Saturday, October 31, 2020
जिन वोटरों ने किसे वोट देना है, इसका मन नहीं बनाया- वे इस चुनाव का नतीजा तय कर सकते हैं October 31, 2020 at 04:08PM
74 साल के जॉन हॉलैंड खुद को सियासी तौर पर आजाद बताते हैं। मायने ये कि न तो वे रिपब्लिकन्स के समर्थक हैं और न डेमोक्रेट्स के। उम्मीदवार देखकर तय करते हैं कि वोट किसे देना है। वे उन वोटरों में शामिल हैं, जिन्होंने यह फैसला नहीं किया कि इस बार किसे वोट देना है। हॉलैंड कहते हैं- क्या आपको लगता है कि मैं अपने बच्चों के दादा के तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प को पसंद करूंगा? नहीं। उन्होंने मास्क पहना और वोटिंग करने गए।
चार साल में काफी कुछ बदल गया
चार साल पहल तक हॉलैंड जैसे वोटर्स दोनों पार्टियों की नीतियां और कैंडिडेट देखने के बाद भी तय नहीं कर पाते थे कि वोट किसे देना है। लेकिन, आखिरी वक्त पर नीतियां ही देखते और वोट करते। इस साल बहुत कम वोटर्स ऐसे हैं जिन्होंने यह तय नहीं किया है कि वोट किसे देना है। लेकिन, इस साल कुछ अहम राज्यों के ऐसे काफी वोटर्स हैं जिन्होंने किसे वोट देना है, इसका मन नहीं बनाया। और ध्यान रखिए ये ये निर्णायक साबित हो सकते हैं।
ट्रम्प से नाराजी
पिछले चुनाव में कुछ वोटर्स ऐसे थे जो दोनों पार्टियों को लेकर निगेटिव थे। कुछ मानते थे कि ट्रम्प खराब हो सकते हैं, लेकिन डेमोक्रेट्स से फिर भी बेहतर हैं। इस बार ऐसा नहीं है। इन वोटरों में लैटिनो और एशियन-अमेरिकन्स ज्यादा हैं। इनमें भी युवाओं की संख्या ज्यादा है। इन लोगों का रुझान ट्रम्प की तरफ ज्यादा नहीं है। न ये ट्रम्प को तवज्जो दे रहे हैं और बाइडेन को। एनवायटी और सिएना पोल्स के नतीजे बताते हैं कि फैसला न करने वाले वोटरों का रुझान ट्रम्प की बजाए बाइडेन की तरफ ज्यादा हो सकता है। आसान शब्दों में कहें तो इस लिहाज से बाइडेन का पलड़ा भारी है।
पाला बदल सकते हैं ये वोटर्स
जिन वोटरों ने किसे वोट देना है, यह तय नहीं किया- उनमें से पचास फीसदी ऐसे हैं जो बता तो नहीं रहे हैं लेकिन, पाला बदल सकते हैं। हो सकता है इन वोटरों की तादाद कम हो। लेकिन, जॉर्जिया, नॉर्थ कैरोलिना जैसे राज्यों में यह एक या दो प्रतिशत से भी फर्क पैदा कर सकते हैं। पोलिंग डायरेक्टर पैट्रिक मुरे कहते हैं- अनिर्णय (जिन्होंने वोट का फैसला नहीं किया) के शिकार यही वोटर निर्णायक साबित हो सकते हैं। ये थर्ड पार्टी को भी सपोर्ट कर सकते हैं। 13 फीसदी ऐसे हैं जो दबाव या प्रभाव में आने के बाद दोनों कैंडिडेट्स में से किसी को भी वोट दे सकते हैं।
पिछले चुनाव में भी यही हुआ था
2016 में अनिर्णय के शिकार करीब 20 फीसदी वोटर थे। इस बार कम से कम आधे तो इस कैटेगरी में होंगे। पोल्स से संकेत मिलते हैं कि इनमें से ज्यादातर ट्रम्प को पसंद नहीं करते। प्रोफेसर मुरे कहते हैं कि ऐसे वोटर्स जो ट्रम्प को पसंद नहीं करते, उन्हें अपने पाले में करने के लिए बाइडेन को मेहनत करनी होगी। कुछ वोटर्स ऐसे भी हैं जो किसी पार्टी की विचारधारा से जुड़े नहीं होते। ये किसी भी पाले में जा सकते हैं।
बाइडेन को मेहनत करनी होगी
