Monday, November 2, 2020

4 dead in Vienna shooting; attacker sympathized with IS November 02, 2020 at 08:48PM

Austria's top security official says that four people have died including one assailant after a shooting in the heart of Vienna late Monday. Interior minister Karl Nehammenr told reporters Tuesday that two men and a woman have died from their injuries. A suspected attacker, who was carrying an assault rifle and a fake suicide vest, was also shot and killed by police.

China reports 49 new coronavirus cases, conducting mass testing in Xinjiang November 02, 2020 at 08:40PM

America cannot afford four more years of Trump, says Kamala Harris November 02, 2020 at 07:17PM

Hong Kong leader to travel to Beijing to seek economic aid November 02, 2020 at 06:56PM

फ्रांस में एक दिन में 53 हजार मामले, डब्ल्यूएचओ ने कहा- देश वक्त बर्बाद न करें, सख्ती करें November 02, 2020 at 05:26PM

दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.73 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 40 लाख 12 हजार 909 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 12.10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। फ्रांस में संक्रमण की दूसरी लहर जानलेवा साबित हो रही है। यहां सोमवार को 52 हजार नए संक्रमित सामने आए। लॉकडाउन के बावजूद मामले बढ़ने से सरकार का विरोध तेज हो गया है।

फ्रांस प्रतिबंध नाकाम साबित हुए
फ्रांस में लॉकडाउन का असर नहीं हो रहा है। दूसरा लॉकडाउन लगाए करीब एक हफ्ता गुजर चुका है, लेकिन अब तक संक्रमण की दर में कोई कमी नहीं आई। सोमवार को यहां 52 हजार 518 मामले सामने आए। इसी दौरान एक हजार लोगों को गंभीर स्थिति में हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। दूसरी तरफ, लॉकडाउन के बावजूद मामले बढ़ने के बाद एमैनुएल मैक्रों सरकार दबाव में है। लोगों का कहना है कि लॉकडाउन हटा लेना चाहिए क्योंकि यह बेअसर साबित हो रहा है। हर दिन मामले बढ़ते जा रहे हैं। देश में अब कुल मामले करीब 15 लाख हो चुके हैं।

डब्ल्यूएचओ ने कहा- सख्ती करें
डब्ल्यूएचओ ने एक बार फिर उन देशों को चेतावनी जारी की है जो महामारी को लेकर सख्त नहीं हैं। डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रोल एडेनहोम ग्रेब्रियस ने कहा- अब भी वक्त है जब देशों को सख्ती दिखानी चाहिए। अब भी बहुत देर नहीं है। क्योंकि, अगर अब कदम नहीं उठाए तो हालात हाथ से निकल सकते हैं। अब मौका है जब दुनिया के नेताओं को आगे आना होगा और मिलकर इस महामारी का मुकाबला करना होगा। हमारे पास अब भी मौका है।

डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रोल एडेनहोम ग्रेब्रियस ने सोमवार को मीडिया से बातचीत की। कहा- उन देशों को सख्त कदम उठाने की जरूरत है, जहां मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

पुर्तगाल में भी लॉकडाउन की तैयारी
पुर्तगाल सरकार ने साफ कर दिया है कि वो संक्रमण रोकने के लिए आपातकाल और लॉकडाउन लगाने पर विचार कर रही है। हालांकि, अब तक यह साफ नहीं किया गया है कि आपातकाल कैसा होगा या लॉकडाउन पिछली बार की तरह होगा या अलग। राष्ट्रपति मार्सेलो रेबेलो ने कहा- हम इस बारे में विचार कर रहे हैं, क्योंकि यूरोपीय देशों में संक्रमण की दूसरी लहर अब तक खतरनाक साबित हो रही है। प्रधानमंत्री एंतोनियो कोस्टा ने कहा- देश में मामले बढ़ रहे हैं। हम सभी को यह जल्द तय करना पड़ेगा कि किस तरह हम संक्रमण पर काबू पा सकते हैं। नहीं तो हालात पिछली बार के मुकाबले ज्यादा खराब हो सकते हैं।

स्पेन में फिर हिंसा
स्पेन में संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया तो कई लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने इसका विरोध किया। इसके बाद जब सुरक्षा बलों ने इन्हें हटाने की कोशिश की तो ये हिंसा पर उतर आए। स्पेन में छह महीने की स्टेट ऑफ इमरजेंसी पहले से ही लागू है। लेकिन, संक्रमण की दूसरी लहर को देखते हुए सरकार ने पिछले महीने दी गई ढील वापस ले ली और लॉकडाउन का ऐलान कर दिया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पुलिस ने रबर बुलेट भी चलाईं ताकि भीड़ को हटाया जा सके। आज सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री मीडिया से बात करेंगे।



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फ्रांस के मोन्टपोलियर शहर में एक सुनसान बाजार से गुजरते स्टूडेट्स। देश में दूसरे लॉकडाउन को करीब एक हफ्ता हो चुका है, लेकिन मामले बढ़ते जा रहे हैं। सोमवार को यहां 52 हजार से ज्यादा नए संक्रमित मिले।

In 2020 finale, Trump combative, Biden on offense November 02, 2020 at 04:16PM

Closing out a campaign shadowed by a once-in-a-century pandemic, President Donald Trump charged across the nation Monday, delivering without evidence his incendiary allegation that the election is rigged, while Democratic challenger Joe Biden pushed into states once seen as safely Republican, looking to secure his path to the White House.

पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल कॉलेज समेत अमेरिकी चुनाव से जुड़ी 5 बातें, जो आपको समझनी चाहिए November 02, 2020 at 04:17PM

3 नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव है। मुकाबला होगा दो दिग्गजों के बीच। रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन मैदान में हैं। ट्रम्प जीतेंगे या बाइडेन बाजी मारेंगे? यह वक्त बताएगा। लेकिन, व्हाइट हाउस तक पहुंचने की इस यात्रा में कुछ अहम पड़ाव आते हैं। यहां हम आपको इन अहम पांच पड़ावों के बारे में बता रहे हैं।

प्राइमरी
इसे आप अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पहली पायदान कह सकते हैं। संविधान इस पर मौन है। लिहाजा, पार्टियां और राज्य सरकारें इसे आयोजित करती हैं। एक तरह से देखें तो यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है। नेता अपनी पार्टी की तरफ से नॉमिनेशन करते हैं। फिर वहां की जनता इस पर मुहर लगाती है। कुछ राज्यों में सीक्रेट बैलट से कैंडिडेट तय होता है तो कुछ में ओपन बैलट से। फर्क यह है कि सीक्रेट बैलट में सिर्फ पार्टी मेंबर वोटिंग करते हैं और ओपन बैलट में जनता भी सीधे वोट डाल सकती है। दरअसल, ये लोग अपना एक प्रतिनिधि (डेलिगेट्स) चुनते हैं। ये डेलिगेट पार्टी कन्वेंशन (सम्मेलन) में प्रेसिडेंट कैंडिडेट नॉमिनेट करते हैं। अब 44 राज्यों में प्राइमरी इलेक्शन होते हैं। 2016 के बाद 10 राज्य कॉकस से प्राइमरीज पर शिफ्ट हुए।

कॉकस
यह राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने का पुराना तरीका है। इसे आयोवा कॉकस भी जाता है। अब सिर्फ 6 राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है। कॉकस को बहुत आसान भाषा में समझें तो पहली चीज तो यह है कि इसका आयोजन सीधे पार्टियां करती हैं। राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। पार्टियां ही नियम और मतदाता तय करती हैं। यहां डेलिगेट चुनने के लिए बैलट का इस्तेमाल नहीं होता। पार्टी मेंबर्स कई उम्मीदवारों में से एक को हाथ उठाकर चुनते हैं।

कन्वेंशन
आसान शब्दों में आप इसे पार्टी सम्मेलन कह सकते हैं। इसमें पार्टी प्रतिनिधि (डेलिगेट्स) हिस्सा लेते हैं। यानी वो लोग जो प्राइमरीज या कॉकस से चुनकर आए हैं। वे यहां मतदान के जरिए उस कैंडिडेट को चुनते हैं जो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनेगा। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार पार्टी सांसदों से सलाह करके उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करता है। हर राज्य से चुने गए डेलिगेट्स की संख्या अलग होती है। यह आबादी पर निर्भर करती है। कैलिफोर्निया में सबसे ज्यादा 415 डेलिगेट्स हैं।

पॉपुलर वोट
अमेरिका में मतदाता पहले इलेक्टर्स चुनते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। ये इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति चुनता है। सवाल ये कि फिर पॉपुलर वोट क्या होता है? इसे सीधे तौर पर समझिए। दरअसल, जनता यानी मतदाता अपना प्रतिनिधि इलेक्टर चुनते हैं। फिर ये इलेक्टर राष्ट्रपति चुनता है। अब ये जरूरी नहीं कि जनता जिसे इलेक्टर चुन रही है, वो उसके पसंद के कैंडिडेट यानी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को ही वोट दे। मसलन, 2016 में ट्रम्प को 62,984,825 (46.4% वोट्स) और हिलेरी को 65,853,516 (48.5% वोट्स) मिले। जाहिर है, हिलेरी जनता की पहली पसंद थीं। लेकिन, इलेक्टोरल वोट ने ट्रम्प को जिता दिया।

इलेक्टोरल कॉलेज
इस पर काफी बहस होती है। कुछ लोग अब इसे गलत भी ठहराने लगे हैं। पॉपुलर वोट के जरिए 50 राज्यों में 538 इलेक्टर्स चुने जाते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टरल कॉलेज वोट चाहिए। जिस राज्य की जितनी ज्यादा आबादी, उसके उतने ज्यादा इलेक्टोरल वोट। हर राज्य से दोनों सदनों के लिए जितने सांसद चुने जाते हैं, उतने ही उसके इलेक्टर्स होंगे। कैलिफोर्निया में 55 तो व्योमिंग में सिर्फ 3 इलेक्टर्स हैं। 2016 में ट्रम्प को 306 इलेक्टर्स का समर्थन मिला। हिलेरी के लिए आंकड़ा 232 पर सिमट गया। वे चुनाव हार गईं।



