अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने लद्दाख में चीन सीमा पर शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए शोक व्यक्त किया है। उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट किया, ‘‘हम चीन के साथ हुए हालिया विवाद में भारतीय सैनिकों के शहीद होने पर संवेदनाएं जतातेहैं। हम सैनिकों को हमेशा याद रखेंगे, जिनके परिवार, करीबी और प्रियजन शोक में डूबे हैं।’’
15 जून की रात चीनी सैनिकों ने लद्दाख की गलवान घाटी मेंकंटीले तार बंधे डंडों से भारतीय जवानों परअचानक हमला किया था। इसमें एक कर्नल रैंक के अफसर समेत 20 जवानशहीद हो गए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय सैनिकों की जवाबी कार्रवाई में चीन के 43 सैनिक मारे गए या घायल हुए।
अमेरिकी सांसद ने कहा- चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को उकसाया होगा
अमेरिकी सांसद मिच मैक्कॉनेल ने सदन में चर्चा के दौरान भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि चीनी सेना ने ही सीमा हड़पने के लिए भारतीय सैनिकों को उकसाया होगा। इस वजह से ही दोनों देशों के बीच 1962 से अब तक की सबसे हिंसक झड़प हुई। दो एटमी ताकत देशों के बीच हुआ यह विवाद पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। उन्होंने कहा कि चीन सेनाकई देशों की सीमा में घुसने की कोशिश कर चुकी है।
लेह के अस्पताल में 18 घायल सैनिक भर्ती
भारतीय सेना ने गुरुवार दोपहर बताया कि लद्दाख में चीनी सेना के साथ झड़प में घायल 18 सैनिक लेह के अस्पताल में भर्ती हैं। सभी जवान15 दिन के अंदर अपने काम पर लौटने कीस्थिति में होंगे। सभी जवानों की हालत स्थिर है। 58 अन्य सैनिकों को दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। ये सभी जवान भी हफ्तेभर में ड्यूटी ज्वॉइन कर सकेंगे।
पाकिस्तान ने सात साल पहले चीन के साथ हुई ग्वादर पोर्ट डील की जानकारी सार्वजनिक करने से फिर इनकार कर दिया। एक संसदीय समिति ने सरकार से ग्वादर पोर्ट के दस्तावेज मांगे थे। लेकिन, इमरान खान सरकार ने उसे डील की कोई कॉपी मुहैया कराने से इनकार कर दिया। पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट डील का मुद्दा फिर उठने लगा है।
दरअसल, तीन दिन से एक सीनेट पैनल टैक्स संबंधी मामलों की जांच कर रही थी। इसने पाया कि ग्वादर पोर्ट में चीनीकंपनियों को 40 साल तक कोई टैक्स नहीं देना होगा। इस पर उसने सरकार से जवाब मांगा। लेकिन, सरकार ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया।
चीनी कंपनियों को फायदा ही फायदा
सीनेटर फारुख हामिद की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति वित्तीय मामलों को देखती है। इसने सरकार सेटैक्स कलेक्शन पर रिपोर्ट मांगी। इसी दौरान ग्वादर पोर्ट डील का मामला सामने आया। बताया गया कि चीनी कंपनियों को 40 साल तक कोई टैक्स नहीं देना होगा। इतना ही नहीं चीन की बड़ी कंपनियां, जिन छोटी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्टबांटेंगी, उन्हें भी टैक्स छूट मिलेगी। इसके बाद समिति ने सरकार से डील की कॉपी मांगी।
संसदीय समिति को भी जानकारी नहीं दी
गुरुवार को सीनियर सेक्रेटरी रिजवान अहमद समिति के सामने पेश हुए। उन्होंने कमेटी से कहा कि ग्वादर पोर्ट डील की कॉपी, इससे जुड़ा कोई भी दस्तावेज या जानकारी नहीं दी जा सकती। रिजवान ने कहा- यह सीक्रेट डील है। इसे जनता के सामने नहीं लाया जा सकता। सरकार के इस जवाब से कमेटी नाराज हो गई। पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को एक घंटे के लिए इस डील की कॉपी कमेटी को दी जा सकती हैं। इस मामले की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी।
रिजवान ने ही दिलाई टैक्स छूट
अखबार ने रिजवान को लेकर एक रोचक खुलासा भी किया। इसके मुताबिक- मैरीटाइम मिनिस्ट्री की वेबसाइट पर रिजवान का प्रोफाइल है। इसमें उनकी प्रमुख उपलब्धि यह बताई गई है कि उन्होंने ग्वादर पोर्ट डील में चीन की बड़ी और छोटी कंपनियों को पूरी टैक्स छूट दिलाई। अब संसदीय समिति कह रही है कि 40 साल तक कंपनियों को टैक्स छूट देना संविधान के खिलाफ है। पाकिस्तान की किसी कंपनी को इस तरह की रियायत की बात सपने में भी नहीं सोची जा सकती। फिर विदेशी कंपनियों को यह तोहफा कैसे मिला।
ग्वादर पोर्ट डील
ग्वादर पोर्ट पाकिस्तान के हिंसाग्रस्त क्षेत्र बलूचिस्तान का हिस्सा है। 2013 में चीन और पाकिस्तान के बीच यहां बंदरगाह यानी पोर्ट बनाने का समझौता हुआ। जानकारी के मुताबिक, ग्वादर पोर्ट पर करीब 25 करोड़ डॉलर खर्च होंगे। 75 फीसदी हिस्सा चीन देगा। इससे ज्यादा डील की जानकारी दोनों सरकारों के अलावा किसी को नहीं है। अब चीनी कंपनियों को 40 साल तक टैक्स माफी की बात सामने आई है। ग्वादर से भारत की दूरी 460 किलोमीटर है। इससे कुछ दूरी पर ईरान की समुद्री सीमा है।
रूस औरकनाडाके बादसबसे बड़ा देश है चीन। चीन का कुल एरिया 97लाख 6 हजार 961 वर्गकिमी में फैला हुआ है। चीन की 22 हजार 117 किमी लंबी सीमा 14 देशों से लगती है। ये दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसकी सीमाएं सबसे ज्यादा देशों से मिलती हैंऔर इन सभी देशों के साथ चीन का किसी न किसी तरह का सीमा विवाद चल रहा है।
चीन के नक्शे में 6 देश पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया या दक्षिणी मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाउदेखे ही होंगे। ये वो देश हैं, जिन पर चीन ने कब्जा कर रखा है या इन्हें अपना हिस्सा बताता है। इन सभी देशों का कुल एरिया 41 लाख 13हजार 709वर्गकिमी से ज्यादा है। यह चीन के कुल एरिया का 43% है।
