Monday, November 16, 2020

ओबामा ने किताब में लिखा- सोनिया ने मनमोहन को इसलिए चुना क्योंकि वे राहुल के लिए खतरा नहीं थे November 16, 2020 at 08:11PM

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की किताब ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ एक हफ्ते में दूसरी बार चर्चा में है। किताब के एक हिस्से में सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी का जिक्र है। ओबामा के मुताबिक, सोनिया ने मनमोहन सिंह को इसलिए प्रधानमंत्री बनाया, क्योंकि वो चाहती थीं कि राहुल गांधी के लिए भविष्य में कोई चुनौती खड़ी न हो सके।

चार दिन पहले इसी किताब (संस्मरण) का एक और हिस्सा सामने आया था। इसमें ओबामा ने कहा था- राहुल उस स्टूडेंट की तरह हैं, जो टीचर को इम्प्रेस करने के लिए तो उत्सुक (ईगर) है, लेकिन सब्जेक्ट का मास्टर होने के मामले में योग्यता या जुनून की कमी है। यह राहुल की कमजोरी है।

भारत का आर्थिक विकास
ओबामा के मुताबिक, 1990 के दशक में भारत मार्केट बेस्ड इकोनॉमी था। मिडिल क्लास तेजी से ग्रोथ कर रहा था। इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अहम योगदान था। उन्होंने लोगों के जीवनस्तर को सुधारने के लिए काफी मेहनत और कोशिश की। उनके बारे में कहा जाता है कि वे भ्रष्ट नहीं थे।

ओबामा के मुताबिक, 26/11 के मुंबई हमले के बाद मनमोहन पर पाकिस्तान के खिलाफ हमले का दबाव था। उन्होंने ऐसा नहीं किया। लेकिन, इसका उन्हें सियासी तौर खामियाजा भुगतना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी मजबूत होती गई। ओबामा के मुताबिक, भारत की राजनीति पर अब भी धर्म और जाति हावी हैं। लेकिन, ये कहना सही नहीं होगा कि इसी वजह से मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया। इसके पीछे वजह कुछ और थी।

सोनिया की मंशा पर सवाल
ओबामा लिखते हैं- कई सियासी जानकार मानते हैं कि सोनिया ने मनमोहन को बहुत सोच समझकर पीएम बनाया। सिंह का कोई पॉलिटिकल बेस भी नहीं था। सच्चाई कुछ और है। दरअसल, सोनिया नहीं चाहती थीं कि उनके 40 साल के पुत्र राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य को कोई खतरा हो। वे राहुल को कांग्रेस की कमान सौंपने के लिए भी तैयार कर रही थीं।

उस डिनर की बात...
ओबामा ने एक डिनर का भी जिक्र किया है। यह ओबामा के सम्मान में मनमोहन सिंह ने होस्ट किया था। सोनिया और राहुल इसमें शामिल हुए थे। ओबामा लिखते हैं- सोनिया बोलने से ज्यादा सुनना पसंद कर रही थीं। जैसे ही पॉलिसी मैटर की तरफ बात होती तो वो बातचीत का रुख अपने बेटे राहुल की तरफ मोड़ देतीं। अब मेरे सामने साफ हो गया था कि सोनिया इंटेलिजेंट हैं और इसे जाहिर भी कर देती हैं। राहुल स्मार्ट और जोशीले दिखे। उन्होंने मेरे 2008 के इलेक्शन कैम्पेन के बारे में भी सवाल किए।

ओबामा आगे लिखते हैं- मैं नहीं जानता था कि पद से हटने के बाद मनमोहन सिंह के साथ क्या होगा। क्या वे सत्ता राहुल को सौंप देंगे। यानी वही करेंगे जो राहुल के लिए सोनिया ने सोच रखा है। या कांग्रेस के दबदबे को भाजपा चुनौती देगी।



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फोटो 2010 की है। तब दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बराक और मिशेल ओबामा के लिए डिनर होस्ट किया था। इसमें मनमोहन की पत्नी गुरशरण कौर, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी शामिल हुए थे।

Donald Trump campaign drops key request in Pennsylvania lawsuit November 16, 2020 at 06:35PM

Under pressure to recognize Israel, says Imran November 16, 2020 at 06:35PM

वर्चुअल समिट में आज आमने-सामने होंगे मोदी और जिनपिंग, सीमा विवाद के बाद दूसरी बार एक मंच पर दोनों नेता November 16, 2020 at 06:26PM

आज 12वीं ब्रिक्स समिट का आयोजन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन करने जा रहे हैं। इस वर्चुअल समिट में नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी हिस्सा लेंगे। समिट के दौरान ब्रिक्स देशों के भी आपसी सहयोग के मुद्दों पर चर्चा होगी। इनमें कोविड-19 से निपटने के उपाय, काउंटर टेरेरिज्म, ट्रेड और हेल्थ शामिल हैं।

द्विपक्षीय विवादित मुद्दे नहीं उठाए जा सकेंगे
समिट के पहले रूस ने साफ कर दिया है कि इस मंच का इस्तेमाल द्विपक्षीय विवादित उठाने के लिए नहीं किया जा सकेगा। भारत और चीन दोनों को ब्रिक्स से फायदा हुआ है। माना जा रहा है कि मोदी आतंकवाद के मुद्दे पर फोकस करेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री टेरर फाइनेंसिंग और ड्रग ट्रैफिकिंग का जिक्र भी कर सकते हैं। मोदी ने ब्राजील में हुई 11वीं समिट में साफ तौर पर कहा था विकास की राह में सबसे बड़ा रोढ़ा आतंकवाद है।

दूसरी बार आमने-सामने
भारत और चीन के बीच लद्दाख में मई से जारी तनाव के बाद यह सिर्फ दूसरा मौका होगा जब मोदी और जिनपिंग आमने-सामने होंगे। पिछले हफ्ते एससीओ मीटिंग में जिनपिंग के अलावा पाकिस्तान के पीएम इमरान खान भी शामिल हुए थे। तब मोदी ने एक दूसरे की संप्रभुता और अखंडता के सम्मान का संदेश दिया था।
13वीं ब्रिक्स समिट का आयोजन भारत करेगा। ब्रिक्स के बाद मोदी और जिनपिंग की अगली मुलाकात जी-20 समिट में हो सकती है। यह समिट अगले हफ्ते होगी।



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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आज ब्रिक्स समिट में आमने-सामने होंगे। यह वर्चुअल समिट होगी। इसमें द्विपक्षीय मुद्दे नहीं उठाए जा सकेंगे। (फाइल)

Trump asked for options for attacking Iran last week, but held off -source November 16, 2020 at 05:24PM

Trump made the request during an Oval Office meeting on Thursday with his top national security aides, including Vice President Mike Pence, Secretary of State Mike Pompeo, new acting Defense Secretary Christopher Miller and General Mark Milley, chairman of the Joint Chiefs of Staff, the official said.

