नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में टूट का खतरा फिलहाल टल गया है। नेपाल की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग को फिलहाल छोड़ने का फैसला किया है। ओली और प्रचंड रविवार को आपसी समझौते के लिए राजी हो गए हैं। माना जा रहा है कि समझौते में राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की भूमिका अहम रही।
साल के अंत तक आम सम्मेलन बुलाने पर राजी हुए
काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, ओली और प्रचंड इस साल के अंत में पार्टी का आम सम्मेलन बुनाने की शर्त पर राजी हुए हैं। समझौते का मतलब साफ है कि प्रचंड अब प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की अपनी मांग को छोड़ देंगे। प्रचंड की मांग की वजह से एनसीपी में आंतरिक गतिरोध के चलते टूट का खतरा मंडरा रहा था।
प्रचंड को सीनियर नेताओं का समर्थन भी था
प्रचंड ने ओली के इस्तीफे मांग तब और तेज कर दी थी, जब उन्हें पार्टी के सीनियर लीडर माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनल का समर्थन मिल गया था। सभी ओली से प्रधानमंत्री और पार्टी चेयर दोनों से इस्तीफा मांग रहे थे। स्टैंडिंग कमेटी के 44 में से 30 सदस्यों ने भी ओली के इस्तीफे की मांग की थी।
दो दिन के लिए टली स्टैंडिंग कमेटी की बैठक
वहीं एनसीपी की रविवार को होने वाली स्टैंडिंग कमेटी की बैठक ने सातवीं बार टालनी पड़ी। एनसीपी के केंद्रीय कार्यालय की ओर से जारी बयान में बताया गया कि रविवार को दोपहर 3 बजे होने वाली स्टैंडिंग कमेटी की बैठक को मंगलवार सुबह 11 बजे तक के लिए टाल टाल दिया गया है।
ओली से इसलिए नाराजगी
पार्टी नेता कई मुद्दों पर ओली से नाराज हैं। प्रधानमंत्री कोविड-19 से निपटने में नाकाम साबित हुए। भष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई नहीं की। एक बेहद अहम मुद्दा भारत से जुड़ा है। पार्टी नेता मानते हैं कि सीमा विवाद पर उन्होंने भारत से बातचीत नहीं की। वैसे भी ओली पार्टी के तीनों प्लेफॉर्म्स पर कमजोर हैं। सेक्रेटेरिएट, स्टैंडिंग कमेटी और सेंट्रल कमेटी में उनको समर्थन नहीं हैं। पार्टी के नियमों के मुताबिक, अगर इन तीन प्लेटफॉर्म पर नेता कमजोर होता है तो उसका जाना तय है।
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