6 देश, जिन पर चीन का कब्जा या दावा
1.पूर्वी तुर्किस्तान
चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर 1949 में कब्जा किया था। चीन इसे शिनजियांग प्रांत बताता है। यहां की कुल आबादी में 45% उइगर मुस्लिम हैं,जबकि40% हान चीनी हैं। उइगर मुस्लिम तुर्किक मूल के माने जाते हैं। चीन ने तिब्बत की तरह ही शिनजियांग को भी स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर रखा है।
2.तिब्बत
23 मई 1950 को चीन के हजारों सैनिकों ने तिब्बत पर हमला कर दिया और उस पर कब्जा कर लिया। पूर्वी तुर्किस्तान के बाद तिब्बत, चीन का दूसरा सबसे बड़ा प्रांत है। यहां की आबादी में 78% बौद्धहैं। 1959 में चीन ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को बिना बॉडीगार्ड के बीजिंग आने का न्योता दिया था, लेकिन उनके समर्थकों ने उन्हें घेर लिया था, ताकि चीन गिरफ्तार न कर सके।बाद में दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध के पीछे ये भी एक कारण था।
3.दक्षिणी मंगोलिया या इनर मंगोलिया
दूसरे विश्व युद्ध के बाद चीन ने इनर मंगोलिया पर कब्जा कर लिया था। 1947 में चीन ने इसे स्वायत्त घोषित किया। एरिया के हिसाब से इनर मंगोलिया, चीन का तीसरा सबसे बड़ा सब-डिविजन है।
4.ताइवान
चीन और ताइवान के बीच अलग ही रिश्ता है। 1911 में चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी। 1949 में यहां गृहयुद्ध छिड़ गया और माओ त्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने कॉमिंगतांग की पार्टी को हराया। हार के बाद कॉमिंगतांग ताइवान चले गए। 1949 में चीन का नाम 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' पड़ा और ताइवान का 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' पड़ा। दोनों देश एक-दूसरे को मान्यता नहीं देते। लेकिन, चीन दावा करता है कि ताइवान भी उसका ही हिस्सा है।
5.हॉन्गकॉन्ग
हॉन्गकॉन्ग पहले चीन का ही हिस्सा था, लेकिन 1842 में ब्रिटिशों के साथ हुए युद्ध में चीन को इसे गंवाना पड़ा। 1997 में ब्रिटेन ने चीन को हॉन्गकॉन्ग लौटा दिया,लेकिनइसके साथ 'वन कंट्री, टू सिस्टम' समझौता भी हुआ, जिसके तहत चीन हॉन्गकॉन्ग को अगले 50 साल तक राजनैतिक तौर पर आजादी देने के लिए राजी हुआ। हॉन्गकॉन्ग के लोगों को विशेष अधिकार मिले हैं, जो चीन के लोगों को नहीं हैं।
6.मकाउ
मकाउ पर करीब 450 साल तक पुर्तगालियों का कब्जा था। दिसंबर 1999 में पुर्तगालियों ने इसे चीन को ट्रांसफर कर दिया। मकाउ को ट्रांसफर करते समय भी वही समझौता हुआ था, जो हॉन्गकॉन्ग के साथ हुआ था। हॉन्गकॉन्ग की तरह ही मकाउ को भी चीन ने 50 साल तक राजनैतिक आजादी दे रखी है।
भारत के कितने हिस्से पर चीन का कब्जा है?
इसी साल 11 मार्च को लोकसभा में दिए जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने बताया था कि चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार स्क्वायर किमी के हिस्से पर अपनी दावेदारी करता है। जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार स्क्वायर किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है।
इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके का 5 हजार 180 स्क्वायर किमी चीन को दे दिया था। माना जाए तो अभी जितने भारतीय हिस्से पर चीन का कब्जा है, उतना एरिया स्विट्जरलैंड का भी नहीं है। कुल मिलाकर चीन ने भारत के 43 हजार 180 स्क्वायर किमी पर कब्जा जमा रखा है, जबकिस्विट्जरलैंड का एरिया 41 हजार 285 स्क्वायर किमी है।
सिर्फ देश या जमीन ही नहीं, समंदर पर भी अपना हक जताता है चीन
1949 में कम्युनिस्ट सरकार बनने के बाद से ही चीन दूसरे देशों, इलाकों पर कब्जा जमाता रहता है। चीन की सीमाएं 14 देशों से लगती है, लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि चीन 23 देशों के इलाकों को अपना हिस्सा बताता है।
इतना ही नहीं चीन दक्षिणी चीन सागर पर भी अपना हक जताता है। इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला यह सागर 35 लाख स्क्वायर किमी में फैला हुआ है। यह सागर इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रुनेई से घिरा है। लेकिन, सागर पर इंडोनेशिया को छोड़कर बाकी सभी 6 देश अपना दावा करते हैं।
आज से कुछ सालों पहले तक इस सागर को लेकर कोई तनातनी नहीं होती थी। लेकिन, आज से करीब 5 साल पहले चीन के समंदर मेंखुदाई करने वाले जहाज, ईंट और रेत लेकर दक्षिणी चीन सागर पहुंचे। पहले यहां एक छोटी समुद्री पट्टी पर बंदरगाह बनाया गया। फिर हवाई जहाजों के उतरने के लिए हवाई पट्टी। और फिर देखते ही देखते चीन ने यहां आर्टिफिशियल द्वीप ही तैयार कर सैन्य अड्डा बना दिया।
चीन के इस काम पर जब सवाल उठे, तो उसने दावा किया कि दक्षिणी चीन सागर से उसका ताल्लुक 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है।इस सागर पर पहले जापान का कब्जा हुआ करता था, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के तुरंत बाद चीन ने इस पर अपना हक जता दिया।
अमेरिका और चीन के रिश्तों में तनाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार रात ट्विटर पर एक बयान जारी किया। हाल के दिनों में इसे अमेरिकी की तरफ से चीन को सबसे बड़ी धमकी या चेतावनी माना जा सकता है। ट्रम्प ने कहा- हमारे पास चीन से रिश्ते खत्म करने का विकल्प मौजूद है।
खास बात ये है कि ट्रम्प ने इसकी कोई वजह नहीं बताई कि वो क्यों चीन से रिश्ते खत्म करने की बात कह रहे हैं। ट्रम्प के बयान के एक दिन पहले अमेरिकी ट्रेड एडवाइजर रॉबर्ट लाइटहाइजर भी यही बात कह चुके हैं। लिहाजा, मामला गंभीर लगता है।
ट्रम्प ने क्या कहा?
