Wednesday, May 20, 2020

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल के लिए हो, सभी देश इसके साइड इफेक्ट का आकलन करें May 20, 2020 at 04:59PM

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के इमरजेंसी प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. माइक रेयान ने कहा कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल के लिए होना चाहिए। उन्होंने बुधवार को कहा कि मौजूदा समय में इन दोनों दवाओं को कई बीमारी के लिए लाइसेंस मिला है। यह कोरोना का असर करने में भी असरदार साबित हुई हैं। वहीं, इसके साइड इफेक्ट्स को लेकर भी चेतावनी दी गई है। ऐसे में इसका इस्तेमाल सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल के लिए होना चाहिए।
डा. रेयान ने कहा कि साइड इफेक्ट को देखते हुए कई देशों ने इन दवाओं का इस्तेमाल सिमित कर दिया है। इसे मेडिकल विशेषज्ञों की निगरानी में सिर्फ कोरोना के लिए बनाए गए अस्पतालों में इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, यह हर देश के ऑथरिटी का काम है कि इन दवाओं का इस्तेमाल करने या ना करने के सबूतों का आकलन करे।

कम कमाई वाले देशों में संक्रमण फैलना चिंता की बात: डब्ल्यूएचओ
डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेडरोस गेब्रियेसस ने कहा कि दुनिया में अब भी कोरोना के मामले काफी संख्या में सामने आ रहे हैं। इससे निपटने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा। उन्होंने खास तौर पर कम और मध्यम कमाई वाले देशों में इसके फैलने पर चिंता जाहिर की। उन्होंने बुधवार को कहा कि पिछले 24 घंटे में 1 लाख 6 हजार नए मामले सामने आए हैं। यह दुनिया में एक दिन में सामने आए सबसे ज्यादा मामले हैं। इनमें से करीब दो तिहाई मामले सिर्फ चार देशों से सामने आए हैं।
संक्रमण का दूसरा दौरा शुरू होने की संभावना
डब्ल्यूएचओ की रूस की प्रवक्ता मेलिटा वुजनोविक ने कहा कि अब भी कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर शुरू होने की संभावना है। उन्होंने बुधवार को रूस के एक चैनल से बात करते हुए कहा कि कोरोना का खतरा बरकरार है। लोगों के लिए यह समझना जरूरी है। जहां भी इस महामारी की पहली लहर आई है वहां पर दोबारा इसके फैलने की आशंका है। उन्होंने रूस में कोरोना से जुड़ी पाबंदियों पर राहत देने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि लोगों को सावधान रहने की जरूरत है।



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डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. माइक रेयान ने कहा है कि हाइ्रडोक्सीक्लोरोक्वीन या क्लोरोक्वीन दवा को सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल में इस्तेमाल किया जाए। दुनिया के सभी देश इसके साइड इफेक्ट्स का आकलन करें। (फाइल फोटो)

अब तक 50.85 लाख संक्रमित और 3.29 लाख मौतें: डब्ल्यूएचओ ने कहा- 24 घंटे में 1.6 लाख नए मामले सामने आए May 20, 2020 at 04:09PM

दुनिया में अब तक 50 लाख 85 हजार 66 लोग संक्रमित हैं। 20 लाख 21 हजार 843 ठीक हुए हैं। मौतों का आंकड़ा 3 लाख 29 हजार 721 हो गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 24 घंटे में संक्रमण के 1 लाख 6 हजार मामले दर्ज किए गए हैं। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडहोनम गेब्रियेसियस ने चेतावनी दी है कि महामारी अभी लंबे समय तक हमारे बीच रहने वालाहै।

टेड्रोस ने कम और मध्यम आय वाले देशों में इस संक्रमण के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है। साथ ही कहा कि दुनियाभर में जितने लोग प्रभावित हैं, इससे कहीं ज्यादा संक्रमित हैं। क्योंकि बहुत सारी जांच की रिपोर्ट अभी आई नहीं है।

कोरोनावायरस : 10 सबसे ज्यादा प्रभावित देश

देश

कितने संक्रमित कितनी मौतें कितने ठीक हुए
अमेरिका 15,91,991 94,994 3,70,076
रूस 3,08,705 2,972 85,392
ब्राजील 2,93,357 18,894 1,16,683
स्पेन 2,79,524 27,888 1,96,958
ब्रिटेन 2,48,293 35,704 उपलब्ध नहीं
इटली 2,27,364 32,320 1,32,282
फ्रांस 1,81,575 28,132 63,354
जर्मनी 1,78,531 8,270 1,56,900
तुर्की 1,52,587 4,222 1,13,987
ईरान 1,26,949 7,183 98,808

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अमेरिका: एक दिन में 1561 की मौत
अमेरिका में 24 घंटे में 1561 लोगों की जान गई है और 21 हजार 408 केस सामने आए हैं। देश में मरने वालों की संख्या 94 हजार 994 हो गया है, जबकि 15 लाख 91 हजार 991 संक्रमित हैं। वहीं, दो महीने के शटडाउन के बाद50 राज्य अब धीरे-धीरे खोले जाने लगे हैं। बुधवार को कनेक्टिकट पहला राज्य बना, जिसने कुछ शर्तों के साथ अपने यहां रेस्टोरेंट और दुकानों को खोल दिया। हालांकि, संक्रमण के चलते कई राज्य अभी अर्थव्यवस्था को खोले जाने को लेकर असमंजस में हैं।