कुल मिलाकर देखें तो अनिर्णय का शिकार वोटर्स अहम हैं। अब बाइडेन के लिए ये जरूरी हो जाता है कि वे इन वोटर्स तक पहुंच बनाएं और उन्हें अपने पाले में करें। अच्छी बात ये है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यकर्ता ट्रम्प विरोधी और अनिर्णय के शिकार वोटर्स तक पहुंच बना रहे हैं। एक पोल के मुताबिक- मिशिगन, पेन्सिलवेनिया और फ्लोरिडा में इस तरह के वोटर्स काफी हैं। ये आखिरी वक्त पर किसी भी तरफ जा सकते हैं। स्विंग स्टेट्स में बाइडेन को इन पर नजर बनानी होगी।
रिपब्लिकन्स की रणनीति में खामी
रिपब्लिकन्स की नजर उन वोटर्स पर है जो ग्रेजुएट हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है। वे बिना डिग्री वाले व्हाइट वोटर्स पर भी फोकस कर रहे हैं। पेन्सिलवेनिया में मतदान का प्रतिशत इन्हीं लोगों ने बढ़ाया। अनुमान है कि इससे ट्रम्प को फायदा हो सकता है। कुछ वोटर्स ऐसे हैं जो महामारी और सियासत में कोई संबंध नहीं देखते। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कैमरून कहते हैं- कई वोटर्स ऐसे हैं जो ये जानते और मानते हैं कि हेल्थ का सियासत से कोई रिश्ता नहीं। इसलिए उनके वोट्स में भी ये दिखेगा। हमें तो उस कैंडिडेट को चुनना है जो दोनों में बेहतर हो। जो इस देश को 100 फीसदी दे सके और जो इस देश को बेहतर बना सके।
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अमेरिका में 24 घंटे में एक लाख नए केस, स्पेन में लॉकडाउन के विरोध में हिंसा भड़की October 31, 2020 at 03:59PM
दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.63 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 34 लाख 79 हजार 314 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 11.99 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिका में एक दिन में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं और यह वर्ल्ड रिकॉर्ड है। यहां शनिवार को कुल 1 लाख 233 मामले सामने आए। स्पेन में सरकार ने सख्ती दिखाते हुए लॉकडाउन लगाया तो सड़कों पर हिंसक झड़पें शुरू हो गईं।
अमेरिका में हालात बिगड़े
अमेरिका में महज दो दिन बाद राष्ट्रपति चुनाव होना है। इसके पहले यहां संक्रमण का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना। शनिवार को यहां एक लाख 233 मामले सामने आए। उसने भारत को पीछे छोड़ दिया। जहां सितंबर में एक दिन में 97 हजार 894 मामले सामने आए थे। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने यह जानकारी दी है। फिक्र की बात यह है कि इलेक्शन की रैलियां जारी हैं और इनमें हजारों लोग बिना किसी सावधानी के शामिल हो रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प खुद न तो मास्क लगा रहे हैं और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। शुक्रवार को यहां 99 हजार नए संक्रमित मिले थे।
स्पेन में हिंसा
स्पेन में सरकार के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी हो गई है। यहां संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया तो कई लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने इसका विरोध किया। इसके बाद जब सुरक्षा बलों ने इन्हें हटाने की कोशिश की तो ये हिंसा पर उतर आए। स्पेन में छह महीने की स्टेट ऑफ इमरजेंसी पहले से ही लागू है। लेकिन, संक्रमण की दूसरी लहर को देखते हुए सरकार ने पिछले महीने दी गई ढील वापस ले ली और लॉकडाउन का ऐलान कर दिया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पुलिस ने रबर बुलेट भी चलाईं ताकि भीड़ को हटाया जा सके। आज सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री मीडिया से बात करेंगे।
