जेनेवा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर परमाणु युद्ध की धमकी दी है। जेनेवा में पहले अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी फोरम की बैठक में बोलते हुए इमरान ने भारत के नागरिकता बिल को दक्षिण एशिया का बड़ी शरणार्थी संकट बताया। इमरान ने कहा कि इससे न सिर्फ क्षेत्रीय तनाव बढ़ा, बल्कि इससे दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों में टकराव भी हो सकता था। इमरान के बयान पर विदेश मंत्रालय ने इसे भारत के आंतरिक मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उछालने की पुरानी आदत बताया है।
जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए इमरान ने भारत के नागरिकता कानून का मुद्दा उठाते हुए कहा कि तीन देशों के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का फैसला भेदभाव भरा है। इस फैसले से पूरे दक्षिण एशिया में शरणार्थियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इस मौके पर इमरान ने एक बार फिर कश्मीर राग दोहराया। उन्होंने कहा- दुनिया को अब कश्मीर के हालात पर ध्यान देना चाहिए।
इमरान का संकुचित एजेंडा सामने आया: विदेश मंत्रालय
इमरान के बयान पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा- इमरान खान भारत के आंतरिक मुद्दों पर गैर जरूरी बयानबाजी के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर अपना संकुचित राजनैतिक एजेंडा उजागर किया है। हमेशा की तरह वह पूरी तरह भारत के आंतरिक मामले में गैर जरूरी टिप्पणी कर रहे हैं।”
1971 में पाकिस्तानीसेना की करतूत सबके सामने
रवीश कुमार ने कहा, “सारी दुनिया को यह समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान और उसके प्रधानमंत्री इमरान खान हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंचों की गरिमा का मखौल उड़ाते रहे है। पिछले 72 साल में पाकिस्तान ने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया है, जिससे वे भारत में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि दुनिया यह नहीं भूल सकती कि उनकी सेना ने 1971 में क्या किया था। पाकिस्तान को धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए पहल करनी चाहिए, ताकि वे सम्मान से रह सकें।”
कश्मीर मुद्दे पर अकेला पड़ा पाकिस्तान
इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान भी कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का मुद्दा उठाया था। हालांकि उस समय तुर्की और मलेशिया के अलावा उसे किसी देश का समर्थन नहीं मिल पाया था। इसके बाद पाकिस्तान ने इस्लामी देशों के संगठन के सामने भी इस पर समर्थन जुटाने की कोशिश की थी, लेकिन वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी थी।
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