ट्रम्प ने मिशिगन और नेवादा प्रांत की फंडिंग रोकने की धमकी दी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव में मेल के जरिए वोटिंग की योजना बनाने को लेकर मिशिगन और नेवादा प्रांतों की फंडिंग रोकने की धमकी दी है। ट्रम्प ने ट्वीट किया- मिशिगन लाखों लोगों के लिए गैरकानूनी तरीके से रिक्त मतदान पत्र भेज रहा है। वहीं, नेवादा मतपत्रों द्वारा अवैध वोट भेजकर बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का माहौल बना रहा है। हालांकि, मिशिगन के राज्य सचिव जोसलिन बेंसन ने आरोपों को गलत बताया। उन्होंने ट्वीट किया, "मिशिगन के प्रत्येक नागरिक ने मेल के जरिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है।

अमेरिका में गोरों की तुलना में काले लोगों की मौत 3 गुना ज्यादा
एपीएम रिसर्च लैब के मुताबिक, अमेरिका में अफ्रीकी मूल के अमेरिकी लोगों की मौत गोरों की तुलना में तीन गुना ज्यादा हुई है। लैब ने बुधवार को इस डेटा को सार्वजनिक किया। इसे ‘कलर ऑफ कोरोनावायरस’ नाम दिया गया है। अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकियों की मृत्यु-दर 50.3 प्रति लाख आबादी में है। वहीं गोोरों की 20.7, लैटिन अमेरिकियों की 22.9 और एशियन अमेरिकियों की 22.7 है। हर 2000 की आबादी में एक की मौत कोरोना से हुई है।

दक्षिण अफ्रीका: दो दिन के बच्चे की मौत
दक्षिण अफ्रीका में दो दिन के नवजात की मौत हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को कहा, "दुर्भाग्यपूर्ण देश में कोरोना से पहले शिशु की मृत्यु दर्ज की गई है। उसका जन्म समय से पहले ही हुआ था। नवजात की मां कोरोना पॉजिटिव है और बच्चा भी संक्रमित पाया गया था।" दक्षिण अफ्रीका में अब तब 18,003 लोग प्रभावित हुए हैं और 339 की मौत हो चुकी है।

अर्जेंटीना: कोरोना के 474 नए मामले
अर्जेंटीना में 24 घंटे में 474 नए मामलों की पुष्टि हुई है। देश में संक्रमितों की संख्या अब 9283 हो गई है। संक्रमण के कारण 10 लोगों की मौत भी हुई। इसके साथ ही मृतकों की संख्या बढ़कर 403 हो गई है। इससे एक दिन पहले यहां इस महामारी के 438 मामले दर्ज किये गये थे और नौ लोगों की मौत हुई थी।



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न्यूयॉर्क में फायर डिपार्टमेंट के स्टाफ एक कोरोना मरीज को अस्पताल ले जाते हुए। यहां अब तक 3.68 लोग संक्रमित हो चुके हैं।

अमेरिकाः आय, नस्ल, उम्र के हिसाब से हो रहा कोरोना का असर; न्यूयॉर्क, ब्रुकलिन में गरीबों की मौतें अमीरों से दोगुनी May 20, 2020 at 02:38PM

अमेरिका में कोरोना संक्रमण भी आय, नस्ल, उम्र के हिसाब से हो रहा है। संक्रमण से होने वाली मौतें और अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या को इलाके के हिसाब से देखें, तो आप पाएंगे किइसमें भारी विषमता है। जहां अमीरों के इलाकों में संक्रमण और मौतों की संख्या कम है, वहीं गरीबों के इलाकों में मौतों की संख्या लगभग दोगुनी है।

इतना ही नहीं, कोरोना ने नस्ल और जातिगत रूप से भी लोगों को काफी प्रभावित किया है। न्यूयॉर्क के स्वास्थ्य विभाग ने न्यूयॉर्क में विभिन्न इलाकों के जिप कोड के आधार पर रिपोर्ट जारी की है, जिसमें इन सब बातों का जिक्र किया गया है।

न्यूयॉर्क और ब्रुकलिन में कोरोना के असर में भारी अंतर

रिपोर्ट के मुताबिक, गरीबों के इलाके में प्रति एक लाख लोगों पर होने वाली मौतों की संख्या 232 हैं, जबकि समृद्ध माने जाने वाले क्षेत्रों में यह आंकड़ा करीब 100 है, यानी आधे से भी कम। खासतौर पर न्यूयॉर्क और ब्रुकलिन में कोरोना के असर में भारी विषमता देखने को मिल रही है।

न्यूयॉर्क में लैटिन अमेरिकी लोगों की मौत सबसे ज्यादा हुईं

ब्रोंक्स में कोरोनोवायरस के मामलों, अस्पताल में भर्ती लोगों और मौतों की दर सबसे ज्यादा है। वहीं, नस्ल या जाति के हिसाब से न्यूयॉर्क में लैटिन अमेरिकी लोगों की मौत सबसे ज्यादा हुई है। इसके अलावा उम्र भी एक बड़ा कारक रही है। जहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं, वहां की एक बड़ी आबादी 65 साल से ज्यादा उम्र की है।