ट्रम्प ने गुरुवार रात किए गए ट्वीट में अमेरिकी ट्रेड एडवाइजर लाइटहाइजर का भी जिक्र किया। ट्रम्प ने कहा, “यह लाइटहाइजर की गलती नहीं है। शायद मैं ही अपनी बात को साफ नहीं कर पाया। लेकिन, अमेरिका के पास एक रणनीतिक विकल्प मौजूद है। हम चीन से सभी तरह के रिश्ते तोड़ सकते हैं। धन्यवाद”
पॉम्पियो से मिले थे चीन के अफसर
बुधवार को चीन के एक अफसर यांग जिएची ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो से मुलाकता की थी। यांग ने पॉम्पियो को भरोसा दिलाया था कि चीन एगीकल्चर और दूसरे सेक्टर में हुए समझौतों का पालन करेगा।
दोनों देशों में कई मुद्दों पर तनाव
अमेरिका कई मुद्दों पर चीन से नाराज है। ट्रम्प आरोप लगा चुके हैं कि कोरोनावायरस पर उसने अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को गुमराह किया। वो यह भी कहते है कि वायरस वुहान के लैब से निकला। दक्षिण चीन सागर में चीन को रोकने के लिए अमेरिका कमर कस चुका है। तीन अमेरिकी वॉरशिप यहां तैनात हैं। भारत और चीन की हालिया सैन्य झड़प के लिए भी अमेरिका ने चीन को कसूरवार ठहराया।
फेसबुक ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से जारी किए गए 10 से ज्यादा विज्ञापनों को अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया है। ये वीडियोनवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए जारी किए गए थे। फेसबुक के प्रवक्ता एंडी स्टोन ने गुरुवार को कहा कि ये विज्ञापन सामूहिक नफरत रोकने की हमारी नीतियों के खिलाफ थे। इनमें कुछ ऐसे निशान थे जो जर्मनी के नाजी शासक इस्तेमाल करते थे। यह वीडियो टीम ट्रम्प और उप राष्ट्रपति माइक पेंस के फेसबुक पेज से शेयर हुए थे। हटाने से पहले लाखों बार इसे देखा जा चुका था।
विज्ञापन में लाल रंग के एक त्रिकोण के इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज कराई गई। एंटी डीफेमेशन लीग ने कहा है कि यह नाजी शासन से जुड़ा हुआ है। नाजी कंसेंट्रेशन सेंटर में बंद राजनीतिक कैदियों के लिए यह निशान इस्तेमाल किया जाता था।
वीडियो में एंटिफा ग्रुप की आलोचना की गई थी
ट्रम्प के चुनाव कैंपेन ने इस विज्ञापन में लेफ्ट ग्रुप एंटिफा की आलोचना की थी। ट्रम्प समर्थक इस अमेरिकी ग्रुपको घरेलू आतंकी संगठन घोषित करने की मांग कर रहे हैं। पिछले महीने अमेरिका के कई राज्यों में लॉकडाउन हटाने के विरोध में हुए प्रदर्शन में इस ग्रुप के सदस्य शामिल हुए थे। इनमें से कुछ हथियारों के साथ पहुंचे थे। इसके बाद से ही ट्रम्प प्रशासन एंटिफा ग्रुप से नाराज है। यह ग्रुप मुख्य रूप से मानवाधिकारसे जुड़े मुद्दे उठाते हैं।
विवाद बढ़ने पर ट्रम्प कैंपेन की सफाई
फेसबुक से विज्ञापन हटाने और लाल निशान पर विवाद बढ़ने पर ट्रम्प के लिए चुनाव प्रचार करने वालों सफाई दी है। ट्रम्प समर्थकों ने कहा है कि इस निशान का इस्तेमाल एंटिफा ग्रुप के लोग करते हैं। ट्रम्प कैंपेन के डायरेक्टर टिम मुरटॉग ने कई ऐसे वेब लिंक भी साझा किए जिनमें इस तरह के निशान वाले सामान बेचे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि फेसबुक भी अपनी इमोजी में इसी तरह के लाल रंग वाले निशान का इस्तेमाल करती है। इससे जाहिर होता है कि कंपनी ने सिर्फ हमारे विज्ञापनों को निशाना बनाया है।
प्रचार वाले विज्ञापन में लिखा-लेफ्ट ग्रुप्स अशांति फैला रहे
‘‘लेफ्ट ग्रुप्स की खतरनाक भीड़ हमारी सड़कों पर दौड़ रही है। वे अशांति फैला रहे हैं। वे दंगे कर रहे हैं और हमारे शहरों को तबाह कर रहे हैं- यह पूरी तरह से पागलपन है। इस समय यह अहम है कि सारे अमेरिकी एक साथ आएं और उन्हें संदेश दें कि हम अब उनकी ऐसी उकसावे की हरकतों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम आपसे अपील करते हैं कि आप इस पर अपना स्टेटमेंट दें और अपना नाम इस सर्वे में शामिल कराएं।’’
Uyghur Hjelp, a Norway-based Uighur advocacy and aid organisation, told Voice Of America (VOA) news outlet last week that Chinese authorities since 2016 have detained at least 518 key Uighur religious figures and Imams. The organization also said it has found some of the Imams, who were previously trained and employed by Beijing, are now sentenced with long prison terms while a few of them have lost their lives in internment camps.
