नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागरिकता संशोधन कानून के जरिए भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की अनदेखी कर रहे हैं। वे लोकतंत्र को ऐसा नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसका असर भारत पर अगले कई दशकों तक रह सकता है। यह कहना है ब्रिटिश मैगजीन ‘द इकोनॉमिस्ट’ का। भारत की मौजूदा भाजपा सरकार की नीतियों समीक्षा में मैगजीन ने कहा है कि मोदी सहिष्णु और बहुधर्मीय समाज वाले भारत को उग्र राष्ट्रवाद से भरा हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश में जुटे हैं।
द इकोनॉमिस्टने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) एनडीए सरकार के दशकों से चल रहे भड़काऊ कार्यक्रमों में सबसे जुनूनी कदम है। लेख में कहा गया है कि सरकार की नीतियों ने भले ही मोदी को चुनाव में जीत दिलाने में मदद की हो, लेकिन अब यही नीतियां देश के लिए राजनीतिक जहर साबित हो रही हैं। मैगजीन ने चेतावनी के अंदाज में कहा है कि मोदी की नागरिकता संशोधन कानून जैसी पहलें भारत में खूनी संघर्ष करा सकती हैं।
‘भाजपा ने धर्म के नाम पर बांट कर खराब अर्थव्यवस्था से लोगों का ध्यान भटकाया’
लेख में कहा गया है कि भाजपा ने धर्म और देश की पहचान के नाम पर बंटवारा किया और इशारों में मुस्लिमों को खतरनाक करार दिया है। इसके जरिए पार्टी आधारभूत समर्थकों को ऊर्जावान रखने और खराब अर्थव्यवस्था के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने में सफल हुई है। मैगजीन में रकहा गया है कि प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) भगवा पार्टी को अपना बांटने वाला एजेंडा आगे बढ़ाने में मदद करेगा। एनआरसी की लिस्टिंग की प्रक्रिया सालों-साल चलती रहेगी, जिससे उनके बंटवारे का एजेंडा भी चलता रहेगा।
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