Monday, September 21, 2020

मोदी ने कहा- संयुक्त राष्ट्र भरोसे के संकट से जूझ रहा है, बड़े सुधारों के बिना मौजूदा चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकता September 21, 2020 at 08:28PM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) भरोसे के संकट से जूझ रहा है और इस पर गौर किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह बात चार मिनट के एक वीडियो मैसेज में कही। यह मैसेज संयुक्त राष्ट्र महासभा की 75वीं सालगिरह पर हो रहे कार्यक्रम में यूएन हेडऑफिस से मंगलवार तड़के तीन बजे लाइव टेलिकास्ट किया गया।

मोदी का यह मैसेज पहले से रिकॉर्ड किया हुआ था। उन्होंने कहा, “हम पुरानी व्यवस्था के साथ आज की चुनौतियों से मुकाबला नहीं कर सकते। बड़े सुधार नहीं हुए तो यूएन पर भरोसा खत्‍म होने का खतरा है। उन्‍होंने कहा कि आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है, इसलिए हमें ऐसा बहुपक्षीय व्यवस्था चाहिए, जिसमें आज की वास्तविकता झलकती हो, सभी की आवाज सुनी जाती हो, जो वर्तमान चुनौतियों से निपटता हो और मानव कल्याण पर फोकस करता हो।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इस दिशा में सभी देशों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।

यूएन की तारीफ भी की
मोदी ने यूएन को आईना दिखाने के साथ ही उसकी तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि यूएन ने भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की सोच को दर्शाया है। यह सोच दुनिया को एक परिवार की तरह देखने की है। यूएन के कारण आज दुनिया एक बेहतर जगह है। हम उन सभी को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने शांति और विकास के लिए काम किया। इसमें भारत ने आगे रहकर योगदान दिया।

मोदी ने कहा, आज हम जो काम कर रहे हैं उसे स्वीकार किया जा रहा है, लेकिन टकराव रोकने, विकास तय करने, जलवायु परिवर्तन, असमानता घटाने और डिजिटल टेक्नोलॉजी का लाभ लेने जैसे मुद्दों पर अभी और काम करने की जरूरत है।

महासभा का स्पेशल सेशन शुरू
यूएन की 75वीं सालगिरह पर एक स्पेशल सेशन बुलाया गया है। सोमवार से इसकी वर्चुअल बैठक शुरू हुई है। कोरोना महामारी के कारण पहली बार यूएन के कार्यक्रम वर्चुअल हो रहे हैं। इसमें सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सभा को संबोधित करेंगे।

भारत यूएन सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है
भारत को इसी साल जून में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुना गया। महासभा में शामिल 193 देशों में से 184 देशों ने भारत का समर्थन किया था। भारत दो साल के लिए अस्थाई सदस्य चुना गया है। भारत के साथ आयरलैंड, मैक्सिको और नॉर्वे भी अस्थाई सदस्य चुने गए। भारत इससे पहले 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का अस्थायी सदस्य चुना गया था।

सुरक्षा परिषद में कुल 15 देश
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 देश हैं। इनमें पांच स्थायी सदस्य हैं। ये हैं- अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन। 10 देशों को अस्थाई सदस्यता दी गई है। हर साल पांच अस्थायी सदस्य चुने जाते हैं। अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल दो साल होता है।



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प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन की तारीफ भी की। उन्होंने कहा- यूएन ने भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की सोच को दर्शाया है। -फाइल फोटो

बाइडेन को 3.43 हजार करोड़ रु. का चंदा मिला; चुनाव में उतरते वक्त फंडिंग में ट्रम्प से 1.37 हजार करोड़ पीछे थे, अब 1.03 हजार करोड़ आगे September 21, 2020 at 07:43PM

डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन को अब तक 466 मिलियन डॉलर (करीब 3.43 हजार करोड़ रुपए) का चंदा मिल चुका है। पार्टी ने बाइडेन को जब डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा था, तब उनकी फंडिंग कम थी।

