Wednesday, September 16, 2020
US envoy to UN has 'historic' meeting with Taiwan official September 16, 2020 at 07:34PM
फॉलोवर बढ़ाने के लिए टिकटॉक स्टार ने पति की मौत का फेक वीडियो वायरल किया, शोक जताने के लिए घर पहुंचे लोग September 16, 2020 at 07:39PM
टिकटॉक पर फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए पाकिस्तान में एक महिला ने बेहद गलत काम किया। उसने अपने पति की मौत की झूठी खबर फैलाई। पति पहले से ही टिकटॉक स्टार है। सच्चाई सामने आने के बाद अब लोग महिला के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग कर रहे हैं।
टिकटॉक स्टार का नाम आदिल राजपूत है। आदिल की पत्नी के सही नाम की पुष्टि नहीं हो सकी। पाकिस्तानी मीडिया में उनका नाम फराह राजपूत और हिना सलीम बताया जा रहा है। आदिल के टिकटॉक पर 26 लाख फॉलोवर हैं।
क्या है मामला?
‘जियो न्यूज’ के मुताबिक, आदिल राजपूत रहीम यार खान के राशिदाबाद शहर में रहते हैं। यह पंजाब प्रांत में आता है। आदिल अपने वीडियोज की वजह से टिकटॉक पर मशहूर हो गए। इस प्लेटफॉर्म पर उनके करीब 26 लाख फॉलोवर्स हैं। मंगलवार सुबह आदिल के फैन्स के लिए एक बुरी खबर आई। उनकी पत्नी ने रोते हुए एक वीडियो जारी किया। इसमें बताया गया कि आदिल की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई है। कुछ ही देर में आदिल के चाहने वाले यानी फैन्स और रिश्तेदार उनके घर के बाहर जमा हो गए। सोशल मीडिया के जरिए यह खबर आग की तरफ फैल गई। कुछ मस्जिदों से आदिल की मौत की खबर अनाउंस की गई।
कुछ घंटे में झूठ पकड़ा गया
मामला बढ़ता जा रहा था। इतने में आदिल कहीं से भीड़ के सामने पहुंचे। इसके बाद पूरा मामला खुल गया। लोग सच्चाई समझ गए। पता लगा कि आदिल की पत्नी ने उनके फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए यह नाटक रचा था। मीडिया रिपोर्ट्स में आदित की पत्नी का नाम अलग-अलग बताया गया है। कुछ खबरों में उन्हें फराह राजपूत बताया गया है तो कुछ में हिना सलीम। अब लोग इस महिला के खिलाफ भावनाओं से खिलवाड़ करने के मामले में केस कर्ज करने की मांग कर रहे हैं।
टिकटॉक पर बैन की मांग
पिछले महीने पाकिस्तान सरकार ने चीन के सोशल मीडिया ऐप वीबो को बैन कर दिया था। इस पर अश्लीलता और अपराध को बढ़ावा देने का आरोप था। अब टिकटॉक और यूट्यूब पर भी बैन की मांग उठ रही है। खासतौर पर मजहबी बुनियाद पर बनी पार्टियां सरकार पर दबाव डाल रही हैं कि इन ऐप्स को फौरन बंद किया जाए। हालांकि, अब तक आखिरी फैसला नहीं हुआ। ताजा मामले के बाद एक बार फिर टिकटॉक को बैन किए जाने की मांग जोर पकड़ सकती है।
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ट्रम्प बोले- वैक्सीन से ज्यादा कारगर नहीं हो सकता मास्क; सीडीसी चीफ रेडफील्ड ने कहा था- वैक्सीन से ज्यादा इफेक्टिव हैं मास्क September 16, 2020 at 06:43PM
अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के डायरेक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड ने कहा है कि मास्क पहनना वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा कारगर यानी इफेक्टिव है। लेकिन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प देश के सबसे बड़े हेल्थ अफसर की दलील से सहमत नहीं हैं। बुधवार रात ट्रम्प ने मास्क पर नया नजरिया पेश किया। कहा- किसी भी हाल में मास्क वैक्सीन से ज्यादा कारगर साबित नहीं हो सकता।
ट्रम्प बहुत कम मौकों पर मास्क पहने नजर आए हैं। शुरुआत में तो उन्होंने कोरोना की तुलना फ्लू से की थी। अमेरिका में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध होने के मुद्दे पर भी रेडफील्ड और ट्रम्प में मतभेद साफ तौर पर नजर आ रहे हैं।
कैसे शुरू हुआ मामला
मामला दरअसल, बुधवार सुबह शुरू हुआ। कोरोनावायरस की रोकथाम और वैक्सीन संबंधी सवालों का जवाब देने के लिए सीडीसी चीफ सीनेट की एक कमेटी के सामने पेश हुए। बाद में मीडिया से बातचीत में कहा- दो बातें साफ कर देना चाहता हूं। पहली- वैक्सीन अगले साल के बीच में ही सभी अमेरिकियों तक पहुंच पाएगी। दूसरी- मास्क हर हाल में वैक्सीन से ज्यादा कारगर उपाय है।
ट्रम्प ने क्या कहा