New vaccine breakthrough lifts global hope against pandemic November 16, 2020 at 05:15PM

Global hopes of vanquishing the coronavirus pandemic were boosted Monday after a vaccine was found to be nearly 95 percent effective in a trial, bringing much-needed optimism amid surging infections and grueling new restrictions.

Hate crimes in US reach highest level in more than a decade November 16, 2020 at 05:12PM

There were 7,314 hate crimes last year, up from 7,120 the year before - and approaching the 7,783 of 2008. The FBI's annual report defines hate crimes as those motivated by bias based on a person's race, religion or sexual orientation, among other categories.

Pfizer to start Covid immunization pilot program in 4 US states November 16, 2020 at 04:58PM

The four states – Rhode Island, Texas, New Mexico, and Tennessee – were selected for the program because of their differences in overall size, diversity of populations and immunization infrastructure, the drugmaker said in a statement.

Moderna’s Covid vaccine: What you need to know November 16, 2020 at 04:54PM

'More people may die': Biden urges Trump to aid transition November 16, 2020 at 04:16PM

"More people may die if we don't coordinate," Biden told reporters during a news conference in Wilmington, Delaware. Biden and his aides - and a small but growing group of Republicans - have emphasized the importance of being briefed on White House efforts to control the pandemic and distribute prospective vaccines.

अमेरिका में सिर्फ 6 दिन में 10 लाख केस, पहले 10 लाख केस आने में 100 दिन लगे थे November 16, 2020 at 04:28PM

दुनिया में कोरोना मरीजों का आंकड़ा शुक्रवार सुबह 5.53 करोड़ के पार हो गया। 3 करोड़ 84 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक 13 लाख 31 हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिका में कोरोना से हर रोज एक लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इस बीच, प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने मॉडर्ना कंपनी की वैक्सीन के दावे पर तो खुशी जताई, लेकिन साथ ही कहा कि देश में कोरोना से और लोगों की मौत हो सकती है।

अमेरिका में सिर्फ 6 दिन में 10 लाख केस
अमेरिका में संक्रमितों का आंकड़ा रविवार को एक करोड़ 10 लाख से ज्यादा हो गया। आखिरी 10 लाख केस तो महज 6 दिन में सामने आए। जबकि, पहले 10 लाख केस 100 दिन में सामने आए थे। एक करोड़ से एक करोड़ 10 लाख मामले होने में एक हफ्ते से भी कम वक्त लगा। इतना ही नहीं, हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

राज्य सरकारें भी अब सख्ती कर रही हैं। नॉर्थ डकोटा में मास्क पहनना मेंडेटरी यानी जरूरी कर दिया गया है। मिशिगन में कॉलेज, हाईस्कूल और ऑफिसों को तीन हफ्ते के लिए बंद कर दिया गया है। वॉशिंगटन में दूसरों के घरों में जाने पर रोक लगा दी गई है। रेस्टोरेंट्स और बार भी बंद रहेंगे। व्हाइट हाउस के कोरोनावायरस एडवाइजर स्कॉट एटलस ने लोगों से गाइडलाइन्स का पालन करने को कहा है।

कोरोना प्रभावित टॉप-10 देशों में हालात

देश

संक्रमित मौतें ठीक हुए
अमेरिका 11,538,057 252,651 7,019,304
भारत 8,874,172 130,559 8,288,169
ब्राजील 5,876,740 166,067 5,322,406
फ्रांस 1,991,233 45,054 140,880
रूस 1,948,603 33,489 1,453,849
स्पेन 1,521,899 41,253 उपलब्ध नहीं
यूके 1,390,681 52,147 उपलब्ध नहीं
अर्जेंटीना 1,318,384 35,727 1,140,196
इटली 1,205,881 45,733 442,364
कोलंबिया 1,205,217 34,223 1,111,867

ट्रम्प नहीं कर रहे सहयोग
प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने कहा है कि अमेरिका में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बढ़ सकता है। द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडेन और ट्रम्प के बीच चुनाव खत्म होने के बावजूद इस मुद्दे पर मतभेद जारी हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाइडेन ने कहा- वैक्सीन के बारे में हमें जो जानकारी मिली है, वो बहुत अच्छी खबर है। लेकिन, हम सावधानी से आगे बढ़ेंगे। हम ध्यान रखना होगा कि वायरस अब भी खतरनाक है और इससे कई लोगों की मौत हो सकती है। खासकर यह सर्दियां खतरनाक साबित हो सकती हैं। बाइडेन के कैम्प ने संकेत दिए कि ट्रम्प अब भी यही कह रहे हैं कि चुनाव में धांधली हुई। वे साफ तौर पर हारने के बाद भी इसे मानने को तैयार नहीं हैं।

जर्मनी में दिक्कत
जर्मनी में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां चांसलर एंजेला मर्केल की सरकार सॉफ्ट लॉकडाउन पर विचार कर रही है। लेकिन, इसके लिए राज्य सरकारें तैयार नहीं हैं। जर्मनी में कुल 16 राज्य हैं और ये लॉकडाउन के मुद्दे पर केंद्र के फैसले का विरोध करने पर उतारू हैं। आज मर्केल और इन राज्यों के प्रमुखों की अहम मीटिंग होने जा रही है। चांसलर चाहती हैं कि लोग सिर्फ जरूरी सामान के लिए घर से निकलें। लेकिन, राज्यों का कहना है कि इससे अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी जो पहले ही गहरे दबाव में है।

बर्लिन में एक मेट्रो स्टेशन पर मास्क लगाए यात्री। जर्मन सरकार देश में सॉफ्ट लॉकडाउन लगाने पर विचार कर रही है, लेकिन राज्य सरकारें इसका विरोध कर रही हैं।