उस दौरान बाइडेन ट्रम्प से 187 मिलियन डॉलर (करीब 1.37 हजार करोड़ रु.) पीछे थे। लेकिन फंडिंग मिलने के मामले में अब बाइडेन ने ट्रम्प को पछाड़ दिया है। अब वे ट्रम्प से 141 मिलियन डॉलर (करीब 1.03 हजार रु.) आगे पहुंच गए हैं। वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब तक 325 मिलियन डॉलर (करीब 2.39 हजार करोड़ रु.) की फंडिंग जुटा चुके हैं।

जज की मौत के बाद डेमोक्रेटिक की फंडिंग में इजाफा

विशेषज्ञ बताते हैं- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बेडर गिन्सबर्ग की मौत के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी को दानदाताओं ने रिकॉर्ड तोड़ फंडिंग दी। लोगों ने सिर्फ 24 घंटों में डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को 90 मिलियन डॉलर (करीब 662 करोड़ रुपए) डोनेट किए।

ऑनलाइन फंड जुटाने वाले संगठन एक्टब्लू ने कहा कि गिन्सबर्ग की मौत के बाद 28 घंटों में जमीनी स्तर के दानकर्ताओं ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को 91.4 मिलियन डॉलर (करीब 672 करोड़ रुपए) दान किए, जो एक रिकॉर्ड है। दानदाताओं ने अकेले शनिवार को डेमोक्रेटिक पार्टी को 70 मिलियन डॉलर (करीब 515 करोड़ रुपए) डोनेट किए। जबकि शुक्रवार रात को एक घंटे में 6.3 मिलियन डॉलर (करीब 46.39 करोड़ रुपए) की राशि दान की।

कई बड़े व्यवसायी भी आगे आए

एक्टब्लू के निदेशक एरिन हिल ने कहा- ‘एक दिन में मिलने वाली राशि का पिछला रिकॉर्ड 41.6 मिलियन डॉलर (करीब 306 करोड़ रुपए) और एक घंटे में मिलने वाली राशि का पिछला रिकॉर्ड 4.3 मिलियन डॉलर (करीब 31.66 करोड़ रुपए) को तोड़ दिया है। बाइडेन को फंडिंग देने वालों उनके समर्थक, पार्टी के कार्यकर्ता और निम्न वर्ग से लेकर बड़े व्यवसायी तक शामिल हैं।’

पार्टियां रेडियो-टीवी की बजाय सोशल मीडिया पर खर्च कर रहीं

अमेरिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव महामारी के समय में हो रहे हैं। महामारी के कारण लोग बाहर कम निकल रहे हैं। चुनाव प्रचार में कम जा रहे हैं। इस कारण पार्टियां अधिक से अधिक पैसा टीवी की बजाय सोशल मीडिया पर लगा ही हैं ताकि लोगों तक पहुंचा जा सके।

दूसरी ओर पार्टियों ने अखबारों में, रेडियो पर और टीवी पर विज्ञापन भी घटाए हैं। हालांकि, एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आखिरी डेढ़ महीने में काफी पैसा आएगा। टीवी विज्ञापन पर खर्च कम होगा। ऑनलाइन फंडिंग और बढ़ेगी।



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ऑनलाइन फंड जुटाने वाले संगठन एक्टब्लू ने कहा कि गिन्सबर्ग की मौत के बाद 28 घंटों में जमीनी स्तर के दानकर्ताओं ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को 91.4 मिलियन डॉलर (करीब 672 करोड़ रुपए) दान किए, जो एक रिकॉर्ड है।

जापान में युवा शादी से कतरा रहे, इसलिए सरकार नए जोड़ों को सवा चार लाख रुपए देगी, ताकि गिरती जन्म दर काबू हो September 21, 2020 at 06:39PM