इंग्लैंड में लॉकडाउन
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने विपक्ष और अपने ही सांसदों की नाराजगी को दरकिनार करते हुए सेकंड लॉकडाउन का ऐलान किया। ब्रिटेन में अब तक 10 लाख से ज्यादा संक्रमित मिल चुके हैं। इस बीच, देश के कई हिस्सों से पुलिस और लॉकडाउन विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा की खबरें भी मिल रही हैं। सरकार ने साफ कर दिया है कि जरूरी सेवाओं में कुछ कमी की जा सकती है क्योंकि कई लोग इनके बहाने प्रतिबंधों का मजाक बना रहे हैं। यहां अस्पतालों में भी फिर मरीज बढ़ने लगे हैं।
रूस में फिर 18 हजार मामले
रूस में शुक्रवार के बाद शनिवार को फिर संक्रमण के करीब 18 हजार नए मामले सामने आए। इसके बाद हेल्थ डिपार्टमेंट ने देश के सभी अस्पतालों और मेडिकल केयर सेंटर्स को अलर्ट पर रहने को कहा। खास बात ये है कि इसी दौरान 366 लोगों की मौत हो गई। सिर्फ एक राहत की बात है कि इसी दौरान 14 हजार मरीज स्वस्थ भी हुए। हेल्थ मिनिस्ट्री ने कहा- बढ़ती सर्दी की वजह से संक्रमण और तेजी से फैल सकता है और हमने इसके मद्देनजर तैयारियां की हैं। देश में अब तक 11 लाख से ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं।
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7 डिग्री तापमान में वोटिंग के लिए 5 घंटे इंतजार मंजूर, कहते हैं- ट्रम्प को हराएंगे तो ही कोरोना से मुक्ति October 31, 2020 at 03:26PM
न्यूयॉर्क (अमेरिका) से भास्कर के लिए मोहम्मद अली: दोपहर का वक्त है। आसमान में घने बादल छाए हैं। ऐसा लग रहा है कि कुछ ही देर में बारिश शुरू हो सकती है। अक्टूबर के आखिरी दिन न्यूयॉर्क के मौसम ने करवट लेना शुरू कर दिया है। तापमान 7 डिग्री सेल्सियस है। लेकिन मैनहट्टन के वोटिंग बूथ के बाहर वोट देने वालों की कतार लंबी होती जा रही है। यहां लोग अपने राष्ट्रपति, उच्च और निचले सदन के प्रतिनिधि को चुनने के लिए आए हैं।
न्यूयॉर्क स्टेट में पहली बार इलेक्शन-डे (3 नवंबर) से पहले वोटिंग हो रही है। हालांकि ‘जल्दी वोटिंग’ की परंपरा अमेरिका के कई राज्यों में पहले से रही है। इस बार कोरोना वायरस की वजह से भीड़ को कम करने के लिए कई राज्यों ने 9 दिन पहले ही वोटिंग शुरू की है। 38 साल की वॉरडे खताब एक फिजियोथैरेपिस्ट के तौर पर न्यूयॉर्क की एक मशहूर यूनिवर्सिटी में काम करती हैं।
वोटिंग बूथ के बाहर दो घंटे से खड़ी हैं। वोट देने में लगने वाले वक्त को जानने के लिए उन्होंने फोन में टाइमर लगा रखा है। कहती हैं- ‘अगर दो घंटे और कतार में खड़ा होना पड़े तो खड़ी रहूंगी। लेकिन वोट दिए बगैर नहीं जाऊंगी।’ ट्रम्प के पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं- ‘यह फासिस्ट आदमी हमारा राष्ट्रपति बनने के लायक नहीं है। हम अपना विरोध रजिस्टर करेंगे।’
वॉरडे से बात करने से 10 मिनट पहले लाइन की शुरुआत से उसका अंत दिख रहा था। लेकिन अब यह बता पाना मुश्किल है कि लाइन कितनी दूर जा चुकी है। मास्क से लैस और फिजिकल डिस्टेंसिंग के साथ लोग खड़े हैं। कोई दीवार से टेक लगाकर अखबार पढ़ रहा है तो कोई अपने फोन में व्यस्त है। हर रंग, नस्ल, धर्म, लिंग के लोग हैं इस लंबी कतार में।
