Tuesday, November 3, 2020
आर्मी चीफ एम एम नरवणे आज से 3 दिन के नेपाल दौरे पर, सीमा विवाद के बाद पहला दौरा November 03, 2020 at 08:39PM
सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे आज से 3 दिन की नेपाल यात्रा पर हैं। नेपाल के आर्मी चीफ पूर्ण चंद्र थापा ने नरवणे को न्यौता दिया था। नेपाल से सीमा विवाद के बाद यह नरवणे का पहला दौरा है। आर्मी चीफ गुरुवार को काठमांडू में होने वाले कार्यक्रम में भारत की तरफ से नेपाल को मेडिकल सहायता देंगे। इसमें दवाएं और मेडिकल उपकरण शामिल हैं।
नेपाल में भारत के सीनियर अफसर ने बताया कि कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए मेडिकल सहायता नेपाल के लिए अहमियत रखती है। महामारी के दौर में भारत लगातार पड़ोसी देशों की मदद कर रहा है।
नरवणे को नेपाली आर्मी के ऑनरेरी जनरल की रैंक दी जाएगी
गुरुवार को नेपाल आर्मी हेडक्वार्टर पर होने वाले प्रोग्राम में जनरल नरवणे को नेपाली आर्मी के ऑनरेरी जनरल की रैंक दी जाएगी। यह 1950 से चली आ रही 70 साल पुरानी परंपरा है। इसके तहत दोनों देश एक दूसरे के सैन्य प्रमुखों को ऑनरेरी रैंक देते हैं। नरवणे नेपाल के आर्मी पवेलियन में शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि देंगे। नरवणे की नेपाली आर्मी चीफ के साथ मीटिंग भी होगी।
नरवणे शिवपुरी में आर्मी कमांड और स्टाफ कॉलेज में स्टूडेंट्स को भी संबोधित करेंगे। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से भी मुलाकात करेंगे। नेपाल जाने से पहले नरवणे ने कहा कि इस दौरे से दोनों देशों के रिश्ते मजबूत होंगे।
नरवणे के बयान से नेपाल नाराज था
नेपाल और भारत के बीच इस साल मई से ही तनाव है। ऐसे में जनरल नरवणे का नेपाल दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। नरवणे ने मई में कहा था कि नेपाल किसी दूसरे देश की शह पर सीमा विवाद का मुद्दा उठा रहा है। लिपुलेख से मानसरोवर के बीच बनाई गई भारतीय सड़क पर सवाल खड़े कर रहा है। उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया था, लेकिन नेपाल ने उनके इस बयान पर नाराजगी जाहिर की थी। नेपाल ने नरवणे के बयान को अपमानजनक बताया था।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
भारत ने अपना नया नक्शा 2 नवम्बर 2019 को जारी किया था। इस पर नेपाल ने आपत्ति जताई थी और कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख इलाके को अपना इलाका बताया था। इस साल 18 मई को नेपाल ने इन तीनों इलाकों को शामिल करते हुए अपना नया नक्शा जारी कर दिया। इस नक्शे को अपनी संसद के दोनों सदनों में पास कराया। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। मई-जून में नेपाल ने भारत से सटी सीमाओं पर सैनिक बढ़ा दिए। बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर नेपाली सैनिकों ने कुछ भारतीयों पर फायरिंग भी की थी।
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फ्लोरिडा तय करता है व्हाइट हाउस; हमारे यूपी-राजस्थान जैसा, यहां ट्रम्प आगे; एरिजोना बंगाल जैसा, यहां बाइडन आगे November 03, 2020 at 08:23PM
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव कौन जीतेगा, अभी तस्वीर साफ नहीं है। हालांकि वहां कहा जाता है कि जो स्विंग स्टेट्स जीतेगा, वही व्हाइट हाउस पहुंचेगा। आसान भाषा में समझें तो स्विंग स्टेट्स यानी वे राज्य जहां के वोटर्स दोनों पार्टियों यानी डेमोक्रेट और रिपब्लिकन में से किसी भी पार्टी को जिता सकते हैं। यानी ये राज्य किसी पार्टी के गढ़ नहीं होते, जैसा कि दूसरे राज्यों के साथ होता है। फ्लोरिडा ऐसा ही राज्य है। यानी स्विंग स्टेट।
फ्लोरिडा हमारे यूपी या राजस्थान जैसा क्यों?