जापान में सरकार ने घर बसाने के इच्छुक जोड़ों को छह लाख येन यानी करीब 4.25 लाख रुपए तक की प्रोत्साहन राशि देने का फैसला किया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि लोग शादी कर जल्द बच्चे पैदा करें और देश में तेजी से गिरती जा रही जन्म दर पर काबू पाया जा सके। इसके लिए सरकार अप्रैल से बड़े पैमाने पर इनाम देने का कार्यक्रम शुरू करने जा रही है।

जापान की आबादी करीब 12.68 करोड़ है
पिछले साल जापान में ऐतिहासिक रूप से सबसे कम 8 लाख 65 हजार बच्चों का जन्म हुआ। जन्म की तुलना में मौत का आंकड़ा पांच लाख 12 हजार ज्यादा रहा। यह भी जन्म, मृत्यु में सबसे बड़ा अंतर है। सरकार काे उम्मीद है कि इस साल जन्मदर पिछले साल के 1.42% से कुछ अधिक 1.8% रहेगी। जापान की आबादी करीब 12.68 करोड़ है। जनसंख्या के हिसाब से जापान दुनिया का सबसे बुजुर्ग देश है।

यहां 100 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या भी सबसे ज्यादा है। लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर जन्म दर की स्थिति यही रही तो यहां 2040 तक बुजुर्गों की आबादी 35% से ज्यादा हो जाएगी। इस अंतर को पाटने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर यह अभियान शुरू किया है।

योजना में शामिल होने के लिए सरकार ने कुछ शर्तें रखी हैं

योजना में शामिल होने के लिए सरकार ने कुछ शर्तें रखी हैं। जैसे जोड़े की उम्र 40 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए और दोनों की कुल कमाई 38 लाख रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसी तरह जिन जोड़ों की उम्र 35 साल से नीचे की होगी, उनकी कुल कमाई 33 लाख रुपए से अधिक न हो। उन्हें 2.11 लाख रुपए की मदद दी जाएगी।

युवा पैसों की कमी की वजह से शादी नहीं कर रहे

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन एंड सोशल सिक्योरिटी रिसर्च ने 2015 में एक सर्वे किया था। इसमें यह यह बात सामने आई कि 25-34 साल के करीब 30% अविवाहित लड़कों और 18% अविवाहित लड़कियों ने शादी न करने के फैसले की वजह धन की कमी को बताया।

और भी देशों में जन्म दर बढ़ाने पर इनाम मिलता है

इटली: यह इटली दूसरा ऐसा देश है, जहां तेजी से जन्म दर गिर रही है। यहां हर जोड़े को एक बच्चा होने पर सरकार की ओर से 70 हजार रुपए दिए जाते हैं।

एस्ताेनिया: यूरोपीय देश एस्ताेनिया में जन्म दर बढ़ाने के लिए नौकरी करने वाले को डेढ़ साल तक पूरे वेतन के साथ छुट्‌टी दी जाती है। साथ ही तीन बच्चे वाले परिवार को हर महीने 300 यूरो यानी करीब 25 हजार रुपए का बोनस मिलता है।

ईरान: यहां पुरुषों की नसबंदी पर पाबंदी है। यहां गर्भनिरोधक दवाएं उन्हीं महिलाओं को दी जाती हैं जिनको स्वास्थ्य कारणों से यह दवा लेना जरूरी होता है। ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले परिवार को अतिरिक्त राशन दिया जाता है।



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Government will give Rs. 4 lakh cash to married couples in Japan to control falling birth rate, the scheme will be implemented from April

Turkey's president says UN failed amid pandemic September 21, 2020 at 05:44PM

Turkey's president Recep Tayyip Erdogan, who has long called for a reform of the United Nations, said the world body has failed in its response to the coronavirus pandemic.

