉलेज में भेजते हैं।
इलेक्टर कौन और कैसे बनता है?
इसका फैसला उस पार्टी का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार और पार्टी मिलकर तय करते हैं। इसे आप उम्मीदवार का प्रतिनिधि कह सकते हैं। मान लीजिए ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार थे। उन्हें कैलिफोर्निया के 55 इलेक्टर्स की लिस्ट बनानी है। तो पार्टी और ट्रम्प मिलकर इनके नाम तय करेंगे। बैलट पर प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट के नाम के आगे ब्रैकेट में इस इलेक्टर का नाम होगा। वोटर जब राष्ट्रपति उम्मीदवार को चुनेगा, तो इसी इलेक्टर के नाम पर निशान लगाएगा।
एक सुझाव जो तीन साल पहले दिया गया
अमेरिकी संविधान के मुताबिक, इलेक्टर्स न तो सीनेटर होंगे और न रिप्रेजेंटेटिव्स। इनके पास लाभ का पद (office of profit) भी नहीं होना चाहिए। 2017 में जारी यूएस कांग्रेस की एक रिपोर्ट कहती है- इलेक्टर्स वास्तव में मशहूर हस्तियां, लोकल इलेक्टेड मेंबर्स, पार्टी एक्टिविस्ट्स या आम नागरिक ही होने चाहिए। अमेरिका में हर राज्य का अपना संविधान और झंडा है। पेन्सिलवेनिया का संविधान साफ कहता है- प्रेसिडेंशियल नॉमिनी अपने इलेक्टर खुद चुने।
आखिर इलेक्टोरल कॉलेज बनाया ही क्यों गया?
1787 में कम्युनिकेशन या ट्रांसपोर्टेशन के साधन बेहद कम थे। इतने बड़े देश में यह संभव नहीं था कि मतदाता देश के एक कोने में बैठकर किसी व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर पाएं। रेडियो, टीवी या इंटरनेट का दौर तो था नहीं। अखबार भी बहुत कम थे। इसलिए, यह तय किया गया कि कुछ लोकल लोगों (इलेक्टर्स) को चुना जाए। फिर ये लोग मिलकर (इलेक्टोरल कॉलेज) राष्ट्रपति का चुनाव करें। 233 साल गुजर चुके हैं। तमाम विरोध के बावजूद यह सिस्टम नहीं बदला गया। तर्क दिया जाता है- यह हमारी परंपरा है। वक्त के साथ बेहतर हो जाएगी।
(अगली कड़ी में जानिए क्या है विनर टेक्स ऑल का विवादित मामला। इसकी सबसे ज्यादा आलोचना होती है। लेकिन, 50 में 48 राज्य इसी सिस्टम को फॉलो करते हैं।)
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अमेरिका में महात्मा गांधी की मूर्ति के चेहरे पर रंग पोता, खालिस्तानी झंडे फहराए December 12, 2020 at 01:47PM
किसान बिल का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारी अब राह से भटकते नजर आ रहे हैं। ताजा मामला अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में सामने आया है। यहां किसान बिल का विरोध कर रहे कुछ लोगों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया है।
विरोध के दौरान प्रदर्शनकारियों के खालिस्तानी झंडे दिखाने की बात भी सामने आई है। किसानों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने शनिवार को भारतीय दूतावास के सामने लगी गांधी प्रतिमा पर स्प्रे से पेंट कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने गांधी के चेहरे को खालिस्तानी झंडे से ढक दिया था।
लंदन में भी सामने आ चुकी है घटना
दिसंबर की शुरुआत में लंदन में भी ऐसी घटना सामने आई थी। वहां भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शनकारियों ने भारत विरोधी और किसानों के पक्ष में नारेबाजी की थी।
महात्मा गांधी की मूर्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला 3 जून को भी सामने आया था। अमेरिका के वॉशिंगटन में जॉर्ज फ्लॉयड के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने गांधी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया था। इस घटना के बाद एक विशेषज्ञ को बुलाकर गांधी प्रतिमा को दोबारा ठीक करवाया गया था।