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डेमोक्रेट जो बाइडेन और रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प।

क्या हैं रेड, ब्लू और स्विंग स्टेट्स, डेमोक्रेट और रिपब्लिकन्स की नीतियों में क्या फर्क; 5 पॉइंट्स में समझें November 02, 2020 at 04:14PM

अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव है। यहां अर्ली वोटिंग सिस्टम के चलते मतदान पहले से जारी है। अमेरकिा में फेडरल इलेक्शन सिस्टम तो है, लेकिन राज्यों के पास भी चुनाव से संबंधित अधिकार हैं। इस बार मुकाबला वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के बीच है। दोनों की उम्र 70 साल से ज्यादा है। यहां हम आपको अमेरिकी चुनाव से जुड़ी खास जानकारी दे रहे हैं। अकसर, कुछ शब्द सुने जाते हैं। मसलन- रेड स्टेट, ब्लू स्टेट, स्विंग स्टेट। इनके अलावा दोनों पार्टियों की जानकारी भी यहां आपके लिए।

रेड स्टेट्स
आसान शब्दों में समझें तो रिपब्लिक पार्टी के दबदबे या कहें प्रभाव वाले राज्यों को रेड स्टेट कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि रिपब्लिकन पार्टी का फ्लैग रेड यानी लाल है। इसके समर्थक आपको अकसर इसी रंग के कैप या टी-शर्ट्स में दिख जाएंगे। 2016 से डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति हैं। वे रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य हैं। इस बार वे दूसरे कार्यकाल के लिए मैदान में हैं। अमेरिका के कुल 50 राज्यों में से फिलहाल 26 राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी की सरकारें और गवर्नर हैं। यानी 26 रेड स्टेट हैं।

ब्लू स्टेट्स
जिन राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रभाव ज्यादा है, उन्हें ब्लू स्टेट कहा जाता है। इसके फ्लैग में ब्लू यानी नीला रंग है। फिलहाल, 24 राज्यों में इसकी सरकारें और गवर्नर हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस बार जो बाइडेन को मैदान में उतारा है। इसके पहले बराक ओबामा इसी पार्टी से दो बार राष्ट्रपति बने। खास बात ये है कि ओबामा के दौर में बाइडेन वाइस प्रेसिडेंट थे। पार्टी उन्हें अनुभवी नेता और ट्रम्प के मुकाबले ज्यादा बेहतर कैंडिडेट बताती है जो देश में बराबरी की बात करता है।

स्विंग स्टेट्स
कुछ राज्यों को स्विंग स्टेट्स कहा जाता है। नाम से ही जाहिर होता है कि ऐसे राज्य जहां वोटर्स का मूड बदलने की संभावना होती है, वे स्विंग स्टेट्स कहलाते हैं। जैसे, ओहिया या फिर फ्लोरिडा। अकसर, हर चुनाव में स्विंग स्टेट्स बदलते रहे हैं। जैसे इस चुनाव में माना जा रहा है कि एरिजोना, पेन्सिलवेनिया और विस्कॉन्सिन स्विंग स्टेट्स साबित हो सकते हैं। इन राज्यों की वजह से बाइडेन और ट्रम्प की टक्कर दिलचस्प हो सकती है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में दोनों कैंडिडेट इन्हीं राज्यों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं।
स्विंग स्टेट्स को बैटल ग्राउंड या पर्पल स्टेट्स भी कहा जाता है। पर्पल यानी नीले और लाल को मिलाया जाने वाला रंग। चुनावी लिहाज से इसके मायने कि यहां कोई भी जीत सकता है।

डेमोक्रेट पार्टी
डेमोक्रेट पार्टी अमेरिका की सबसे पुरानी पार्टी है। करीब 200 साल (8 जनवरी 1828 से) पुरानी यह पार्टी औपचारिक गठन से पहले फेडरल पार्टी के तौर पर भी जानी गई। शुरुआती दौर में कुछ मुद्दों पर यह पूंजीवाद की समर्थक नजर आई। लेकिन, 20वीं सदी में पार्टी की नीतियों में बदलाव साफ तौर पर नजर आया। मोटे तौर पर यह आधुनिक उदारवाद की समर्थक मानी जाती है। मजबूत केंद्र सरकार चाहती है। माइनोरिटीज और महिला अधिकारों का समर्थन करती है। इसके अलावा हेल्थ, एजुकेशन, लेबर और एनवॉयरमेंट पर लिबरल पॉलिसीज यानी उदारवादी नीतियों का समर्थन करती है।