वजह जो भी रही हो। लेकिन, ट्रम्प को रेडफील्ड की दलील हजम नहीं हुई। कुछ घंटे बाद मीडिया से बातचीत में कहा- मैंने उनका बयान देखा। उनको बुलाकर बातचीत की। मैंने उनसे पूछा- आखिर आप कहना क्या चाहते हैं? मुझे लगता है सीडीसी चीफ ने गलती कर दी है। मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूं कि मास्क वैक्सीन से ज्यादा कारगर यानी इफेक्टिव हैं। ऐसा कैसे हो सकता है। मास्क शायद संक्रमण रोकने में मददगार हो सकते हैं। लेकिन, वैक्सीन ही बेहतर उपाय है।
ट्रम्प का दावा है- रॉबर्ट ने यह बात मान ली है कि वैक्सीन मास्क के मुकाबले ज्यादा कारगर है। और उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया गया। इसके मायने गलत निकाले गए।
वैक्सीन पर चर्चा इसलिए
रेडफील्ड जब सीनेट कमेटी के सामने पेश हुए तो उन्होंने कहा- अगर अज वैक्सीन आ भी जाती है तो सभी अमेरिकियों तक इसे पहुंचाने में 6 से 9 महीने तक लगेंगे। खास बात यह है कि ट्रम्प के कोरोनावायरस पर एडवाइजर डॉक्टर एंथोनी फौसी भी कई बार यही बात कह चुके हैं। लेकिन, राष्ट्रपति इससे इत्तेफाक नहीं रखते यानी अपने ही एडवाइजर की बात को खारिज कर देते हैं। रेडफील्ड के मुताबिक- मास्क के जरिए संक्रमण पर कुछ ही महीने में काबू पाया जा सकता है। बशर्ते इसे सही तरीके से पहना जाए।
ट्रम्प की चुनाव की फिक्र
3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव है। ट्रम्प इसको लेकर ही फिक्रमंद ज्यादा हैं। वजह साफ है- डेमोक्रेट कैंडिडेट कोरोनावायरस पर सरकार की नाकामी जनता के सामने ला रहे हैं। जवाब में ट्रम्प कई बार दावा कर चुके हैं कि चुनाव के पहले वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। एक्सपर्ट्स उनके दावे को खारिज कर रहे हैं। एफडीए से ट्रम्प खफा हैं। क्योंकि, यह संस्था कहती है कि जब तक हर तरह के सेफ्टी अप्रूवल नहीं मिल जाते, वैक्सीन बाजार में नहीं आएगी।
यानी झूठा वादा कर रहे हैं ट्रम्प
एफडीए चीफ स्टीफन हान ने पिछले हफ्ते कहा था- वैक्सीन के लिए नई गाइलाइन्स जारी की गई हैं। इनका पूरी तरह इस्तेमाल होना जरूरी है तभी जल्द इसे बाजार में लाया जा सकता है। दूसरी तरफ, ट्रम्प ने कहा- मुझे लगता है हम बहुत जल्द वैक्सीन ले आएंगे। हर अमेरिकी तक इसे पहुंचाएंगे। तीन या चार हफ्ते में ये सब हो जाएगा। चुनाव में अभी सात हफ्ते बाकी हैं।
बाइडेन ने कमजोर नस पकड़ ली
बाइडेन जानते हैं कि कोरोनावायरस की रोकथाम और वैक्सीन के मुद्दे पर ट्रम्प को घेरा जा सकता है। बुधवार को उन्होंने कहा- वैक्सीन को जल्द लॉन्च करने के लिए सियासी दबाव बनाया जा रहा है। राष्ट्रपति ट्रम्प इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं। लेकिन, यह ध्यान रखना चाहिए कि इसका सियासत से कोई ताल्लुक नहीं होना चाहिए। साइंस को साइंस के हिसाब से चलने देना चाहिए।
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पहली बार 175 साल पुरानी साइंस मैगजीन ने बाइडेन का समर्थन किया, कहा- उनका रिकॉर्ड हमेशा विज्ञान को मानने वाला रहा है September 16, 2020 at 05:51PM
अमेरिका की 175 साल पुरानी साइंस मैगजीन ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन का समर्थन किया है। मैगजीन ने अपना समर्थन मंगलवार को ऑनलाइन पोस्ट किया। साथ ही वरिष्ठ संपादक जोश फिशमैन ने संपादकीय में लिखा- ‘राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कोविड-19, स्वास्थ्य देखभाल में सुधार, कार्बन उत्सर्जन कम करने और नीति निर्माण में विज्ञान के क्षेत्र में काम करने में हमेशा फेल हुए हैं। जबकि जो बाइडेन इन सबसे निपटने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।’
साइंटिफिक अमेरिकन अमेरिका की सबसे पुरानी मैगजीन है। उसने 175 साल के इतिहास में कभी किसी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया है।
ट्रम्प प्रशासन उम्मीद से ज्यादा फेल रहा
मैगजीन की चीफ एडिटर लॉरा हेल्मथ ने मंगलवार को कहा, ‘हमें जितना अंदेशा था, डोनाल्ड ट्रम्प और उनका प्रशासन उससे कहीं ज्यादा खराब साबित हुआ। वह विज्ञान पर भरोसा भी नहीं करते हैं। वह सिर्फ अपने फायदे के प्रोजेक्ट की बात करते हैं।
हम जो बाइडेन का समर्थन करते हैं। क्योंकि, बाइडेन का रिकॉर्ड विज्ञान की राह पर चलने वाला रहा है। वह विज्ञान को मानते हैं। वह क्लाइमेट चेंज को लेकर बात करते हैं। साथ ही वैश्विक महामारी से निपटने के उपाय भी सुझाते रहते हैं। जबकि ट्रम्प ने कोविड-19 को गंभीर रूप से नहीं लिया और इसका खामियाजा देश के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।’