इसे पहले हमारे देश की सियासी सोच के हिसाब से देखते हैं। दो राज्यों के उदाहरण सामने रखते हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान। हम यही मानते और जानते आए हैं कि जिसने उत्तर प्रदेश (80 लोकसभा सीटें) जीत लिया, दिल्ली की गद्दी उसकी। दूसरी बात, राजस्थान की जहां का वोटर हर विधानसभा चुनाव में सरकार बदल देता है।
फ्लोरिडा में यूपी और राजस्थान जैसी दोनों ही बातें हैं। यानी यहां का वोटर हर बार सरकार बदलने के लिए भी जाना जाता है और यहां 29 इलेक्टर्स (जो इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए राष्ट्रपति चुनते हैं) हैं। चूंकि, स्विंग वोटर्स का मामला है तो करीब एक सदी से माना जाता रहा है कि फ्लोरिडा जीता तो व्हाइट हाउस तय। लेकिन, इस बार यह मान्यता बदल सकती है। कुछ हद तक यही बात 20 इलेक्टर्स वाले पेन्सिलवेनिया के बारे में भी कही जाती है। लेकिन, इसे स्विंग स्टेट्स में नहीं गिना जाता।
अमेरिका में 50 राज्य हैं। ज्यादातर राज्य ब्ल्यू एंड रेड में बंटे हुए हैं। ब्ल्यू यानी डेमोक्रेट्स के गढ़ और रेड यानी रिपब्लिकन के गढ़। जो दोनों के गढ़ नहीं वे स्विंग स्टेट्स कहलाते हैं। इस बार ऐसे तीन राज्य हैं- फ्लोरिडा, इदाहो और आयोवा। फ्लोरिडा इनमें सबसे बड़ा है। इदाहो में 4 और आयोवा में 6 इलेक्टर्स हैं।
एरिजोना की सियासत कुछ हद तक पश्चिम बंगाल जैसा
पश्चिम बंगाल और कुछ नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में बांग्लादेश और म्यांमार के घुसपैठियों का मुद्दा लगभग हर चुनाव में उठता है। घुसपैठ कहें या अवैध अप्रवासन। ट्रम्प ने इस पर बेहद सख्त रुख अपनाया। इस हद तक कि बाइडेन ने उन्हें इंसानियत में भरोसा न रखने वाला शख्स करार दिया।
ट्रम्प ने मैक्सिको के 545 बच्चों को चाइल्ड केयर होम में रखा। इनके मां-बाप या तो मैक्सिको में हैं, या अमेरिका के किसी जेल या शहर में। भारत में घुसपैठ को लेकर भाजपा जैसी सख्ती की मांग करती है, अमेरिका में रिपब्लिकन्स भी यही करते हैं।
78 साल में सिर्फ दूसरी बार एरिजोना में रिपब्लिकन्स पिछड़े या कहें हार गए हैं। यानी ट्रम्प हार गए हैं। सीएनएन के मुताबिक, इसकी एक ही वजह है लैटिन अमेरिकी वोटर। ये वो लोग हैं जो गरीब हैं और उन्होंने डेमोक्रेट्स को सीधे तौर पर फेवर किया। कुछ राज्यों की मुस्लिम आबादी भी ट्रम्प के साथ नहीं थी। इसकी वजह इजराइल और मिडल ईस्ट के देशों पर अमेरिकी दबाव है। अमेरिकी मुस्लिम मानते हैं कि इजराइल के दखल से मुस्लिमों को डराया जा रहा है।
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बाइडेन 85 और ट्रम्प 55 इलेक्टोरल वोट्स से आगे, इंडियाना में ट्रम्प और केंटुकी में बाइडेन को बढ़त November 03, 2020 at 03:19PM
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए काउंटिंग शुरू हो चुकी है। शुरुआती दौर में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दो राज्यों इंडियाना और न्यू हैम्पशायर में आगे चल रहे हैं। डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन केंटुकी में आगे बताए गए हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, अब तक की गिनती के हिसाब से ट्रम्प को 55 जबकि बाइडेन को 85 वोट मिल चुके हैं।
LIVE UPDATES : अपडेट्स
- बाइडेन केंटुकी में 52.3% वोट हासिल कर चुके हैं। यहां ट्रम्प को 45.3% मिल चुके हैं
- CNN के मुताबिक, इंडियाना में ट्रम्प जीत के बिल्कुल करीब हैं। यहां कुल 11 इलेक्टोरल वोट हैं। 2016 में भी यहां ट्रम्प ने ही जीत हासिल की थी।
- ट्रम्प रिलेक्स दिखाई दे रहे हैं। वे इस समय परिवार के साथ व्हाइट हाउस में ही हैं। बाइडेन डेलावेयर में हैं और जल्द न्यूयॉर्क पहुंच सकते हैं।
- हिंसा की आशंका
अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा संभालने वाले यूएस नेशनल गार्ड को अलर्ट मोड पर रहने को कहा गया है। 18 राज्यों में चुनावी हिंसा या झड़पों की आशंका जताई गई है। करीब 4700 गार्ड्स को तैनात किया जा सकता है। सायबर डिफेंस एजेंसी को भी मॉनिटरिंग करने को कहा गया है। मिलिट्री टाइम्स ने इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की है। - न्यूज एजेंसी ने फॉक्स न्यूज के हवाले से बताया है कि इंडियाना में अब तक ट्रम्प को 65.7% जबकि बाइडेन को 32.6% वोट मिले हैं। न्यू हैम्पशायर में ट्रम्प को 61.5% जबकि बाइडेन को 38.5% वोट मिल चुके हैं। ट्रम्प ने एक ट्वीट में कहा- देश में सब अच्छा दिखाई दे रहा है। शुक्रिया।
चुनाव के मुख्य मुद्दे
- कोरोनावायरस
- इकोनॉमी
- हेल्थ सेक्टर रिफॉर्म्स
- फॉरेन पॉलिसी
- नस्लवाद और पुलिस सुधार
डोनाल्ड ट्रम्प vs जो बाइडेन
टम्प 74 साल के हैं और बाइडेन उनसे 3 साल बड़े यानी 77 साल के हैं।
ट्रम्प कारोबारी से नेता बने। बाइडेन 1973 में ही सीनेटर बन गए थे।
ट्रम्प प्रोटेस्टेंट हैं। बाइडेन रोमन कैथोलिक।
ट्रम्प ने 3 जबकि बाइडेन ने 2 शादियां कीं। बाइडेन की एक पत्नी का निधन हो चुका है।
ट्रम्प के 5 और बाइडेन के 4 बच्चे हैं। एक बेटे की मौत हो चुकी है।
ट्रम्प की वेबसाइट (www.donaldjtrump.com) और बाइडेन की (www.joebiden.com) है।
आगे क्या होगा?
