Wednesday, September 30, 2020
नाबालिग हिंदू लड़की ने गैंगरेप और ब्लैकमेलिंग से परेशान होकर खुदकुशी की, जमानत पर बाहर हैं आरोपी September 30, 2020 at 07:12PM
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में नाबालिग हिंदू लड़की ने गैंगरेप के बाद ब्लैकमेल से परेशान होकर खुदकुशी कर ली। लड़की को पिछले साल जुलाई में घर से तीन लोगों ने अगवा किया था। बाद में उसके साथ रेप हुआ। आरोपियों ने इसका वीडियो बना लिया था। इस मामले में केस दर्ज हुआ था और आरोपी गिरफ्तार भी हुए थे। लेकिन, कुछ दिन बाद ही उन्हें बेल मिल गई थी। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने पीड़िता को ब्लैकमेल किया। बाद में उसने खुदकुशी कर ली।
कुएं में कूदकर खुदकुशी
‘डॉन न्यूज’ के मुताबिक, नाबालिग लड़की ने बुधवार सुबह एक कुएं में कूदकर जान दे दी। उसका गांव सिंध के थारपारकर जिले में आता है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल जुलाई में तीन लोग लड़की को अगवा करके ले गए थे। उसके साथ गैंगरेप किया गया और इसका वीडियो भी बना लिया गया। लड़की के परिवार की शिकायत पर केस दर्ज हुआ और आरोपियों की गिरफ्तारी भी। लेकिन, कुछ ही दिन में वे जमानत पर बाहर आ गए।
ब्लैकमेल किया गया
लड़की के परिवार ने कहा- आरोपी जमानत पर थे। ये सभी दबंग परिवारों के हैं। उन्होंने पीड़िता को ब्लैकमेल किया। इससे परेशान होकर उसने खुदकुशी कर ली। जिले के एसएसपी अब्दुल्ला अहमदयार ने माना कि लड़की के साथ गैंगरेप किया गया था। मेडिकल रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हो गई थी। स्थानीय हिंदू समुदाय के नेताओं ने आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। इन लोगों ने कहा है कि अगर जल्द ही आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
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पोप फ्रांसिस ने अमेरिकी विदेश मंत्री से मिलने से इनकार किया; वेटिकन ने कहा- चुनावी साल में वे नेताओं से नहीं मिलते September 30, 2020 at 05:15PM
कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरू पोप फ्रांसिस ने बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से मिलने से इनकार कर दिया। पोप वेटिकन सिटी में रहते हैं। वेटिकन ने एक बयान में कहा- अमेरिका में इस वक्त चुनाव प्रक्रिया चल रही है। चुनावी दौर में पोप किसी नेता से मुलाकात नहीं करते।
हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पोम्पियो ने पोप से मिलने से पहले चीन में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर एक बयान दिया था। वेटिकन नहीं चाहता था कि पोम्पियो वेटिकन का इस्तेमाल सियासी फायदे के लिए करें।
वेटिकन का आरोप
पोम्पियो चार देशों की यात्रा के तहत वेटिकन सिटी पहुंचे थे। यहां पहुंचने से पहले उन्होंने कहा था कि चीन में मानवाधिकारों का उल्लंघटन हो रहा है। वहां बाकी लोगों के साथ ईसाइयों को भी परेशान किया जा रहा है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वेटिकन के अफसर इसी बयान को लेकर नाराज थे। इसलिए, जब पोम्पियो ने पोप फ्रांसिस से मिलना चाहा तो वेटिकन ने इससे इनकार कर दिया। वेटिकन ने कहा- चुनावी दौर में पोप किसी नेता से नहीं मिलते। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पोम्पियो से पोप से मुलाकात का इस्तेमाल सियासी फायदे के लिए करना चाहते थे।
पोम्पियो ने तंज कसा था