मॉडर्ना मांगेगी मंजूरी
अमेरिका की बॉयोटेक कंपनी मॉडर्ना ने सोमवार को कोविड-19 वैक्सीन का ऐलान किया। कंपनी का दावा है कि यह वैक्सीन कोरोना के मरीजों को बचाने में 94.5% तक असरदार है। यह दावा लास्ट स्टेज क्लिनिकल ट्रायल के नतीजों के आधार पर किया गया है। खास बात यह है कि यह वैक्सीन 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में 30 दिन तक सुरक्षित रह सकती है। कंपनी ने बताया कि फेज-3 के ट्रायल में अमेरिका में 30,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया। इनमें 65 से ज्यादा हाई रिस्क कंडीशन वाले और अलग-अलग समुदायों से थे। कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव स्टीफन बैंसेल ने इस कामयाबी को वैक्सीन के डेवलपमेंट में एक अहम पल करार दिया। इस पर कंपनी जनवरी की शुरुआत से काम कर रही थी। कंपनी ने कहा है कि वो जल्द ही इस वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मांगेगी।

साउथ कोरिया में तीसरी लहर
दक्षिण कोरिया की हेल्थ मिनिस्ट्री ने माना है कि देश में संक्रमण की तीसरी लहर सामने आ चुकी है। लगातार आठवें दिन यहां 200 से ज्यादा मामले सामने आए। मिनिस्ट्री द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि शनिवार को कुल 208 केस सामने आए। सरकार ने एक बार फिर संकेत दिए हैं कि वो तीसरी लहर को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएगी। जनवरी से मार्च के बीच यहां पहली लहर थी। जून से अगस्त के बीच दूसरी और अब तीसरी लहर है। हालांकि, हेल्थ मिनिस्ट्री ने ये भी कहा है कि संक्रमण की मुख्य वजह विदेश से आने वाले लोग हैं। शनिवार को दर्ज किए गए 208 में से 176 मामले इम्पोर्टेड बताए गए हैं।

सियोल में एक बार फिर सरकार सख्त उपाय लागू कर रही है। यहां फिलहाल उन रेस्टोरेंट्स और बार पर कार्रवाई कर रही है, जो रात 9 बजे के बाद भी खुले रहते हैं। ऐसे कई रेस्टोरेंट्स और बार को बंद कर दिया गया है।


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सोमवार को डेलावेयर के विलिमिंग्टन में मीडिया से बातचीत करते यूएस प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन। बाइडेन ने चेतावनी दी कि अगर सख्त उपाय नहीं किए गए तो अमेरिका में मौतों की संख्या काफी ज्यादा हो सकती है।

खेलों से कमाई बंद हुई तो ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट सहित टीम के 20 खिलाड़ी बन गए डिलीवरी बॉय November 16, 2020 at 02:45PM

कोविड-19 महामारी ने दुनिया के हर व्यक्ति के जीवन को प्रभावित किया है। इनमें इंजीनियर, आईटी प्रोफेशनल, सरकारी और निजी कर्मचारी तो हैं ही, ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी भी शामिल हैं। हालात इतने खराब हैं कि पोलैंड में वेनेजुएला तलवारबाजी टीम के 20 सदस्य डिलीवरी ब्वॉय बन गए हैं। यही हाल नीदरलैंड के एक क्रिकेटर का भी है।

35 साल के रूबेन लिमार्डो वेनेजुअला की नेशनल फेंसिंग (तलवारबाजी) टीम के सदस्य हैं। लेकिन फिलहाल पोलैंड में अपने गृहनगर लोज में साइकिल से फूड डिलीवरी कर रहे हैं। वे अकेले नहीं हैं, बल्कि उनकी टीम के 20 खिलाड़ी भी यही काम कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने अपने इस नए जॉब के बारे में सबको बताया। उन्होंने कहा-’अब हम सभी डिलीवरी राइडर हैं।

आप अपने ढंग से कमा सकते हैं और ये काम भी दूसरे कामों जैसा ही है।’ 8 साल पहले उन्होंने लंदन ओलंपिक में अपने देश के लिए गोल्ड मेडल जीता था। तब वह वेनेजुअला के लिए बीते 44 सालों में ओलंपिक मेडल जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी थे। लेकिन कोविड महामारी ने सब बदल दिया।

रूबेन बताते हैं ‘हमें वेनेजुअला से काफी कम पैसे मिले, क्योंकि वहां हालात खराब हैं। और महामारी ने सबकुछ बदल दिया। अब कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। टोक्यो ओलंपिक भी एक साल के लिए टल गया और प्रायोजकों का कहना है कि वे अगले साल खेल शुरू करेंगे। ऐसे में हमें इस तरह अपनी आजीविका चला रहे हैं।’ रूबेन के मुताबिक, काम से फ्री होने के बाद वे और बाकी खिलाड़ी प्रैक्टिस भी कर रहे हैं।

क्रिकेट खेलना था, खाना पहुंचा रहा हूं : पॉल वैन मिकेन

यही हाल नीदरलैंड के क्रिकेटर पॉल वैन मिकेन का है, जो कोविड के चलते क्रिकेट ठप होने के बाद आजीविका के लिए अब फूड डिलीवरी ब्वॉय बन गए हैं। 27 साल के पॉल बॉलर हैं और उन्होंने आखिरी मैच जून 2019 में जिम्बाव्वे के खिलाफ खेला था। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने हालात पर दुख जताते हुए लिखा है- ‘इस वक्त क्रिकेट खेला जाना था, लेकिन मैं इन सर्दियों में लोगों के घर खाने के पैकेट पहुंचा रहा हूं।

चीजें जब ऐसे बदलती हैं तो मजाक लगता है। हा हा हा... हंसते रहो साथियो।’ पॉल ने लॉकडाउन में ही यह काम शुरू किया है। हालांकि टी-20 वर्ल्ड कप स्थगित किए जाने से वे काफी निराश हैं, लेकिन उन्हें अभी भी उम्मीद है कि हालात बदलेंगे तो वे खेल में वापसी कर सकेंगे।



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वेनेजुएला के तलवारबाज रूबेन लिमार्डो।

2500 साल पुराने 100 ताबूत मिले, इनमें से कई अभी भी सुरक्षित November 16, 2020 at 02:45PM

पिरामिडों के देश मिस्र में करीब 2500 साल पुराने 100 ताबूत मिले हैं। लकड़ी के बने इन ताबूतों को बहुत खूबसूरत तरीके से विभिन्न रंगों से चित्र बनाकर सजाया गया है। इन ताबूतों को देखकर पुरातत्वविद आश्चर्यचकित हैं, क्योंकि कई ताबूतों के अंदर रखी ममी बेहद सुरक्षित अवस्था में मिली हैं।

पुरात्वविदों ने बताया कि इन 100 ताबूतों में से कई को करीब 2500 साल पहले सक्कारा में दफनाया गया था, जो उस समय एक विशाल कब्रिस्तान का काम करता था।