मध्यम आय वाले परिवारों में ज्यादा मौतें

न्यूयॉर्क सिटी हेल्थ डिपार्टमेंट के मुताबिक, अश्वेत और लैटिन अमेरिकी बहुल इलाकों में मौतें ज्यादा हुई हैं। यहां ज्यादातर कम और मध्यम-आय वाले परिसर हैं। जिप कोड डेटा में केवल वे मामले शामिल हैं जो कोरोना टेस्ट में पॉजिटिव मिले हैं।

सबसे ज्यादा मौतें ब्रुकलिन के गरीब इलाकों में, सबसे कम मैनहट्टन में

ब्रुकलिन के स्टारेट सिटी के नाम से मशहूर स्प्रिंग क्रिक टॉवर्स में मृत्यु दर सबसे ज्यादा रही है। यहां प्रति एक लाख लोगों में 612 मौतें हुई हैं। क्वींस में 445, जबकि ब्रोंक्स में यह आंकड़ा 429 रहा है। वहीं मैनहट्टन जैसे अमीरों के इलाकों में मौतें लगभग नहीं के बराबर हुई हैं। सबसे कम मृत्यु दर वाले अधिकांश इलाके मैनहट्टन में हैं, और यहां हर व्यक्ति की औसत आय छह अंकों में है।



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स्वास्थ्य विभाग ने न्यूयॉर्क में विभिन्न इलाकों के जिप कोड के आधार पर रिपोर्ट जारी की है, जिसमें इन सब बातों का जिक्र किया गया है।

एकांत के लिए 7500 रु. प्रति घंटे के हिसाब से कमरे ले रहे लोग; घरवालों से दूर रहने के लिए इस्तेमाल कर रहे May 20, 2020 at 02:38PM

कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन या क्वारैंटाइन में फंसे अमेरिकी अब एकांत की तलाश में हैं। इसके लिए वे प्रति घंटे के हिसाब से 7500 रुपए तक कमरे का किराया चुका रहे हैं।विभिन्न कामों के लिए बड़े-बड़े ब्रांड्स की सेवाएं ले चुके लोग अब प्राइवेसी के लिए इस ऐप से मदद ले रहे हैं।

कई लोग तो सिर्फ घर वालों से कुछ घंटों के लिए दूर रहने के लिए इस सेवा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें ग्लोब ऐप सबसे मशहूर है, जिसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। इस ऐप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को, मियामी जैसे इलाकों में हो रहा है।

भीड़-भाड़ से बचने के लिए कमरे किराए पर ले रहे

लोग पत्नी के दफ्तर की वीडियो मीटिंग के दौरान उसे प्राइवेसी देने, रूम पार्टनर को आराम देने, दफ्तर के दौरान फ्रेश होने या आराम करने, भीड़-भाड़ से बचने और यहां तक कि परिवार से कुछ समय तक दूर रहने के लिए भी इन कमरों को किराए पर ले रहे हैं। इसके तहत लोग अपने आस-पास के इलाकों या वॉकिंग डिस्टेंस पर मौजूद अपार्टमेंट को प्राथमिकता दे रहे हैं।

कोई भी कमरा रातभर के लिए नहीं दिया जाता

इसके लिए आपको ऐप पर अपनी जरूरत बतानी होती है। साथ ही यह भी बताना होता है कि आपको बुखार, खांसी या कोरोना नहीं है। इसके अलावा शरीर का मौजूदा तापमान लेकर थर्मामीटर की फोटो भी अपलोड करनी होती है। इसके बाद आपको रूम उपलब्ध करवाया जाता है, लेकिन कोई भी कमरा रात भर के लिए नहीं दिया जाता।

ब्रिटनी ने फ्यूचर प्लानिंग के लिए कमरा किराए पर लिया

32 साल की ब्रिटनी गायन बताती हैं,‘मैं ब्रुकलिन में अपने बॉयफ्रेंड से शादी करने वाली हूं। ऐसे में हमने भविष्य की प्लानिंग के लिए 2 घंटे के लिए कमरा किराए पर लिया था। इससे क्वारैंटाइन की मुसीबत से भी छुटकारा मिला।’

ऐसे ही वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की छात्रा बताती हैं,‘मैं अपने एंटी-बैक्टीरियल वाइप्स लेकर रूम पर गई थी। सबसे पहले दरवाजे की नॉब, लाइट स्विच और अपार्टमेंट को सैनिटाइज किया, उसके बाद 45 मिनट तक महत्वपूर्ण काम और कॉल किए। एक घंटा जमकर आराम किया। यह वाकई बेहतरीन अनुभव है।’

नौकरीपेशा लोगों के लिए शुरू किया गया था ऐप
ग्लोब ऐप को दो दोस्त 30 साल के इमैन्युएल बाम्फो और 36 साल के एरिक झू ने जून 2019 में शुरू किया था। इसे नौकरीपेशा लोगों के लिए शुरू किया गया था, ताकि शहर में घर से दूर या दफ्तर में रहने के दौरान कुछ देर आराम के लिए जगह दे सकें। लेकिन,कोरोना काल में लोग एकांत के लिए इन कमरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लोग एक घंटे के लिए करीब 7500 रुपए तक चुका रहे हैं।



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आपको ऐप पर अपनी जरूरत बतानी होती है। साथ ही यह भी बताना होता है कि आपको बुखार, खांसी या कोरोना नहीं है।

राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी ने संसद में बहुमत खोया, सात सांसदों ने समर्थन वापस लेकर नई पार्टी बनाने का एलान किया May 20, 2020 at 02:10AM

फ्रांस के सात सांसदों ने राष्ट्रपति इम्मैनुअल मैक्रों की पार्टी ला रिपब्लिक एन मार्च (एलआरईएम) से मंगलवार को समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद मैक्रों की पार्टी ने संसद के नीचले सदन में अपना पूर्णबहुमत खो दिया। फ्रांस के 577 सदस्यीय सांसद में अब उनकी पार्टी के सांसदों की संख्या288 हो गई है जबकि बहुमत के लिए 289 सीटें चाहिए। हालांकि, इससे सरकार पर कोई संकट पैदा नहीं होने की बात कही जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मैक्रों को भी अब भी दो राजनीति सहयोगियों का समर्थन प्राप्त है।
सेंट्रिस्ट अलाएंस पार्टी के मोडेम और सेंटर राइट पार्टी दी रिपब्लिकन के नेता अगिर मैक्रों के पक्ष में हैं। नेशनल एसेम्बली में इन दोनों पार्टियों की कुल 56 सीटें हैं। इस बात की भी संभावना है कि एलआरईएम में किसी मैक्रों समर्थक सांसद को शामिल करा लिया जाए। ऐसे में पार्टी फिर से बहुमत में आ जाएगी।

मैक्रों का साथ छोड़ने वाले सांसद बनाएंगे अपनी नई पार्टी
समर्थन वापस लेने वाले सांसदों ने अपनी नई पार्टी इकोलॉजी, डेमोक्रेसी,सॉलिडरिटी बनाने का ऐलान किया है। इसमें कुल 17 सांसद होंगे। इसमें मैक्रों की पार्टी छोड़ने वाले सात सांसदों के साथ ही एलआईआरईएम के 9 पूर्व सदस्य और एक दूसरी पार्टी के सांसद शामिल होंगे। समूह के सदस्यों ने पार्यावण और सामाजिक समानता पर काम करने की इच्छा जताई है। यह फ्रांस के मौजूदा संसद में नौवां राजनीतिक समूह होगा। इन सांसदों ने कहा है कि वे सरकार और विपक्ष दोनों में से किसी का समर्थन नहीं करेंगे।

मैक्रों का साथ छोड़ने की क्या वजह रही?
एलआरईएम छोड़ने वाले सांसद मैक्रों के काम करने के तरीके से खुश नहीं थे। इन सांसदों का दावा है कि मैक्रों की पार्टी ने सभी को साथ लेकर चलने का वादा पूरा नहीं किया। पार्टी ने पुराने राजनीतिक मतभेदों को दूर करने की भी कोशिश नहीं की। जिन सांसदों ने पार्टी छोड़ी है वे पार्टी के लेफ्ट विंग से थे। इनका यह भी कहना है कि मैक्रों का रवैया बदला है और उनका झुकाव राइट विंग की तरफ ज्यादा हुआ है।पार्टी छोड़ने का इन सांसदों को यह फायदा होगा कि वे अब एक आधिकारिक समूह के तौर पर संसद में बैठेंगे। इससे पहले वे स्वतंत्र सांसद के तौर पर सदन में मौजूद होते थे। आधिकारिक समूह होने पर कई विशेष अधिकार और दर्जे मिलेंगे।



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फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मैनुल की पार्टी की सात सांसदों ने मंगलवार को समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद उनकी पार्टी ने संसद में पूर्ण बहुमत खो दिया है। यूरोपियन यूनियन पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए चर्चा करने के दौरान की उनकी यह तस्वीर बीते साेमवार की है।

भारत के 105 डॉक्टर और नर्सों की टीम यूएई पहुंची, यहां ये गंभीर मरीजों के इलाज में मदद करेगी May 20, 2020 at 01:22AM

भारत की 105 डॉक्टरों और नर्सों की एक मेडिकल टीम बुधवार को यूएई पहुंची। ये टीम यूएई के अस्पतालों में गंभीर मरीजों के इलाज में वहां के मेडिकल स्टाफ की मदद करेगी। इस टीम में कई स्पेशलिस्ट डॉक्टर शामिल हैं। यूएई में भारत के राजदूत पवन कपूर ने कहा- दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ते हैं। हमारी मेडिकल टीम का यहां पहुंचना इस बात का एक और सबूत है।
मंगलवार रात तक यूएई में कुल 25 हजार 63 मामले सामने आए थे। 227 लोगों की मौत हो चुकी है। 10 हजार 791 स्वस्थ भी हुए हैं।

स्पेशलिस्ट हैं टीम में
यूएई की वेबसाइट ‘द नेशनल’ के मुताबिक, भारत से जो टीम अबुधाबी पहुंची है, उसमें डॉक्टर्स, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ है। यह सभी क्रिटिकल केयर यानी गंभीर मरीजों के इलाज में एक्सपर्ट हैं। इन्हें इतिहाद एयरलाइन्स की चार्टर्ड फ्लाइट से लाया गया है। ये सभी यूएई के अलग-अलग अस्पतालों में गंभीर मरीजों का इलाज करेंगे।