अश्वेत, गोरे, भारतीय, हिस्पैनिक, इटैलियन आदि। लोगों में बहुत उत्साह है, लेकिन इस उत्साह के पीछे ट्रम्प के खिलाफ भयानक गुस्सा दिख रहा है। सोनिया 25 साल की हैं और वो न्यूयॉर्क में पहली बार वोट दे रही हैं। इससे पहले वो कोलोराडो में वोट देती थीं। कहती हैं- ‘मुझे पता था कि वोट देने के लिए लंबी लाइन लग रही है। लेकिन बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि इतनी लंबी लाइन में लगना पड़ेगा।
करीब 2 घंटे 45 मिनट के बाद मेरा नंबर आएगा, वो भी जब मैं 10 बजे ही आ गई थी। मुझे कोरोना के खिलाफ वोट देना है। अमेरिकी सत्ता में जो वायरस घुस गया है उसे निकालने के लिए। इसके लिए 5 घंटे भी इंतजार करना पड़े तो कर सकती हूंं।’ सोनिया बात कर रही हैं और कतार लंबी होती जा रही है।
भीड़ और लंबी-लंबी लाइन को कम करने के लिए न्यूयॉर्क इलेक्शन कमीशन को बूथ बदलने पड़ रहे हैं और वोटिंग के घंटे भी बढ़ाने पड़ रहे हैं। इन कतारों को देख पता ही नहीं लग रहा है कि लोगों को कोरोना से डर भी लगता है या ये बोला जाए कि लोगों में ट्रम्प के खिलाफ गुस्सा उनके वायरस के डर पर हावी हो गया है।
वोट देने की लाइन में मुझे कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने 2016 में ट्रम्प को वोट किया था। जैसे कि 65 साल के चेरियन जॉन, जो मैक्सिको से न्यूयॉर्क 70 के दशक में आए थे। कहते हैं- ‘2016 में मैंने सोचा था कि किसी मर्द को अमेरिका का राष्ट्रपति बनना चाहिए। इसीलिए हिलेरी को नहीं चुना। लेकिन कोरोना ने साबित कर दिया कि ये शख्स लीडर बनने के लायक नहीं है।’
कुछ देर बाद बहुत गंभीर होकर जॉन कहते हैं कि कोरोना ने उनके सबसे अच्छे दोस्त को उनसे छीन लिया। जॉन का गुस्सा एक बार शुरू हुआ तो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। कहते हैं- ‘पूरे देश के वैज्ञानिक और ट्रम्प के मंत्री तक बोल रहे थे कि वायरस आएगा। लेकिन इस आदमी को किसी की परवाह ही नहीं है।
ट्रम्प को जब कोरोना हुआ तो उनके पास दुनिया का सबसे अच्छा इलाज था। लेकिन सभी अमेरिकियों की किस्मत ट्रम्प जैसी नहीं है। इस एक शख्स की लापरवाही की वजह से दो लाख लोग मारे गए हैं। अकेले न्यूयॉर्क में ही 33 हजार जानें जा चुकी हैं।’ जॉन की तरह न्यूयॉर्क सिटी के 47 लाख वोटर इस बार अपने वोट डालने वाले हैं।
लोग वोट देने के लिए बहुत बड़े स्तर पर लोगों को सजग कर रहे हैं। यहां तक कि पब के वेटर भी शराब देने से पहले लोगों से पूछ रहे हैं कि आपने वोट डाला या नहीं। न्यूयॉर्क के 3 अलग-अलग पोलिंग बूथ की कतारों में खड़े दर्जनों लोगों से बात की। इनमें कोई दबी जुबान में भी ट्रम्प के पक्ष में बोलता नहीं दिख रहा है। इनका कहना है कि कोरोना काल में लंबी-लंबी कतारें ट्रम्प के खिलाफ गुस्से की तस्वीरें हैं।
1984 में रीगन के बाद न्यूयॉर्क ने किसी रिपब्लिकन को नहीं चुना, 2016 में ट्रम्प को 19% वोट मिले थे
रोनाल्ड रीगन के बाद 1984 से न्यूयॉर्क ने किसी रिपब्लिकन को नहीं चुना है। न्यूयॉर्क के पास 29 इलेक्टोरल मत है और तीसरा बड़ा इलेकटोरल कॉलेज स्टेट्स है। 2016 में ट्रम्प को न्यूयॉर्क से 19% वोट मिले थे। यहां के स्थानीय लोगों को कहना है कि कोरोना की वजह से ट्रम्प को वोट और भी कम मिलने वाले हैं।
2016 में न्यूयॉर्क में जितने लोगों ने वोट दिया था, उसके 62% लोग 9 दिनों में वोट कर चुके हैं। कुल मिलाकर अमेरिका में अब तक 8.9 करोड़ मत पड़ चुके हैं। सबसे ज्यादा कैलिफोर्निया में 91 लाख, टेक्सास में 90 लाख और फ्लोरिडा में 78 लाख मत पड़ चुके हैं।