ममी को कपड़ों से लपेटा गया था

यह कब्रिस्तान राजधानी काहिरा से 30 किमी दूर स्थित है। इन ताबूतों की कई पुरातत्वविदों ने प्रशंसा की है। उनका कहना है कि 2500 साल बीत जाने के बाद भी ताबूतों के अंदर रखे ममी अभी भी सुरक्षित हैं। शनिवार को अधिकारियों ने जनता के सामने इन 2500 साल पुराने ताबूतों को खोला था। इनके अंदर रखी ममी को परंपरागत तरीके से कपड़ों से लपेटा गया था। मिस्र के पर्यटन मंत्रालय ने कहा कि शुरू में दफनाने के तीन गड्ढे मिले थे जिसमें से 13 ताबूत निकाले गए थे।

इसके बाद 14 ताबूत और मिले थे। अभी हाल ही में 100 ताबूत और मिले हैं। इसके अलावा 40 मूर्तियां मिली हैं। पुरातत्वविदों के मुताबिक, ये ताबूत प्राचीन मिस्र के प्टोलेमैक काल के शीर्ष अधिकारियों के हैं। उन्होंने कहा कि इन ताबूतों को तीन स्थानों से करीब 40 फुट की गहराई से निकाला गया है।



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ये फोटो ताबूत से निकले ममी की है। हजारों साल बाद आज भी ये बेहद सुरक्षित है।

इंग्लैंड में एक माह पहले ही क्रिसमस सेलिब्रेशन; अमेरिका में शील्ड और मास्क लगाकर बैठ रहे सांता November 16, 2020 at 02:45PM

क्रिसमस का सेलिब्रेशन 25 दिसंबर से एक हफ्ते पहले शुरू होता है। पर यह सेलिब्रेशन इंग्लैंड समेत दुनिया में एक माह पहले ही शुरू हो गया है। दरअसल, इंग्लैंड में 2 दिसंबर तक लॉकडाउन लागू है। गैर-आवश्यक वस्तुओं की दुकानें, रेस्त्रां, पब और होटल बंद हैं। यात्रा पर भी प्रतिबंध हैं। लोगों का मानना है कि जिस तरह मरीज बढ़ रहे हैं, उस तरह फिर से लॉकडाउन लग सकता है। इसलिए इंग्लैंड के कैंब्रिजशायर के लोगों ने अपने घर सजा लिए हैं। सेलिब्रेशन कोरोना काल और लॉकडाउन में चेहरों पर मुस्कान लाने की पहल है।

इंग्लैंड के कैंब्रिजशायर के लोगों ने अपने घर सजा लिए हैं।

अमेरिका: शील्ड और मास्क लगाकर बैठ रहे सांता

अमेरिका के मॉल्स में सांता क्लॉज शील्ड और मास्क लगाकर बैठ रहे हैं। बच्चे उनकी गोद में न बैठें इसलिए उनके सामने कांच की शील्ड लगाई गई हैं। सांता गिफ्ट देने से पहले टेंप्रेचर चेक कर रहे हैं।

ताइवान: डेढ़ महीने पहले सजी मेपल लीफ टनल

तस्वीर ताइवान में ताइपे स्थित मेपल लीफ टनल की है, जो क्रिसमस के मद्देनजर डेढ़ माह पहले सजा दी गई है। रविवार को यहां प्री क्रिसमस जश्न मनाया गया। इसमें ढाई हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए।



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तस्वीर ताइवान में ताइपे स्थित मेपल लीफ टनल की है, जो क्रिसमस के मद्देनजर डेढ़ माह पहले सजा दी गई है। रविवार को यहां प्री क्रिसमस जश्न मनाया गया। इसमें ढाई हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए।

अजरबैजान ने 3-T यानी टेक्नोलॉजी, टैक्टिक्स और तुर्की के दम पर आर्मेनिया से युद्ध जीता; 43 दिन तक चली लड़ाई खत्म November 16, 2020 at 02:44PM

अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच करीब 30 साल से चला आ रहा युद्ध अजरबैजान की जीत के साथ ही खत्म हो गया। अजरबैजान ने आर्मेनियाई सेना को तबाह कर विवादित इलाके नागर्नो-कराबाख पर कब्जा कर लिया है और इलाके का अब आर्मेनिया से संपर्क पूरी तरह टूट चुका है। लेकिन इस जीत के पीछे जो वजहें रहीं, उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। अजरबैजान ने थ्री-T यानी टेक्नोलॉजी, टैक्टिक यानी रणनीति और तुर्की के दम पर जीत हासिल की।

अजरबैजान की जीत की वजह क्या रही?
अजरबैजान ने 3-T यानी टेक्नोलॉजी, टैक्टिक और तुर्की के दम पर जीत हासिल की। उसने तुर्की के बैराक्तर टीबी-2 और इजरायल के कामिकेज ड्रोन का इस्तेमाल किया। वहीं आर्मेनिया टैंक, आर्टिलरी, रडार और एयर डिफेंस सिस्टम के भरोसे रहा।
युद्ध में किसे ज्यादा नुकसान हुआ?
ज्यादा नुकसान आर्मेनिया को हुआ। उसके 185 टैंक, 44 इन्फेंट्री फाइटिंग व्हीकल्स, 147 टो आर्टिलरी गन, 19 सेल्फ-प्रोपेल्ड आर्टिलरी, 72 मल्टीबैरल रॉकेट लॉन्चर्स और 12 रडार तबाह हुए।

कहां जा रहा है कि युद्ध में ड्रोन निर्णायक साबित हुए?
आर्मेनियाई पीएम पाशिन्यान ने भी कहा कि हमारे पास ड्रोन हमलों का कोई जवाब नहीं था। दरअसल, ये ड्रोन तापमान, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल के जरिए टारगेट का पता लगा लेते हैं। बैराक्तर और अंका-एस ड्रोन 4 मिसाइल, 15-55 किलो के बम ले जा सकते हैं। लेजर गाइडेड मिसाइल दाग सकते हैं। सीरिया में तुर्की ने रूस के एस-300, एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम तबाह कर दिया था।
अजरबैजान की टैक्टिक यानी रणनीति भी काफी असरदार रही?
बिल्कुल, अजरबैजान ने चालाकी से रणनीति बनाई। उन्होंने 1940 में बने सिंगल प्रोपेलर इंजन वाले विमान को ड्रोन में तब्दील किया और आर्मेनिया के गढ़ में भेजा। उसे देख आर्मेनिया ने मिसाइल डिफेंस सिस्टम और अन्य हथियार सक्रिय कर दिए। इससे उनकी स्थिति का खुलासा हुआ और अजरबैजान ने ड्रोन के जरिए घेरकर सब तबाह कर दिया। इससे आर्मेनिया कमजोर पड़ गया।
तीसरे टी यानी तुर्की की क्या भूमिका रही?
तुर्की के पीएम ने कहा था कि अजरबैजान की जीत तक उसका साथ देंगे। तुर्की ने उसे टेक्नोलॉजी और ड्रोन उपलब्ध करवाए, जो निर्णायक साबित हुए। तुर्की इनका इस्तेमाल पहले सीरिया और लीबिया में कर चुका है।