रिपब्लिकन पार्टी
1854 में रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना हुई। इसे GOP भी कहा जाता है। इसका अर्थ है- ग्रैंड ओल्ड पार्टी। डोनाल्ड ट्रम्प इसी पार्टी के सदस्य हैं। मूल रूप से इसकी नीतियां अमेरिकी परंपराओं या रूढ़िवाद की समर्थक हैं। इसकी विचारधारा के मुताबिक, सरकारों को नागरिकों के जीवन में ज्यादा दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। टैक्स कम करने पर जोर देती है। अबॉर्शन और इमीग्रेशन पर रोक लगाने की समर्थक है। इस पार्टी के ज्यादातर समर्थक अमेरिका को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले श्वेत हैं। ये गन कल्चर का विरोध नहीं करते। पिछले कुछ साल से इस पार्टी में युवा और कट्टरपंथी गुट श्वेत गुट उभरे। इन पर नस्लवादी हिंसा के आरोप लगते रहे हैं।



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What are the differences between the policies of the Red, Blue and Swing States, Democrats and Republicans; Understand in 5 points

राजधानी वियना में टेररिस्ट अटैक, 7 की मौत; यहूदी धर्मस्थल के पास भी फायरिंग November 02, 2020 at 03:59PM

ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में मंगलवार सुबह आतंकी हमला हुआ। रिपोर्ट्स के मुताबिक, गोलीबारी में 7 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोग घायल हैं। शुरुआती जानकारी के मुताबिक, 6 अलग-अलग लोकेशन्स पर फायरिंग हुई। ऑस्ट्रिया के होम मिनिस्टर कार्ल नेहमार के मुताबिक, घटना को आतंकी हमले के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। घायलों को अस्पताल शिफ्ट किया गया है।

फायरिंग जारी
ऑस्ट्रिया की सरकारी न्यूज एजेंसी ओआरएफ के मुताबिक, घटना सोमवार रात (भारतीय समय के अनुसार मंगलवार तड़के) हुई। अपडेट्स के मुताबिक, कुछ इलाकों में रुक-रुककर फायरिंग जारी थी। मारे जाने वाले लोगों के बारे में अभी पुख्ता जानकारी सामने नहीं आई है। न्यूयॉर्क टाइम्स और द गार्जियन ने इनकी संख्या 2 बताई है। वहीं, न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने मरने वालों का आंकड़ा 7 बताया है। वियना पुलिस ने अपने ट्विटर अकाउंट पर मरने वालों की संख्या नहीं बताई है। पुलिस ने कहा- हालात काफी खराब हैं। कृपया किसी भी हालत में सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बचें। मरने वालों में एक पुलिस अफसर भी शामिल है।

कौन हैं हमलावर?
अब तक इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आई कि हमलावर कितने और कौन हैं। और क्या इनका संबंध फ्रांस में पिछले दिनों हुई घटना से है। पुलिस प्रवक्ता ने कहा- हमले में एक अफसर मारा गया है। हम पूरी ताकत से उनका मुकाबला कर रहे हैं। एक हमलावर यहूदी धर्मस्थल सिनेगॉग के पास फायरिंग करता नजर आ रहा है। इसके चेहरे पर मास्क है। विएना में यहूदी समुदाय के नेता ओस्कर ड्यूटेक ने कहा- हम यह नहीं कह सकते कि हमला किसने किया और क्या हमारा धर्मस्थल ही निशाने पर था।

सोशल मीडिया पर कई वीडियो
वियना में आतंकी हमले के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। कुछ में हमलावर भी दिखाई दे रहा है। घटना रात करीब 8 बजे की बताई जा रही है। यहां सोमवार रात से ही महामारी रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया जाने वाला था। वियना के चांसलर ने कहा- हमारा शांत शहर दहशत में है।

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Vienna terrorist attack Austria | Vienna terrorist attack several dead after shooting in Austria updates.

इलेक्शन-डे से पहले 9.5 करोड़ वोट पड़े, टूटेंगे सारे रिकॉर्ड, आखिरी वोटिंग से पहले झड़पें और सड़कें जाम November 02, 2020 at 02:55PM

इलेक्शन-डे से पहले ट्रम्प और बाइडेन समर्थकों के बीच पूरे अमेरिका में तनाव, गुस्सा और कड़वाहट चरम पर पहुंच गई है। लेकिन यह वोटिंग कहीं अधिक परेशान करने वाले मोड़ पर जाकर खत्म हो रही है। बेवर्ली हिल्स जैसी जगहों पर हिंसक झड़पें होती दिखीं और लोगों ने रास्ते जाम किए। स्टोर मालिक अपनी खिड़कियों के बाहर प्लाई लगा रहे हैं, क्योंकि उन्हें अशांति की आशंका है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अमेरिकी चुनाव की अखंडता पर संदेह जाहिर किया है। उन्होंने रविवार को कहा- ‘वोटों की गिनती की प्रक्रिया का लंबे समय तक चलना भयावह है।’ चुनाव में जीत के लिए इलेक्टोरल कॉलेज के 270 वोट काफी अहम हैं और दोनों नेताओं के बीच टक्कर कड़ी दिख रही है। चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले राज्यों में ट्रम्प ने ताबड़तोड़ रैलियां की हैं। बाइडेन की रैलियों की तुलना में भीड़ भी ज्यादा दिखी है।

