(मिशेल गोल्डबर्ग) हर दिन अपने ऑफिस को भ्रष्ट बनाने वाले और लोकतांत्रिक नियमों का उल्लंघन करने वाले राष्ट्रपति के साथ रहना कमजोर बना देता है। ऐसी स्थिति में हैरानी और गुस्से के लेवल को हमेशा के लिए काबू में रखना संभव नहीं है। अंत में थकावट और चिड़चिड़ापन घेर ही लेती है। जब कभी डोनाल्ड ट्रम्प भ्रष्टाचार, देश के प्रति वफादारी न दिखाने और दूसरों को दुख पहुंचाने की सीमाएं लांघते हैं, हमें इसे बर्दाश्त करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। मन में कई बार गुस्सा आता है और राजनीतिक दुनिया उबाऊ लगने लगती है। कई बार तो कुछ रिपब्लिकन ऑफिस होल्डर्स भी राष्ट्रपति की बातों और उनके कामों से दूरी बनाने लगते हैं।
एक ऐसा पल था जब ट्रम्प ने ट्वीट किया था कि कांग्रेस (संसद) की एक रंग विशेष की चार महिलाओं को उसी पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके और अपराध से भरे जगह पर चले जाना चाहिए, जहां से वे आईं हैं। अब ट्रम्प ने लोकतंत्र पर नया हमला किया है, उन्हें धन्यवाद की हमें फिर से यह देखने का मौका मिल रहा है।
ट्रम्प ने सत्ता हस्तांतरण पर डर पैदा करने की कोशिश की
बुधवार के प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रम्प ने स्पष्ट तौर पर डर पैदा करने की कोशिश की, जब उनसे पूछा गया कि क्या वह नवम्बर में चुनाव के बाद शांति से सत्ता हस्तांतरण करेंगे। उन्होंने कहा- हमें देखना होगा कि क्या होता है। इसके बाद उन्होंने बैलट को लेकर शिकायत की, खास तौर पर मेल इन बैलट को लेकर। उन्होंने कहा- बैलट से छुटकारा पाइए और आपको शांति से सत्ता हस्तांतरण देखने को मिलेगा। फ्रैंकली कहूं तो यही सरकार सत्ता में बनी रहेगी। ट्रम्प इससे पहले भी कई बार मेल इन बैलट को लेकर संदेह जता चुके हैं।
मीडिया में आई ट्रम्प से जुड़ी डराने वाली खबरें
ट्रम्प की ओर से बैलट को नकारने की मांग, सत्ता हस्तांतरण की संभावनाएं से इनकार करने जैसे शब्द हैं उनकी अपनी मनमर्जी करने की मंशा सामने लाते हैं। इस बीच नजर बीबीसी की हेडलाइन पर जाती है, जिसमें मोटे अक्षरों में लिखा है- ट्रम्प ने शांति से सत्ता हस्तांतरण के लिए तैयार नहीं हुए। आप इसी तरह मीडिया में अमेरिका को एक ऐसे देश के तौर पर कवर होते देख सकते हैं, जिससे ऐसा लगे कि यह पूरी तरह से विफल हो गया है। इस दिन अटलांटिक वेबसाइट में एक बार्टन गेलमैन का आर्टिकल नजर आया जिसमें कहा गया था किस तरी ट्रम्प चुनावी नतीजे पलट सकते हैं।
ट्रम्प कैंपेन की वोट बाइपास करने की योजना
रिपब्लिकन पार्टी के पेनसिल्वेनिया के चेयरमैन ने गेलमैन से ऑन रिकार्ड बताया कि उसने ट्रम्प कैंपेन से वोट को बाइपास करने के बारे में बात की है। उन्होंने इलेक्टोरेल कॉलेज में हेरफेर करने और अपने एलेक्टर्स (स्लेट ऑफ इलेक्टर्स) की मदद से रिपब्लिकन कंट्रोल्ड लेगिसलेटर्स को नियुक्त करवाने की बात कही। ट्रम्प कैंपेन के लीगल एडवाइजर ने कहा- चुनाव वाली रात वोटों की गिनती होगी। जब अंतिम चरण के वोटों के नतीजे घोषित किए जाएंगे इसे चुनौती दिया जाएगा। कहा जाएगा कि यह सटीक नहीं हैं, इसमें धोखाधड़ी हुई है।
ट्रम्प कर रहे चुनाव को कमजोर करने की कोशिश
यह जितनी डराने वाली बात है उतना ही अहम यह समझना है कि ट्रम्प और उनका कैंपेन चुनाव को कमजोर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अभी से लग रहा है कि उनकी हार होगी। ट्रम्प कई चुनावी राज्यों के पोल में पीछे दिखाए जा रहे हैं। हालांकि जॉर्जिया में उनकी टक्कर बराबरी में रहने और टेक्सास में उनके आगे रहने का अनुमान है। ट्रम्प की चापलूसी करने वाली लिंडसे ग्राहम साउथ कैरोलिना को भी कड़ी टक्कर मिलने वाली हैं।
राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के जज के नए नोमनी का ऐलान कर अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, अगर ट्रम्प जल्दबाजी में इस पर फैसला लेते हैं तो उन्हें ज्यादा मदद मिलने की उम्मीद कम है। पोल्स में ज्यादातर अमेरिकियों का मानना है कि जो अगला चुनाव जीतेगा उसे ही सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियां करनी चाहिए।
ट्रम्प के विरोधियों को देना होगा ध्यान
ट्रम्प भले ही किसी मजबूत इन्सान की तरह बर्ताव करें, लेकिन वह कमजोर हैं। वह बस हम लोगों को यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे कमजोर नहीं है। ऐसे ऑटोक्रेट जिनमें वाकई चुनाव के नतीजे बदलने की ताकत होती वे अपनी योजनाओं का ऐलान नहीं करते। वे बस ऐसा दिखाते हैं कि उन्हें 99% वोट मिल चुके हैं। यह जरूरी है कि ट्रम्प के विरोधी इस बात पर ध्यान दें, क्योंकि डर गुस्से की तरह नहीं होता। ज्यादा गुस्सा आने पर लोग विरोध करते हैं, वहीं ज्यादा डर जाने पर लोग टूट जाते हैं। यही वजह है कि टीवी पर आने वाले विलेन बार बार कहते हैं कि विरोध करना बेकार है।
डेमोक्रेट्स ने तीन जगहों पर पैठ बनाई
2016 के चुनाव में ट्रम्प की जीत की एक वजह यह भी थी कि उनके कुछ विरोधियों ने यह सोच लिया कि ऐसा संभव है। हालांकि, अब यह कोई समस्या नहीं है। तब से अब तक जब-जब लोगों को ट्रम्प या उनके सहयोगियों पर फैसला सुनाने का मौका मिला, लोगों ने उन्हें जबरदस्त ढंग से नकारा है। ट्रम्प के राष्ट्रपति रहते हुए डेमोक्रेट्स ने टेक्सास, एरिजोना और ओक्लाहोमा तक अपनी पैठ बना ली। उन्होंने अलबामा में एक सीनेट सीट भी जीत ली( यहां पर एक रिपब्लिकन पर बच्चे के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा था)। फिलहाल ज्यादा ध्यान ट्रम्प के कट्टर समर्थकों पर दिया जाता है। हालांकि उन्हें नफरत करने वालों की संख्या चाहने वालों से कहीं ज्यादा है।
2016 में चुनावी पोल्स सही साबित हुए थे
2018 के चुनाव में बहुत सारे लोगों में मन में चुनावी को लेकर यही सब डर थे जो अब है। सर्वे के नतीजों के आंकलन में पता चला है कि 2018 के मिडटर्म इलेक्शन के दौरान कई लोग वोटिंग प्रोसेस लेकर घबराए हुए थे। उन्हें चिंता थी कि अमेरिकी चुनाव प्रणाली हैक कर लिया जाएगा। 2016 के बाद उन पॉल्स पर यकीन करना मुश्किल था जिसमें दिखाया गया था कि डेमोक्रेट्स आठ प्वाइंट से ज्यादा की बढ़त दिखाई गई थी। हालांकि, पोल्स सही थे।
पहले से बदल गई हैं कई चीजें
निश्चित तौर मौजूदा समय में दो साल पहले की तुलना में चीजें अलग हैं। एक महामारी सामान्य कैंपेनिंग में रुकावट डाल रहा है और बहुत सारे लोगों के वोट करने का तरीका बदल रहा है। ट्रम्प का बहुत कुछ दांव पर लगा है। न्यूयॉर्क में चल रही जांच का मतलब यह है कि अगर वे दोबारा नहीं चुने गए तो गिरफ्तार भी किए जा सकते हैं। यह भी सही है बात को मानने से इनकार करने के अपने आइडिया से ट्रम्प स्थिति सामान्य करने की शुरुआत कर चुके हैं।
देश भर में फैमिली सेपरेशन को लेकर शोर थम चुका है। हालांकि, फैमिली सेपरेशन अभी भी जारी है। हाउस ने एक प्रस्ताव लाकर इल्हान ओमर, राशिदा तलैब, अलेक्जेंड्रिया ओकासियो कोर्टेज और एन्ना प्रेसली पर हुए नस्लवाद टिप्पणी की निंदा की। अब ऐसी ही बातें अपनी रैलियों में कहते हैं लेकिन यह खबर नहीं बनती।
सत्ता हस्तांतरण पर बयान देकर ट्रम्प ने नाराजगी मोल ली
ट्रम्प ने एक सत्ता हस्तांतरण पर बयान देकर जल्द ही लोगों की नाराजगी मोल ले ही है। अब कुछ इलेक्टेड रिपब्लिकंस को मजबूर कर दिया है कि सत्ता के संवैधानिक हस्तांतरण के मामले पर ट्रम्प के बारे में बोलें। हालांकि, इतिहास पर गौर करें तो लगता है कि यह रिपब्लिकंस जल्द वापस पुराने रूप में लौट आएंगे। ट्रम्प अगली बार जब कोई गलती करेंगे तो फिर इनसे उम्मीद करेंगे कि इस पर ये रिपब्लिकंस दोबारा बोलें। ट्रम्प यह चाहेंगे कि चुनाव में मिली हार को नहीं मानने पर भी ये लोग बोलें।
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