दुनिया में कोरोनावायरस से अब तक 4 लाख 56 हजार 269 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमितों का आंकड़ा 85 लाख 77 हजार 196 हो गया है। अब तक 45 लाख 13 हजार 407 लोग स्वस्थ हो चुके हैं। चीन की राजधानी बीजिंग में संक्रमण के दूसरे दौर के आंकड़ों पर अमेरिका ने सवाल उठाए हैं। अमेरिका ने कहा है कि चीन सरकार बीजिंग के आंकड़े सही नहीं बता रही है। अमेरिका के मुताबिक, बीजिंग के सही हालात पता करने के लिए वहां एक टीम भेजी जानी चाहिए। यह टीम वहां के हालात की निगरानी करे और सच्चाई बताएगी। चीन ने अमेरिकी मांग पर अब तक प्रतिक्रिया नहीं दी।
10 देश जहां कोरोना का असर सबसे ज्यादा
देश
कितने संक्रमित
कितनी मौतें
कितने ठीक हुए
अमेरिका
22,63,651
1,20,688
9,30,994
ब्राजील
9,83,359
47,869
5,03,507
रूस
5,61,091
7,660
3,13,963
भारत
3,81,091
12,604
2,05,182
ब्रिटेन
3,00,469
42,288
उपलब्ध नहीं
स्पेन
2,92,348
27,136
उपलब्ध नहीं
पेरू
2,44,388
7,461
1,31,190
इटली
2,38,159
34,514
1,80,544
चिली
2,25,103
3,841
1,86,441
ईरान
1,97,647
9,272
1,56,991
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अमेरिका : बीजिंग के आंकड़ों पर सवाल
गुरुवार रात अमेरिका ने चीन की राजधानी बीजिंग में संक्रमण के दूसरे दौर और इसके आंकड़ों पर सवाल उठाए। अमेरिका की तरफ से जारी बयान में कहा गया- बीजिंग में संक्रमण किस हद तक है, इसका पता लगाया जाना जरूरी है। दुनिया के सामने सच आना चाहिए। हमारी मांग है कि वहां स्वतंत्र टीम भेजी जाए। यह टीम बीजिंग में संक्रमण की स्थिति और आंकड़ों की जांच करे। दूसरी तरफ, चीन ने इस मामले और अमेरिका की मांग पर चुप्पी साध ली। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने यही मांग की है।
चीन : 32 नए मामले
चीन में 24 घंटों के दौरान संक्रमण के 32 नए मामले दर्ज किए गए। हालांकि, यह आंकड़े सरकारी हैं और इन पर सवाल उठ रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि राजधानी बीजिंग में ही संक्रमण का दूसरा दौर शुरू हो गया है। वहां मरीज तेजी से बढ़े हैं। चीन के मुताबिक, बीजिंग में 25 नए मामले सामने आए हैं। हेबेई में दो और लियाओनिंग प्रांत में एक मामला दर्ज किया गया। किसी भी संक्रमित की मौत नहीं हुई।
ईरान : मौतों का आंकड़ा बढ़ा
संक्रमण और मौतों के मामले में ईरान बढ़ता जा रहा है। यहां गुरुवार रात तक मरने वालों का आंकड़ा 9 हजार 272 हो गया। यह जानकारी वहां की हेल्थ मिनिस्ट्री ने एक बयान जारी कर दी। दो लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। करीब दो महीने बाद यहां गुरुवार को 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। ईरान सरकार के मुताबिक, हालात से निपटने के लिए एक नई टास्क फोर्स बनाई जा रही है। यह टीम खास तौर पर उन क्लस्टर पर नजर रखेगी, जहां मामले तेजी से बढ़े हैं।
जर्मनी : नए मामले
जर्मनी के एक स्लॉटर हाउस से जुड़े 730 मामले सामने के बाद सरकार सतर्क हो गई है। इन लोगों के इलाज के साथ ही इस बात का पता लगाया जा रहा है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में संक्रमित होने के बावजूद इनकी जानकारी हेल्थ मिनिस्ट्री को क्यों नहीं हुई। बताया जा रहा है कि फ्रेंकफर्ट की एक मीट पैकिंग यूनिट में यह मामले सामने आए हैं। मामले सामने आने के बाद इस यूनिट को पूरी तरह बंद कर दिया गया है।
ब्राजील : एक दिन में 1238 लोगों की मौत
ब्राजील में 24 घंटे के दौरान 22 हजार 765 नए मामले सामने आए। कुल आंकड़ा 9 लाख 78 हजार 142 हो गया। 24 घंटे में 1238 लोगों की मौत हुई। अब मरने वालों की संख्या 47 हजार 748 हो गई है। संक्रमितों के लिहाज से ब्राजील अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। मौतों के मामलों में वो भी दूसरे स्थान पर ही है। राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो लगातार कोरोना वायरस को एक सामान्य फ्लू बताते आए हैं जिसके कारण उन्हें कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है।
“This is the actions of a state-based actor with significant capabilities. There aren't too many state-based actors who have those capabilities,” Australian Prime Minister Scott Morrison said. Morrison would not comment on the inevitable speculation that the cyberattacks were part of Australia's increasingly hostile rift with China.