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Obama: Trump failed to take pandemic, presidency seriously October 31, 2020 at 02:25PM
Iraq reopens Tahrir Square, epicentre of revolt in Baghdad October 31, 2020 at 01:08AM
टेंशन में खड़े पाकिस्तानी पीएम इमरान और विदेश मंत्री शाह की फोटो अभिनंदन की रिहाई वाली रात की है? जानें सच October 30, 2020 at 11:53PM
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक मीम वायरल हो रहा है। फोटो में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद खड़े दिख रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि ये फोटो उस रात की है, जब विंग कमांडर अभिनंदन की पाकिस्तान से रिहाई हुई थी।
विंग कमांडर अभिनंदन को पिछले साल फरवरी में एयर स्ट्राइक के दौरान पाकिस्तानी सेना ने हिरासत में ले लिया था। फिर अभिनंदन रिहा भी हो गए थे। डेढ़ साल पुराने मामले को लेकर 2 दिन पहले पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नया खुलासा हुआ है।
असेंबली में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (PML-N) के नेता अयाज सादिक ने खुलासा करते हुए बताया कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक अहम मीटिंग में अभिनंदन को रिहा न करने पर भारत की तरफ से रात 9 बजे हमले की आशंका जताई थी। टेंशन में दिख रहे पाकिस्तान के पीएम और विदेश मंत्री की फोटो को इसी खुलासे से जोड़कर शेयर किया जा रहा है।
और सच क्या है ?
- वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें पाकिस्तान की न्यूज एजेंसी के 3 साल पुराने ट्वीट में भी यही फोटो मिली। मतलब साफ है कि फोटो का अभिनंदन की रिहाई वाली डेढ़ साल पुरानी घटना से कोई संबंध नहीं है। इस ट्वीट से पता चलता है कि फोटो शाह महमूद कुरैशी के बेटे के विवाह समारोह की है।
- ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, इमरान खान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ 18 अगस्त, 2018 को ली थी। जबकि वायरल फोटो 2017 की है। यानी जिस समय की फोटो है, तब इमरान पाकिस्तान के पीएम भी नहीं थे। साफ है कि सोशल मीडिया पर फोटो गलत दावे के साथ शेयर की जा रही है।
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Friday, October 30, 2020
ट्रम्प बोले- कोरोना से हो रही मौतों से डॉक्टरों को फायदा हो रहा है, मैं व्हाइट हाउस में ही रहूंगा October 30, 2020 at 06:13PM
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ चंद दिन बाकी हैं। इस बीच देश में कोरोनावायरस के मामले भी रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब भी बेफिक्र नजर आते हैं। इतना ही नहीं, अब तो वे डॉक्टरों पर भी आरोप लगाने लगे हैं। मिशिगन की एक रैली में ट्रम्प ने कहा कि कोरोनावायरस से हो रही मौतों से डॉक्टरों को फायदा हो रहा है। ट्रम्प ने भी भरोसा जताया कि वे ही व्हाइट हाउस में रहेंगे।
न्यूज एंकर का भी मजाक उड़ाया
मिशिगन की रैली में फॉक्स न्यूज की होस्ट लाउरा इन्ग्राम भी मौजूद थीं। वे मास्क लगाए हुए थीं। ट्रम्प ने उनकी ओर देखकर कहा- आप सियासी तौर पर तो बिल्कुल सही काम कर रही हैं। ट्रम्प ने डेमोक्रेटिक राज्यों की सरकारों वाले राज्यों और उनके गवर्नर्स पर भी तंज कसा। कहा- आप लोगों को डरा रहे हैं। जहां देखिए सिर्फ लॉकडाउन और प्रतिबंधों की बात हो रही है। क्या ऐसे ही हम इस महामारी का मुकाबला करेंगे। देश और लोगों को घरों में कैद होने से क्या महामारी खत्म हो जाएगी। इसका मुकाबला करना होगा। खास बात यह है कि ट्रम्प की इस रैली में शामिल हजारों लोगों में से ज्यादा बिना मास्क के नजर आए।