न्यूजीलैंड में पाबंदिया हटने के बावजूद कोई नया केस नहीं, ब्रिटेन के पीएम की लोगों से घर से काम करने की अपील; अब तक 3.14 करोड़ मामले September 21, 2020 at 05:39PM

दुनियाभर में कोरोनावायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं। न्यूजीलैंड में पूरे देश से पाबंदियां हटा ली गई हैं, इसके बावजूद वहां कोई नया केस सामने नहीं आया। वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने फिर से लोगों से घर से ही काम करने की अपील की है।

दुनिया में अब तक 3 करोड़ 14 लाख 80 हजार 487 मामले हो चुके हैं। 9 लाख 69 हजार 287 लोगों की मौत हो चुकी है। अच्छी बात ये कि 2 करोड़ 31 लाख 9 हजार 498 लोग ठीक भी हो चुके हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं।

इन 10 देशों में कोरोना का असर सबसे ज्यादा

देश

संक्रमित मौतें ठीक हुए
अमेरिका 70,46,216 2,04,506 4,299,525
भारत 5,560,105 88,965 4,494,720
ब्राजील 4,560,083 137,350 3,887,199
रूस 1,109,595 19,489 911,973
पेरू 772,896 31,474 622,418
कोलंबिया 770,435 24,397 640,900
मैक्सिको 700,580 73,697 502,982
स्पेन 671,468 30,663 उपलब्ध नहीं
साउथ अफ्रीका 661,936 15,992 591,208
अर्जेंटीना 640,147 13,482 508,563


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न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने देश में कोरोना के चलते लगाई गई पाबंदियां हटाने का ऐलान किया है।

Vatican, China prepare to renew historic deal to US anger September 21, 2020 at 05:08PM

Pope Francis has been working hard to repair ties with the Communist country, but his overtures run contrary to US President Donald Trump's efforts to push a religious freedom theme against China in his campaign for a second term.

Born to prevent war, UN at 75 faces a deeply polarized world September 21, 2020 at 04:38PM

The United Nations marked its 75th anniversary Monday with its chief urging leaders of an increasingly polarized, go-it-alone world to work together and preserve the organization's most important success since its founding: avoiding a military confrontation between the major global powers.

डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस दोनों के लिए चुनौती बन सकता है अबॉर्शन कानून, ज्यादातर लोग पाबंदियों के साथ गर्भपात को मंजूरी देने के पक्ष में September 21, 2020 at 03:47PM

जोशुआ हॉन को सुप्रीम कोर्ट में दूसरी ओपन सीट मिलने की उम्मीद थी। यह उनके लिए ऐसा पल था, जिसका वो राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए वोट करने के बाद चार सालों से इंतजार कर रही थीं। उन्होंने कहा- मैं यह नहीं कहूंगी कि मैं ट्रम्प से प्यार करती हूं, लेकिन मेरा मानना है कि अबॉर्शन बच्चों की जान ले रहा है। 35 साल की हॉन नॉर्थ कैरोलिना की डरहम काउंटी में रहती हैं।

सैकंड़ों मील दूर सिनसिनाटी के एक रिहायशी इलाके में जूली वोमैक के फोन की घंटियां बजनी बंद नहीं हो रहीं। उनकी महिला दोस्तों की ओर से मैसेज आ रहे हैं। वे इस बात से चिंतित हैं कि जस्टिस रूथ बैडर गिन्सबर्ग की मौत के साथ ही उनका ऐसा हक भी मारा जाएगा, जो उनके हिसाब से कभी खत्म नहीं होना चाहिए। जस्टिस गिन्सबर्ग की मौत को लेकर अमेरिकाभर में प्रदर्शन हुए थे। वे कानूनी ढंग से अबॉर्शन के पक्ष में थीं।

वोमैक कहती हैं- हमें और ज्यादा मुखर होकर और जोर से आवाज उठानी होगा। हमें अपने हक के लिए खड़ा होना होगा और जस्टिस गिन्सबर्ग की जगह लेनी होगी। 52 साल की वोमैक अबॉर्शन से जुड़े अधिकारों की कट्‌टर समर्थक हैं और ट्रम्प का विरोध करती हैं।