वैज्ञानिकों ने कहा, ट्रम्प ने अमेरिका को नुकसान पहुंचाया
लॉरा हेल्मथ के मुताबिक, बाइडेन का समर्थन करने के लिए वरिष्ठ संपादकों से चर्चा की गई थी। ट्रम्प ने सोमवार को कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग पर सवाल उठाया था। कहा था- आग कैसे लगी? मुझे नहीं लगता कि विज्ञान के पास इसका जवाब होगा। इसे लेकर वैज्ञानिकों ने कहा- ‘सबूत और विज्ञान बताता है कि ट्रम्प ने अमेरिका को नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि वह सबूत और विज्ञान को नकारते हैं।’
मैगजीन ने 1950 के दशक में 3000 प्रतियां जलाकर किया था विरोध
साइंटिफिक अमेरिकन मैगजीन की स्थापना 1845 में स्प्रिंगर नेचर द्वारा की गई थी। इसमें नेचर और विज्ञान से जुड़े लेख और शोध प्रकाशित होते हैं। लेकिन कई मौकों पर इसमें राजनीति से जुड़े लेख भी प्रकाशित किए जा चुके हैं। सबसे पहले मैग्जीन में 1950 के दशक में हाइड्रोजन बम को लेकर लेख प्रकाशित किया था।
मैग्जीन ने परमाणु ऊर्जा आयोग को इस मुद्दे पर सेंसर करने के लिए प्रेरित किया और हाइड्रोजन बम के विरोध में अपनी 3000 प्रतियां जला दीं। वहीं 2016 में मैगजीन के संपादकों ने विज्ञान को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प को चेतावनी भी दी थी।
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इमरान पर सुन्नियों को हिंसा के लिए बढ़ावा देने का आरोप; सुन्नी मुसलमानों और आतंकी संगठनों ने शियाओं को दी मारने की धमकी September 16, 2020 at 05:48PM
पाकिस्तान में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। शियाओं को डर है कि पाकिस्तान में 1980 और 90 के दशक में भड़की हिंसा जैसी घटना हो सकती है। तब सैकड़ों लोग सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए थे।
पिछले हफ्ते सुन्नी मुसलमानों और आतंकी संगठनों ने कराची में शिया मुसलमानों के खिलाफ प्रदर्शन किए। उन्होंने दुकानें और अन्य प्रतिष्ठान बंद करा दिए। सड़कें जाम कर दीं। उन्होंने नारे लगाए कि शिया काफिर हैं, इन्हें मार दिया जाए। प्रदर्शनों की अगुआई प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिपाह ए सबाह ने की।
इस्लामिक विद्वान के खिलाफ टिप्पणी का आरोप
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अशूरा जुलूस के टीवी प्रसारण के दौरान शिया मौलवी ने इस्लामिक विद्वानों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की। अब सोशल मीडिया पर शिया नरसंहार हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। शिया विरोधी पोस्ट दिखाई दे रहे हैं।
20% आबादी शिया मुस्लिमों की है
21 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में शियाओं की आबादी 20% है। प्रदर्शनकारियों पर अब तक न कोई केस नहीं दर्ज हुआ है। हाल ही में आशूरा जुलूस में भाग लेने पर दर्जनों शिया मुसलमानों पर हमले हुए। जुलूसों पर हथगोले फेंके गए।
प्रधानमंत्री इमरान को ठहराया दोषी
रावलपिंडी के प्रमुख शिया मौलवी अली रजा कहते हैं कि प्रधानमंत्री इमरान खान इस शिया विरोधी प्रदर्शनों के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसा लगता है कि सरकार जानबूझकर हेट स्पीच को बढ़ावा दे रही है। शियाओं को मैसेज भेजकर उन्हें काफिर बताया जा रहा है। उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है।
इस्लामाबाद में चर्चा है कि सरकार आशूरा के जुलूसों पर कार्रवाई कर सकती है।कराची यूनिवर्सिटी में शिया छात्र गुलजार हसनैन कहते हैं कि वे लोग डरे हुए हैं। लश्करे ए जान्गवी और सिपाह ए सबाह के हजारों लोग एक जगह जमा होकर उन्हें काफिर कह रहे हैं। वे लोगों को हमें मारने के लिए उकसा रहे हैं। कराची यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर सोहेल खान कहते हैं कि सुन्नी मुसलमानों के शक्ति प्रदर्शन के बाद पाकिस्तान में सांप्रदायिक हिंसा की आशंका दिख रही है। जबकि पाकिस्तान के गृह मंत्री ब्रिगेडियर इजाज शाह ने कहा कि सब नियंत्रण में है।
नौ साल में सांप्रदायिक हिंसा में 10 हजार लोग मारे गए
तीन एजेंसियों के डेटा बताते हैं कि पाकिस्तान लंबे समय से सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में है। साल 2011-2019 तक यहां विभिन्न सांप्रदायिक हिंसा में 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। इनमें 5 हजार से ज्यादा शिया हैं।