अमेरिकी इतिहास में 48% से कम अप्रूवल रेटिंग लेकर कभी कोई नहीं जीता

अमेरिका में चुनाव नतीजे के लिए एक दो हफ्ते तक इंतजार करना पड़ सकता है। 1904 से परंपरा रही है कि चुनाव के आखिरी दिन ही नए राष्ट्रपति का खुलासा होता रहा है। इस बार कोरोना की वजह से लोग डाक से वोट भेज रहे हैं। इनके पोलिंग बूथ तक पहुंचने और गिनती में समय लग सकता है। राष्ट्रपति ट्रम्प लंबे वक्त तक चलने वाली इस वोटिंग को धांधली बता रहे हैं और कोर्ट जाने के संकेत दे रहे हैं। पढ़िए ओपिनियन पोल के आधार पर कौन आगे चल रहा है...

जो फ्लोरिडा जीतता है, वही राष्ट्रपति बनता है...

1964 से फ्लोरिडा के मूड से पूरे अमेरिका के नतीजे का पता चलता रहा है, सिर्फ 1992 को छोड़कर। यानी राष्ट्रपति वही बनता है, जिसे फ्लोरिडा चुनता है। 2016 में ट्रम्प ने राज्य 1% मार्जिन से जीता था। इलेक्टोरल मत के लिहाज से यह तीसरा बड़ा राज्य है।

अगला राष्ट्रपति कौन होगा, ये दो संभावनाएं...

अगर ट्रम्प फ्लोरिडा हार जाते हैं तो उनके जीतने की संभावना महज 1% रह जाएगी, फ्लोरिडा जीते तो लड़ाई में बने रहेंगे

  • एजेंसी-538 की रिसर्च के मुताबिक, अगर फ्लोरिडा में बाइडेन जीते तो ट्रम्प के जीतने की संभावना 11% से 1% रह जाएगी। क्योंकि क्लिंटन को 232 इलेक्टोरल मत मिले थे, जिसमें से एक भी बाइडेन नहीं हार रहे हैं। फ्लोरिडा के 29 मत जुड़ गए तो 261 हो जाएंगे और उन्हें 10 राज्यों से मात्र एक जीतना होगा। ऐसा हुआ तो मंगलवार को नए राष्ट्रपति का पता चल जाएगा।
  • अगर ट्रम्प ने फ्लोरिडा जीत लिया तो मामला फंस जाएगा क्योंकि 538 के अनुसार ट्रम्प के पास केवल 60 सुरक्षित इलेक्टोरल वोट हैं। अगर झुकाव के अनुसार देखें तो ट्रम्प के पास कुल 134 वोट ही हो रहे हैं। ऐसे में अगर उन्हें फ्लोरिडा के 29 वोट मिल भी जाते हैं तो भी उन्हें जीतने के लिए 107 मत और चाहिए होंगे। ऐसे में रिजल्ट में एक हफ्ते तक की देरी हो सकती है।


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न्यूयॉर्क के मारियो एम क्यूमो ब्रिज पर ट्रम्प समर्थकों ने जाम लगा दिया।

ऐसा करने वाले दुनिया के पहले कपल बने स्कॉट और अगस्टीना, तीन साल पहले मई 2017 में दोनाें की मुलाकात हुई November 02, 2020 at 02:55PM

अमेरिका के स्कॉट मैर्मन और अर्जेंटीना की अगस्टीना मॉन्टफियोरी दुनिया के पहले ऐसे कपल बन गए हैं, जिन्होंने जूम एप के जरिए कानूनी रूप से शादी की है। कोरोना संक्रमण के चलते बीते 10 महीने से दोनों ही दो अलग-अलग देशों में रह रहे थे।

मई 2017 में पहली बार एक-दूसरे से मिलने के बाद स्कॉट इसी साल मार्च में अगस्टीना से मिलने 6000 किमी दूर अर्जेंटीना जाना चाहते थे, लेकिन लॉकडाउन और संक्रमण फैलने के कारण सीमाएं सील होने के कारण वे ऐसा न कर सके। आखिरकार उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप जूम के जरिए बीते हफ्ते शादी कर ली। बीते बुधवार दोनों ने उताह स्टेट काउंटी से ऑनलाइन मैरिज लाइसेंस हासिल किया था। उताह के जज और नजदीकी रिश्तेदारों के सामने उन्होंने शादी कर ली।

स्कॉट के मुताबिक, अर्जेंटीना के लिए उनकी फ्लाइट 22 मार्च की थी, लेकिन 14 मार्च को ही कोरोना के चलते दोनों देशों की सीमाएं बंद कर दी गईं। इसके बाद तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें यात्रा की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि वे न तो शादीशुदा थे और न ही रिश्तेदार। इसके बाद दोनों ने ऑनलाइन मैरिज लाइसेंस के लिए आवेदन किया था।