महीनों तक ठंडे बस्ते में रहा अबॉर्शन का मुद्दा

दुनियाभर में महामारी, आर्थिक संकट और नस्लीय भेदभाव को लेकर प्रदर्शन हो रहे थे। ऐसे में महीनों तक अबॉर्शन का मुद्दा प्रेसिडेंशियल कैंपेन के दौरान ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हालांकि, जस्टिस गिन्सबर्ग की मौत और उनकी जगह किसी और को देने पर छिड़ी बहस के बीच यह मुद्दा उठ रहा है। कैंडिडेट इलेक्शन से करीब छह हफ्ते पहले इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा के लिए मजबूर हो सकते हैं। यह दोनों पक्षों (डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस) के लिए राजनीतिक जोखिम साबित हो सकता है, जबकि यह मुद्दा ऐसा है जिससे दोनों पार्टियों के वोटर्स जुड़े हुए हैं।

ज्यादातर अमेरिकी कानूनी ढंग गर्भपात के पक्ष में

गर्भपात पर एक्टिविस्ट्स की तुलना में आम लोगों का रवैया थोड़ा नरमी भरा है। ज्यादातर अमेरिकी कहते हैं कि कुछ पाबंदियों के साथ अबॉर्शन को कानूनी मंजूरी मिलनी चाहिए। अगर इस पर लड़ाई बढ़ती है तो यह दोनों पार्टियों के कस्बाई वोटर्स को उनसे दूर कर सकता है। इसकी वजह है कि अबॉर्शन को कानूनी मंजूरी दिलाने और इसके खिलाफ की लड़ाई में सभी पार्टियों के वोटर्स शामिल हैं। खासतौर पर इसे लेकर डेमोक्रेट्स की चिंता है कि वे एक ऐसे मुद्दे को कैसे आगे ले जाएंगे, जिसे लेकर उनके राष्ट्रपति कैंडिडेट जो बाइडेन निजी तौर पर सहज नहीं रहे हैं।

बाइडेन और ट्रम्प दोनों ने मुद्दे को हल्के में लिया
शुक्रवार को जस्टिस गिन्सबर्ग की मौत के बाद ट्रम्प और बाइडेन ने इस मुद्दे को हल्के में लिया है। बाइडेन कैंपेन राजनीतिक तौर पर जोखिम भरा माने जाने वाले ‘अफोर्डेबल केयर एक्ट’ के मुद्दे को हवा देने की कोशिश में हैं। वे इस बीमा योजना कवरेज में सभी बीमारियों के इलाज का कवरेज शामिल करने की मांग कर रहे हैं। ऐसी बीमारियों का भी जिससे लोग बीमा योजना में जुड़ने से पहले से जूझ रहे हैं। वहीं ट्रम्प अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले गिन्सबर्ग की जगह किसी नए जस्टिस को नियुक्त करने पर फोकस कर रहे हैं।

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों पर है दबाव

हालांकि, दोनों पार्टियों पर अबॉर्शन का मुद्दा उठाने का दबाव है, क्योंकि यह उनके वोटर्स बेस से जुड़ा एक अहम मामला है। इसके साथ ही मौजूदा समय में इन पार्टियों का बहुत कुछ दांव पर है। देश में गर्भपात को करीब 50 साल पहले वैध बनाया गया था। इसके बाद से अब तक लोगों के लिए गर्भपात कराना ट्रम्प के राष्ट्रपति रहने के दौरान सबसे ज्यादा कठिन रहा। देश के पांच राज्यों मिसीसिपी, मिसौरी, नॉर्थ डकोटा, साउथ डकोटा और वेस्ट वर्जीनिया स्टेट में फिलहाल सिर्फ एक ही अबॉर्शन क्लीनिक है।

