नेपाल की संसद में कुछ भारतीय क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताने की कोशिश तेज हो गई है। नेपाली संसद में देश के नए नक्शे को मंजूरी दिलाने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक पर चर्चा हुई। विधेयक नेपाल की न्याय मंत्री डॉ शिवमाया तुम्बाड ने पेश किया।नेपाली संसद के अध्यक्ष ने इस पर वोटिंग कराईसभी सांसदों ने ध्वनिमत से इसका समर्थन किया। एक भी सांसद ने इस संशोधन के खिलाफ वोटिंग नहीं की।
नए नक्शे में भारतके कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। इसे पिछले महीने नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी ने जारी कियाथा। भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी। भारत ने कहा था- यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है।
संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत
नेपाल की सरकार को संविधान में संशोधन के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत है। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को निचले सदन से प्रस्ताव पास कराने के लिए 10 सीटों की जरूरत है। इसलिए सरकार को दूसरी पार्टियों को भी मनाना पड़ रहा है। विपक्षी पार्टियों को भी सरकार ने मना लिया है। ऐसे मेंमाना जा रहा है कि यह बिल दोनों सदनों से पास हो जाएगा। नेपाल में आमतौर पर संविधान संशोधन बिल पास होने में एक महीने का समय लग जाता है। हालांकि, इस बार इसे 10 दिनों में पारित कराने की कोशिश है।
18 मई को नेपाल ने जारी किया था नया नक्शा
भारत नेलिपुलेख से धारचूलातक सड़क बनाई है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने8 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इसका उद्घाटन किया था, इसके बाद ही नेपाल की सरकार ने विरोध जताते हुए 18 मई को नया नक्शाजारी किया था। इसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र में बताया। 22 मई को संसद में संविधान संशोधन का प्रस्ताव भी दिया था। भारत ने नेपाल के सभी दावों को खारिज किया है।हाल ही में भारत के सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने कहा था कि नेपाल ने ऐसा किसी और (चीन) के कहने पर किया।
कब से और क्यों है विवाद?
नेपाल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1816 में एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद सुगौली समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें काली नदी को भारत और नेपाल की पश्चिमी सीमा के तौर पर दर्शाया गया है। इसी के आधार पर नेपाल लिपुलेख और अन्य तीन क्षेत्र अपने अधिकार क्षेत्र में होने का दावा करता है। हालांकि,दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। दोनों देशों के पास अपने-अपने नक्शे हैं।
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