ऑस्ट्रेलिया के सरकारी और निजी क्षेत्र पर बड़ा साइबर अटैक हुआ है। बताया जा रहा है कि इसके पीछे किसी देश का हाथ है। चीन पर भी शक जताया जा रहा है। हालांकि, प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने किसी देश का नाम बताने से इनकार कर दिया है। उन्होंने साफ कियाकि अब तक की जांच में कोई बड़ा डेटा चोरी होने की बात सामने नहीं आई है।
मॉरिसन ने शुक्रवार को कैनबरा में मीडिया को बताया कि यह हमला सरकार, उद्योग, राजनीतिक संगठन, शिक्षा, स्वास्थ्य और जरूरी सेवा समेत हर क्षेत्र पर किया जा रहा है।उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन बीते कुछ महीनों में इनमें तेजी आई है।
तरीका बताता है कि इसके पीछे कोई देश है
मॉरिसनने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि यह किसी देश की ओर से किया गया हमला है, इसका तरीका यह साबित करता है। ऑस्ट्रेलियाईसरकार इसके प्रति सचेत है और आगाह भी कर रही है।’’ उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया अपने करीबी सहयोगियों और साझेदारों के साथ इस खतरे पर काम कर रही है।
जानकारी इसलिए दे रहे, ताकि लोग जागरूक हों
मॉरिसन ने कहा कि वे इस बारे में खुलेतौर परबोलकर चिंता नहीं जता रहे, बल्कि ऐसाजागरूकता के लिए कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि संस्थाओं, खासतौर पर जो स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी जरूरतों और जरूरी सेवाओं से जुड़ीहैं उनका हौसला बढ़ाया जा रहा है। उनसे कहा जा रहा है कि वे अपनी तकनीकी की सुरक्षा के उपाय करें।
चीन-ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय से टकरावचल रहा
इस साइबर अटेक के पीछेचीन पर शक इसलिए जताया जा रहा है, क्योंकि लंबे समय से उसके ऑस्ट्रेलिया से संबंध ठीक नहीं चल रहे हैं। चीन उसे अमेरिका का पिछलग्गू कहता है।ऑस्ट्रेलिया कोरोनावायरस फैलने की जांच कराने के पक्ष में और उसे चीन पर शक है।
President Donald Trump warned Thursday the United States had the option to separate from China's deeply intertwined economy, despite the powers' pledges to move forward on a trade deal.
"We know it is a sophisticated state-based cyber actor because of the scale and nature of the targeting," he said. Morrison said there were not a lot of state actors that could launch this sort of attack, but Australia will not identify which country was responsible.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया है कि गलवान घाटी में शहीद होने वाले जवान निहत्थे नहीं थे। उनके पास हथियार थे। विदेश मंत्री ने 1996 और 2005 के समझौते का हवाला दिया और कहा कि टकराव के दौरान जवान इनहथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।एक ओरभारत समझौते का पालन कर रहा है, लेकिन चीन को इसकी कोई फिक्र नहीं।
पूरे मामले मेंचीन ने 1993, 1996 और 2013 के समझौतों कासाफ तौर पर उल्लंघन किया है। पूरा मामला समझने के लिए भारत और चीन में एलएसी को लेकर अब तक हुए समझौतों के बारे में जानना जरूरीहै। मालूम हो किभारत और चीन में एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए 27 सालमें 5 समझौते हुए।
1993 का समझौता
चीन के साथ 90 के दशक में रिश्तों की शुरुआत1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे से हुई। 1993 के बाद सेदोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौते और प्रोटोकॉल पर बात शुरू हुई। 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसमिम्हा राव चीन दौर पर गए थे और इसी दौरान उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री ली पेंग के साथ एलएसी पर शांति रखने के लिए समझौते पर साइन किए।
1993 के समझौते में साफ कहा गया है कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक एलएसी को पार करते हैं तो दूसरी ओर से आगाह किए जाने के बाद वह तुरंत अपने क्षेत्र में चले जाएंगे। हालांकि,चीन ने गलवान और पैंगांग लेक में ठीक इसका उलट किया और अपने सैनिक तैनात कर दिए।
समझौते में कहा गया कि अगर तनाव की स्थिति बढ़ती है तो दोनों पक्ष एलएसी पर जाकर हालात का जायजा लेंगे और बीच का रास्ता निकालेंगे। लेकिन, चीन बातचीत के बावजूद अपनी जिद पर अड़ा रहा और भारतीय जवानों पर धोखे से हमला भी किया।
तीन साल बाद 1996 में समझौते को बढ़ाया गया
1993 के समझौते को तीन साल बाद बढ़ाया गया। 1996 में भारत दौरे पर आए चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन और तब के भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने नए समझौते पर साइन किए।
अगर किसी मतभेद की वजह से दोनों तरफ के सैनिक आमने-सामने आते हैं तो वह संयम रखेंगे। विवाद को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएंगे। हालांकि, चीन ने विवाद वाली जगहों पर पहले दिन से अपना संयम खोया। कई वीडियो में चीनी सैनिक अक्रामक रवैया दिखाते नजर आए हैं।
एलएसी पर मिलिट्री एक्सरसाइज करते हुए यह तय करना होगा किबुलेट या मिसाइल गलती से दूसरी तरफ न गिरे, इसमें 1500 से ज्यादा जवान नहीं होंगे। साथ ही इसके जरिए दूसरे को धमकी देने की कोशिश नहींहोगी।लेकिन, चीन ने हाल ही में एलएसी के पास मिलिट्री एक्सरसाइज की और चीनी मीडिया ने भारत को धमकी देते हुए इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया।
दोनों पक्ष तनाव रोकने के लिए डिप्लोमैटिक और दूसरे चैनलों से हल निकालेंगे।
एलएसी के पास दो किलोमीटर के एरिया में कोई फायर नहीं होगा, कोई पक्ष आग नहीं लगाएगा, विस्फोट नहीं करेगा और न ही खतरनाक रसायनों का उपयोग करेगा।
समझौते के तहत एलएसी पर दोनों पक्ष न तो सेना का इस्तेमाल करेंगे और न ही इसकी धमकी देंगे।
2005, 2012 और 2013में फिरसमझौतेहुए