आज सुबह (4 नवंबर सुबह 5 बजे करीब) काउंटिंग शुरू हुई। दो राज्यों में 13 नवंबर तक पोस्टल बैलट मिलेंगे।
लैंडस्लाइड मार्जिन रहा तो बुधवार को ही नतीजे साफ हो सकेंगे। मार्जिन कम रहा तो मामला टल जाएगा। 10 नवंबर से 8 दिसंबर तक सर्टिफिकेशन प्रॉसेस चलेगा। यानी इलेक्टर्स के नतीजों की औपचारिक घोषणा। 14 दिसंबर को इलेक्टर्स वोटिंग करेंगे। 6 जनवरी को इनकी गिनती होगी। 20 जनवरी को नया राष्ट्रपति शपथ लेगा।
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ट्रम्प जीतें या बाइडेन, भारत विन-विन पोजिशन में; चीन से मुकाबले के लिए मोदी का साथ जरूरी November 03, 2020 at 03:15PM
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों की तस्वीर आज साफ हो सकती है। ये तय हो सकता है कि डोनाल्ड ट्रम्प को चार साल और मिलेंगे या जो बाइडेन व्हाइट हाउस पहुंचेंगे। भारत के लिए भी इस चुनाव के अहम मायने हैं। कोरोनावायरस, ट्रेड वॉर, सायबर सिक्योरिटी और साउथ चाइना सी। ये कुछ मामले ऐसे हैं, जिनको लेकर चीन और अमेरिका में तनाव है।
दूसरी तरफ, भारत और चीन के बीच भी सीमा विवाद जारी है। ‘यूएसए टुडे’ के मुताबिक, ट्रम्प और बाइडेन के कैम्पेन पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि दोनों में से कोई भी जीते, चीन के प्रति इनका रुख सख्त ही रहेगा। भले ही ट्रम्प ने वायु प्रदूषण के मसले पर भारत को गंदा बताया हो। यहां इस चुनाव और भारत पर इसके असर के बारे में समझते हैं।
कॉमन चैलेंज
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत हो या अमेरिका। दोनों के लिए इस वक्त चीन ही सबसे बड़ी चुनौती है। अमेरिका के सुपरपावर के दर्जे को शी जिनपिंग चुनौती दे रहे हैं। दूसरी तरफ, भारत की जमीन पर बीजिंग की लालच भरी नजरें टिकी हैं। दोनों चीन की चालों को नाकाम करने के लिए साथ आ रहे हैं। दोनों देशों के बीच कुछ दिन पहले मिसाइल डिफेंस और सर्विलांस पैक्ट हुआ। बाजार, आकार और भरोसे के लिहाज से एशिया में चीन को टक्कर देने की ताकत सिर्फ भारत में है। इसलिए, अमेरिका हर हाल में भारत का साथ चाहेगा।
एक मिसाल से समझिए
ऐसे वक्त जबकि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव चल रहा था, ट्रम्प के नंबर 2 और नंबर 3 मंत्री भारत समेत एशियाई देशों के दौरे पर थे। विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर दो दिन भारत में रुके। फिर श्रीलंका और मालदीव भी गए। हर यात्रा में चीन की हिंद महासागर में बढ़ती दखलंदाजी और प्रभाव पर कुछ खुली और कुछ गुप्त बातचीत हुई। इससे झलक तो मिल ही जाती है कि ट्रम्प या बाइडेन चाहे जो जीते, डिफेंस और फॉरेन पॉलिसी ज्यादा नहीं बदलेंगी। अमेरिका में पहले भी यही ट्रेंड रहा है। हालांकि, प्रेसिडेंशियल डिबेट में सिर्फ दो बार भारत का नाम लिया गया था।
अभी नहीं तो कभी नहीं
यूएसए टुडे के मुताबिक- चीन अब अमेरिकी सुरक्षा, आर्थिक हितों और संस्कृति के लिए सबसे बड़ा खतरा और चुनौती बन चुका है। उस पर शिकंजा काफी पहले कसना चाहिए था, लेकिन अब भी देर नहीं हुई। अमेरिका को फिर अपने मित्र राष्ट्रों, नाटो और दूसरे गठबंधनों को साथ लाना होगा। अगर ऐसा हुआ तो मुकाबला मुश्किल नहीं होगा। अमेरिकी अफसर इस पर बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। सियासत इस मामले में बाधा नहीं बनेगी।
ट्रम्प के चीन पर 5 बड़े आरोप
- चीन कोरोनावायरस फैलाया। अमेरिका के पास इसके सबूत। बीजिंग को इसकी कीमत चुकानी होगी।
- साउथ चाइना सी पर कब्जा करके चीन दुनिया के 30 फीसदी कारोबार पर कब्जा करना चाहता है।
- भारत समेत पड़ोसी देशों की जमीन पर कब्जा करना चाहता है चीन। पड़ोसियों को धमका रहा बीजिंग।
- चीन दुनिया के हर लोकतांत्रिक देश के लिए खतरा। उसके यहां मानवाधिकार जैसी कोई चीज नहीं।
- सायबर सिक्योरिटी और ट्रेड के मामले में अमेरिका अब चीन को कोई राहत नहीं देगा।