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बैराक्तर और अंका-एस ड्रोन 4 मिसाइल, 15-55 किलो के बम ले जा सकते हैं। लेजर गाइडेड मिसाइल दाग सकते हैं।

गिलगित-बाल्टिस्तान चुनाव में किसी को बहुमत नहीं, इमरान की पार्टी ने 8 सीटें जीतीं November 16, 2020 at 02:44PM

भारत के विरोध के बावजूद POK के गिलगित-बाल्टिस्तान में इमरान सरकार द्वारा कराए जा रहे चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। वहां विधानसभा की 24 में से 23 सीटों पर हुए चुनाव में 9 पर इमरान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) जीत चुकी है या उन पर आगे चल रही है।

जिओ टीवी के मुताबिक PTI ने 8, निर्दलीयों को 6 और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) को 5, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) को 2, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (JIU-F) और मजलिस वहदतुल मुस्लमीन (MWM) को एक-एक सीट मिली। चुनाव में चार महिलाओं समेत कुल 330 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। मतदान खत्म होने से पहले PPP और PML-N ने PTI को फायदा पहुंचाने के लिए चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया है।

2010 में PPP ने 15, जबकि 2015 में PML-N को 16 सीटें मिली थीं
गिलगित- बाल्टिस्तान में ये तीसरा चुनाव है। वहां पहला चुनाव 2010 में कराया गया था। तब PPP 15 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। उसके बाद 2015 के चुनाव में PML-N को 16 सीटों पर जीत मिली थी। बता दें कि इस साल की शुरुआत में पाकिस्तान के हाईकोर्ट ने इमरान सरकार को 2018 के प्रशासनिक आदेश में संशोधन करने और क्षेत्र में आम चुनाव कराने की मंजूरी दी थी। भारत ने गिलगित-बाल्टिस्‍तान में चुनाव कराने के पाकिस्तान के कदम का विरोध किया है। भारत ने कहा कि सैन्य कब्जे वाले इस क्षेत्र की स्थिति को बदलने के लिए उठाए गए कदम का कोई कानूनी आधार नहीं है।
कार्टून विवाद में चरमपंथी TLP समर्थकों ने इस्लामाबाद को फिर घेरा
फ्रांस में शुरू हुए कार्टून विवाद को लेकर पाकिस्तान में चल रहा विरोध थमता नजर नहीं आ रहा है। कार्टून के खिलाफ सोमवार को चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के समर्थकों ने एक बार फिर राजधानी इस्लामाबाद को जाम करने की कोशिश की। रावलपिंडी में TLP प्रमुख मौलाना खादिम हुसैन रिजवी के नेतृत्व में विरोध मार्च निकाला गया। पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक TLP के 3 हजार से ज्यादा समर्थक रावलपिंडी से इस्लामाबाद के फैजाबाद पहुंचे जहां इलाके के बाहर ही पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर उन्हें रोक दिया।



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मतदान खत्म होने से पहले पीपीपी और पीएमएल-एन ने पीटीआई को फायदा पहुंचाने के लिए चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया है।

बाइडेन के सामने कई चुनौतियां, अगले 100 दिन तय करेंगे अमेरिका किस तरफ जाएगा November 16, 2020 at 02:38PM

अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने संकेत दिए हैं कि वे देश की खराब हो चुकी छवि को सुधारने के लिए तेजी से काम करेंगे। अमेरिका के डिप्लोमैट, इंटेलीजेंस और मिलिट्री सर्विस से जुड़े लोगों को सम्मान दिलाना उनकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है।

दूसरे देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों के लिए खासतौर से ज्यादा सधा हुआ और सहानुभूति भरा रवैया अपनाया जाए। अमेरिका में बदलाव का यह संदेश दुनिया की कई राजधानियों में सुनाई दे सकता है। यही संदेश बाइडेन ने वोटर्स को दिया था, जिसने उन्हें डोनाल्ड ट्रम्प पर निर्णायक जीत दिलाई थी। यह दुनिया में अमेरिका की असरदार वापसी का संकेत है।

दो मुद्दों पर ट्रम्प से बिल्कुल अलग राय रखते हैं बाइडेन

  • ऐसा बहुत कुछ है जो बाइडेन अपने शासन के पहले 100 दिनों में कर सकते हैं। वे जलवायु परिवर्तन पर किए गए पेरिस समझौते में दोबारा शामिल होने का इरादा पहले ही जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने साफ कर दिया है क्लाइमेट चेंज का मुद्दा उनके एडमिनिस्ट्रेशन के लिए सबसे अहम होगा।
  • उन्होंने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से अमेरिका के रिश्ते दोबारा बहाल करने के अपने इरादे का भी ऐलान कर दिया है। यह दिखाता है कि अमेरिका भी कोरोना वायरस से हो रहे विनाश को रोकने के लिए दुनिया के बाकी देशों के साथ शामिल हो जाएगा।

बाइडेन से उम्मीदें

बाइडेन से यह उम्मीद भी की जाती है कि वे लोकतांत्रिक देशों का एक शिखर सम्मेलन बुलाएं। इसमें चीन, रूस, सऊदी अरब या तुर्की, जहां भी मानवाधिकारों के हनन के मामले सामने आ रहे हैं, उन्हें उजागर करने के लिए अमेरिका को फिर से तैयार करें।

इसी के साथ वह ईरान के साथ परमाणु समझौते को दोबारा अमल में लाने के रास्ते तलाशें। परमाणु हथियारों को सीमित करने के लिए न्यू स्टार्ट संधि (स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) के लिए रूस को तैयार करें। उम्मीद है कि बाइडेन यमन के गृहयुद्ध में सऊदी अरब के दखल को अमेरिकी समर्थन खत्म कर देंगे।

