तेहरान. ईरान ने अमेरिका और तालिबान के बीच हुए अफगानिस्तान समझौते कारविवार को विरोध किया। 18 साल से जारी लड़ाई को खत्म करने के लिए अमेरिका और अफगानिस्तान के आतंकी गुट तालिबान के बीच शनिवार को कतर में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने कहा कि अमेरिका के पास शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने या अफगानिस्तान के भविष्य का फैसला करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
समझौते के मुताबिक, अमेरिका 14 महीने में अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटाएगा। इसके अलावा समझौते में शामिल अन्य शर्तें भी 135 दिन में पूरी कर ली जाएंगी। इस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि अफगानिस्तान से अपनी सेना पूरी तरह से तभी हटाएंगे, जब पूरी तरह से पुख्ता कर लेंगेकितालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय परआतंकीहमले नहीं करेगा।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने ईरान को समझौते में बाधा डालने की कोशिश करने को लेकर चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा था कि ईरान का इतिहास रहा है कि वह हमेशा से अफगानिस्तान में अशांतिफैलाने के लिए काम करता रहा है।
‘तालिबान समेत पड़ोसी देशों की भागीदारी से ही स्थायी शांति संभव’
जरीफ ने कहा कि अफगानिस्तान में विदेशी सैनिकों की मौजूदगी गैर-कानूनी है। विदेशी सैनिकों की उपस्थिति उस देश में युद्ध और असुरक्षा के मुख्य कारणों में से एक है। एक स्थायी शांति समझौता तभी संभव है जब तालिबान समेत सभी राजनीतिक समूहों की भागीदारी और पड़ोसी देशों के विचारों को ध्यान में रखते हुए इंटर-अफगान डायलॉग किया जाए।
तेहरान और वॉशिंगटन के बीच मई 2018 से तनाव
ईरान के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र के पास अफगानों के बीच बातचीत को सुगम बनाने और उन समझौतों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और उन्हें सुनिश्चित करने की क्षमता है।’’ तेहरान और वॉशिंगटन के बीच मई 2018 से तनाव बढ़ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान ने परमाणु संधी से खुद को अलग कर लिया था।
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