बाइडेन का चीन पर रवैया अब तल्ख
- चीन ने अमेरिकी चुनाव में दखल की साजिश रची। बख्शा नहीं जाएगा।
- अमेरिकी कंपनियों को चीन में परेशान किया जा रहा है। जीते तो माकूल जवाब देंगे।
- मानवाधिकारों के मसले पर चीन का रिकॉर्ड दुनिया में सबसे खराब। जवाबदेही तय करेंगे।
- हॉन्गकॉन्ग, तिब्बत और वियतनाम में चीन की मनमानी नहीं चलेगी। साउथ चाइना सी में अमेरिकी बेड़ा स्थायी करेंगे।
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अमेरिकी इतिहास के 5 राष्ट्रपति, जिन्हें जनता ने नकार दिया, पर इलेक्टोरल कॉलेज ने चुना November 03, 2020 at 03:01PM
लोकतंत्र में जनता ही भाग्य विधाता होती है। अपना शासक और शासन खुद चुनती है। प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती हैं। अमेरिका की बात करें तो यहां अब तक पांच बार ऐसा हुआ जब जनता (पॉपुलर वोट) किसी और को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी, लेकिन जनप्रतिनिधियों (इलेक्टर्स या इलेक्टोरल कॉलेज) ने किसी और को ही राष्ट्रपति बना दिया। आइए इन पांच खुशकिस्मत अमेरिकी राष्ट्रपतियों के बारे में जानते हैं।
अमेरिका में यह 58वां राष्ट्रपति चुनाव है। 53 बार ऐसा हुआ जब जो राष्ट्रपति बना, उसे पॉपुलर और इलेक्टोरल वोट ज्यादा मिले। लेकिन, 5 बार ऐसे नेता राष्ट्रपति बने जो इलेक्टोरल कॉलेज से जीते। वे जनता की पहली पसंद नहीं थे।
जॉन क्विंसी एडम्स (1825-29)
इस चुनाव में दोनों पार्टियों से दो-दो यानी कुल चार उम्मीदवार थे। इनके नाम थे- एंड्रयू जैक्सन, जॉन क्विंसी एडम्स, विलियम क्रॉफर्ड और हेनरी क्ले। यह अमेरिकी संविधान में 12वें संशोधन के पहले की बात है। मामला उलझा तो इसे हाउस रिप्रेंजेंटेटिव्स के पास भेजा गया। नियम के मुताबिक, टॉप 3 कैंडिडेट चुने गए। हेनरी क्ले दौड़ से बाहर हो गए। हाउस में वोटिंग हुई तो एडम्स को राष्ट्रपति चुन लिया गया।
रदरफोर्ड बी. हायेस (1877-81)
यहां भी एडम्स की तरह मामला उलझा। वोटर्स के बजाए कांग्रेस ने फैसला किया। रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से रदरफोर्ड बी. हायेस और डेमोक्रेट्स की तरफ सैम्युअल टिल्डेन उम्मीदवार थे। उस वक्त टिल्डेन को 184 इलेक्टोरल वोट (तब बहुमत से एक कम) मिले। हायेस को 165 वोट मिले। 20 वोटों पर विवाद था। संवैधानिक संकट पैदा हो गया। कांग्रेस ने एक कमिशन बनाया। क्योंकि, दोनों पार्टियां 20 विवादित वोटों पर दावा कर रहीं थीं। इसने 20 वोट हायेस को दे दिए। वे सिर्फ एक वोट से चुनाव जीत गए। कुछ राजनीतिक इतिहासकार मानते हैं कि दोनों पार्टियों के बीच एक सीक्रेट डील के तहत हायेस प्रेसिडेंट बने।
बेंजामिन हैरिसन (1889-93)
1888 में मुकाबला प्रेसिडेंट ग्रोवल क्लीवलैंड और रिपब्लिकन कैंडिडेट बेंजामिन हैरिसन के बीच था। दोनों पार्टियों पर आरोप लगे कि उन्होंने ‘नोट के बदले वोट’ जैसा गलत काम किया। यानी मतदाताओं को पैसे देकर वोट खरीदे। दक्षिणी राज्यों में डेमोक्रेट्स जबकि पूर्व और पश्चिम में रिपब्लिकन्स को जीत मिली। क्लीवलैंड को हैरिसन से 90 हजार पॉपुलर वोट ज्यादा मिले। लेकिन, इलेक्टोरल वोट हैरिसन को 233 जबकि क्लीवलैंड को सिर्फ 168 मिले। हैरिसन राष्ट्रपति बने। चार साल बाद उन्होंने हैरिसन को करारी शिकस्त दी।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश (2001-2009)
हैरिसन का इतिहास पूरे 112 साल बाद दोहराया गया। नवंबर 2000 में मुकाबला था रिपब्लिकन जॉर्ज डब्ल्यू बुश (बुश जूनियर) और डेमोक्रेट अल गोर के बीच। गोर बिल क्लिंटन के दौर में वाइस प्रेसिडेंट थे। ओरेगन, न्यू मैक्सिको और फ्लोरिडा में मामला फंस गया। फ्लोरिडा में तो दूसरी बार वोटों की गिनती हुई। मामला पहले फ्लोरिडा कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 9 में से 5 जज बुश और 4 गोर के पक्ष में रहे। इलेक्टोरल कॉलेज में 271 वोट बुश और 266 अल गोर को मिले। हालांकि, पॉपुलर वोट 5 लाख से ज्यादा अल गोर के पाले में गए।