ट्रम्प और उनके सहयोगियों ने भी मास्क नहीं लगाया। न ही इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया। हालांकि, पहली बार किसी रैली में ट्रम्प ग्लव्ज पहने नजर आए।
बाइडेन ने ट्रम्प पर निशाना साधा
ट्रम्प मिशिगन में थे तो डेमोक्रेट कैंडिडेट बाइडेन मिनेसोटा पहुंचे। कहा- कोरोनावायरस के सामने ट्रम्प हथियार डाल चुके हैं। वे अब कोरोना से हो रही मौतों के लिए हमारे हेल्थ वर्कर्स को दोषी ठहरा रहे हैं। वे यह क्यों नहीं मान लेते कि उनकी एडमिनिस्ट्रेशन ने महामारी के हालात को बेहतर तरीके से नहीं संभाला। आप डॉक्टर्स और नर्स को कैसे कसूरवार ठहरा सकते हैं। वे रोज अस्पतालों और मेडिकल केयर सेंटर्स जाते हैं। अपनी जिंदगी खतरे में डालते हैं ताकि लोगों की जान बचाई जा सके।
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J&J कंपनी 12 से 18 साल के किशोरों पर जल्द वैक्सीन टेस्टिंग करेगी, ब्रिटेन में क्रिसमस तक इसकी उम्मीद October 30, 2020 at 04:42PM
दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.58 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 32 लाख 37 हजार 845 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 11.93 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड ने कहा है कि वो बहुत जल्द अपने कोविड-19 वैक्सीन की टेस्टिंग शुरू करने जा रही है। शुरुआत में इसके डोज 12 से 18 साल के किशोरों को दिए जाएंगे। वहीं, ब्रिटेन की वैक्सीन टास्क फोर्स हेड ने कहा है कि देश में वैक्सीन क्रिसमस तक आ सकती है।
जॉनसन एंड जॉनसन ने क्या कहा
शुक्रवार को अमेरिका में सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की मीटिंग हुई। इसमें शामिल जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी के एग्जीक्यूटिव ने कहा- हम 12 से 18 साल के किशोरों पर वैक्सीन की टेस्टिंग बहुत जल्द शुरू करने जा रहे हैं। हालांकि, सेफ्टी को लेकर हम काफी सतर्कता बरत रहे हैं। किशोरों पर वैक्सीन टेस्टिंग के बाद रिजल्ट्स का एनालिसिस होगा। इसके बाद वैक्सीन शॉट्स दूसरे लोगों को दिए जाएंगे। कंपनी ने वयस्कों यानी एडल्ट्स पर तीसरे चरण के ट्रायल सितंबर में शुरू किए थे। करीब 60 हजार लोगों को यह वैक्सीन शॉट दिए गए थे। इनका समीक्षा चल रही है। वहीं, फाइजर और जर्मन कंपनी बायोएनटेक के ट्रायल भी अंतिम दौर में हैं।
ब्रिटेन में क्रिसमस से पहले वैक्सीन
‘द गार्डियन’ से बातचीत में ब्रिटेन की कोरोना वैक्सीन टास्क फोर्स की हेड केट बिन्घम ने कहा- हमें उम्मीद है कि क्रिसमस के पहले वैक्सीन हमारे पास होगी। यह सेफ होगी। इसके लिए तैयारियां बहुत अच्छी चल रही हैं और हम अब तक के नतीजों से काफी संतुष्ट हैं। हालांकि, कुछ दिक्कतें भी हैं, लेकिन इन्हें आने वाले हफ्तों में हल कर लिया जाएगा। केट ने कंपनी का नाम तो नहीं बताया, लेकिन माना जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन तैयार करने के करीब हैं। कुछ दूसरी कंपनियां भी इस पर दिन-रात काम कर रही हैं।