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मई 2017 में पहली बार एक-दूसरे से मिलने के बाद स्कॉट इसी साल मार्च में अगस्टीना से मिलने 6000 किमी दूर अर्जेंटीना जाना चाहते थे।

नेपाली सेना भारत से रिश्ते बिगाड़कर चीन से नजदीकी नहीं चाहती November 02, 2020 at 02:55PM

नए संविधान से नए नक्शे तक गलतफहमियों की शृंखला में उलझे भारत-नेपाल के रिश्ते अब सुलझने की ओर हैं। खास बात यह है कि ऐसा ‘सैन्य डिप्लोमेसी’ की बदौलत हो सका है। पड़ोसी देशों के राजनेताओं के बयानों में भले तल्खी आई हो, मगर दोनों देशों की सेनाओं के बीच रिश्तों में गर्माहट कभी कम नहीं हुई।

हाल ही में भारत के रॉ चीफ सामंत कुमार गोयल की यात्रा और अब 4 नवंबर को भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे के नेपाल दौरे को द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। नेपाल में सत्ता के उच्चपदस्थ सूत्रों की मानें तो यह नेपाली सेना और खासतौर पर सेनाध्यक्ष जनरल पूर्णचंद थापा की कोशिशों का नतीजा है।

नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट दल की भीतरी खींचतान तक चीन का दखल होने के बावजूद वहां की सेना यह नहीं चाहती कि भारत से रिश्ते खराब करने की कीमत पर चीन से नजदीकी हासिल की जाए। भारत-चीन के मुद्दे पर नेपाल तटस्थ ही रहना चाहता है। नरवणे की यात्रा के बाद विदेश मंत्री या विदेश सचिव स्तर का दाैरा संभव हाे सकता है।

नेपाल के आर्मी चीफ कई बार दे चुके हैं संकेत

नेपाल आर्मी के एक वरिष्ठ मेजर जनरल के मुताबिक, कई संदेशों के जरिये भारत और नेपाल के सेनाध्यक्ष इस बात पर सहमत हुए कि दाेनाें देशाें काे सभी स्तर पर बातचीत फिर शुरू करना चाहिए। ताकि गलतफहमियां दूर हाें और तीसरे पक्ष काे खेल दिखाने का माैका न मिले। 2016 में भारत आ चुके और बातचीत की पहल करने वाले थापा मानते हैं कि यह स्पष्ट संदेश देने का माैका भी है कि भारत और चीन के बीच नेपाल तटस्थ है।

नेपाल दाैरे के दाैरान 5 नवंबर काे नरवणे काे राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी नेपाल आर्मी के मानद सेनाध्यक्ष सम्मान से नवाजेंगी। यह परंपरा है कि दाेनाें देशाें के सेनाध्यक्ष एक-दूसरे देश की सेना के मानद सेनाध्यक्ष हाेते हैं। इसके साथ ही बातचीत का सिलसिला शुरू हाेगा।



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नेपाल दाैरे के दाैरान 5 नवंबर काे नरवणे काे राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी नेपाल आर्मी के मानद सेनाध्यक्ष सम्मान से नवाजेंगी। (फाइल फोटो)

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावः जानिए कैसे अमेरिकन देसी तय करेंगे अबकी बार किसकी सरकार? November 02, 2020 at 02:33PM

इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में अमेरिकन देसी यानी भारतीय अमेरिकियों की रुचि सामान्य से ज्यादा है। एक तो भारतीय मूल की कमला हैरिस को डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने रनिंग मेट चुना है। फिर डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है, लेकिन बात बस इतनी नहीं है।

चार साल पहले 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प का फुटेज सामने आया था, यह कहते हुए कि अबकी बार ट्रम्प सरकार। जाहिर है, वे सीधे-सीधे भारतीय अमेरिकियों पर निशाना साध रहे थे। कहीं न कहीं, भारतीय-अमेरिकी उनकी जीत में निर्णायक रहे भी। तभी तो ट्रम्प के ‘फोर मोर ईयर्स’ कैम्पेन में मोदी की ह्यूस्टन रैली का फुटेज जोड़ा गया है। भारत के लिए तो ट्रम्प से पहले के राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक भी करीब की रही है। तभी तो बाइडेन ने न केवल भारतीय मूल की कमला हैरिस को रनिंग मेट बनाया, बल्कि भारतीय अमेरिकियों के लिए अलग से चुनाव घोषणापत्र भी जारी किया।

6 तारीखों से जानिए अमेरिका में राष्ट्रपति कैसे चुनते हैं; हमारे यहां से कितना अलग है सिस्टम?

क्या महत्व रखते हैं अमेरिकी चुनावों में भारतीय-अमेरिकन?