डोनाल्ड ट्रम्प (2016-20)
ये तो पिछले ही चुनाव की बात है। पॉपुलर वोट के मामले में वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प काफी पीछे थे। डेमोक्रेट कैंडिडेट हिलेरी क्लिंटन को ट्रम्प से 28 लाख ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल हुए। कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन, विस्कॉन्सिन, पेन्सिलवेनिया और मिशिगन में कम अंतर से ही सही ट्रम्प आगे निकल गए। इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों की गिनती हुई तो ट्रम्प को 304 जबकि हिलेरी को महज 227 वोट मिले। अब ट्रम्प फिर मैदान में हैं। पोल्स बाइडेन को आगे बता रहे हैं। हिलेरी के साथ भी यही हुआ था। लेकिन, आखिर में इलेक्टोरल कॉलेज ट्रम्प के लिए ‘ट्रम्प कार्ड’ साबित हुए।
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अमेरिकी चुनाव के नतीजे तय करेंगे दुनिया में क्लीन और ग्रीन एनर्जी का भविष्य, जानिए कैसे? November 03, 2020 at 02:25PM
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों पर पूरी दुनिया की नजर है। यह नतीजे सिर्फ अमेरिका का नया राष्ट्रपति तय नहीं करेंगे, बल्कि पूरी दुनिया में क्लीन और ग्रीन एनर्जी के लिए किए जा रही कोशिशों पर भी असर डालेंगे। प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने तीन साल पहले क्लाइमेट चेंज पर बने पेरिस एग्रीमेंट से बाहर निकलने की घोषणा की थी। ऐसा हुआ तो ईरान और तुर्की के बाद अमेरिका तीसरा बड़ा देश होगा, जो क्लाइमेट चेंज से जुड़े कमिटमेंट पूरे नहीं करेगा।
दरअसल, बुधवार को अमेरिका औपचारिक रूप से पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट से बाहर हो रहा है। ट्विस्ट यह है कि डेमोक्रेटिक कैंडीडेट जो बाइडेन ने वादा किया है कि वे चुनाव जीते तो पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट में अमेरिका फिर जुड़ जाएगा। इसमें एक महीना तक लग सकता है। आखिर, डेमोक्रेट प्रेसिडेंट बराक ओबामा के टेन्योर में ही तो इस एग्रीमेंट को साकार करने में अमेरिका ने अहम भूमिका निभाई थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावः जानिए कैसे अमेरिकन देसी तय करेंगे अबकी बार किसकी सरकार?
क्या है पेरिस एग्रीमेंट और यह ग्लोबल क्लाइमेट चेंज रोकने में अहम क्यों है?
- दशकों तक बातचीत के बाद दुनिया के 197 देश इस बात को लेकर सहमत हुए थे कि वे धरती का तापमान बढ़ाने वाली गैसों का उत्सर्जन (एमिशन) कम करेंगे। चुनिंदा देशों ने ही डील से दूरी बनाई थी। एक्सपर्ट्स को लगता है कि पेरिस एग्रीमेंट में टारगेट्स बहुत कम रखे हैं, लेकिन दुनिया के ज्यादातर देशों को एक बात के लिए राजी करना इतना आसान नहीं था।
- 2015 में पेरिस में सब देश साथ आए। यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज बनाया। उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एग्रीमेंट को ऐतिहासिक बताया था। यह भी कहा था कि यह महज शुरुआत है। धरती के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए आगे भी बहुत कुछ करने की जरूरत होगी।
- इस एग्रीमेंट का लक्ष्य है दुनिया के तापमान को औद्योगिकीकरण से पहले की स्थिति के मुकाबले अधिकतम 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए। हालांकि, वैज्ञानिक तो चाहते हैं कि धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए, लेकिन अब यह संभव नहीं लग रहा, क्योंकि 1 डिग्री सेल्सियस तापमान तो पहले ही बढ़ चुका है। पेरिस एग्रीमेंट में हर देश ने अपने स्तर पर टारगेट्स सेट किए और वह उस पर अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट दे रहा है।
क्या अब तक एग्रीमेंट की वजह से कुछ सुधार आया है?
