वॉशिंगटन. कोरोनावायरस से जंग में दुनिया के कई बड़े देशों ने तकनीक का सहारा लेना शुरू कर दिया है। फिर वह संक्रमितों की पहचान करना हो या लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग को कायम रखना। हर काम में तकनीक काफी मददगार साबित हो रहीहै। रूस ने अपने यहां संदिग्ध संक्रमितों की पहचान के लिए हाईटेक सीसीटीवी कैमरे की मदद ली है। मॉस्को शहर में इसके लिए 1 लाख 70 हजार से ज्यादा हाई क्वालिटी वाले कैमरे लगवाए गए हैं। 9 हजार से ज्यादा अभी भी लगाए जा रहे हैं। कैमरे के दायरे में आने वाले शख्स का पूरा ब्योरा रिकॉर्ड हो जाता है। मसलन उसका ट्रैवेल हिस्ट्री, मेडिकल हिस्ट्री सबकुछ रिकॉर्ड में दर्ज हो जाता है। इसके जरिए संदिग्ध संक्रमितों की तुरंत पहचान हो जा रही है। यही नहीं लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले भी इसके जरिए आसानी से पकड़ में आ रहे हैं। इसी तरह इजरायल ने विदेशी यात्रा करने वाले लोगों का रिकॉर्ड ट्रेस करने के लिए मोबाइल जियोलोकेशन और डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड के रिकॉर्ड का सहारा लिया है। साउथ कोरिया के साथ यूरोपियन देशों ने भी तकनीक का सहारा लेना शुरू कर दिया है।
रूस में हर कोई सर्विलांस पर, पल-पल की रिपोर्ट सरकार के पास
सीएनएन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले दिनों इंटरनेट के माध्यम से संचालित होने वाले कई तकनीक को मंजूरी दी थी। अब कोरोनावायरस के खिलाफ छिड़ी जंग में सरकार ने इनका प्रयोग शुरू कर दिया है। सरकार मुसीबत की इस घड़ी में तकनीक की ताकत भी परख रही है। हर किसी को सर्विलांस पर रखा गया है। हालांकि, इसमें लोगों की निजता का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। मॉस्को में फेशियल रिकग्निशन सिस्टम लगाया गया है। 1 लाख 70 हजार सीसीटीवी कैमरोंकी मदद से हर किसी पर नजर रखी जा रही है। मॉस्को के पुलिस प्रमुख ओलेग बरानोव कहते हैं कि इसी तकनीक की मदद से पिछले कुछ दिनों में 200 से ज्यादा लोगों पर सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई की गई है। मॉस्को के मेयर सर्गेई सोबयानिन का कहना है कि इसके जरिए कई संदिग्ध संक्रमितों की पहचान हुई है। क्वारैंटाइन किए गए लोगों पर भी निगरानी रखी जा रही है। मोबाइल जियोलोकेशन की मदद से संक्रमित या संदिग्ध के संपर्क में आने वाले लोगों को भी आसानी से ट्रेस किया जा रहा है। ऐसे सभी लोगों को ट्रेस करते ही मोबाइल पर मैसेज भेजकर सतर्क रहने और क्वारैंटाइन होने को कहा जाता है। इसी की मदद से एक चाइनीज महिला को भी पकड़ा गया था जो बीजिंग से आई थी। उसकी पहली जांच रिपोर्ट निगेटिव आई थी, लेकिन बाद में वह पॉजिटिव पाई गई थी। सर्विलांस की मदद से ही उसके संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान हो सकी।
इजरायल ने फोन, क्रेडिट कार्ड के जरिए कईयों को क्वारैंटाइन किया
तकनीक के मामले में इजरायल भी काफी आगे है। इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक संदिग्धों की पहचान के लिए सभी के मोबाइल फोन और क्रेडिट कार्ड की जांच हुई। ऐसे जितने लोग भी विदेश यात्रा करके आए सभी को क्वारैंटाइन कर दिया गया। यही नहीं जियोलोकेशन की मदद से उन लोगों को भी क्वारैंटाइन किया गया जो इनके संपर्क में आए थे। क्वारैंटाइन किया गया संदिग्ध अगर नियमों को तोड़कर बाहर भी निकलता है तो तुरंत स्वास्थ्य विभाग में अलर्ट मैसेज पहुंच जाता है। मंत्रालय ने लोगों को भरोसा दिलाते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि किसी का डेटा लीक नहीं होगा। सभी डेटा 60 दिनों में अपने आप डिलीट हो जाएंगे। हालांकि, कुछ सामाजिक संगठनों ने इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी थी। जहां मंत्रालय ने बताया कि इसी तकनीक के जरिए 500 संदिग्धों की पहचान हुई। जिनमें करीब दस बाद में संक्रमित पाए गए। इसलिए इसे जारी रखा जाए।
साउथ कोरिया कार्ड ट्रांजैक्शन, फोन जियोलोकेशन का ले रहे सहारा
साउथ कोरिया सरकार की तरफ से संक्रमितों की पहचान के लिए हर किसी के क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्शन, फोन जियोलोकेशन पर नजर रखी जा रही है। सरकार ने सभी के नंबर सर्विलांस पर लगा दिए हैं। सीसीटीवी फुटेज निकाली जा रही है। इसके जरिए हर शख्स की ट्रैवेल हिस्ट्री, मेडिकल हिस्ट्री सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में मौजूद है। मंत्रालय ऐसे लोगों को स्क्रीनिंग करके आइसोलेट कर रही है जो संदिग्ध हैं या उनमें संक्रमण होने का खतरा है। जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया जैसे कई यूरोपियन देशों ने भी अब इसी तरह तकनीक का सहारा लेना शुरू कर दिया है।
यूएस मेंलोगों को ट्रैक करने की तैयारी
इजरायल और रूस की तर्ज पर अब यूएस ने भी लोगों को ट्रैस करने की तैयारी शुरू कर दी है। वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक सरकार ऐसे संदिग्धों को ट्रेस करेगी जिनकी मेडिकल और ट्रैवेल हिस्ट्री है। इसके साथ ही उनके संपर्क में आने वाले लोगों पर भी निगरानी रखने के लिए सरकार सर्विलांस का सहारा ले सकती है। हालांकि, इस प्रक्रिया का काफी विरोध हो सकता है। क्योंकि यह निजता के अधिकार के हनन में आएगा।
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