फ्रांस में मुश्किल जारी
फ्रांस में सरकार ने लॉकडाउन लगाया। इसके बावजूद यहां संक्रमण कम होता नजर नहीं आता। हालांकि, हेल्थ मिनिस्ट्री ने उम्मीद जाहिर की है कि इसे जल्द काबू में लाया जा सकेगा। लॉकडाउन और प्रतिबंधों का असर अगले कुछ दिनों में देखने मिल सकता है। फ्रांस में शुक्रवार को 49,215 नए केस दर्ज किए गए। इसी दौरान 256 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक यहां कुल 36 हजार 565 लोगों की मौत हो चुकी है। कुल मामले 13 लाख 31 हजार 984 हैं।
इटली में दूसरी लहर
इटली सरकार ने एक बयान जारी कर माना है कि देश में संक्रमण की दूसरी लहर चल रही है और अब यह घातक साबित होने लगी है। शुक्रवार को यहां कुल 31 हजार 84 मामले सामने आए। इसके पहले यानी गुरुवार को यह संख्या 27 हजार थी। यानी एक दिन में 4 हजार मामले बढ़ गए। मरने वालों का आंकड़ा भी सीधे 200 पर पहुंच गया। देश में 1765 मरीजों की हालत गंभीर बताई गई है।
बेल्जियम में कर्फ्यू
तमाम विरोध के बावजूद बेल्जियम सरकार ने साफ कर दिया है कि वो झुकने वाली नहीं है और सोमवार से देश में नेशनल लॉकडाउन से भी सख्त कर्फ्यू लगाया जाएगा। किसी भी घर में एक से ज्यादा मेहमान नहीं जा सकेगा और इसकी भी जानकारी हेल्थ अथॉरिटी को देनी पड़ेगी। स्कूलों में परीक्षाएं 15 नवंबर तक टाल दी गई हैं। वर्क फ्रॉम होम ही किया जा सकेगा। सरकारी अधिकारियों और स्टाफ को ऑफिस आने की मंजूरी दी जाएगी। लेकिन, उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव होनी चाहिए।
इंग्लैंड में भी लॉकडाउन
बेल्जियम और दूसरे यूरोपीय देशों की तर्ज पर इंग्लैंड में भी लॉकडाउन की तैयारी हो चुकी है। ये अगले हफ्ते से लगाया जाएगा। हालांकि, इसका औपचारिक ऐलान बाद में किया जाएगा। खास बात ये है कि पीएम बोरिस जॉनसन की पार्टी के ही कुछ लोग विपक्ष के साथ इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन, मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जॉनसन ने अपने साइंस एडवाइजर की राय को ही तवज्जो दी है। यहां 24 घंटे में 274 नए मामले सामने आए जबकि 274 लोगों की मौत हो गई।
यूरोपीय देशों की कोशिश
यूरोपीय देशों में एक देश के मरीज दूसरे देश के अस्पतालों में शिफ्ट किए जा सकेंगे। इसके लिए स्पेशल फंड ट्रांसफर स्कीम भी लॉन्च की गई है। इसे बारे में यूरोपीय देशों ने एक समझौता किया है। फ्रांस और जर्मनी के अलावा स्पेन में भी नए मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और इसकी वजह से यहां सरकारें अलर्ट पर हैं। मरीजों को ट्रांसफर करना यूरोपीय देशों में मुश्किल भी नहीं होगा क्योंकि ज्यादातर देश छोटे हैं और इनकी ओपन बॉर्डर हैं। सड़क के रास्ते भी आसानी से एक देश से दूसरे देश में जाया जा सकता है। ईयू कमिशन की हेड वॉन डेर लेन ने कहा- वायरस तेजी से बढ़ रहा है और इससे निपटने के लिए सहयोग जरूरी है। हमारी कोशिश है कि हेल्थ केयर सिस्टम पहले की तरह मजबूती से काम करता रहे।
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यूएई में सड़कों से लेकर कारखानों तक बिहार चुनाव की चर्चा, यहां रह रहे बिहारी चाहते हैं राज्य में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बने October 30, 2020 at 02:53PM