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पाकिस्तानी संसद में तीन बिल पास, इमरान बोले- जैसे कोरोना पर काबू पाया, वैसे ग्रे लिस्ट से भी बाहर आएंगे September 16, 2020 at 05:31PM
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ब्लैक लिस्ट में आने से बचने के लिए पाकिस्तान ने कोशिशें तेज कर दी हैं। एफएटीएफ की अगली बैठक अक्टूबर में यानी अगले महीने होनी है। इसके पहले पाकिस्तान की संसद का संयुक्त सत्र बुलाया गया। इसमें तीन बिल पास किए गए। प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा- जैसे हमने कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में कामयाबी हासिल की, वैसे ही एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आने में भी कामयाब होंगे।
इमरान ने दावा किया कि पाकिस्तान ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत और यूरोप को भी पीछे छोड़ दिया।
सहयोगियों का शुक्रिया
संसद में तीनों बिलों को पास करने के लिए इमरान ने सहयोगी पार्टियों का शुक्रिया अदा किया। कहा- पाकिस्तान के इतिहास में यह दिन हमेशा याद किया जाएगा। हमने साबित कर दिया कि जब मुल्क की बात आती है तो हम एक मंच पर साथ खड़े होते है। क्योंकि, सभी के लिए देश सबसे पहले है।
विपक्ष ने साथ नहीं दिया
बिल पेश करते वक्त इमरान ने कहा- मुझे उम्मीद है कि एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए विपक्ष सरकार का साथ देगा। लेकिन, उसने ये साबित कर दिया कि वो सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है। वो नहीं चाहता कि मुल्क आगे बढ़े। हमने मुल्क को बचाने के लिए जो तीन बिल पेश किए। उनका विरोध किया जा रहा है। सरकार को ब्लैकमेल करने की साजिश रची जा रही है, लेकिन यह कामयाब होने वाली नहीं है। उसने 34 संशोधन पेश किए है। इनको मानना मुमकिन नहीं है।
क्या है इन तीन बिल में
एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर करने के लिए कई कड़ी शर्तें रखी हैं। जो तीन बिल पास किए गए वे इस तरह हैं। इस्लामाबाद कैपिटल टेरेटिरी वक्फ प्रॉपर्टीज बिल, एंटी मनी लॉन्ड्रिंग बिल 2020 और एंटी टेरेरिज्म बिल 2020। पहले बिल का मकसद यह है कि वक्फ बोर्ड्स की प्रॉपर्टीज पर नजर रखी जाए। इनका गलत इस्तेमाल रोका जाए।
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अब जंगलों में आग के मुद्दे पर ट्रम्प और बाइडेन में जुबानी जंग, फोकस छोटे शहरों में रहने वाले वोटर्स पर September 16, 2020 at 04:27PM
अमेरिका के पश्चिमी राज्य जंगलों की आग से जूझ रहे हैं। चुनाव के दौर में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन इस मुद्दे पर भी जुबानी जंग में उलझ गए हैं। मकसद है- सबअर्बन यानी उपनगरीय या छोटे शहरों में रहने वाले वोटरों को लुभाना। क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन कई अमेरिकियों और खासकर महिलाओं के लिए चिंता की बड़ी वजह है। आसमान में राख और धुएं का गुबार है। हवा जहरीली और बदबूदार हो चुकी है।
ट्रम्प की पकड़ कमजोर हो रही है
उपनगरीय क्षेत्रों में ट्रम्प का असर या कहें पकड़ तेजी से कम हुई है। वे कह रहे हैं कि अगर व्हाइट हाउस में डेमोक्रेट्स आ गए तो क्राइम बढ़ेगा। लूटपाट बढ़ेगी। कम आय वाली मकानों की स्कीम पर असर होगा। एक तरह से वे नस्लवाद का डर दिखा रहे हैं। दूसरी तरफ, बाइडेन सुरक्षा के मायने कुछ और बता रहे हैं। उनके मुताबिक, डर महामारी से है। डर सामाजिक दूरियों से है। और डर जंगलों में लगने वाली आग से है। वो इसकी वजह क्लाइमेट चेंज बताते हैं।
अहम मुद्दे पर भी गंभीर नहीं हैं राष्ट्रपति
बाइडेन के मुताबिक, ट्रम्प जिस हिंसा को खतरा बता रहे हैं, क्लाइमेट चेंज और जंगलों की आग उससे बड़ा खतरा है। घर तबाह हो रहे हैं। जंगल खाक हो रहे हैं और बेगुनाह लोगों की जान जा रही है। बाइडेन ने ट्रम्प पर हमला ऐसे वक्त किया जब राष्ट्रपति आखिरी वक्त पर कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग की जानकारी लेने पहुंचे। आपदा बहुत बड़ी है। लेकिन, ट्रम्प यहां भी अफसरों से उलझते दिखे। क्लाइमेट चेंज को आग की वजह मानने को राष्ट्रपति तैयार नहीं हैं।
पहले ऐसा नहीं हुआ