यूएई ने मांगी थी मदद
यूएई ने कुछ दूसरे देशों से मदद मांगी थी। भारत भी इनमें शामिल है। यहां भारत के राजदूत पवन कपूर ने कहा, “यह दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग का एक बेहतरीन उदाहरण है। हमने हमेशा इस महामारी के खिलाफ जंग में मिलजुलकर लड़ने को बढ़ावा दिया है। भारत और यूएई ने यह साबित भी किया है कि दोनों देश एक-दूसरे की कितनी मदद करते हैं।”

कुछ स्टाफ भारत में फंस गया था
105 लोगों की इस मेडिकल टीम में 75 ऐसे हैं जो भारत में काम करते हैं। 30 यूएई में काम करने वाले भारतीय हैं। ये लोग छुट्टियां मनाने देश लौटे थे। लेकिन, लॉकडाउन के चलते वहां फंस गए। यूएई की वीपीएस हेल्थ केयर मेडिकल सर्विस के डॉक्टर नाबिल देबोनी ने कहा, “भारत से आई टीम क्रिटिकल केयर में एक्सपर्ट है। हम जानते हैं कि ये लड़ाई कितनी मुश्किल है। हमने पहले अपनी सरकार से बातचीत की। इसके बाद भारतीय दूतावास को जरूरत के बारे में बताया। मदद भेजने के लिए हम उनके आभारी हैं।”

स्टाफ का भी टेस्ट
भारत से भेजी गई टीम के सदस्य मूल रूप से केरल के रहने वाले हैं। यूएई रवाना होने से पहले इन सभी का कोरोना टेस्ट कराया गया। यात्रा के दौरान सभी ने गाइडलाइंस का पालन किया। इस टीम में शामिल ज्यादतर नर्सें पहली बार किसी विदेश यात्रा पर आई हैं। 88 नर्सें पहले ही यहां मदद के लिए पहुंच चुकी हैं।



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भारत से 105 मेडिकल एक्सपर्ट्स की एक टीम बुधवार को यूएई पहुंची। ये टीम गंभीर मरीजों के इलाज में मदद करेगी।

दुनिया में 10 लाख केस होने में 94 दिन लगे, सिर्फ 48 दिन में मरीजों की संख्या 40 लाख के पार पहुंची May 20, 2020 at 01:20AM

कोरोनावायरस का पहला मामला 31 दिसंबर को चीन के वुहान शहर में मिला था। इसके बाद देखते ही देखते पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई। बुधवार को दुनियाभर में मरीजों की संख्या 50 लाख पार कर गई। 31 दिसंबर से 2 अप्रैल यानी 94 दिन में 10 लाख केस सामने आए थे। वहीं, केवल 46 दिन में संक्रमितों की संख्या 40 लाख के पार पहुंच गई।

संक्रमण के 50 लाख केस में 19 लाख 71 हजार 193 ठीक हो चुके हैं। यानी 86% मरीजों का अब अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी है। वहीं, तीन लाख 25 हजार 172 की मौत हो चुकी है, जो कुल आंकड़ों का 14% है। वहीं, एक्टिव केस 27 लाख 5 हजार 882 हैं। मतलब ये वो केस हैं, जो अभी अस्पताल में भर्ती हैंया जिनमें कोरोना की पुष्टि हो चुकी है।

दुनिया के 10 सबसे प्रभावित देशों का हाल

अमेरिका: महामारी के शुरू होने से 94 दिन में भी सबसे ज्यादा केस अमेरिका में ही थेयानी 2 अप्रैल तक देश में दो लाख 50 हजार 708 केस हो चुके थे। जबकि 48 दिनों में यहां 13 लाख 19 हजार 878 केस मिले। यहां बुधवार तक मरीजों की संख्या 15 लाख 70 हजार 583 पहुंच गई है। यहां अब तक 3 लाख 61 हजार 180 ठीक हो चुके हैं।

रूस: यहां संक्रमण का आंकड़ा 2 लाख 99 हजार 941 हो गया है। यहां मई में तेजी से संक्रमण फैला है। इस महीने अब तक यहां 1 लाख 94 हजार 274 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं, दो अप्रैल तक यहां केवल 3548 केस थे, जबकि 48 दिन में 3 लाख 5 हजार 157 केस सामने आए।

स्पेन: यूरोप का तीसरा सबसे संक्रमित देश है। यहां भी मार्च में काफी तेजी से मामले बढ़े थे। यहां 2 अप्रैल तक 1 लाख 12 हजार 65 केस थे। जबकि 48 दिन में 1 लाख 66 हजार 738 मामले सामने आए। अभी यहां दो लाख 78 हजार 803 मामले हैं।

ब्राजील: यहां संक्रमण के मामले मई में काफी तेजी से बढ़ने शुरू हुए। इस महीने यहां सबसे ज्यादा 1 लाख 79 हजार 776 केस मिले हैं। ब्राजील में दो अप्रैल तक केवल 8,044 केस थे। वहीं, अगले 48 दिनों में यहां 2 लाख 63 हजार 841 मामले सामने आए। यहां अब तक 1 लाख 6 हजार 794 मरीज ठीक हुए।

ब्रिटेन: यहां संक्रमितों की संख्या 2 लाख 48 हजार 818 है। यहां 2 अप्रैल तक 33 हजार 718 केस मिले थे। वहीं, 48 दिन में 2 लाख 15 हजार 100 केस मिले हैं। अप्रैल में यहां सबसे ज्यादा 1 लाख 41 हजार 779 मामले सामने आए हैं।