2003 में भारत के तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सीमा विवाद को लेकर स्पेशल रिप्रजेंटेटिव स्तर का मैकेनिजम तैयार किया। इसके बाद मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2005, 2012 और 2013 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने पर तीन समझौते किए थे। उस दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन में भारत के राजदूत हुआ करते थे।
भारत और चीन दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि एलएसी के जिन इलाकों में अभी सीमा को लेकर दोनों ओर सहमति नहीं बन पाई है। वहां पेट्रोलिंग नहीं होगी। इसके बावजूद चीनलगातार विवादित जगहों पर अपना कब्जा जमाने के लिए आक्रामक रवैया अपना रहा है।
समझौते के मुताबिक, दोनों देश बॉर्डर पर जो स्थिति है, उसी में रहेंगे। साथ ही एलएसी पर सेनाओं के बीच विश्वास बनाने के लए प्रोटोकॉल बनाए गए थे।
दोनों पक्षों में सीमा विवाद से बचने के लिए एक वर्किंग मैकेनिज्मबनाने पर सहमति बनी। इसमें भारत की ओर से विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव और चीन की ओर से विदेश मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल लेवल के अधिकारी अध्यक्ष रहेंगे।
पीएम बनने के बाद मोदी 5 बार चीन गए
नरेंद्र मोदी 2014 में पीएम बनने के बाद 5 बार चीन दौरे पर जा चुके हैं। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से 18 बार मुलाकात हो चुकी है। इनमें वन-टू-वन मीटिंग के साथ ही दूसरे देशों में दोनों नेताओं में हुई मुलाकातें भी शामिल हैं।
पीएम मोदी ने चीन के साथ रिश्तों में गर्मजोशी लाने की कोशिश की, इसी के तहत 2018 के अप्रैल में वुहान से इनफॉर्मलसमिट की शुरुआत हुई। 2019 में इसी समिट के तहत दोनों नेताओं की मुलाकात तमिलनाडु के महाबलिपुरम में हुई।
गलवान घाटी में भारत-चीन सेनाओं की झड़प पर चीन के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियन ने कहा कि भारत और चीन दोनों ही इस गंभीर मुद्दे को न्यायसंगत तरीके से सुलझाने के पक्ष में हैं। झाओ ने कहा किदोनों ही देश यह मानते हैं कि शांति बरकरार रखने के लिए जल्द से जल्द कमांडर पर सहमति बनाकर तनाव को कम किया जाए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से झड़प को लेकर 6 सवाल किए गए, लेकिन उन्होंने किसी का भी सीधा जवाब नहीं दिया। वे बस एक ही बयान बार-बार दोहराते रहे और ना ही उन्होंने यह बताया कि झड़प में कितने चीनी सैनिकों ने जान गंवाई।
डैम बनाने के सवाल का भी जवाब नहीं दिया
एक रिपोर्टर ने सवाल पूछा कि क्या चीन गलवान नदी पर डैम बना रहा है ताकि भारत-चीन सीमा पर इसके प्रवाह को रोका जा सके। इस सवाल का भी झाओ ने कोई जवाब नहीं दिया।
एक ने सवाल पूछा कि क्या गलवान में टकराव तब शुरू हुआ, जब भारतीयों ने लाइन ऑफ कंट्रोल (एलएसी) के पास बने चीन के ठिकानों को गिराने की कोशिश की। इस पर झाओ ने कहा कि घटना के लिए भारतीय जवान जिम्मेदार हैं। गलत और सही क्या है, यह स्पष्ट है। हमारा इसमें कोई हाथ नहीं है।
बीजिंग यह तो मान रहा है कि उसके सैनिक इस झड़प में मारे गए हैं। लेकिन, अभी तक चीन ने ऐसे सैनिकों का कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया है।
चीन ने तीसरी बार भारत के सैनिकों को जिम्मेदार ठहराया
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि भारतीय सैनिकों ने समझौता तोड़ा और एलएसी को पार कर हमें उकसाया और अफसरों-सैनिकों पर हमला किया। इसके बाद ही झड़प हुई और जान गई। उन्होंने कहा कि भारत मौजूदा हालात पर गलत राय न बनाए और चीन की अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा करने की इच्छाशक्ति को कमजोर करके न देखे।
इससे पहले भी चीन ने बुधवार को कहा था कि गलवान में जो हुआ, उसके जिम्मेदार भारतीय सैनिक हैं।
भारत के मिजोरम में गुरुवार शाम को 5.0 रिक्टर स्केल की तीव्रता काभूकंप आया। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार भूकंप का केंद्र मिजोरम के चम्फाई में था। वहीं,न्यूजीलैंड में भी गुरुवार को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.4 दर्ज की गई है।अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे ने बताया कि इसका केंद्र उत्तर-पूर्व न्यूजीलैंड में केरमाडेक आइलैंड पर ओपिटिकी में जमीन के 33 किलोमीटर नीचे था।
बताया जा रहा है कि भूकंप के असर से सुनामी की लहरे न्यूजीलैंड में नहीं उठेंगी।लेकिन एपिसेंटर से 300 किलोमीटर दूर सूनामी कहर बरपा सकती है।जिओनेट के मुताबिक, करीब 9000 लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए।इससे पहले मंगलवार को प्लेंट्री की खाड़ी में भूकंप आया था।
उत्तरी अफगानिस्तान के एक धार्मिक स्कूल में गुरुवार को हुएबम ब्लास्ट में सात छात्रों की मौत हो गई है। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के मुताबिक, घटना में 8 लोग घायल भी हुए हैं।पुलिस प्रवक्ता खलील असीर ने बताया कि शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि विस्फोट एक मोर्टार के कारण हुआ था। इसे मदरसे के अंदर ले जाया गया था।
पुलिस के मुताबिक, यह घटना तकहार प्रांत के इश्कामिश जिले में हुई। प्रांत के गवर्नर जवाद हेजरी ने इस घटना की पुष्टि की है।
अप्रैल में बम ब्लास्ट में 4 लोगों की मौत हुई थी
अफगानिस्तान के काबुल में बारची मैटरनिटी हॉस्पिटल में मई में हुए आतंकी हमले में 24 लोग मारे गए थे। इसके बाद सुरक्षाबलों ने आतंकियों को भी ढेर कर दिया था।वहीं, अप्रैल महीने में यहां के गजनी प्रांत में हुए विस्फोट में चार लोगों की मौत हुई थी। चारों युवक एक वाहन से कहीं जा रहे थे। इसी दौरान उनकी गाड़ी सड़क किनारे रखे बम की चपेट में आ गई। इससे पहले फरवरी मेंराजधानी काबुल में हुए बम विस्फोट में 9 नागरिकों की जान गई थी।
The new patients include four community cases, including one permanent resident (foreigner), the health ministry said. The other three are foreigners on work passes. The rest 253 cases are also foreign workers living in dormitories. The total coronavirus cases in Singapore now stands at 41,473.