भारतीय दूतावास ने दर्ज कराई थी शिकायत
मूर्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए स्प्रे पेंट का भी सहारा लिया गया । इस घटना के बाद भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने स्थानीय एजेंसियों को शिकायत दर्ज कराई थी।
गांधी की जिस प्रतिमा में तोड़फोड़ की गई, उसे गौतम पाल ने डिजाइन किया था। इस घटना के बाद वहां साफ सफाई कर उसे कवर कर दिया गया था। भारतीय दूतावास ने उस समय मेट्रोपोलिटन पुलिस और नेशनल पार्क पुलिस के पास केस दर्ज कराया था।
घटना की जानकारी तुरंत विदेश विभाग को दी गई, जिसके बाद राज्य के डिप्टी सेक्रेटरी ने मामले को हल करने के लिए भारतीय राजदूत को भी बुलाया था।
पूर्व पीएम वाजपेयी ने की थी स्थापना
राज्य के डिप्टी सेक्रेटरी स्टीफन बेजगुन ने इस घटना के लिए माफी मांगी थी। एक माह बाद बेजगुन ने अमेरिका में भारतीय दूत तरणजीत सिंह की मौजूदगी में गांधी प्रतिमा को दोबारा स्थापित किया था।
मूर्ति की स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान यूएस प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन की मौजूदगी में 16 सितंबर 2000 में की थी।
पंजाब, हरियाणा और कई अन्य राज्यों के हजारों किसान पिछले 17 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
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हिटलर के पसंदीदा मगरमच्छ को सहेज कर रखेगा रूस का म्यूजियम, मई में हुई थी मौत December 12, 2020 at 12:34AM
मॉस्को का ऐतिहासिक डार्विन म्यूजियम एक मगरमच्छ की मौत के बाद भी उसे सहेज कर रखने जा रहा है। 84 साल के इस एलिगेटर की मौत इसी साल मई में मॉस्को के जू (ZOO) में हुई थी। दावा किया जाता है कि यह मगरमच्छ तानाशाह हिटलर का था। इसका नाम सैटर्न था।
ब्रिटिश सैनिकों को मिला था सैटर्न
सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटेन के सैनिकों को बर्लिन में यह एलिगेटर मिला था। बाद में इसे रूसी सेना को सौंप दिया गया। 1946 में इसे मॉस्को लाया गया और यहां के चिड़ियाघर में रखा गया। करीब 60 साल तक लोग सैटर्न को देखते रहे। मई में सैटर्न की मौत हो गई और इसकी स्किन यानी त्वचा डार्विन म्यूजियम को सौंप दी गई। यहां के स्पेशलिस्ट्स ने इस पर काम किया। कोविड-19 के प्रतिबंध हटने के बाद जब भी हालात सामान्य होंगे और यह म्यूजियम फिर खुलेगा तो लोग मृत एलिगेटर सैटर्न को देख सकेंगे।
बर्लिन के जू में भी रहा सैटर्न
सैटर्न नाजी शासनकाल के दौरान बर्लिन के जू में भी रहा। कहा जाता है कि हिटलर के पास जितने पालतू जानवर थे, उनमें सैटर्न भी एक था। रूस के लेखर बोरिस एकुनिन भी यही दावा करते हैं। मॉस्को जू के अफसर दिमित्री वेसेलिएव कहते हैं- इसमें कोई शक नहीं कि यह एलिगेटर हिटलर को बहुत पसंद था।
सैटर्न का जन्म 1936 में मिसिसिपी के जंगलों में हुआ। इसे पकड़ने के बाद बर्लिन के जू लाया गया था। 1943 में बर्लिन पर बमबारी हुई और इसके बाद सैटर्न लापता हो गया। तीन साल बाद इसे ब्रिटिश सैनिकों ने खोजा। माना जाता है कि इस दौरान यह किसी बेसमेंट, अंधेरे कोने या सीवेज ड्रेन्स में छिपा रहा।
मगरमच्छ के आंसू
1990 के दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ। एक देश कई हिस्सों में बंट गया। रूस की पार्लियामेंट पर बमबारी हुई। कहा जाता है कि इस दौरान सैटर्न की आंखों में भी आंसू आ गए थे। शायद इसलिए क्योंकि उसे 1943 में बर्लिन पर हुई बमबारी याद आ गई थी। म्यूजियम के डायरेक्टर दिमित्री वेसेलिएव कहते हैं- यह रूस के एलिगेटर का दूसरा जन्म है।
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