चीन में मुस्लिमों के बाद अब ईसाई समुदाय की धार्मिक पहचान खतरे में पड़ती नजर आ रही है। यहां क्रिश्चियन्स को आदेश दिया गया है कि वे घरों में लगी जीसस क्राइस्ट की फोटोग्राफ्स और क्रॉस फौरन हटाएं और इनकी जगह कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के चित्र लगाएं। कुछ दिन पहले देश के चार राज्यों में सैकड़ों चर्चों के बाहर लगे धार्मिक प्रतीक चिन्हों को हटाया जा चुका है। चीन में करीब 7 करोड़ ईसाई रहते हैं।
अमेरिकी वेबसाइट ने किया खुलासा
चीन की इस नई हरकत का खुलासा रेडियो फ्री एशिया की एक रिपोर्ट में किया गया है। इसके मुताबिक, हाल ही में अन्शुई, जियांग्सु, हेबई और झेजियांग में मौजूद चर्चों के बाहर लगे रिलीजियस सिम्बल्स यानी धार्मिक प्रतीक चिन्हों को या तो तोड़ दिया गया या फिर इन्हें हटा दिया गया था।
अब नया फरमान
चर्चों में तानाशाही दिखाने के बाद अब शी जिनपिंग सरकार ईसाई समुदाय के घरों को निशाना बना रही है। जीसस क्राइस्ट के फोटोग्राफ और प्रतीक चिन्ह क्रॉस को हटाने को कहा गया है। इनकी जगह सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के फोटोग्राफ लगाने का फरमान सुनाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन किसी तरह की धार्मिक गतिविधियों को मंजूरी नहीं देना चाहता। लिहाजा, इस तरह के आदेश जारी किए जा रहे हैं।
क्रॉस को तोड़ा गया
हुआनान प्रांत में पिछले शनिवार और रविवार को काफी हंगामा हुआ। शनिवार को यहां सरकारी अमला पहुंचा। उसने शिवान क्राइस्ट चर्च के बाहर लगे बड़े क्रॉस को हटाने को कहा। इसके बाद वहां काफी लोग जुट गए। उन्होंने इसका विरोध किया। लेकिन, उनकी आवाज दबा दी गई। पुलिस और दूसरे सरकारी अमले ने क्रॉस को ढहा दिया। 7 जुलाई को झेजियांग में भी यही हुआ था। इसके लिए 100 से ज्यादा कर्मचारी लगाए गए थे।
धार्मिक किताबों पर भी रोक
पिछले साल जिनपिंग सरकार ने एक आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि देश में किसी भी तरह की धार्मिक किताबों का इस्तेमाल या उनका ट्रांसलेशन नहीं किया जा सकता। आदेश न मानने वालों को सजा की धमकी भी दी गई थी। बता दें कि यहां शिनजियांग प्रांत में लाखों मुस्लिमों को कैद करके रखने के आरोप चीन पर लगते रहे हैं।
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