चीन में उइगर मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार, मानवाधिकार उल्लंघन और शोषण का मामला अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट पहुंच गया है। उइगर समुदाय से जुड़ी पूर्वी तुर्किस्तान की निर्वासित सरकार और जागरूकता आंदोलन चलाने वाली संस्था ने संयुक्त रूप से यह मामला दर्ज कराया है। पूर्वी तुर्किस्तान काे चीन में शिनजियांग क्षेत्र का नाम दिया गया है।
उइगर समुदाय के लोग सालों से इस क्षेत्र की आजादी की मांग कर रहे हैं। ये पहला मामला है, जब चीन से अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत उइगरों पर जारी अत्याचार से संबंधित पूछताछ की जा सकती है। लंदन के वकीलों के एक समूह ने चीन में उइगर समुदाय पर जारी अत्याचार और हजारों उइगरों को कानून का उल्लंघन कर कंबोडिया और ताजिकिस्तान डिपोर्ट किए जाने के संबंध में शिकायत दर्ज कराई है। इस केस में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार से जुड़े 80 लोगों पर उइगरों के नरसंहार का आरोप लगाया गया है।
शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद बढ़ा जुर्म
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता में आते ही उइगर मुसलमानों के साथ साम,दाम, दंड, भेद की नीति अपनाते हुए उन पर अपने धर्म को त्यागने और चीन की हुकूमत को स्वीकारने का दबाव बढ़ा दिया है। इस क्षेत्र में सरकार उइगरों से गलियाें और सड़कों की सफाई करवा रही है। युवाओं से जबरन बड़ी फैक्ट्रियों में ले जाकर काम करवाया जा रहा है।
जबरन नसबंदी करवा रही सरकार
एसोसिएटेड प्रेस और जर्मन शोधकर्ता एड्रियन जेंस ने जांच में इस बात का भी पता लगाया कि सरकार यहां अल्पसंख्यकों में जबरन जन्मदर कम करने के लिए नसबंदी और गर्भपात का बड़े पैमाने पर अभियान चला रही है। यहां सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को नजरबंद कर दिया जाता है।
इसके लिए क्षेत्र में कई कैम्प बनाए गए हैं। पिछले साल कैंम्प में 58 लोगों को मार दिया गया था। शिकायतकर्ता के वकील रॉडनी डिक्सन का कहना है कि जांचकर्ताओं को सबसे पहले नरसंहार की जांच करनी चाहिए, क्योंकि यहां एक पूरे समुदाय के अस्तित्व को मिटा देने की साजिश रची जा रही है।
शिनजियांग में पिछले 3 सालों में 18 लाख से ज्यादा उइगर लापता हैं
पूर्वी तुर्किस्तान यानी शिनजियांग में पिछले 3 सालों में 18 लाख से ज्यादा उइगर और अन्य अल्पसंख्यक या तो कैद किए गए हैं या तो मारे जा चुके हैं। इसी दौरान यहां की जनसंख्या बढ़ने के क्रम में भी 84% की कमी आई है। वकील रॉडनी डिक्सन ने कहा कि ये बेहद अहम केस होगा, क्योंकि चीन को पहली बार जवाबदेही का सामना करना पड़ेगा।
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