सितंबर की शुरुआत में पोम्पियो ने एक अखबार में आर्टिकल लिखा था। इसमें उन्होंने वेटिकन सिटी का नाम लिए बिना उस पर तंज कसा था। पोम्पियो ने कहा था- कैथोलिक चर्च अपनी नैतिक विश्वसनीयता और ताकत को खतरे में डाल रहा है। दरअसल, वेटिकन ने चीन से बिशप्स की नियुक्ति को लेकर एक समझौता किया है। अमेरिका को लगता है कि वेटिकन भी चीन के दबाव में उसकी शर्तें मान रहा है। पोम्पियो ने कहा था- दुनिया में धार्मिक आजादी को जितना खतरा चीन में है, उतना कहीं नहीं है।
ट्रम्प को समर्थन
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को पारंपरिक ईसाई समुदाय का समर्थन हासिल है। इसके अलावा दूसरे ईसाई धार्मिक संगठन भी उनके साथ मजबूती से खड़े हैं। इनमें से ज्यादातर ये मानते हैं कि पोप फ्रांसिस जरूरत से ज्यादा उदारवादी हैं। मानवाधिकार संगठन भी कई बार कह चुके हैं कि वेटिकन चीन में ईसाई समुदाय के बारे में बात नहीं करता। 2018 में चीन और वेटिकन के बीच बिशप्स को लेकर एक समुझौता हुआ था। इसमें कहा गया था कि चीन में सिर्फ चीनी मूल के बिशप्स की नियुक्ति ही की जा सकेगी। अगले महीने इस समझौते की समीक्षा होनी है।
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ट्रम्प ने सिर्फ दो विकल्प दिए हैं- इनमें बाइडेन की जीत शामिल नहीं है, इसे गंभीरता से लीजिए September 30, 2020 at 03:57PM
बीते कुछ हफ्तों में ट्रम्प एक बात साफ करते आए हैं। पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट में तो उन्होंने इस बिल्कुल साफ कर दिया। ट्रम्प के मुताबिक, 3 नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के सामने सिर्फ दो विकल्प हैं। इनमें डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन की जीत शामिल नहीं है। इसका मतलब ये है कि चुनाव ट्रम्प ही जीतेंगे। अगर हारे तो मेल इन बैलट्स को गैरकानूनी या अमान्य घोषित कर देंगे। इस चेतावनी या कहें वॉर्निंग को गंभीरता से लेना चाहिए।
ट्रम्प क्या चाहते हैं
राष्ट्रपति की बात को समझिए। इसमें पारदर्शिता यानी ट्रांसपेरेंसी जैसी कोई चीज नहीं है। अगर वे चुनाव नहीं जीत पाते हैं तो फैसला सुप्रीम कोर्ट या हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में होगा। अब आप दोनों की स्थिति को समझिए। दोनों ही जगह ट्रम्प फायदे में हैं। और यही बात वो कई हफ्तों से और कई मंचों से दोहरा चुके हैं।
इससे ज्यादा और क्या साफ हो सकता है
मैं इस बारे में और ज्यादा साफ क्या कहूं कि- हमारा लोकतंत्र इस वक्त भयानक खतरे का सामना कर रहा हूं। ये खतरा सिविल वार, पर्ल हार्बर और क्यूबा के मिसाइल क्राइसिस से भी बड़ा है। इतना बड़ा खतरा तो वॉटरगेट कांड के बाद भी सामने नहीं आया था। मैंने अपना कॅरियर विदेश संवाददाता के तौर पर शुरू किया। उस वक्त लेबनान में दूसरा सिविल वार चल रहा था। इस युद्ध का मेरी जिंदगी पर बहुत गंभीर असर हुआ।
राजनीति का गहरा असर होता है
लेबनान सिविल वार के बाद मैं समझा कि जब एक देश में हर चीज सियासत से जुड़ जाती है तो क्या होता है। जब कुछ चुनिंदा नेता देश से ज्यादा पार्टी को अहमियत देने लगते हैं। जब कुछ कथित जिम्मेदार लोग ये साबित करने लगते हैं कि वे किसी भी कानून को तोड़ सकते हैं, अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें कोई रोकने वाला नहीं।
अब फिक्र होने लगी है
कट्टरपंथी जब हावी होने लगते हैं तो सिस्टम खराब होने लगता है, टूटने लगता है। मैंने ऐसा होते देखा है। मैं सोचता था कि अमेरिका में ऐसा कभी नहीं हो सकता। लेकिन, अब मुझे बेहद फिक्र होने लगी है। इसकी वजह ये है कि फेसबुक और ट्विटर हमारे लोकतंत्र के दो मजबूत आधारों सत्य और विश्वास, को खत्म कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि ये उन लोगों को अपनी बात रखने का प्लेटफॉर्म देते हैं जो अपनी आवाज नहीं उठा सकते। इससे पारदर्शिता बढ़ती है। लेकिन, ये भी याद रखिए कि इन पर ही बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो साजिशें रचते हैं, झूठ गढ़ते और फिर इसे फैलाते हैं।