यह ट्रम्प के लिए हो सकता है अहम मौका

सामाजिक रूढ़िवादी रणनीतिकार इस मुद्दे के अचानक उठने को ट्रम्प के लिए एक अहम मौके के तौर पर देखते हैं। मौजूदा वक्त में ट्रम्प चुनाव में पिछड़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में रणनीतिकारों का मानना है कि इससे एरिजोना समेत कई दूसरे इलाकों में इस मुद्दे को जरिए रिपब्लिकंस वोटर्स को प्रेरित करने में मदद मिलेगी। इनमें ऐसे वोटर्स शामिल होंगे जो अब तक ट्रम्प की ओर से एबसेंटी बैलट का इस्तेमाल करने की सलाह मानने के झांसे में नहीं आए होंगे।

अबॉर्शन मुद्दे से दूसरे मुद्दों से फोकस हटेगा

फैमिली रिसर्च काउंसिल के प्रेसिडेंट टोनी पर्किंस के मुताबिक, यह राजनीतिक तस्वीर को बड़े पैमाने पर बदलकर रख देगा। इसकी वजह से कोरोनावायरस से फोकस हट जाएगा। इसके अलावे और भी बहुत सारे चीजों से ध्यान बंट जाएगा। पारंपरिक तौर पर सोशल कंजरवेटिव्स के लिए अबॉर्शन राजनीतिक प्रेरणा की एक मजबूत वजह रहा है। इनमें से कई सिर्फ इसी मुद्दे पर वोट करने वाले वोटर्स है जिनका मानना है इससे किसी भी हाल में समझौता नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि कुछ डेमोक्रेट्स मानते हैं कि अब राजनीतिक संतुलन शिफ्ट हो चुका है। रिपब्लिकन स्टेट लैजिस्लेटर की ओर से पिछले साल पारित हुए कानूनों का विरोध किया जाना यह साबित करता है।

‘महिला वोटर्स का उभरना ट्रम्प के लिए खतरा’

महिला वोटर्स का उभर कर आने से भी ट्रम्प के विरोध में एक तबका खड़ा हुआ है। 2018 के मिडटर्म में यह खासतौर पर देखा गया। उस समय कस्बाई महिला वोटर्स ने अपने डिस्ट्रिक्ट्स में डेमोक्रेट्स को जीत दिलाने में मदद की। इस साल सीनेट की किस्मत पर्पल स्टेट यानी कि नार्थ कैरोलिना, मैने और एरिजोना पर निर्भर है। इन जगहों पर अबॉर्शन पॉलिसीज डेमोक्रेट कैंडिडेट के लिए मददगार साबित हो सकती हैं।अबॉर्शन राइट्स ऑर्गनाइजेशन की प्रेसिडेंट इलिस हॉग के मुताबिक, डेमोक्रेटिक और इंडिपेंडेंट फिमेल वोटर्स अबॉर्शन को मुख्य तौर पर एक अहम स्वास्थ्य सेवा मानते हैं। हालांकि, वे इस नजरिए से भी देखते हैं कि इस मुद्दे पर उनके चार साल बर्बाद हो गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नई नियुक्तियों को लेकर भी शंकाएं

हॉग कहती हैं- मौजूदा समय में महिलाओं को महसूस होता है कि उनपर हमला हो रहे हैं और उन्हें नीचा दिखाया जा रहा है। ऐसे में अबॉर्शन का अधिकार समाज में महिलाओं को स्थान दिलाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है। सोशल कंजरवेटिव मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में छठें कंजरवेटिव जस्टिस की नियुक्ति दशकों पुरानी रो वी वेड के प्रोजेक्ट को खत्म करने के लिए होगी। रो वी वेड ने ही देश में अबॉर्शन को वैध बनाने का ऐतिहासिक आदेश दिया था।