- फिलहाल किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। एमिशन कम करने के प्रयासों के अच्छे शुरुआती नतीजे सामने आए हैं। सच यह भी है कि जितने प्रयास अब तक हुए हैं, वह आने वाले समय में धरती के तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से रोकने में नाकाफी होंगे।
- पेरिस एग्रीमेंट के बाद भी दुनिया मौजूदा स्पीड से 3 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की राह पर है। क्लाइमेट चेंज की वजह से परेशानियां सामने आने लगी हैं। यदि अब भी गंभीर प्रयास नहीं किए तो और तेज लू चलेगी, समुद्र का स्तर बढ़ेगा और बड़े शहरों में बाढ़ का सामना करना होगा। सरकारों को हर मौसम की तीव्रता का सामना करने के लिए तैयार होना होगा।
दुनियाभर में इस साल सितंबर सबसे गर्म महीना रहा, पिछले साल के मुकाबले 0.05° सेल्सियस तापमान ज्यादा था
यदि पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से बढ़ गया तो क्या होगा?
कार्बन ब्रीफ के एक एनालिसिस के मुताबिक, अगर दुनिया 2 डिग्री सेल्सियस गर्म हुई तो…
- समुद्र का जलस्तर 56 सेमी या 2 फीट बढ़ जाएगा।
- 2055 तक समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले 30 मिलियन लोग हर साल बाढ़ में डूबेंगे।
- 37% आबादी को हर पांच साल में तेज लू का सामना करना पड़ेगा।
- 38.8 करोड़ लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा और 19.5 करोड़ लोग सूखे का सामना करेंगे।
- 2100 तक मुख्य फसलों की पैदावार 9% तक कम हो चुकी होगी।
- 2100 तक ग्लोबल पर-कैपिटा जीडीपी 13% तक कम हो चुकी होगी।
क्या ट्रम्प प्रशासन ने क्लाइमेट संकट को टालने के लिए कोई उपाय किए हैं?
- नहीं, बल्कि संकट बढ़ाने वाले काम ही किए हैं। पिछले चार साल में ट्रम्प प्रशासन ने सिर्फ क्लाइमेट चेंज रोकने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों का मखौल ही उड़ाया। उन्होंने ओबामा के समय बने क्लाइमेट-फ्रेंडली कानूनों को रद्द किया। ड्रिलिंग और माइनिंग एक्टिविटी को बढ़ाया। इतना ही नहीं ऑयल, गैस और कोयले जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से हटकर क्लीन एनर्जी को अपनाने के प्रयासों पर भी ब्रेक लगाए।
यदि डोनाल्ड ट्रम्प फिर राष्ट्रपति बने तो क्या होगा?
- ट्रम्प ने जून 2017 में व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पेरिस एग्रीमेंट से बाहर होने की घोषणा की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि पेरिस एग्रीमेंट अमेरिका के हित में नहीं है। इस वजह से वे नए सिरे से बातचीत शुरू करेंगे और ऐसा एग्रीमेंट करेंगे जो अमेरिका के हित में होगा।
- 4 नवंबर 2019 को अमेरिका ने डील से बाहर निकलने की एक साल लंबी प्रक्रिया शुरू की। यूनाइटेड नेशंस (UN) को सूचना भी भेज चुका है कि 4 नवंबर 2020 को वह औपचारिक तौर पर पेरिस एग्रीमेंट से बाहर हो जाएगा।
- जीतने पर ट्रम्प को बतौर प्रेसिडेंट फिर से चार साल मिल जाएंगे और वह क्लाइमेट चेंज के लिए ग्लोबल लेवल पर चल रही कोशिशों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जल्द से जल्द उपाय करने की जरूरत है और अगर अभी नहीं संभले तो देर हो चुकी होगी।
अमेरिका ने अब तक पेरिस एग्रीमेंट पर क्या किया है?
- अमेरिका ने 2025 तक एमिशन को 2005 के स्तर से 26% से 28% तक घटाने का वादा किया था। यह अमेरिका की ओर से इस दिशा में सिर्फ शुरुआत ही होती। उसके बाद और भी प्रयास करने होते।
- इकोनॉमिक फर्म रोडियम ग्रुप के एनालिसिस के मुताबिक, कोविड-19 महामारी ने इकोनॉमी को तबाह किया है, इसे देखते हुए अमेरिका से उम्मीद थी कि वह 2025 तक एमिशन को 2005 के स्तर से 20%-27% तक ले जाएगा।
- क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के एनालिसिस के मुताबिक, अमेरिका ने जो वादा किया है, वह भी काफी नहीं है। यदि सभी देश उतना ही करें, जितना अमेरिका कर रहा है तो भी आने वाले वर्षों में पृथ्वी का तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से कोई नहीं रोक सकेगा।
जो बाइडेन जीते तो क्या होगा?