इटली: यह यूरोप के सबसे प्रभावित देशों में से एक है। यहां 2 अप्रैल तक अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा 1 लाख 15 हजार 242 मामले थे। जबकि 48 दिन में 1 लाख 11 हजार 457 मरीज मिले। अब यहां संक्रमितों की संख्या 2 लाख 26 हजार 699 है। इटली में मार्च में सबसे ज्यादा 1 लाख 4 हजार 91 केस सामने आए।

फ्रांस: यहां फिलहाल 1 लाख 80 हजार 809 लोग संक्रमित हैं। यहां 2 अप्रैल तक 59 हजार 105 केस सामने आए थे। वहीं, 48 दिन में 1 लाख 21 हजार 704 केस मिले थे। यहां सबसे ज्यादा 1 लाख 10 हजार 189 मामले अप्रैल में सामने आए थे।

जर्मनी: यहां अब तक 1 लाख 77 हजार 842 मामले सामने आए हैं। देश में दो अप्रैल तक 84 हजार 794 केस मिले थे। जबकि 48 दिन में 93 हजार 78 मरीज मिले थे। जर्मनी में सबसे ज्यादा 85 हजार 28 केस अप्रैल में सामने आए।

तुर्की: मध्य-पूर्व के देशों में तुर्की में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। यहां दो अप्रैल तक 18 हजार 135 केस थे, जो अगले 48 दिनों में 1 लाख 33 हजार 480 मामले सामने आए। फिलहाल, यहां 1 लाख 51 हजार 615 मरीज मिल चुके हैं। यहां अप्रैल में सबसे ज्यादा 1 लाख 4 हजार 525 मामले सामने आए थे।

ईरान: यहां अब तक 1 लाख 24 हजार 603 मामले सामने आए हैं। यहां 2 अप्रैल तक 50 हजार 468 केस मिले थे। वहीं, अगले 48 दिन में 74 हजार 135 मामले सामने आए। यहां अप्रैल में सबसे ज्यादा 49 हजार 47 केस मिले।



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It took 94 days to have 10 lakh cases in the world, the number of patients crossed 40 lakhs in just 48 days.

भारत का नाम लिए बगैर नेपाल ने कहा- लिपुलेख-कालापानी को वापस लेकर रहेंगे, कोई नाराज हो तो हमें फर्क नहीं पड़ता May 20, 2020 at 12:15AM

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने कहा कि तिब्बत, चीन और भारत से सटे कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को किसी भी कीमत पर वापस लाया जाएगा।प्रधानमंत्री ओली ने भारत का नाम लिए बगैर कहा कि अब हम लगातार इन इलाकों को कूटनीतिक जरिए से वापस लाने में जुटेंगे। अगर इससे कोई नाराज होता है तो हमें फर्क नहीं पड़ता।
दो महीने पहले ओली का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। इसके बाद वे मंगलवार को संसद पहुंचे। इस दौरान स्पीकर अग्नि सपकोटा ने उन्हें बैठकर भाषण देने की इजाजत दी। ओली नेपाल की कैबिनेट से नए राजनीतिक नक्शे को मंजूरी के बाद सीमा विवाद पर बोल रहे थे।

भारत के बयान पर ओली का जवाब- हम जो करते हैं, खुद करते हैं
इंडियन आर्मी चीफ एमएम नरवणे ने कहा था कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा पर नेपाल के विरोध के पीछे किसी और का हाथ है। नेपाल के प्रधानमंत्री ने इस पर जवाब दिया- हम जो भी करते हैं, खुद ही करते हैं। भारत के साथ दोस्ताना संबंध रखना चाहते हैं। पर यह भी पूछना चाहता हूं किभारत की नीति क्या है? सीमामेवजयते या सत्यमेव जयते?

ओली ने इस आरोप को भी नकाराकि जब उन्हें पार्टी में ही विद्रोह का सामना करना पड़ा था, तब चीनी राजदूत होउ यान्की ने उनकी कुर्सी बचाने में मदद की थी। ओली ने कहा, ‘‘कुछ लोग कहते हैं कि एक विदेशी राजदूत ने सत्ता में उनकी कुर्सी बचाई है। यह सरकार नेपाल के लोगों ने चुनी है और कोई भी मुझे नहीं हटा सकता।’’

भारत ने नवंबर2019 में जारी किया था अपना नक्शा

भारत ने अपना नया राजनीतिक नक्शा 2 नवंबर 2019 को जारी किया था। इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने सर्वेक्षण विभाग के साथ मिलकर तैयार किया है। इसमें कालापानी, लिंपियधुरा और लिपुलेख इलाके को भारतीय क्षेत्र में बताया गया है। नेपाल ने उस समय भी इस पर ऐतराज जताया था। इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने सीमा से किसी प्रकार की छेड़छाड़ से इनकार किया था। विदेश मंत्रालयने कहा था कि नए नक्शे में नेपाल से सटी सीमा में बदलाव नहीं है। नक्शा भारत के संप्रभु क्षेत्र को दर्शाता है।