नेपाल की राष्ट्रीय सभा (संसद का उच्चसदन) में तीन भारतीय इलाकों भारतीय इलाकों कालापानी, लिंपियाधूरा और लिपुलेख को अपनीसीमा में बताने वालाबिल गुरुवार को पास कर दिया। यह बिल संविधान में बदलाव करने के लिए लाया गया था। नेपाल की कानून मंत्री डॉ. शिवमाया तुम्बाड ने राष्ट्रीय सभा में बिल पेश किया था। राष्ट्रीय सभा के 59 में से 57 सांसदों ने इसका समर्थन किया। अब राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष अग्निप्रसाद सापकोटा इसे राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के सामने पेश करेंगे।
दरअसल, नेपाल ने नया राजनीति नक्शा जारी किया है। इसे पास कराने के लिए ही यह बिल लाया गया था। नेपाल की संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में यह बिल 14 जून को ही पारित हो गया था। 275 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा में इसके समर्थन में 258 वोट पड़े थे।
भारत ने कड़ा ऐतराज जताया
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ''हमने गौर किया है कि नेपाल की प्रतिनिधि सभा ने नक्शे में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक पारित किया है ताकि वे कुछ भारतीय क्षेत्रों को अपने देश में दिखा सकें। हालांकि, हमने इस बारे में पहले ही स्थिति स्पष्ट कर दी है। यह ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है। ऐसे में उनका दावा जायज नहीं है। यह सीमा विवाद पर होने वाली बातचीत के हमारे मौजूदा समझौते का उल्लंघन भी है।''
नेपाल ने नया नक्शा 18 मई को जारी किया था
भारत ने लिपुलेख से धारचूला तक सड़क बनाई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इसका उद्घाटन किया था। इसके बाद ही नेपाल की सरकार ने विरोध जताते हुए 18 मई को नया नक्शा जारी किया था। भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी।
भारत ने कहा था- यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है। हाल ही में भारत के सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने चीन का नाम लिए बिना कहा था कि नेपाल ने ऐसा किसी और के कहने पर किया।
कब से और क्यों है विवाद?
नेपाल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1816 में एंग्लो-नेपाल जंग के बाद सुगौली समझौते पर दस्तखत हुए थे।
समझौते में काली नदी को भारत और नेपाल की पश्चिमी सीमा के तौर पर दिखायागया है।
इसी आधार पर नेपाल लिपुलेख और अन्य तीन क्षेत्र अपने अधिकार क्षेत्र में होने का दावा करता है।
हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। दोनों देशों के पास अपने-अपने नक्शे हैं।
रसेल गोल्डमैन. हिमालय की गहरी घाटी में चीनी सेना के साथ झड़प में20 भारतीय जवानशहीद हो गए।इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। हालांकि इस हिंसक झड़प की स्क्रिप्टएक दिन में तैयार नहीं हुई, इसे बनने में कई दशक लगे हैं। दोनों न्यूक्लियर ताकतों की सत्ता ऐसे नेताओं के हाथ में है जो संशय में पड़े इलाकों में अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। ऐसे में दूसरे राष्ट्रों ने इन्हें चेतावनी जारी की है और शांत रहने के लिए भीकहा है।
आइए देखते हैं कैसे दोनों राष्ट्र इस मोड़ पर पहुंचे-
1914- एक बॉर्डर जिसे चीन ने कभी नहीं माना
यह विवाद 1914 में शुरू हुआ। जब ब्रिटेन, रिपब्लिक ऑफ चाइना और तिब्बत के प्रतिनिधि शिमला में इकट्ठे हुए। येप्रतिनिधि यहां तिब्बत के दर्जे और ब्रिटिश इंडिया-चीन की सीमा को लेकर संधि करने के लिए शामिल हुए थे।
तिब्बत की स्वायत्ता और अधिकारोंकी शर्तों में रुकावट डाल रहे चीन ने डील पर दस्तखत तो नहीं किए, लेकिन ब्रिटेन और तिब्बत ने एक ट्रीटी पर साइन जरूर किए,जिसे मैकमोहन लाइन कहा गया। इस लाइन का नाम बॉर्डर की पेशकश करने वाले ब्रिटिश अधिकारी हैन्री मैकमोहन के नाम पर रखा गया था। यह लाइन भारत और चीन की आधिकारिक सीमा है। भारत हिमालय स्थित 550 मील लंबी बॉर्डर को मानता है, लेकिन कभी भी चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया।
1962- युद्ध का साल
1947 में भारत आजाद हुआ,दो साल बाद चीनी क्रांतिकारी माओ जेदॉन्ग ने कम्युनिस्ट क्रांतिका अंत किया और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन की स्थापना की। इसके तुरंत बाद ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद शुरू हो गया और 1950 में तनाव बढ़ गया। चीन ने जोर दिया कि तिब्बत कभी भी स्वतंत्र नहीं था, इसलिए वो अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर बनाने के लिए साइन नहीं कर सकता है।
