कोरोनासंकट की वजह से दुनियाभर में लॉकडाउन का असर पर्यावरण पर भी पड़ा है। कई जगहों पर बिजली, कोयला और अन्य प्रदूषण फैलाने वाले प्लांट बंद हैं। महामारी से निपटने के लिए अपनाए गए उपायों से पर्यावरण में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का प्रदूषण औसतन 40% घटगया। इससे पिछले 30 दिनों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) प्रदूषण के औसत स्तर में 10% की कमी आई। यही वजह रही है कि यूरोप में हवा साफ हो गई।
इसका नतीजा यह रहा कि एक ही महीने में करीब 11 हजार लोगों को असमय मौत से बचाया जा सका है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान सबसे ज्यादा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर हुआ। पिछले एक महीने में यूरोप में बच्चों में अस्थमा के करीब 6 हजारमामले कम आए। इसके अलावा प्रीमैच्योर जन्म के मामलों में भी 600 से ज्यादा की गिरावट रही। इनके अलावा करीब 1900 बच्चों को इमरजेंसी इलाज से बचाया जा सका है।
कोयले और बिजली के 37% प्लांट बंद, हवा साफ
रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान कोयले और बिजली के 37% प्लांट बंद रहे, जबकि एक तिहाई ऑयल प्लांट बंद रहे। इनकी वजह से नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम हुआ, जो विशेष रूप से अस्थमा के मरीजों के लिए ज्यादा नुकसानदायक है। जिन बीमारियों या कारणों से लोगों की जान बची है, उनमें ज्यादातर सांस और फेफड़ों के संक्रमण से जुड़े हैं, जिन्हें कोरोना का भी खतरा ज्यादा था। साफ हवा से उनके स्वास्थ्य पर भी बेहतर असर पड़ा है।
जर्मनी में यूरोप के दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा जानें बचीं
यूरोप 21 देशों में सबसे ज्यादा फायदा जर्मनी को हुआ। वहां मौतों की संख्या 2083 घटी।स्वीडन, नॉर्वे, पुर्तगाल समेत 10 देशों में यह आंकड़ा 120 से 770 के बीच रहा।
देश | जानें बचीं |
जर्मनी | 2083 |
ब्रिटेन | 1752 |
इटली | 1490 |
फ्रांस | 1230 |
स्पेन | 1081 |
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