पाकिस्तान सरकार और फौज आतंकियों का इस्तेमाल अपने दुश्मनों का ठिकाने लगाने में करते हैं। इस बात का खुलासा आतंकी संगठन तालिबान के प्रवक्ता एहसानउल्ला एहसान ने खुद किया है। एहसान ने अप्रैल 2017 में फौज के सामने सरेंडर किया था। जनवरी 2019 में पता लगा कि एहसान फौज की कस्टडी से भाग गया है। इस पर किसी को यकीन नहीं हुआ।
अब एक ऑडियो टेप जारी कर एहसान ने कहा है कि फौज ने उसे रिहा किया था। एहसान के मुताबिक- फौज ने उसे डेथ स्कवॉड बनाने को कहा। एक हिट लिस्ट दी। इसमें कई जर्नलिस्ट्स हैं जो फौज या सरकार के खिलाफ लिखते हैं। महिला पत्रकार आरजू इकबाल की हत्या की बात भी कबूल की।
सरकार और फौज को विरोध मंजूर नहीं
अहसान ने ऑडियो टेप में कहा- मुझे कहा गया है कि आप एक डेथ स्कवॉड बनाएं। गद्दारों के खिलाफ काम शुरू करें। मुझे एक हिट लिस्ट दी गई। इसमें ज्यादातर खैबर पख्तूख्वा प्रांत के पश्तून हैं। कई जर्नलिस्ट्स के भी नाम हैं। मिलिट्री इंटेलिजेंस के कई अफसरों ने मुझसे बातचीत की।
2014 में मलाला यूसुफजई पर हमला एहसान के इशारे पर ही किया गया था। इसकी जिम्मेदारी भी उसने ली थी। खास बात ये है कि जिस दौर में एहसान पाकिस्तानी फौज की कैद में था, तब भी उसके सोशल मीडिया अकाउंट्स एक्टिव थे। हिरासत के दौरान उसने कई ट्वीट किए थे।
सबसे ज्यादा खतरा पत्रकारों को
बुधवार को पाकिस्तान की 30 महिला जर्नलिस्ट्स ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी किया। इसमें कहा- हमें कई तरह की धमकियां मिल रही हैं। कुछ का तो जिक्र भी नहीं किया जा सकता। कुछ सोशल मीडिया अकाउंट्स तो सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी से जुड़े हैं। पिछले साल 27 साल की महिला जर्नलिस्ट अरूज इकबाल की लाहौर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संगठन रिपोटर्स विदाउट बॉर्डर्स ने इसकी जांच की मांग की है। पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में पाकिस्तान 180 देशों में 145 स्थान पर है।
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