चीन ने शियाजियांग स्थित अपने पश्चिमी फ्रंटियर के लिए जरूरी सड़कोंपर नियंत्रण की मांग की। जबकि भारत और उसके दूसरे पश्चिमी साथियों ने चीनी घुसपैठ को इलाके में माओवादऔरकम्युनिज्मफैलाने के तौर पर देखा। 1962 में युद्ध की शुरुआत हो गई।
चीनी सेना की टुकड़ियों ने मैकमोहन लाइन को पारकर भारतीय इलाके में जगह बना ली और पहाड़ी रास्ते और कस्बों को कब्जे में ले लिया। एक महीने तक चले इस युद्ध में एक हजार से ज्यादा भारतीय सैनिकों की जान गई और 3 हजार सैनिक बंदी बना लिए गए। जबकि चीन की सेना में मौतों का आंकड़ा 800 से कम रहा। नवंबर तक चीन के प्रीमियर झाउ एनलाई ने सीजफायर की घोषणा की और चीनी टुकड़ियों के कब्जे वाली सीमा को छोड़ दिया। यह कथित एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल थी।
1967- जब भारत ने चीन को खदेड़ा
1967 में सिक्किम को जोड़ने वाले दो पहाड़ी इलाके नाथू ला और चो ला में फिर से तनाव बढ़ने लगा। सिक्किम भारतीयराज्य है और स्वायत्त तिब्बत को चीन अपना बताताआ रहाहै। विवाद तब शुरू हुआ, जब भारत के सैनिक उस जगह पर कंटीले तार बिछाने लगे, जिसे वे सीमा समझते थे। यह विवाद तब और बढ़ गया जब चीन की सेना ने भारतीय सैनिकों पर फायरिंग शुरू कर दी। इस झड़प में 150 से ज्यादा भारतीय और करीब 340 चीनी सैनिक मारे गए। 1967 के सितंबर और अक्टूबर में हुई इस लड़ाई को चीन और भारत के बीच दूसरा युद्ध माना गया।
भारत नाथू ला में चीन के दुर्ग को खत्म करने और चो ला के पास उनके इलाके तक खदेड़ने में कामयाब रहा। इन बदलावों के बाद यह मान लिया गया कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर भारत और चीन के अलग-अलग विचार हैं।
1987- दोनों देशों मेंसंघर्ष टल गया
1987 में भारतीय सेना यह देखने के लिए ट्रेनिंग ऑपरेशन चला रही थी कि टुकड़ी को कितनी तेजी से बॉर्डर पर भेजा जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में सेना केलाव लश्कर कोदेखकर चीनी कमांडर चौंक गए और उन्होंने अपनी मानने वाली लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की ओर बढ़कर जवाब दिया। बाद में युद्ध की स्थिति को देखते हुए भारत और चीन अलग हो गए और संकट टल गया।
2013- दोनों देशों ने दौलत बेग ओल्डीमें कैम्प बना लिए
दोनों ओरकुत्ता-बिल्ली की रणनीति चल रही थी। दशकों बाद चीनी प्लाटून ने अप्रैल 2013 में दौलत बेग ओल्डीके नजदीक कैंप बना लिए। इसके जवाब में भारत ने भी एक हजार फीट से भी कम दूरी पर अपने तंबू गाड़ दिए। धीरे-धीरेकैंप दुर्ग में बदल गए और यहां बड़ी संख्या में सैनिक और हथियार आ गए। मई में दोनों देश कैंप हटाने के लिए राजी हो गए, लेकिन लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर विवाद बना रहा।
2017- डोकलाम विवाद
जून 2017 में चीन ने हिमालय स्थित डोकलाम में रोड का निर्माण शुरू कर दिया। यह इलाका भारत का नहीं, बल्कि उसके साथी भूटान के नियंत्रण में है। यह पठार भूटान और चीन की बॉर्डर पर है, लेकिन भारत इसे बफर जोन की तरह देखता है, जो चीन के साथ दूसरे विवादित क्षेत्रों के नजदीक है।
हथियार और बुल्डोजर्स के साथ भारतीय सेना रोड तोड़ने के इरादे से पहुंची और चीनी सेना ने इसका विरोध किया। फिर विवाद हुआ और सैनिकों ने एक-दूसरे पर पत्थर फेंके। इस हमले में दोनों तरह काफी चोटें आईं। अगस्त में दोनों देश उस इलाके से हटने के लिए तैयार हो गए और चीन ने निर्माण कार्य बंद कर दिया।
2020- फिर विवाद शुरू हुआ
मई में दोनों देशों की सेनाओं के बीचकई बार हाथापाई हुई। पैंगॉन्ग झील पर हुए एक झगड़े में कई भारतीय सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए थे। यहां तक की उन्हें हेलीकॉप्टर से ले जाना पड़ा था। भारतीय विश्लेषकों के अनुसार चीनी टुकड़ियां भी गंभीर रूप से घायल हुईं थीं।
भारतीय एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चीन ने डंप ट्रक्स, बख्तरबंद वाहन,और टुकड़ियों के जरिए खुद को मजबूत किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ट्विटर पर मध्यस्थता करने की पेशकश की, जिसे उन्होंने "ए रेजिंग बॉर्डर डिस्प्यूट" नाम दिया। यह साफ था कि 2017 के बाद दोनों देशों के बीच हुए विवाद की सबसे गंभीर कड़ी थी। जिसके गंभीर नतीजे अब सामने आए हैं।