सीनेट में रिपब्लिकंस के बहुमत से मुश्किल होगी

टीम बाइडेन की बातों से ऐसा लग रहा है जैसे वे देश की विदेश नीति के अनुभवी और पेशेवर लोगों को जिम्मेदारी सौंपेंगे। अगर ट्रम्प की रिपब्लिक पार्टी सीनेट में बहुमत बनाए रखती है, तो बाइडेन की ओर से की गई नियुक्तियों को उनकी मंजूरी की जरूरत होगी। इसमें रिपब्लिकंस अड़ंगा लगा सकते हैं।

इन मुद्दों पर ट्रम्प जैसे होंगे बाइडेन

डेमोक्रेट के बहुमत वाली सीनेट भी अमेरिकी नीतियों में बड़े नाटकीय बदलाव नहीं करेगी। बाइडेन चीन के साथ ट्रेड वॉर कम कर सकते हैं, लेकिन 5G नेटवर्क या दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों जैसे विवादास्पद मुद्दों पर मतभेद फिलहाल बने रहेंगे।

ट्रम्प सरकार की ओर से रूस पर लगाई गई पाबंदियां बाइडेन के राज में भी हटने की उम्मीद नहीं है। ट्रम्प के कार्यकाल में उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका के रुख में काफी बदलाव आया था। इजरायल-फिलिस्तीनी विवाद के प्रति भी ट्रम्प का नजरिया एकतरफा था। हालांकि, इन मुद्दों पर अमेरिका को इससे फर्क नहीं पड़ता कि व्हाइट हाउस में कौन है।

किसी नई जंग में उतरने से बचेंगे

इस बात की पूरी उम्मीद है कि बाइडेन विदेश में चल रहे युद्धों से हटने और किसी नई जंग में शामिल न होने की ट्रम्प की नीति जारी रखेंगे। हालांकि, वे इस तरह के फैसलों में अपने सहयोगियों की चिंताओं का ध्यान रखेंगे।

कारोबार के मसले पर बाइडेन निश्चित रूप से ट्रम्प के रास्ते पर नहीं चलेंगे। ट्रम्प ने कारोबारी शुल्क लगाते समय दोस्त और प्रतिद्वंद्वियों का भेद खत्म कर दिया था। यही वजह है कि अधिकतर नाटो सहयोगी और यूरोपीय संघ के सदस्य ट्रम्प के सत्ता से बाहर होने की खुशी मनाएंगे। इसके साथ ही अमेरिका इस बात पर जोर देता रहेगा कि नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) के उसके सहयोगी सुरक्षा में अपना उचित हिस्सा देना शुरू करेंगे।

बाइडेन की राह आसान नहीं

अब दुनिया वैसी नहीं है जैसी 2016 में थी। न ही यह उस स्थिति में वापस जा सकती है। उत्तर कोरिया के मसले को सुलझाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने और चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए नए नजरिए की जरूरत है।

इसके अलावा बाइडेन को ब्राजील में दक्षिणपंथी राष्ट्रपति और वेनेजुएला के तानाशाह को भी डील करना है। पाबंदियों को बनाए रखते हुए रूस के साथ परमाणु हथियारों में कमी लाने पर बातचीत करनी है। अपने कट्टर दुश्मन ईरान के साथ समझौते को फिर पटरी पर लाना है।

दोराहे पर खड़े हुए सहयोगी देश

यह समझा जा सकता है कि अमेरिका के सहयोगी देशों को इस बात पर शक है कि ट्रम्प का जाना वाकई बेहतर है। ट्रम्प सत्ता में रहने की चाह में गलत टिप्पणियां करते आए हैं, लेकिन उम्मीद है कि बाइडेन-हैरिस एडिमिनिस्ट्रेशन कम से कम पिछले चार साल के अस्थिर और बेकार की वजहों से चर्चा में रहे शासन को खत्म कर देगा।

अमेरिका की ताकत अपने लोकतंत्र, आजाद ख्याली और मूल्यों से हमेशा उतनी ही बढ़ी है, जितनी कि उसके युद्ध पोतों और ड्रोन से। बाइडेन ने संकेत दिया है कि वे अमेरिका को वैश्विक स्तर पर मजबूती से वापस लाने का इरादा रखते हैं। तमाम शक और डर के बावजूद अमेरिका के दोस्तों और सहयोगियों को इस मुहिम में शामिल होने के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए।



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प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन के सामने दूसरे देशों से संबंध सुधारने के अलावा अपने देश की समस्याएं सुलझाने की भी चुनौती है।

आत्मनिर्भर भारत के मंत्र ने रोकी दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेड डील में भारत की एंट्री! जानिए सबकुछ November 16, 2020 at 02:33PM

एशिया-पेसिफिक के 15 देशों ने 37वें ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस) समिट में 15 नवंबर को दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेड डील पर साइन किए हैं। इस डील में शामिल देशों का ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) 26 लाख करोड़ डॉलर यानी दुनियाभर की कुल GDP के 30% से ज्यादा है। भारत ने इस डील से बाहर रहने का फैसला किया है।

वियतनाम ने 10 दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की इस एसोसिएशन की सालाना समिट वर्चुअली की थी। इसी समिट में डील पर साइन किए गए। भारत के इस डील से बाहर रहने के फैसले के बाद बचे हुए 15 देशों ने रविवार को इसे अंतिम रूप दिया। डील में शामिल ज्यादातर देश चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं। इस डील को इस क्षेत्र में प्रभाव को बढ़ाने की चीन की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

RCEP क्या है?

  • रीजनल कॉम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) एक ऐसी ट्रेड डील है, जिसमें शामिल देश एक-दूसरे को मार्केट उपलब्ध कराएंगे। अपने-अपने देशों में इम्पोर्ट ड्यूटी को घटाकर 2014 के स्तर पर लाएंगे। सर्विस सेक्टर को खोलने के साथ ही सप्लाई और इन्वेस्टमेंट की प्रक्रिया और नियम सरल बनाएंगे।
  • इस डील पर बातचीत नवंबर 2012 में शुरू हुई थी। इस ट्रेड ग्रुप में 2.1 अरब लोग यानी दुनिया की करीब 30% आबादी शामिल है। डील में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी को लेकर भी कुछ नियम हैं, लेकिन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन और लेबर राइट्स का कोई जिक्र नहीं है।

RCEP में कौन-कौन से देश शामिल हैं?