कब से और क्यों है विवाद?
नेपाल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1816 में एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद सुगौली समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें काली नदी को भारत और नेपाल की पश्चिमी सीमा के तौर पर दर्शाया गया है। इसी के आधार पर नेपाल लिपुलेख और अन्य तीन क्षेत्र अपने अधिकार क्षेत्र में होने का दावा करता है। हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। दोनों देशों के विवादित इलाकों को अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाते हैं।



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नेपाल के प्रधानमंत्री मंगलवार को संसद में भाषण दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने भारत से चल रहे सीमा विवाद पर बयान दिया। - फाइल फोटो

कोरोना की वजह से दुनिया भर में 6 करोड़ लोग गरीब होंगे, वे अपना पिछले तीन साल का प्रॉफिट भी गंवा देंगे May 19, 2020 at 11:53PM

वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि कोरोना की वजह से दुनिया भर में गरीबी आएगी। बैंक के प्रेसिडेंट डेविड मालपॉस ने मंगलवार को एक कॉन्फ्रेंस में कहा कि इससे पूरी दुनिया में छह करोड़ लोग बेहद गरीब हो जाएंगे। वे पिछले तीन साल में किए गए अपने सभी प्रॉफिट भी गंवा देंगे। वर्ल्ड बैंक पूरी दुनिया में आए इस संकट से उबरने के लिए अभियान चला रहा है। इसके तहत 15 महीने में 100 विकासशील देशों को 160 बिलियन डॉलर (करीब 11 लाख 8000 करोड़ रु.) की सहायता दी जाएगी। इन देशों में दुनिया की करीब 70% आबादी रहती है।
उन्होंने कहा कि बैंक का अनुमान है कि इस साल दुनिया की अर्थव्यवस्था में 5% की गिरावट आएगी। इससे दुनिया के सबसे गरीब देशों पर गंभीर असर पड़ेगा। गरीबी हटाने के लिए हमने जो भी काम किया है वह खत्म हो जाएगा।

विकसित राष्ट्र मदद के लिए आगे आएं: वर्ल्ड बैंक

मालपॉस ने कहा कि पूरी दुनिया में करीब 50 लाख लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं और 3 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। वर्ल्ड बैंक ने गरीब देशों की स्वास्थ्य प्रणाली, अर्थव्यवस्था और उनकी सामाजिक सेवाओं में मदद के लिए 5.5 बिलियन डॉलर(करीब 38 हजार करोड़ रु.) खर्च किए हैं। हालांकि इसमें सिर्फ वर्ल्ड बैंक की कोशिशें नाकाफी हैं। विकसित राष्ट्रों को विकासशील देशों की मदद के लिए आगे आना चाहिए, जिससे वे फिर से पुरानी स्थिति में लौट सकें।

कर्ज चुकाने की अवधि एक साल बढ़ाने पर सहमति बनी

वर्ल्ड बैंक प्रमुख ने कहा कि टैक्स से मिलने वाली रकम और पर्यटन विकाशसील देशों की कमाई का अहम जरिया है। मौजूदा स्थिति में उनके लिए पर्यटन को खोलना कठिन है। अप्रैल के बीच में हुई जी-20 देशों की बैठक में विकासशील देशों के कर्ज भुगतान में एक साल की छूट का प्रस्ताव रखा गया था। इसके लेकर सहमति बढ़ रही है। मालपॉस के मुताबिक 14 देशों ने कर्ज को दोबारा चुकाने का समय एक साल बढ़ाने पर सहमति दी है। 23 देशों से इसके लिए अनुरोध किए जाने की उम्मीद है। वहीं 17 देश इस पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।



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वर्ल्ड बैंक के प्रमुख डेविड मॉलपॉस ने कहा है कि कोरोना की वजह से दुनिया भर में 6 करोड़ लोग बेरोजगार होंगे। तस्वीर इस साल 20 जनवरी की है जब वे लंदन में ब्रिटेन-अफ्रीका निवेश सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे थे।(फाइल फोटो)

दोबारा राष्ट्रपति बनीं साई इंग-वेन, कहा- चीन से बात हो सकती है, लेकिन ‘एक देश दो सिस्टम’ के तहत नहीं May 19, 2020 at 10:08PM

ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने रिकॉर्ड रेटिंग के साथ राष्ट्रपति के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत कर दी है।इस दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से ऐसा रास्ता खोजने को कहा है, जिसमें दोनों देशों का अस्तित्व हो। ताइपे में बुधवार को परेड के बाद अपने भाषण में 63 साल की राष्ट्रपति साई ने कहा कि चीन के साथ बातचीत हो सकती है, लेकिन ‘एक देश दो सिस्टम’ के तहत नहीं।

साई ने पहले कार्यकाल के समय ही वन चाइना पॉलिसी को मानने से मना कर दिया था। इसके बाद चीन ने ताइवान से सभी प्रकार के संबंध तोड़ लिए थे।चीन हमेशा से ताइवान को अपना हिस्सा मानता रहा है।

ताइवान के राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी फोटो में राष्ट्रपति साई इंग-वेन (बीच में), उनके बाएं उप राष्ट्रपति लाइ चिंग-ते ताइपे में उद्घाटन समारोह में भाग लेने जा रहे हैं। साई ने ताइवान के राष्ट्रपति के तौर पर दूसरी पारी शुरू की है।