पिछले साल कई राज्यों में गर्भपात से जुड़े 58 कानून बनेपिछले साल 6 महीने के अंदर कई राज्यों में अबॉर्शन पर पाबंदियों से जुड़े 58 कानून बनाए गए। इनमें छह महीने के भ्रूण के गर्भपात को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया। यह समय इतना कम है कि इससे पहले तक महिलाओं को पता ही नहीं चलता कि वे प्रेगनेंट हैं। वहीं, ट्रम्प में विश्वास रखने वाले लेफ्ट विचारधारा का समर्थन करने वाले मानते हैं कि अगर मजबूत कंजर्वेटिव मेजॉरिटी में आते हैं तो वे कोर्ट के जरिए अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म करवा देंगे। यह बात एक्टिविस्ट के लिए काफी दुखद होगा जिनके हिसाब से यह महिलाओं के लिए अपमानित करने वाला और उन्हें कमजोर बनाने वाला कदम होगा।

1975 से अब तक जस का तस है अबॉर्शन का मुद्दा
अबॉर्शन के मुद्दे पर लोगों की राय इस पर हो रही राजनीति से अलग है। अब सब कुछ इस पर है कि इससे जुड़े सवाल कैसे पूछे जाते हैं। 1975 से लेकर अब तक यह मुद्दा जस का तस बना हुआ है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि अबॉर्शन को कानूनी मंजूरी मिलनी चाहिए लेकिन प्रेगनेंसी के एक निश्चित समय बाद इसकी इजाजत नहीं होनी चाहिए। इस मुद्दे पर सहमती रखने वाले वोटर्स की संख्या भी 2012 के बाद नहीं बदली है। गॉलअप की ओर से मई में किए गए सर्वे के मुताबिक 26% रिपब्लिकंस और 27% डेमोक्रेट्स मानते हैं कि कैंडिडेट अबॉर्शन उनकी राय मानने वाला हो।

बाइडेन भी अबॉर्शन के मुद्दे पर पीछे हट रहे

बाइडेन हमेशा से यह दिखाने के लिए जूझते रहे हैं कि वे अपनी पार्टी की तरह कैथोलिक इसाई रीति रिवाजों को मानने वाले हैं। उनकी पार्टी ने अपने अब तक के राजनीतिक इतिहास में हमेशा ही बहुत मामूली पाबंदियों के साथ गर्भपात को मंजूरी देने का पक्ष लिया है। बाइडेन पिछले साल देश अबॉर्शन के लिए दी जाने वाली फंडिंग को रोकने के लिए बाइडेन हैड एमेंडमेंट लाने का समर्थन करने से पीछे हट गए थे, जबकि वे पिछले एक दशक से इसके समर्थन में थे। रविवार को बाइडेन ने फिलाडेल्फिया में सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की, लेकिन उन्होंने अबॉर्शन राइट्स पर कुछ भी नहीं कहा।



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इस साल जनवरी में अबॉर्शन का समर्थन करने और इसका विरोध करने वाले लोग वॉशिंगटन में एक रैली के दौरान आमने- सामने आ गए थे।- फाइल फोटो

US moves to restore UN curbs on Iran September 21, 2020 at 03:58PM

Trump could face tax fraud probe, Manhattan prosecutor says September 21, 2020 at 01:29PM

Manhattan's district attorney said on Monday he might have grounds to investigate President Donald Trump and his businesses for tax fraud, as he seeks to persuade a federal appeals court to let him obtain Trump's tax returns. The lawyers said the "mountainous" public allegations of misconduct, including misstatements about business properties, could justify a grand jury probe into possible tax fraud.

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Opposition parties in Pakistan launch alliance to oust PM Imran Khan September 20, 2020 at 06:59PM

Demanding Pakistan PM Imran Khan's immediate resignation, the country's major Opposition parties have launched an alliance to hold a countrywide protest movement to oust his govt. A 26-point joint resolution was adopted on Sunday by the All Parties Conference, which was hosted by the Pakistan Peoples Party & attended by Pakistan Muslim League-Nawaz, Jamiat Ulema-e-Islam Fazl.

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"We're certainly at a very critical moment this morning," Transport Secretary Grant Shapps told Sky. "It is clear that we are just a few weeks behind what we're seeing elsewhere in Europe."