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में क्लाइमेट चेंज या जंगलों की आग का मुद्दा पहले कभी इतनी प्रमुखता से नहीं उठा। इस बार महामारी भी है और सामाजिक तनाव के मुद्दे भी। लेकिन, जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी अब सामने आ चुका है। वो भी तब जबकि चुनाव में सिर्फ सात हफ्ते रह गए हैं। सबअर्बन वोटर्स के उस हिस्से के लिए तो क्लाइमेट चेंज या जंगलों की आग बहुत बड़ा मुद्दा है जो देश के पश्चिमी हिस्से में रहता है। इन परिवारों को हेल्थ रिस्क हैं। और ये सामाजिक तनाव से ज्यादा खतरनाक नजर आ रहे हैं।
गंभीर मुद्दे को मजाक में टाल रहे हैं ट्रम्प
कैलिफोर्निया में ट्रम्प ने जंगलों की आग के लिए क्लाइमेट चेंज को जिम्मेदार मानने से ही इनकार कर दिया। कहा- साइंस इस मुद्दे का जवाब नहीं दे सकता। मौसम अब ठंडा होने लगा है। रॉब स्टुट्जमैन कैलिफोर्निया में रहते हैं और रिपब्लिकन होने के बावजूद ट्रम्प को सही नहीं मानते। रॉब कहते हैं- क्लाइमेट चेंज पर उनका नजरिया सही नहीं है। हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि यह चुनाव पर असर नहीं डालेगा। लेकिन, ये ट्रम्प के लिए भी अहम जरूर है।
हैरिस ने भी जायजा लिया
कमला हैरिस कैलिफोर्निया से ही आती हैं। उन्होंने मंगलवार को यहां हुए नुकसान की जानकारी ली और दौरा किया। एक बात तो तय है कि जंगलों की आग या क्लाइमेट चेंज के मुद्दे पर ट्रम्प और बाइडेन में गंभीर मतभेद हैं। जल्द ही दोनों नेताओं के बीच डिबेट्स का सिलसिला शुरू होगा। बाइडेन संकेत दे चुके हैं कि उपनगरीय इलाकों के वोटरों के सामने आने वाली इस परेशानी को वे जरूर उठाएंगे। बाइडेन ने सोमवार को कहा था- ट्रम्प सबअर्बन एरिया में जो खतरा बताते हैं, वो क्या है। जंगलों की आग खतरा है। वेस्ट अमेरिका में घर जल रहे हैं। मध्य अमेरिका में बाढ़ आ रही है। तटीय इलाके तूफान से तबाह हो रहे हैं।
ट्रम्प की नई परेशानी
पुरुषों की तुलना में महिला वोटर बाइडेन का ज्यादा समर्थन कर रही हैं। इससे ट्रम्प की परेशानी बढ़ सकती है। क्योंकि, क्लाइमेट चेंज को लेकर महिलाएं ज्यादा मुखर हैं। क्लाइमेट एक्सपर्ट एडवर्ड मेबैक भी यही मानते हैं। इस साल के शुरू में पियू रिसर्च सेंटर ने एक सर्वे किया था। इसमें रिपब्लिकन पार्टी की समर्थक 47 फीसदी महिलाओं ने कहा था कि सरकार ने एयर क्वॉलिटी सुधारने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की। 32 फीसदी पुरुष ही इस मसले को मानते दिखे। बराक ओबामा के सलाहकार रहे जॉन डी. पोडेस्टा कहते हैं- रिपब्लिकन पार्टी की महिला समर्थक क्लाइमेट चेंज के मुद्दे पर रुख बदल सकती हैं।
पिछले महीने हुए पियू रिसर्च के ही एक सर्वे में कहा गया था- 69 फीसदी वोटर ये मानते हैं कि अगले चुनाव में क्लाइमेट चेंज का मुद्दा उनका वोट तय कर सकता है। 41 फीसदी ने इसे बेहद अहम मुद्दा बताया।
इस मुद्दे का असर तो जरूर पड़ेगा
जंगलों की आग और जहरीली हवा मुद्दा तो बन चुकी है। बाइडेन और क्लाइमेट एक्टिविस्ट मानते हैं कि कई साल से इस पर फोकस नहीं किया गया। अब ये खतरनाक हो चुका है। ट्रम्प के चार चुनावी मुद्दे हैं। महामारी, अर्थव्यवस्था, नस्लवाद और क्लाइमेट चेंज। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि चुनाव में क्लाइमेट चेंज का मुद्दा असर जरूर डालेगा। पिछले महीने एक पोल में 84 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे महामारी पर जानकारी के लिए वे एक्सपर्ट्स की राय को तवज्जो देते हैं। सिर्फ 23 फीसदी ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि वे ट्रम्प की बातों पर भरोसा करेंगे।
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दुनिया में संक्रमितों की संख्या अब 3 करोड़ के पार; यूएन चीफ ने कहा- महामारी से लड़ना है तो दुनिया को साथ आना होगा September 16, 2020 at 04:04PM
दुनिया में संक्रमितों का आंकड़ा 3 करोड़ से ज्यादा हो गया है। हालांकि, इसी दौर में एक अच्छी खबर ये है कि ठीक होने वालों की संख्या भी अब 2 करोड़ 17 लाख से ज्यादा हो चुकी है। महामारी में मरने वालों की संख्या 9 लाख 44 हजार से ज्यादा हो गई है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं।
39 दिन में 2 से 3 करोड़ केस हो गए