सच और झूठ में फर्क जरूरी
इन सोशल नेटवर्क्स ने इंसान की खुद की सोच को खत्म कर दिया है। झूठ और सच में फर्क नहीं किया जाता। जब तक दोनों पक्षों में भरोसा नहीं होगा, तब तक आम लोगों की बेहतरी भी नहीं हो सकती। हेब्रू यूनिवर्सिटी के रिलीजियस फिलॉस्फर मोशे हालबर्टेल कहते हैं- राजनीति में मूल्य होने चाहिए। फैसले ऐसे होने चाहिए, जिससे दोनों पक्षों को फायदा हो। लोगों का भरोसा नहीं टूटना चाहिए। लेकिन, आज अमेरिका में ये नहीं हो रहा है। बाकी सब तो छोड़ दीजिए। यहां तो मास्क पहनने पर भी राय बंट गई है। और अगर हालात यही हैं तो फिर लोकतंत्र जिंदा नहीं रह पाएगा।
डेमोक्रेट्स पर भी सवालिया निशान
ऊपर दिए गए तथ्यों के आधार पर मुझे लगता है कि इस चुनाव में जो बाइडेन ही एकमात्र पसंद हैं। लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि डेमोक्रेट्स सियासत नहीं कर रहे। लेकिन, रिपब्लिकन्स से उनकी तुलना नहीं की जा सकती। रिपब्लिकन्स ने पहले रोनाल्ड रीगन और जॉर्ज बुश सीनियर को चुना। लेकिन, वे ये भी जानते हैं कि अभी ओवल ऑफिस में बैठा व्यक्ति कैसा है। अगर ट्रम्प को चार साल और मिलते हैं तो हमारे संस्थान खत्म हो जाएंगे, देश बंट जाएगा। इसलिए, मुझे लगता है कि अमेरिका की आशा यही है कि बाइडेन चुने जाएं। रिपब्लिकन्स के कुछ कम कट्टरपंथी लोग उनका साथ दें।
आज फीके रहे बाइडेन
बुधवार की डिबेट में बाइडेन नहीं चमक पाए। डिबेट की ही बात करें तो मैंने उन्हें बहुत प्रभावी कभी नहीं देखा। लेकिन, मुझे कोई शक नहीं कि वे सरकार को एकजुट करेंगे और वो क्वॉलिटी जरूर दे पाएंगे जो एक देश के तौर पर जरूरी हैं और जिनका यह देश हकदार है। इसलिए मैं कहता हूं- बाइडेन को वोट दीजिए। मेल से दें या फिर मास्क लगाकर बूथ तक जाएं और फिर वोटिंग करें। ताकि, ट्रम्प और फॉक्स न्यूज को नतीजों में धांधली का मौका न मिल सके। लोगों को प्रेरित करें और बाइडेन के लिए वोट कराएं। यह आप अपने देश के लिए करें। क्योंकि, हमारा लोकतंत्र इसी पर निर्भर है।
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इजराइल में प्रतिबंधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे लोग, नया कानून पास; दुनिया में 3.41 करोड़ केस September 30, 2020 at 03:53PM
दुनिया में संक्रमितों का आंकड़ा 3.41 करोड़ से ज्यादा हो गया है। ठीक होने वाले मरीजों की संख्या 2 करोड़ 54 लाख 20 हजार 056 से ज्यादा हो चुकी है। मरने वालों का आंकड़ा 10.18 लाख के पार हो चुका है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। इजराइल में लोग अब प्रतिबंधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे। इसको लेकर यहां सरकार ने एक कानून पास कर दिया है।
इजराइल : सरकार सख्त
इजराइल में पिछले कुछ दिनों से लोग प्रतिबंधों का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि सरकार कोरोनावायरस की रोकथाम के नाम पर मनमाने प्रतिबंध लगा रही है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से इस्तीफे की मांग की जा रही है। लेकिन, सरकार ने भी सख्त रुख अपना लिया है। संसद में एक कानून पास किया गया है। इसके तहत अब विरोध प्रदर्शन गैरकानूनी होंगे और ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा सकेगा।
नए कानून के तहत लोग एक किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा भी नहीं कर सकेंगे। इसके अलावा 20 से ज्यादा लोगों के एक जगह जुटने पर पाबंदी लगा दी गई है। सरकार का कहना है कि वैक्सीन अब तक नहीं आई है और संक्रमण की दूसरी लहर का खतरा है। लिहाजा, सख्ती जरूरी है।