  • इस डील में 10 आसियान सदस्य देश- ब्रुनेई दारुस्सलाम, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। साथ ही आसियान देशों के पांच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पार्टनर -ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, कोरिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। भारत का आसियान देशों के साथ FTA है और इस डील पर हुई शुरुआती बातचीत में वह शामिल रहा है। हालांकि, नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस डील में शामिल होने से इनकार किया।

RCEP के इतने फायदे हैं, तो भारत बाहर क्यों रह गया?

  • भारत ने RCEP से बाहर रहने का फैसला किया है तो इसकी वजह है- आत्मनिर्भर भारत अभियान। अगर भारत इस डील में शामिल रहता, तो उसके लिए अपने मार्केट में चीन के सस्ते सामान को आने से रोकना मुश्किल होता। इससे घरेलू उद्योगों को नुकसान होता। चीन से भारत का व्यापार घाटा 50 अरब डॉलर का है, जो और बढ़ जाता।
  • भारतीय दवा कंपनियां RCEP में शामिल होने के पक्ष में थीं, क्योंकि इससे उनके लिए चीन को जेनेरिक दवाइयां सप्लाई करना आसान हो जाता। हालांकि, डेयरी, एग्रीकल्चर, स्टील, प्लास्टिक, तांबा, एल्युमिनियम, मशीनों के कलपुर्जे, कागज, ऑटोमोबाइल्स, केमिकल्स और दूसरे सेक्टरों में नुकसान उठाना पड़ता।
  • इस डील की वजह से इम्पोर्टेड सामान पर इम्पोर्ट ड्यूटी 80% से 90% तक घटानी पड़ती। इसके अलावा सर्विस और इन्वेस्टमेंट नियमों को भी आसान बनाना होता। कुछ भारतीय उद्योगों को डर था कि अगर कस्टम ड्यूटी घटाई जाती, तो देश में इम्पोर्टेड सामान की बाढ़ आ जाती, खासकर चीन से।
  • भारत ने इस डील पर हुई बातचीत के दौरान मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) ऑब्लिगेशन के प्रावधान उपलब्ध न होने का मुद्दा उठाया था। इस डील के तहत RCEP देशों को भी भारत को वह दर्जा देना होता, जो उसने MFN देशों को दे रखा है। टैरिफ घटाने के लिए 2014 को बेस ईयर मानने पर भी भारत का विरोध था।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, भारत ने इस ट्रेड डील से बाहर रहने का फैसला सभी भारतीयों के जीवन और आजीविका पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखते हुए लिया है। खासकर समाज के वंचित तबके को ध्यान में रखते हुए। अधिकारियों के मुताबिक, भविष्य में डील में भारत के शामिल होने के रास्ते अब भी खुले हैं।

RCEP में शामिल न होकर भारत ने क्या गंवाया?

  • दवा कंपनियों के साथ-साथ कुछ सेक्टरों में भारत को RCEP डील में शामिल देशों में कारोबार करना आसान हो जाता। अब यह इतना आसान नहीं रहने वाला। अगर भारत इस डील में शामिल होता तो वह ब्लॉक में तीसरी बड़ी इकोनॉमी होता।
  • डील से बाहर रहने का मतलब है कि भारत को डील में शामिल देशों से नए इन्वेस्टमेंट में दिक्कत आ सकती है। इसी तरह भारतीयों को इन देशों से इम्पोर्टेड सामान पर ज्यादा कीमत चुकानी होगी। खासकर ऐसे माहौल में जब ग्लोबल ट्रेड, इन्वेस्टमेंट और सप्लाई चेन विकसित करने की कोशिशों को कोरोना ने नुकसान पहुंचाया है।

अब भारत के लिए किस तरह के अवसर बने हैं?

  • डील से बाहर रहने की वजह से भारत अब अपनी स्थानीय इंडस्ट्री को बढ़ावा दे सकेगा और आत्मनिर्भर भारत अभियान को साकार कर सकेगा। जो सामान इम्पोर्ट होते हैं, उनका प्रोडक्शन देश में बढ़ाने में मदद मिलेगी, जिससे इन देशों के साथ व्यापार घाटे को कम किया जा सकेगा।

चीन के लिए RCEP डील का क्या महत्व है?

  • अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रांस-पेसिफिक पार्टनरशिप (TPP) के तौर पर मल्टीनेशनल ट्रेड डील की घोषणा की थी, जिसमें चीन शामिल नहीं था। इस डील में अमेरिका और पेसिफिक रिम के 11 देश थे। इसके बाद ही RCEP को लेकर 2012 में बातचीत शुरू हुई।
  • अमेरिका में इस डील को लेकर सब लोग खुश नहीं थे। जब डोनाल्ड ट्रम्प प्रेसिडेंट बने तो उसने TPP को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उन्होंने एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं से कोऑपरेशन बढ़ाया और चीन पर हायर टैरिफ लगाए। ऐसे में चीन के पास सामान बेचने के लिए जगह कम हो रही थी और उसने RCEP के लिए प्रयास तेज किए।
  • इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि चीन के पास व्यापार घाटे में 1 लाख करोड़ डॉलर का सरप्लस है। वह अन्य देशों से सामान कम खरीदता है और उन्हें बेचता ज्यादा है। इस सरप्लस में आधा हिस्सा तो अमेरिका से होने वाले ट्रेड की वजह से था। अमेरिका चीन से जितना माल खरीदता है, उतना किसी दूसरे एशियाई देश से नहीं खरीदता।
  • ट्रम्प ने 2019 की पहली छमाही में चीन से ट्रेड वॉर शुरू की। चीन से अमेरिका को एक्सपोर्ट ओवरऑल 8.5% गिर गया। वहीं, दुनिया के अन्य देशों में सिर्फ 2.1% ही बढ़ा है। इसका नतीजा यह हुआ कि उसके यहां प्रोडक्शन सरप्लस की स्थिति बन गई। उसे अपना माल बेचने के लिए नया मार्केट ढूंढना जरूरी हो गया था।
  • चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के झिंजियांग क्षेत्र में अत्याचार बढ़ गए हैं, जिस पर यूरोपीय संघ (EU) की नजर है। ट्रम्प और EU ने पहले ही हिकविजन और हुवाई जैसी चीनी मिलिट्री-समर्थित टेक कंपनियों के साथ कारोबार करना बंद कर दिया है। जल्द ही EU भी अमेरिका की तर्ज पर चीन से ट्रेड रिश्तों की समीक्षा कर सकता है।
  • अमेरिकी प्रेसिडेंट-इलेक्ट जो बाइडेन ने भी चीन को लेकर पॉलिसी पर ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि हालात पहले जैसे हो जाएंगे। इससे चीन की बेचैनी बढ़ गई है और उसने RCEP को गति दी और अपने लिए नया मार्केट खड़ा किया है।


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Regional Cooperation of Economic Partnership or RCEP Deal: All You Need To Know; Why India Opts Out of RCEP Nations; Why RCEP Matters Most For China

No Covid on meat exports; checking Chinese claims: Jacinda Ardern November 16, 2020 at 02:01AM

New Zealand Prime Minister Jacinda Ardern said on Monday she was confident no meat products were exported from the country with Covid-19, after Chinese authorities said they had detected coronavirus on its frozen beef products.