गुरुवार सुबह दुनिया में कोरोनावायरस से संक्रमित हुए लोगों का आंकड़ा 3 करोड़ से ज्यादा हो गया। खास बात ये है कि 2 से 3 करोड़ केसों का आंकड़ा सिर्फ 39 दिन में पूरा हो गया। यानी संक्रमण की रफ्तार अब सबसे ज्यादा है। करीब 100 साल पहले 100 साल पहले फ्लू से 50 करोड़ संक्रमित हुए थे। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, 1918-19 में इंफ्लूएंजा से दुनिया में 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे। उस वक्त दुनिया की एक तिहाई आबादी संक्रमित हो गई थी।
- पहले 1 करोड़ केस 156 दिन में मिले थे
- 2 करोड़ केस होने में 44 दिन लगे थे
यूएन चीफ की अपील
दुनिया में संक्रमितों की संख्या 3 करोड़ हो चुकी है। स्थिति गंभीर है। इस बीच, यूएन के सेक्रेट्री जनरल एंटोनियो गुटरेस का बयान भी आया। गुटरेस ने कहा- अगर कोविड-19 का मुकाबला करना है तो विश्व के सभी देशों को साथ आना होगा। मिलकर इस महामारी का मुकाबला करना होगा। यूएन चीफ ने कहा- अगर इस वक्त दुनिया के लिए सबसे बड़ा कोई खतरा है तो यह कोरोनावायरस या महामारी है। इससे निपटने के लिए दुनिया को एक साथ और एक मंच पर आना होगा। ऐसा किए बिना हम महामारी का मुकाबला नहीं कर सकेंगे।
अमेरिका : ट्रम्प ने कहा- मास्क ज्यादा कारगर
अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड ने कहा है कि मास्क पहनना वैक्सीन से ज्यादा कारगर यानी इफेक्टिव है। लेकिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इससे सहमत नहीं हैं। ट्रम्प बहुत कम मौकों पर मास्क पहने नजर आए हैं। शुरुआत में तो उन्होंने कोरोना की तुलना फ्लू से की थी। बुधवार रात ट्रम्प ने मास्क पर नया नजरिया पेश किया। कहा- किसी भी हाल में मास्क वैक्सीन से ज्यादा कारगर साबित नहीं हो सकता।
न्यूजीलैंड : अर्थव्यवस्था पर असर
‘द गार्डियन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जून तिमाही तक न्यूजीलैंड की जीडीपी में 12.2% की गिरावट दर्ज की गई है। 1987 के बाद अर्थव्यवस्था में यह सबसे बड़ी गिरावट है। रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि जीडीपी में गिरावट की मुख्य वजह कोरोनावायरस के कारण लगे प्रतिबंध हैं। इसकी वजह से ट्रेड और टूरिज्म इंडस्ट्री सबसे ज्यादा प्रभावित हुई। टूरिज्म सेक्टर से न्यूजीलैंड को सबसे ज्यादा रेवेन्यू मिलता है।
दुनिया के आधे बच्चे स्कूल से दूर हुए
महामारी ने बच्चों को काफी हद तक प्रभावित किया है। यूनिसेफ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिटा फोरे ने कहा- 192 देशों में आधे से ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। महामारी ने इन पर गंभीर असर डाला है। करीब 16 करोड़ स्कूली बच्चे इन दिनों घर में हैं। फोरे ने कहा- यह सुकून की बात है कि दूर-दराज में रहने वाले लाखों बच्चे टीवी, इंटरनेट या ऐसे ही दूसरे किसी माध्यम के जरिए शिक्षा हासिल कर पा रहे हैं।
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इमरान खान बोले- दुष्कर्म करने वालों को सर्जरी या केमिकल के जरिए नपुंसक बना देना चाहिए, ताकि वे आगे ऐसा करने की हिम्मत न कर सकें September 16, 2020 at 05:18AM
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि महिलाओं और बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वालों को नपुंसक बना दिया जाना चाहिए। यह बात उन्होंने मंगलवार को एक स्थानीय चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कही। इमरान ने कहा- मैंने कैबिनेट बैठक में दुष्कर्मियों को कड़ी सजा देने के लिए अपने मंत्रियों से भी चर्चा की है। मैं सोचता हूं कि दुष्कर्मियों को सबके सामने फांसी दे देनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि आप इसके सही आंकड़े नहीं जानते क्योंकि ऐसे मामले ज्यादातर सामने नहीं आ पाते। महिलाएं डर और शर्म की वजह से ऐसी बातें नहीं कह पातीं। अगर देश में सरेआम दुष्कर्मियों को फांसी दी जाती है तो इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कबूल नहीं किया जाएगा।
पाकिस्तान के यूरोपीय यूनियन के साथ संबंध खराब होंगे। इसके बदले सर्जरी या केमिकल से उन्हें नपुंसक बना देना चाहिए ताकि वे आगे ऐसा करने की हिम्मत न कर सकें।
लाहौर हाइवे पर महिला के साथ दुष्कर्म हुआ था
पिछले हफ्ते एक महिला कार में दो बच्चों के साथ लाहौर लौट रही थी। एक्सप्रेस-वे पर गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया। महिला ने पति को फोन पर पेट्रोल खत्म होने की जानकारी दी और कार के शीशे बंद कर अंदर बैठ गई। पति वहां पहुंचता इसके पहले ही वहां दो बदमाश आए। कार का शीशा तोड़कर महिला और बच्चों को बाहर निकाला। उनका सामान और फोन छीन लिया। जंगल में महिला से दुष्कर्म किया। इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