स्पेन : मैड्रिड लॉकडाउन की ओर
स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सरकार ने कुछ हॉटस्पॉट्स की पहचान की है। सरकार का कहना है कि यहां लॉकडाउन लगाए बिना संक्रमण रोकना आसान नहीं है। लेकिन, स्थानीय प्रशासन और लोग केंद्र के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। परेशानी की बात यह है कि दो हफ्ते में यहां एक लाख 33 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं और सरकार की फिक्र का सबब भी यही आंकड़ा है। हेल्थ मिनिस्टर साल्वाडोर इले ने कहा- मैड्रिड की हेल्थ ही स्पेन की हेल्थ भी है। हमने नियमों की नई सूची तैयार कर ली है और इसे जल्द लागू करेंगे। मैड्रिड में 9 उपनगरीय इलाके हैं। यहां करीब 30 लाख लोग रहते हैं। फिलहाल, बाहर से आने वालों पर बैन लगाया गया है।
साउथ कोरिया: सरकार ने कहा- सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी
साउथ कोरिया में सोमवार को 39 नए केस सामने आए। हालांकि केसों में हल्की गिरावट भी देखी गई है। इसके बावजूद सरकार ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन किया जाए। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, छुट्टियों में लाखों लोग घूमने का प्लान बना चुके हैं। इससे महामारी फैलने का खतरा हो सकता है। देश में 23 हजार 699 केस हैं, 407 मौतें हुई हैं।
लैटिन अमेरिका : 34 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई
यूएन के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि महामारी के चलते लैटिन अमेरिका में 34 लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। संगठन ने कहा है कि किसी भी हाल में सरकारों और यूएन को मिलकर इन लोगों के लिए काम करना होगा। कई दशक बाद इतनी खराब स्थिति देखने को मिली है। लैटिन अमेरिका के अलावा कैरेबियन देशों में भी महामारी का असर पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, लैटिन अमेरिका में कई बुनियादी समस्याएं हैं। इनको सुलझाए बिना रोजगार की समस्या को हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक प्लान भी तैयार करने को कहा गया है।
स्पेन : कारोबार को नुकसान का खतरा
स्पेन सरकार ने साफ कर दिया है कि देश में संक्रमण की लहर को रोकने के लिए वो हर मुमकिन कदम उठाएगी। सरकार का यह सख्त बयान मैड्रिड लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के एक दिन पहले दिए गए उसे बयान के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार के कदमों से पटरी पर आ रहे कारोबार को फिर नुकसान हो सकता है। हेल्थ मिनिस्ट्री ने सोमवार को कहा था- यूरोपीय देशों और खासकर पड़ोसी देश फ्रांस में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लिहाजा, सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे। कुछ खबरों में कहा गया कि स्पेन सरकार सीमाएं बंद करने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, सरकार ने इन खबरों का खंडन कर दिया है।
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सात राजनीतिक पार्टियों ने लिबरल नेता एलेक्जेंडर डी क्रू को नया पीएम चुना, फिलहाल वे देश के वित्त मंत्री हैं September 30, 2020 at 06:23AM
बेल्जियम में 493 दिन बाद बुधवार को देश के अगले प्रधानमंत्री के नाम का ऐलान किया गया। लिबरल नेता एलेक्जेंडर डी क्रू देश के अगले पीएम होंगे। वे सात पार्टियों के गठबंधन से बनने वाली सरकार की अगुआई करेंगे। नए गठबंधन में दो सोशलिस्ट पार्टी, दो लिबरल, दो ग्रीन और फ्रेंच बोलने वालों और फ्लेमिश बोलने वालों की अगुआई करने वाली एक-एक पार्टी शामिल होगी। 44 साल के डी क्रू फिलहाल बेल्जियम के वित्त मंत्री के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं। उन्हें बेल्जियम के राजा गुरुवार को पद की शपथ दिलाएंगे।