साई ने कहा, ‘‘दोनों देशों (चीन और ताइवान) के संबंध एतिहासिक मोड़ पर पहुंच गए हैं। दोनों पक्षों का यह कर्तव्यहै कि वह लंबे समय तक के लिए सह अस्तित्व का रास्ता खोजें और बढ़ती दुश्मनी और मतभेदों को जोरदार तरीके से रोके। मैं यह भी आशा करती हूं की खाड़ी के उस पार के देश (चीन) का नेतृत्व भी इस बात की जिम्मेदारी लेगा और दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए काम करेगा।’’

साई ने अपना दूसरा कार्यकाल रिकॉर्ड 61% की रेटिंग के साथ शुरू किया। साई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) ताइवान की सबसे मजबूत पार्टी बन चुकी है। जनवरी में हुए चुनावों में रिकार्ड जीत से डीपीपी ने दूसरी पार्टियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है।

ताइवान को सिर्फ 15 देशों ने दी मान्यता
ताइवान कोदेश के तौर पर सिर्फ 15 देशों ने मान्यता दी है। इनमें से कई देश बहुत छोटे हैं। ये देश प्रशांत क्षेत्र और लैटिन अमेरिका के हैं। अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते को हासिल करने में भी साई को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने मंगलवार को साई को बधाई देते हुए कहा, ‘‘अमेरिका ने लंबे समय से ताइवान को दुनिया में एक अच्छी ताकत और विश्वसनीय साथी के रूप में माना है।’’

चीन ताइवान पर हमले की धमकी देता रहा है
चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है। चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी ताइवान को हमला करने की धमकी देती रही है। चीन के विरोध के कारण ही चीन वर्ल्ड हेल्थ असेंबली का हिस्सा नहीं बन पाया था। चीन की शर्त थी कि असेंबली में जाने के लिए ताइवान को वन चाइना पॉलिसी को मानना होगा, लेकिन ताइवान ने शर्त ठुकरा दी थी। ताइवान में जबसे डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता में आई है तबसे चीन के साथ संबंध ज्यादा खराब हुए हैं।



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ताइवान की राजधानी ताइपे में राष्ट्रपति साई इंग-वेन दूसरा कार्यकाल ग्रहण करने के बाद भाषण देती हुईं। ताइवान ने चीन से दुश्मनी खत्म कर सहयोग बढ़ाने की अपील की है।

ड्रग तस्करी मामले में युवक को जूम कॉल से मौत की सजा सुनाई गई, देश में ऐसा पहला मामला May 19, 2020 at 10:01PM

सिंगापुर में एक व्यक्ति को ड्रग की तस्करी में दोषी पाए जाने के बाद जूम कॉल (वीडियो) के जरिए मौत की सजा सुनाई गई। यह देश का पहला मामला है, जहां दूर बैठकर किसी व्यक्ति को मौत की सजा दी गई है। कोर्ट के डॉक्यूमेंट के मुताबिक, मलेशिया के 37 साल के पुनीथन गेनासन को 2011 में हुई हेरोइन के लेन-देन में उसकी भूमिका के लिए शुक्रवार को सजा सुनाई गई।

सिंगापुर सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता ने कहा कि महामारी के चलते कार्यवाही में शामिल सभी लोगों की सुरक्षा को देखते हुए मामले की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की गई थी। गेनासन के वकील पीटर फर्नांडो ने कहा कि जज ने जूम कॉल पर उनके क्लाइंट को मौत की सजा सुनाई। अब वे इसके खिलाफ अपील करने का विचार कर रहे हैं।

‘सुनवाई केवल जज के फैसले के लिए हुई’

फर्नांडो ने कहा कि शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई। यह सुनवाई केवल जज का फैसले सुनाने के लिए हुई थी, जिसे साफ-साफ सुना जा सकता था। इस दौरान कानूनी तौर पर कोई भी बहस नहीं की गई।

लॉकडाउन के चलते सुनवाई स्थगित

कैलिफोर्निया के टेक फर्म जूम के सिंगापुर के अधिकारियों ने इस पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। सिंगापुर में कई अदालतों की सुनवाई लॉकडाउन के कारण स्थगित कर दी गई है, जबकि जरूरी समझे जाने वाले मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हो रही है। राइट्स ग्रुप्स का कहना है कि सिंगापुर में अवैध रूप से ड्रग्स तस्करी के लिए जीरो-टॉलरेंस की नीति है। यहां अब तक इस मामले में सैकड़ों लोगों को फांसी दी जा चुकी है। इनमें कई विदेशी भी शामिल हैं।

मौत की सजा देना अमानवीय

मानवाधिकार समूहों ने जूम कॉल से मौत की सजा सुनाए जाने की आलोचना की है।ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया डिवीजन के डिप्टी डायरेक्टर फिल रॉबर्टसन ने कहा कि सिंगापुर में मौत की सजा का प्रावधान स्वाभाविक रूप से क्रूर और अमानवीय है। वहीं, जूम कॉल जैसे रिमोट तकनीक (दूर से) का इस्तेमाल कर मौत की सजा देना और ज्यादा अमानवीय है। नाइजीरिया में भी एक व्यक्ति को जूम कॉल के जरिए मौत की सजा दी गई थी। उन्होने इसकी भी नींदा की।



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सिंगापुर में ड्रग्स की तस्करी मामले में सैकड़ों लोगों को फांसी दी जा चुकी है। (फाइल फोटो)