घटना के विरोध में देशभर में हो रहा प्रदर्शन
घटना सामने आने के बाद आम लोग ही नहीं बल्कि सेलेब्स भी सड़कों पर उतर आए। कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं। लाहौर के पुलिस कमिश्नर उमर शेख ने मीडिया से बातचीत में घटना के लिए महिला को ही जिम्मेदार ठहरा दिया, जिसके बाद उनका काफी विरोध हुआ।
उन्होंने कहा- वो इतनी रात को बच्चों के साथ एक्सप्रेस-वे घूमने क्यों निकली थी। साथ में कोई पुरुष क्यों नहीं था। हर घटना के लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराना गलत है। शेख को इस बयान के लिए बाद में माफी मांगनी पड़ी।
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Donald Trump posts faked video of Biden playing anti-police song September 16, 2020 at 04:52AM
जापान के पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी योशिहिडे सुगा प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए, मोदी ने बधाई दी September 16, 2020 at 12:54AM
टोक्यो. जापान के पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी योशिहिडे सुगा बुधवार को औपचारिक तौर पर देश के अगला प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया। सुगा ने दो दिन पहले रूलिंग लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के इलेक्शन में अपनी पार्टी के दो नेताओं को पीछे छोड़ कर इस पद के लिए जगह पक्की की थी। बुधवार को देश के संसद में इसके लिए वोटिंग हुई। इसमें उन्हें 465 सांसदों में से 314 के वोट मिले। पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के 28 अगस्त को इस्तीफा देने के बाद से यह पद खाली था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योशिहिडे को बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया- योशिहिडे सुगा को जापान का प्रधानमंत्री बनने पर दिल से बधाई। मैं उनके साथ मिलकर हमारी विशेष रणनीति और ग्लोबल पार्टनरशिप को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की उम्मीद करता हूं।
सुगा के पिता स्ट्रॉबेरी उगाने वाले किसान थे
6 दिसंबर 1948 को योशिहिडे सुगा का जन्म अकिता राज्य में हुआ। वे अपने परिवार से राजनीति में आने वाले पहले व्यक्ति हैं। सुगा के पिता वासाबुरो द्वितीय विश्व युद्ध के समय साउथ मंचूरिया रेलवे कंपनी में भी काम करते थे। जंग में अपने देश के सरेंडर करने के बाद वे वापस जापान लौट आए। उन्होंने अकिता राज्य के युजावा कस्बे में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। बड़े बेटे होने के नाते सुगा बचपन में खेतों में अपने पिता की मदद करते थे। उनकी मां टाटसु एक स्कूल टीचर थीं।
सिक्योरिटी गार्ड और फिश मार्केट तक में काम किया
सुगा अपने पिता की तरह खेती नहीं करना चाहते थे। इसलिए, वे स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर से भागकर टोक्यो आ गए। यहां आने के बाद उन्होंने कई पार्ट टाइम नौकरियां की। उन्होंने सबसे पहले कार्डबोर्ड फैक्ट्री में काम शुरू किया। कुछ पैसे जमा होने पर 1969 में होसेई यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया। पढ़ाई जारी रखने और यूनिवर्सिटी की फीस भरने के लिए उन्हें कई और पार्टटाइम किया। सुगा ने एक लोकल फिश मार्केट में और सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर भी काम किया।
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ट्रम्प का आरोप - बाइडेन डिबेट में परफॉर्मेंस सुधारने के लिए कुछ लेते हैं, डेमोक्रेट्स कैंडिडेट ने कहा- ट्रम्प मूर्ख हैं September 15, 2020 at 11:50PM
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने विपक्षी डेमोक्रेट्स पार्टी के राष्ट्रपति पद के कैंडिडेड जो बाइडेन पर ड्रग्स लेने का आरोप लगाया। ट्रम्प ने फॉक्स न्यूज के साथ इंटरव्यू में मंगलवार को कहा- बिडेन डिबेट में परफॉर्मेंस सुधारने के लिए कुछ लेते हैं। मैं सोचता हूं कि शायद यह ड्रग्स होगा। पहले जब डेमोक्रेटिक के दूसरे नेताओं के साथ उनकी बहस होती थी तो वे मुझे नाकाबिल लगे थे। हालांकि, जब अपनी ही पार्टी के लेफ्टिस्ट नेता बर्नीं सैंडर्स के साथ उनका डिबेट हुआ तो वे मुझे थोड़े ठीक नजर आए।