21 महीने पहले पूर्व पीएम चार्ल्स मिशेल की सरकार गिरने के बाद से ही बेल्जियम में प्रधानमंत्री पद खाली है।16 महीने पहले चुनाव भी हुए थे लेकिन, चुनाव में भी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला सका था। इसके बाद सोफी विलम्स को कार्यकारी प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था।
संसद में संतुलन बनाने की कोशिश
देश की सात पार्टियों ने बुधवार सुबह प्रधानमंत्री चुनने और सरकार बनाने के बारे में चर्चा करने के लिए बैठक की। इसके बाद इन पार्टियों के नेताओं ने किंग फिलिप से मुलाकात की। नेताओं ने किंग फिलिप से सरकार बनाने और मंत्रीमंडल गठन पर बनी सहमति के बारे में चर्चा की। एक फ्लेमिश (फ्लेंडर भाषा बोलने वाले) नेता को प्रधानमंत्री के तौर पर चुनने के बाद पार्टियों को संसद में संतुलन बनाने की उम्मीद है। फ्रेंच बोलने वाले नेता सत्ता पक्ष में और डच नेता विपक्ष में होंगे।
2010 से 2011 के बीच बेल्जियम में सरकार नहीं रही थी
मई 2019 में हुए चुनाव के बाद से ही बेल्जियम में एक कार्यवाहक सरकार काम कर रही थी। पिछले छह महीने से अल्पमत गठबंधन कामकाज देख रहा था। इस गठबंधन को विपक्ष का समर्थन हासिल था। बेल्जियम में राजनीतिक अस्थिरता का पुराना इतिहास रहा है। इससे पहले 2010 से 2011 के बीच भी देश में 541 दिनों तक कोई सरकार नहीं थी।
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पेरिस में राफेल ने आवाज से भी तेज रफ्तार से उड़ान भरी, इतनी जोर से आवाज आई कि लोगों को लगा कहीं बम फटा है September 30, 2020 at 04:38AM
फ्रांस की राजधानी पेरिस में बुधवार को धमाके जैसी आवाज सुनाई दी। इसके बाद पुलिस ने कहा कि यह किसी बम धमाके की आवाज नहीं थी। ध्वनि की रफ्तार से भी तेज उड़ान भर रहे एक राफेल प्लेन से यह आवाज निकली थी। न्यूज एजेंसी स्पुतनिक के मुताबिक, राफेल ने रेडियो सिग्नल से संपर्क खो चुके एक प्लेन की मदद के लिए उड़ान भरी थी। इसे मुश्किल में फंसे प्लेन की मदद के लिए इतनी तेजी से उड़ान भरने की मंजूरी दी गई थी।
पेरिस के पूर्वी इलाके में यह धमाके जैसी आवाज सुनाई दी। आवाज इतनी तेज थी कि लोगों की खिड़कियां तक हिलनी लगी। इसके बाद लोग डर गए। काफी लोगों ने पुलिस को फोन कर शहर में कहीं पर धमाके होने की शिकायत की। इसके बाद पुलिस ने इस बारे में बताया।
बीते हफ्ते पेरिस में शार्ली एब्दो के दफ्तर के पास चाकूबाजी हुई थी
बीते हफ्ते पेरिस के शार्ली एब्दो अखबार के ऑफिस के सामने चाकूबाजी हुई थी। इसमें चार लोग घायल हुए थे। पुलिस ने एक हमलावर को गिरफ्तार किया था। इसके बाद से ही पेरिस के लोगों में डर हैं। इसी महीने आतंकी संगठन अल कायदा ने भी फ्रांस पर हमले की धमकी दी थी। दरअसल, शार्ली एब्दो ने हाल ही में दोबारा पैगंबर मुहम्मद से जुड़े कार्टून छापे थे।
शार्ली एब्दो ने वही कार्टून छापे, जिनकी वजह से 2015 में उस पर आतंकी हमला हुआ था। शार्ली एब्दो के कार्टूनिस्ट व्यंग करते हुए विभिन्न धर्मों की कमियां दिखाते हैं। वे पहले ईसाई, यहूदी के भी कार्टून छाप चुके हैं।
23 सितंबर को एफिल टावर उड़ाने की धमकी मिली थी।
फ्रांस के सबसे लोकप्रिय टूरिस्ट प्लेस एफिल टॉवर को बम से उड़ाने की धमकी मिली थी। पुलिस अधिकारियों ने द एसोसिएटेड प्रेस को बताया था कि एक युवक ने फोन पर बताया कि उसने टॉवर में बम लगाया है। इसके बाद पूरे इलाके को खाली करा लिया गया था।
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