  • इतना समझ लीजिए कि नंबरों से इसका कोई संबंध नहीं है। कार्नेगी एनडाउमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में 19 लाख भारतीय मूल के वोटर हैं। यानी कुल वोटर्स का 0.82% हिस्सा। आप कहेंगे कि यह कैसे रिजल्ट प्रभावित कर सकते हैं? जवाब के लिए आपको अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया को समझना होगा। यहां सबसे ज्यादा वोट पाने वाला कैंडीडेट नहीं जीतता, बल्कि वह राष्ट्रपति बनता है, जिसके पास इलेक्टोरल कॉलेज के कम से कम 270 इलेक्टर का साथ होता है।
  • अमेरिकी चुनावों में देसी अमेरिकियों का दूसरा महत्व है- उनकी कमाई। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन (AAPI) के मुताबिक, 2018 में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की सालाना आय 1.39 लाख डॉलर थी। गोरे, हिस्पैनिक और अश्वेत वोटर्स की औसत सालाना आय 80 हजार डॉलर से कम थी। साफ है कि भारतीय समुदाय अमेरिका के प्रभावशाली तबके में आता है। लॉस एंजिलिस टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 प्रेसिडेंशियल कैम्पेन के लिए भारतीय-अमेरिकियों ने दोनों प्रमुख पार्टियों को 3 मिलियन डॉलर से अधिक का डोनेशन किया है। यह हॉलीवुड से मिले डोनेशन से भी ज्यादा है।

अमेरिका ने फिर लगाया रूसी हैकर्स पर साइबर हमलों का आरोप; जानिए चुनावों से पहले इन आरोपों का क्या मतलब है?

तो क्या सिर्फ कमाई की वजह से देसी अमेरिकियों का महत्व है?

  • नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल, अमेरिका में बैलटग्राउंड स्टेट्स या स्विंग स्टेट्स ही मोटे तौर पर ट्रम्प और बाइडेन की जीत-हार तय करेंगे। 2016 में भी इन्हीं स्टेट्स ने नतीजा तय किया था। विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम की वजह से इन स्टेट्स में यदि किसी पार्टी को एक वोट भी ज्यादा मिला तो वहां के सभी इलेक्टर उसी पार्टी के होंगे।
  • 2016 के चुनावों में रिपब्लिकन कैंडीडेट ट्रम्प की जीत और डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन की हार तय हुई थी सिर्फ 77,744 वोट्स से। इस तरह दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति के चुनाव में कुछ चुनिंदा राज्यों के कुछ हजार वोटर निर्णायक हो गए। ट्रम्प ने 3 स्टेट्स- मिशिगन (10,704 वोट्स से), विसकॉन्सिन (22,748 वोट्स से) और पेनसिल्वेनिया (44,292 वोट्स से) में जीत हासिल की और उन्हें इसके बदले 46 इलेक्टर वोट्स मिले थे। यदि यह क्लिंटन को मिलते तो उनके पास 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स में 274 वोट्स होते और वह प्रेसिडेंट होतीं।

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बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स में भारतीय अमेरिकियों की क्या भूमिका है?

  • अमेरिका में कुछ स्टेट्स रिपब्लिकन के प्रभुत्व वाले हैं और कुछ स्टेट्स डेमोक्रेट्स के। कुछ स्टेट्स ऐसे हैं, जिधर खड़े होते हैं, उसका ही पलड़ा भारी कर देते हैं। इन स्टेट्स को ही बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स कहते हैं। काफी हद तक इन स्टेट्स पर ही किसी कैंडीडेट की जीत-हार तय होती है। इनमें जीत-हार का अंतर भी काफी कम होता है।
  • 6 स्टेट्स ऐसे हैं, जहां बराक ओबामा 2012 में जीते, लेकिन 2016 में ट्रम्प को उनका साथ मिला। इन 6 स्टेट्स में फ्लोरिडा (इलेक्टोरल वोट्स 29), पेनसिल्वेनिया (20), ओहियो (18), मिशिगन (16), विसकॉन्सिन (10), और आईओवा (6) शामिल हैं। इनमें फ्लोरिडा, पेनसिल्वेनिया, मिशिगन और विसकॉन्सिन में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की प्रभावी संख्या है।
  • YouGov और कैम्ब्रिज एन्डाउमेंट सर्वे के मुताबिक, 72% भारतीय अमेरिकी बाइडेन को वोट डालेंगे, जबकि 22% डोनाल्ड ट्रम्प को। यदि हम मानते हैं कि सब फैक्टर 2016 जैसे ही रहेंगे तो भारतीय अमेरिकियों का 72% सपोर्ट बाइडेन को प्रेसिडेंट बनाने में मददगार साबित होगा। मिशिगन में बाइडेन को 90 हजार, विसकॉन्सिन में 26,640 वोट्स और पेनसिल्वेनिया में 1,12,320 वोट्स भारतीयों के मिलेंगे। यानी डेमोक्रेट्स इनके दम पर 2016 की हार को 2020 में जीत में बदल सकते हैं।


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Donald Trump Vs Joe Biden; Know Why Indian Americans Vote Matter In US Presidential Election 2020