ट्रम्प की इस आरोप के बारे में पूछे जाने पर बाइडेन ने कहा- ट्रम्प मूर्ख हैं। उनकी टिप्पणियां भी ऐसी ही हैं। मैं डिबेट करने के लिए तैयार हूं। मिस्टर प्रेसिडेंड तैयार रहें, मैं आ रहा हूं। ट्रम्प और बाइडेन के बीच तीन प्रेसिडेंशियल डिबेट होंगे। पहला डिबेट 22 सितंबर को क्लेवलैंड में होगा।
पहले हिचकिचाते थे बाइडेन: ट्रम्प
ट्रम्प ने कहा- मैं सोचता हूं कि जिसे एक लाइन सही से बोलने में दिक्कत हो रही हो वह इतना आगे कैसे जा सकता है। यह कुछ अजीब है। आप प्राइमरी इलेक्शन के दौरान उनके डिबेट सुनिए, वे कितना हिचकिचाते थे। वे डेमोक्रेटिक पार्टी का प्राइमरी चुनाव सिर्फ इसलिए जीते कि एलिजाबेथ वॉरेन ने ड्रॉप नहीं किया। अगर वे ऐसा कर देतीं तो बर्नीं सैंडर्स सभी राज्यों में सुपर ट्यूजडे चुनाव जीतते। ऐसे में आपके सामने डेमोक्रेट के राष्ट्रपति कैंडिडेट के तौर पर बाइडेन नहीं बर्नीं खड़े होते।
डिबेट से पहले बाइडेन अपना टेस्ट करवाएं
ट्रम्प ने कहा कि 22 सितंबर को प्रेसिडेंशियल डिबेट से पहले बाइडेन का टेस्ट होना चाहिए। मैं भी यह टेस्ट करवाउंगा। ट्रम्प इससे पहले भी अपने विपक्षियों का ड्रग टेस्ट करवाने की मांग कर चुके हैं। 2016 में जब वे हिलेरी क्लिंटन के साथ डिबेट करने वाले थे तब भी उन्होंने यही मांग रखी थी। ट्रम्प इस तरह के आरोप बिना किसी आधार के लगाते रहे हैं। उनके बेटे जूनियर ट्रम्प ने भी कुछ दिनों पहले डिबेट से पहले बाइडेन का ड्रग टेस्ट करवाने की मांग की थी।
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भारत ने कहा- पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़, वहां रोज अल्पसंख्यक मारे जाते हैं; तुर्की अंदरूनी मामलों में दखल न दे September 15, 2020 at 09:14PM
ह्यूमन राइट्स काउंसिल (एचआरसी) की मंगलवार को जिनेवा में मीटिंग हुई। पाकिस्तान और उसके मित्र देश तुर्की ने भारत को घेरने की कोशिश की। भारत ने इसका तल्ख तेवरों के साथ जवाब दिया। भारत ने कहा- दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है। हिंदू, सिख और क्रिश्चियन्स का वहां रहना मुहाल है। उनको रोज कत्ल किया जाता है।
भारतीय प्रतिनिधि ने तुर्की को भी कड़े शब्दों में नसीहत दी। कहा- तुर्की अपने यहां लोकतंत्र के हाल देखे और उसे बचाए। भारत के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी की कोशिश न करे।
मानवाधिकार पर भाषण न दे पाकिस्तान
पाकिस्तान सोमवार को पक्ष रख चुका था। एचआरसी ने भारत को मंगलवार को पक्ष रखने को मौका दिया। भारत के प्रतिनिधि ने कहा- दुनिया जानती है, पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है। उसे मानवाधिकारों पर भाषण देने का अधिकार नहीं है। वहां हिंदू, सिख और क्रिश्चियन्स का खात्मा किया जा रहा है। भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास कामयाब नहीं होगा। दुनिया जानती है कि जिन आतंकियों को यूएन ने बैन किया, उन्हें पाकिस्तान पेंशन देता है। वहां के प्रधानमंत्री खुद मानते हैं कि उनके देश ने हजारों आतंकियों को ट्रेनिंग और फंड दिया।
नाकाम हो चुका है पाकिस्तान
भारत ने कहा- पाकिस्तान आतंकियों की फंडिंग नहीं रोक पाया। उन्हें पनाह दे रहा है। कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ कराता है। ये जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में हमले करते हैं। अल्पसंख्यकों के खिलाफ ईशनिंदा, जबरिया धर्म परिवर्तन, कत्ल और भेदभाव जैसी अमानवीय हरकतें होती हैं। हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय की महिलाओं और लड़कियों को अगवा करने के बाद उनका धर्म परिवर्तन पाकिस्तान में सामान्य बात हो चुकी है। बलूचिस्तान, खैबर और सिंध का कोई हिस्सा ऐसा नहीं, जहां रोज किसी व्यक्ति को अगवा न किया जाता हो। पत्रकार हों या मानवाधिकार कार्यकर्ता, उन्हें टॉर्चर और किडनैप किया जाता है।
तुर्की को भी खरी-खरी
भारत ने एचआरसी में तुर्की को भी माकूल जवाब दिया। कहा- तुर्की ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) का सहारा लेने की कोशिश न करे। इस संगठन का पाकिस्तान गलत इस्तेमाल कर रहा है। तुर्की को भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं। अच्छा होगा कि वो देश में लोकतंत्र की समझ बेहतर करे।
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