- बाइडेन ने पहले ही साफ किया है कि वे जल्द से जल्द पेरिस एग्रीमेंट जॉइन करेंगे। इसमें भी 30 दिन का वक्त लग ही जाएगा। पूर्व वाइस-प्रेसिडेंट ने महत्वाकांक्षी क्लाइमेट प्लान बनाया है, लेकिन उस पर कांग्रेस की मंजूरी की जरूरत होगी।
- उनका प्रस्ताव लागू कर पाना नामुमकिन होगा अगर डेमोक्रेट्स सीनेट पर कंट्रोल नहीं कर सके। अगर डेमोक्रेट्स के पास हाउस और सीनेट में बहुमत होगा और व्हाइट हाउस में बाइडेन होंगे तो ही क्लाइमेट को लेकर अमेरिकी चिंता जाहिर हो सकेगी।
- बाइडेन ने कहा है कि वे 2050 तक एमिशन नेट-जीरो ले जाने की दिशा में प्रयास शुरू करेंगे। वैज्ञानिक भी यही कह रहे हैं कि अगर हर देश ने इस तरह का टारगेट सेट किया तो ही क्लाइमेट चेंज का संकट टल सकेगा, वरना मुश्किल तो आनी ही है।
- बाइडेन चाहते हैं कि 2035 तक इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम कार्बन-फ्री हो जाए। उनका कहना है कि वे क्लीन एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य क्लाइमेट उपायों पर 2 लाख करोड़ डॉलर खर्च करेंगे। पहले चार साल में जितना ज्यादा हो सकेगा, वे खर्च करने को तैयार हैं।
अगर अमेरिका बाहर निकला तो दुनिया पर क्या असर होगा?
- अगर अमेरिका पेरिस एग्रीमेंट से बाहर निकला तो बाकी देशों को गंभीरता से क्लाइमेट एक्शन लेने के लिए मनाने में दिक्कत होगी। अमेरिका ऐतिहासिक रूप से क्लाइमेट चेंज में बड़ा कॉन्ट्रिब्यूटर रहा है।
- इस समय चीन सबसे ज्यादा एमिशन कर रहा है। उसने भी घरेलू एमिशन ग्रोथ कम की है। यह बात अलग है कि वह विकासशील देशों में नए कोल-प्लांट्स को फंडिंग कर रहा है। अमेरिका यदि बाहर हुआ तो चीन का जियो पॉलिटिकल प्रभाव बढ़ जाएगा। क्लाइमेट को लेकर बातचीत में भी। वह क्लीन एनर्जी मैन्युफैक्चरिंग का फायदा उठा सकता है।
- अगर अमेरिका की राष्ट्रीय सरकार ने क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए प्रयास नहीं किए तो हो सकता है कि ग्रीन और क्लीन एनर्जी के बारे में सोचने वाले अमेरिकी स्टेट्स अपने स्तर पर दुनिया के सामने एमिशन कम करने का उदाहरण पेश करें।
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इतिहास में 116 साल बाद पहली बार वोटिंग के दिन राष्ट्रपति तय नहीं होगा November 03, 2020 at 02:19PM
अमेरिका में हर चार साल बाद हाेने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार काे मतदान हुआ। यह राष्ट्रपति के लिए 59वां चुनाव है। मतदान अमेरिकी समयानुसार मंगलवार सुबह 6 बजे (भारतीय समय मंगलवार शाम 4:30 बजे) शुरू हुआ। मतदान केंद्राें पर मतदाताओं की कतार देखी गई। भारतीय समयानुसार बुधवार दोपहर तक अलग-अलग राज्यों में लोग वोट डाले जा सकेंगे। इस बार मतदान के पहले डाक से 10 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट डाला है।
टेक्सास जैसे कुछ राज्यों को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में बुधवार सुबह साढ़े 5 बजे से साढ़े सात बजे तक वोटिंग खत्म हो जाएगी। टेक्सॉस में 24 घंटे वोट पड़ेंगे। इसके तुरंत बाद गिनती शुरू हो जाएगी। यहां 29 इलेक्टोरल मत हैं। यानी बुधवार सुबह तक करीब 12 राज्य हैं, जिनके नतीजे आ जाएंगे। इनमें कुछ बैटलग्राउंड राज्य भी हैं, जैसे फ्लोरिडा, नार्थ कैरोलीना, ओहायो। बुधवार दोपहर तक आते-आते एरिजोना और आइयोवा का भी रिजल्ट आ सकता है।
इलेक्शन डे की रात में नए राष्ट्रपति का पता लग जाता रहा है
अमेरिका में 1904 से इलेक्शन डे की रात में नए राष्ट्रपति का पता लग जाता रहा है, लेकिन इस बार नए राष्ट्रपति की तस्वीर साफ होने में वक्त लग सकता है। इनके नतीजों से पता चल जाएगा कि राष्ट्रपति बुधवार को घोषित होगा या कुछ दिन, हफ्ते पूरी काउंटिंग होने तक इंतजार करना पड़ सकता है।
इस चुनाव में मुख्य मुकाबला रिपब्लिकन उम्मीदवार और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाईडेन के बीच है। उपराष्ट्रपति पद के लिए बाइडेन की साथी उम्मीदवार भारतीय मूल की कमला हैरिस हैं, जबकि ट्रम्प के साथी उपराष्ट्रपति माइक पेंस हैं।
फ्लोरिडा के नतीजे से पूरे देश का मूड पता चलता है। यह राज्य कभी किसी एक पार्टी का नहीं रहा। 1964 से लेकर 2016 तक वहीं राष्ट्रपति बना है, जिसने फ्लोरिडा जीता है। सिर्फ 1992 का चुनाव अपवाद है। 2016 में ट्रम्प ने यह राज्य 1% मार्जिन से जीता था।
पहला वाेट बाइडेन काे मिला