अमेरिकन्स को हिंसा का डर, रिकॉर्ड तोड़ 1 करोड़ 70 लाख बंदूकें खरीदीं, खरीददारों में अश्वेत और महिलाएं सबसे ज्यादा November 02, 2020 at 01:30PM

पूरी तरह दो विरोधी खेमों में बंट चुके अमेरिकी लोग राष्ट्रपति चुनाव से पहले बंदूकों की खरीदारी पर उतर आए हैं। मंगलवार को मतदान और उसके बाद हिंसा की आशंका से घिरे अमेरिकन इस साल अब तक 1 करोड़ 70 लाख से ज्यादा बंदूकें खरीद चुके हैं। करीब 60 लाख लोग ऐसे है जिन्होंने पहली बार किसी तरह का हथियार खरीदा है। इनमें भी अश्वेत सबसे ज्यादा हैं। करीब 40% महिलाएं हैं। अकेले सिंतबर में 18 लाख बंदूकें खरीदी गईं। यह पिछले साल से 66% ज्यादा है।
अमेरिका में छोटे हथियारों की खरीदारी का विश्लेषण करने वाली रिसर्च कन्सल्टेंसी स्मॉल आम्र्स एनालिटिक्स एंड फोरकास्टिंग (एसएएएफ) के चीफ इकोनोमिस्ट जर्गन ब्रेउर बताते हैं कि अगस्त तक पिछले साल के बराबर बंदूके बिक चुकी थीं। वहीं सितंबर में अब तक की सबसे ज्यादा बिक्री का रिकॉर्ड को छू लिया था। इससे पहले 2016 में सबसे ज्यादा 1.66 करोड़ बंदूकें बिकी थीं।


सबसे ज्यादा हैंडगन की बिक्री में बढ़ोतरी
पूरे अमेरिका में सितंबर 2019 के मुकाबले इस वर्ष सितंबर में हैंडगन की बिक्री में 81% और सिंगल लॉन्ग गन की बिक्री में 51% बढ़ोतरी हुई। बाकी तरह की बंदूकों की 50% ज्यादा खरीदारी हुई। जानकारों का कहना है कि आत्मरक्षा के नाम पर बंदूकें खरीदीं हैं, इसलिए ही कपड़ों में रखी जा सकने वाली हैंडगन की सबसे ज्यादा बिक्री हो रही है।

बंदूकों की ज्यादा बिक्री की दो प्रमुख कारण


1- चुनाव के बाद हिंसा का डर
चुनावी माहौल में दो खेमों में बंट चुके अमेरिकी चुनाव के बाद नतीजों को लेकर हिंसा हो सकती है। ऐसे में आत्मरक्षा के लिए छोटे हथियारों की जरूरत पड़ सकती है।

2-गन कल्चर पर रोक की संभावना
डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन अमेरिका में गन कल्चर को सख्त कानून के जरिए रोकने के पक्षधर हैं। सर्वे में बाइडेन ट्रंप से आगे हैं। माना जा रहा है बाइडेन जीते तो बंदूकों पर नियंत्रण लागू हो सकता है। ऐसे में लोग पहले ही हथियार खरीदकर रख लेना चाहते हैं।

वालमार्ट ने स्टोर्स से बंदूक और कारतूस हटाए
वालमार्ट ने इसी सप्ताह अपने सभी स्टोर्स में डिस्प्ले से बंदूकों और कारतूसों को हटा दिया। स्टोर मैनेजरों ने लूटपाट के हालात में स्टोर्स से बंदूकों को लूटे जाने संभावना को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया है। वालमार्ट ने पिछले साल सेना जैसी राइफलों के कारतूस न बेचने का फैसला किया था।


ट्रंप फिर बोले- कई सप्ताह नहीं आएगा रिजल्ट, अव्यवस्था फैलेगी
पेनसिल्वानिया के न्यूटाउन और रीडिंग में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार को कहा कि 3 नवंबर को मतदान के बाद भी चुनाव का फैसला नहीं हो पाएगा। मतपत्रों की गिनती नहीं हो सकेगी। लोगों को कई सप्ताह तक परिणाम का इंतजार करना पड़ेगा। समय पर नतीजा नहीं आएगा क्योंकि पेनसिल्वानिया बहुत बड़ा राज्य है। 3 नवंबर चला जाएगा और हमें जानकारी नहीं मिलेगी। हम अपने देश में अव्यवस्था फैलते हुए देखेंगे। ट्रंप एक बार पहले भी ऐसा बयान दे चुके हैं।

जकरबर्ग को भी अराजकता का अंदेशा
फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग भी राष्ट्रपति चुनाव के बाद अराजकता की आशंका जाहिर कर चुके हैं। उन्होंंने कहा, मुझे चिंता है हमारा देश इतना ज्यादा बंट गया है। चुनाव के नतीजों को आने में कई दिन या सप्ताह लग सकते हैं, ऐसे में पूरे देश में अराजकता फैलने का खतरा है।



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