(शानीर एन सिद्दीकी) इस वक्त हम मौजूद हैं दुबई के यूपी एन बिहार रेस्त्रां में। यहां गेट पर खड़े युवक नीतीश और तेजस्वी की जीत-हार का हिसाब-किताब लगा रहे हैं। इसी तरह की चर्चाएं यूएई की सड़कों से लेकर कारखानों तक आम हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, यहां बिहार के 5 लाख लोग काम करते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हर साल वर्क वीसा पर बिहार से 70 हजार लोग यहां आते हैं और ये लोग बिहार की इकोनॉमी में सालाना दो हजार करोड़ रुपए का योगदान देते हैं।
विदेश में रहने वालों का डेटा रखा जाए
दुबई में इंजीनियरिंग कंपनी सिवान टेक्निकल कॉन्ट्रैक्टिंग और यूपी एन बिहार रेस्त्रां के मालिक अनुज सिंह भी नई सरकार से उम्मीदें लगाए बैठे हैं। वे बताते हैं कि उनकी नई सरकार से मांग है कि विदेशों में रह रहे लोगों का डेटा रखा जाए। इसके लिए नीतीश सरकार ने बिहार फाउंडेशन के तहत एक अच्छी शुरुआत की थी, पर यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी। वहीं, आयल एंड गैस इंजीनियर नवीन चंद्रकला कुमार बताते हैं कि बिहार से आने वाले ब्लू कॉलर वर्कर की तीन सबसे बड़ी जरूरत सावधानी, सुरक्षा और सहायता है।
वे कहते हैं कि एक राज्य से हर साल लाखों लोग काम करने विदेश जाते हैं और राज्य में कोई अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट नहीं है। यदि राज्य का अपना एयरपोर्ट होगा तो प्रशासन नए जाने वाले वर्कर को सूचना दे सकता है कि विदेश में कोई समस्या आने पर किससे और कैसे संपर्क करे।
इस पर निगाह रखी जा सकती है कि जाने वाला सही वीसा पर जा रहा है या नहीं। किस एजेंट के जरिए जा रहा है, उसका भी रिकॉर्ड रख सकते हैं। एजेंटों के रजिस्ट्रेशन की एक व्यवस्था राज्य सरकार को तुरंत शुरू कर देनी चाहिए। इससे बहुत सारे फ्राॅड रोके जा सकते हैं। पटना एयरपोर्ट, दरभंगा एयरपोर्ट और गया एयरपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की शुरुआत करनी चाहिए। इसमें राज्य सरकार के राजस्व, टैक्स और विदेशी मुद्रा के रूप में मदद भी होगी।
बिहार में राजनीति हमेशा मुद्दों से हटकर होती है
फुलवारी शरीफ के रहने वाले और फ्रेंच कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्यरत इरफानुल हक बताते हैं कि दुबई में बैठ कर हम सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं कि इस बार चुनाव में क्या होने जा रहा है। पर बिहार में राजनीति हमेशा असल मुद्दों से हट कर होती है।
उम्मीद है कि नई सरकार शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं को तरजीह देगी। विकसित राज्यों की तर्ज पर बिहार में भी नए उद्योगों के लिए फ्री जोन बनाएगी। राज्य में निवेश करने वाले बिहारी उद्योगपतियों को टैक्स में छूट, सुरक्षा की गारंटी, कारोबार में आसानी जैसी नीतियां लागू करेगी। नई सरकार निवेश के लिए नया मंत्रालय भी बना सकती है जो की विदेश में रह रहे अप्रवासी बिहारी समाज के साथ मिल कर काम कर सकता है।
हालांकि यहां रह रहे लोगों को चुनाव का हिस्सा न बन पाने का भी मलाल है। अनुज बताते हैं कि यहां चुनाव पर बहस और चर्चा का ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि जैसे बिहार में ही बैठे हों। परिवार वालों से फोन और न्यूज चैनलों के जरिए लोग चुनाव की हर जानकारी जुटा रहे हैं। यदि सरकार और हाई कमीशन व्यवस्था करेगा तो वोटिंग के लिए लंबी कतारें दिखेंगी।
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