परंपरा के अनुसार पहला वोट न्यू हैंपशायर के डिक्सविले नॉच इलाके में डाला गया, जहां पांच मतदाता हैं। इनमें से एक काे इस परंपरा को निभाते हुए इस बार 60 साल हो गए। डिक्सविले नॉच के पहले वाेटर लेस ओटन ने खुद को रिपब्लिकन बताया, लेकिन अपना वोट डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाईडन को दिया। एक वीडियो में ओटन कह रहे हैं, “मैं कई मुद्दों पर ट्रम्प से सहमत नहीं हूं।’ यहां सभी वाेट बाईडन के खाते में गए, जबकि मिल्सफील्ड के 16 में से 5 वोट ट्रम्प को मिले।
...तो ट्रम्प खुद काे विजेता घोषित कर सकते हैं
मीडिया रिपोर्ट में कयास लगाए जा रहे हैं कि बुधवार दोपहर तक तीन तारीख को पड़े वोटों के आधार पर अगर रुझान में ट्रम्प आगे नजर आते हैं और इलेक्टोरल वोट 270 पार दिखाई पड़ते हैं तो ट्रम्प आगे बढ़कर विजेता घोषित कर सकते हैं। इसकी वजह यह है कि ट्रम्प मेल इन वोटिंग को चुनावी फर्जीवाड़ा बता रहे हैं। ऐसी सूरत में मामला कोर्ट में भी जा सकता है। अगर मतगणना प्रक्रिया कानूनी दाव पेंच में फंस गई तो संभव है कि 14 दिसंबर तक 570 इलेक्टोरल कॉलेज का रिजल्ट न आ पाए। अमेरिका में सदन में इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट डालते (14 दिसंबर) हैं।
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अलकायदा के 50 आतंकियों को मारने का दावा, यह गुट सेना पर हमले की तैयारी में था November 02, 2020 at 11:29PM
फ्रांस ने माली में आतंकी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की है। दावा है कि इस हमले में करीब 50 आतंकी मारे गए हैं। फ्रांस की सेना के प्रवक्ता कर्नल फ्रेडरिक बार्बरी ने बताया कि चार आतंकी पकड़े गए हैं। एक फिदायीन जैकेट जब्त की गई है। यह संगठन यहां सेना के ठिकाने पर हमला करने वाला था। बुर्कीना फासो और नाइजर की सीमा के पास फ्रांसीसी ड्रोन को मोटरसाइकिलों का एक काफिला नजर आया था। इस पर दो मिराज विमानों से मिसाइल दागी गईं।
फ्रांस ने पिछले हफ्ते इस इलाके में जिहादियों के खिलाफ अभियान शुरू किया था। फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली ने कहा, “मैं एक ऐसे ऑपरेशन के बारे में बताना चाहूंगी जो बेहद अहम है। इसे 30 अक्टूबर को अंजाम दिया गया। इसके तहत 50 से अधिक आतंकियों को मारा गया है और भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद किया गया है।”
आईएस आतंकियों के खिलाफ भी चलाया जा रहा ऑपरेशन
सेना के प्रवक्ता बार्बरी ने यह भी बताया कि माली में आईएस आतंकियों की विंग ‘इस्लामिक स्टेट इन ग्रेटर सहारा’ के खिलाफ भी एक ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इसमें 3000 सैनिकों को लगाया गया है। यह ऑपरेशन करीब एक महीने पहले शुरू किया गया था। इसके नतीजे आने वाले दिनों में बताए जाएंगे। यूनाइटेड नेशंस ने शांति अभियानों के तहत माली में 13 हजार सैनिकों की तैनाती की है। वहीं, फ्रांस ने इस इलाके में 5100 सैनिकों को तैनात किया है।
फ्रांस में धार्मिक टकराव में हुए हमले
धार्मिक टकराव के कारण दो हफ्ते के अंदर हुए दो हमलों ने फ्रांस को हिला दिया है। पहले पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने वाले टीचर का सिर उन्हीं के छात्र ने कलम कर दिया था। इसके बाद नीस में चर्च के बाहर चाकू मारकर तीन लोगों की हत्या कर दी गई। शनिवार को भी एक अज्ञात बंदूकधारी ने चर्च में पादरी को गोली मार दी थी। इस मामले में एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया गया है।
राष्ट्रपति मैक्रों ने हमलों को बताया था इस्लामिक आतंकवाद
लगातार हो रहे हमलों के कारण सरकार ने फ्रांस में तैनात सैनिकों की संख्या दोगुनी कर दी है। मैक्रों ने इन घटनाओं को इस्लामिक आतंकवाद करार दिया था। इसके बाद से ही वे मुस्लिम देशों के नेताओं के निशाने पर हैं। कई देशों में फ्रांसीसी सामान के बहिष्कार के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं।
'कार्टून का समर्थन नहीं करते'
एक मीडिया हाउस से बातचीत में फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा था कि पूरे मामले को गलत तरीके से समझा जा रहा है। वे पैगंबर मोहम्मद के कार्टून का समर्थन नहीं करते। इस कार्टून से कई लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। इसके बाद भी देश में अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा की जाएगी। इसमें कार्टून छपना भी शामिल है।
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