Vaccine will not be enough to stop pandemic: WHO chief November 16, 2020 at 01:52AM

The head of the World Health Organization said Monday that a vaccine would not by itself stop the coronavirus pandemic. "A vaccine will complement the other tools we have, not replace them," director-general Tedros Adhanom Ghebreyesus said. "A vaccine on its own will not end the pandemic."

मीरा नायर के बेटे जोहरान बोले- किसी के घर का सपना न टूटे, यही मेरा मकसद November 15, 2020 at 11:36PM

2008 की बात है। 16 साल के युवक को न्यूयॉर्क के कैनेडी एयरपोर्ट पर अमेरिकी पुलिस ने रोक लिया और एक सुनसान कमरे में ले गई। सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से पुलिस ने उनसे पूछा कि क्या वो किसी आतंकी कैंप में गए थे और उनका इरादा अमेरिका पर आतंकी हमला करने का है। 13 साल गुजर जाने के बाद आज वही लड़का इस लायक बन गया है कि इसी न्यूयॉर्क का कानून बनाएगा।

हम बात कर रहे हैं जोहरान ममदानी की, जो मशहूर फिल्म डायरेक्टर मीरा नायर और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर महमूद ममदानी के बेटे हैं। एस्टोरिया सीट से चुने गए जोहरान न्यूयॉर्क असेंबली का चुनाव जीतने वाले पहले भारतीय हैं। वे 1999 से न्यूयॉर्क में रह रहे हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद जोहरान ने दैनिक भास्कर के साथ कुछ वक्त बिताया। जोहरान मुस्कुराते हुए कहते हैं कि भारत में विधायक बनने पर लंबी बंदूक ताने हुए चार सिपाही मिलते हैं। मैं यहां विधायक बना हूं, बगैर बंदूक ताने सिपाही के।’ जोहरान एक कुर्ता और जींस को भी ग्लैमरस बना देते हैं। चाहे वो अपनी मां मीरा नायर के साथ सेलिब्रिटी शो में जा रहे हों या अपनी असेंबली के लोगों के हक के लिए मार्च निकाल रहे हों। उनकी मुस्कान ट्रेडमार्क बन गई है।

डेमोक्रेटिक जोहरान बर्नी सैंडर्स की सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका से संबंध रखते हैं और उबरते हुए सोशलिस्ट लॉ मेकर्स बन गए हैं। उन्होंने एक एनजीओ के साथ हाउसिंग काउंसलर के तौर पर काम शुरू किया। इस दौरान सैकड़ों लोगों से मिले जो होम लोन चुकाने के बावजूद घर से निकलने की कगार पर थे, यही उनके चुनाव लड़ने का प्रमुख कारण बना। जोहरान बताते हैं कि इसी वजह से मैंने लड़ने का फैसला किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी के सपनों का घर न टूटे। इसलिए मैंने इलेक्शन कैंपेन में लोगों को घर दिलाने का वादा किया है। बढ़ते हाउसिंग रेंट पर अंकुश लगाना भी मेरी प्राथमिकता है।’ उनकी असेंबली एस्टोरिया में 14.2% एशियन अमेरिकन, 8.2% अश्वेत और 24.4% हिस्पैनिक हैं।

जोहरान कहते हैं, ‘मैं यहां बसे दक्षिण एशियाई लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देने के लिए संघर्ष करना चाहता हूं।’ वे कहते हैं, ‘दक्षिण एशियाई इस शहर की संस्कृति का बड़ा हिस्सा है, लेकिन इन्हें राजनीतिक रूप से मिटा दिया गया है। यहां 13.3 लाख भारतीय दमदार उपस्थिति रखते हैं।’ जोहरान ने अपने कैंपेन में टैक्सी ड्राइवर्स के कर्ज का मुद्दा उठाया, जो कोरोना की वजह से मुश्किलों में हैं।

जोहरान ने मेल और हाथ से लिखे पोस्टकार्ड 8 भाषाओं, हिंदी, नेपाली, तिब्बती, उर्दू, पंजाबी, बंगाली, अरेबिक और सर्बो-क्रोशियन भाषा में लोगों तक पहुंचाए। वे कहते हैं, ‘हमारे पूरे कैंपेन का विश्वास था कि यदि आप लोगों को मान-सम्मान देंगे तो वे वोट देने के लिए जरूर मोटिवेट होंगे।’ न्यूयॉर्क में 57,600 बेघर आबादी है। स्टेट असेंबली का सदस्य बनने के बाद जोहरान इस मुद्दे को निपटाना चाहते हैं। उनकी मंशा है कि हेल्थ केयर, चाइल्ड केयर और लोगों को शक्ति के अधिकार मिले।

जोहरान कहते हैं, ‘उन्हें उम्मीद है कि उनका इलेक्शन कैंपेन उन साउथ एशियन उम्मीदवारों के लिए ब्लू प्रिंट साबित हो सकता है, जो भविष्य में चुनाव लड़ सकते हैं। साथ ही उन लोगों के लिए जो अपने पड़ोस के साथ-साथ देश के लोगों के लिए न्याय में विश्वास रखते हैं।’



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अपनी असेंबली के पार्क में लोगों से बात करते हुए जोहरान।

Britain 'has choices to make' on new trade deal: EU diplomats November 16, 2020 at 12:43AM

Britain "has choices to make" if it wants a new trade deal with the European Union, three EU diplomatic sources said on Monday, adding that Brexit negotiators had yet to come up with mutually acceptable solutions for the three most contentious issues.

China's ballistic missiles and uncertainty at sea November 15, 2020 at 11:02PM

Pakistan's capital blocked off over anti-France protest November 15, 2020 at 11:09PM

A rally in the neighbouring city of Rawalpindi which attracted up to 5,000 people on Sunday spilled over into Monday, with around a thousand protesters gathered at the roadblock preventing them from entering the capital.