चीन बेशक ताकतवर है लेकिन इतना भी नहीं कि भारत, अमेरिका, जापान जैसे देशों से एक साथ दुश्मनी कर सके। चीन ताकत से ज्यादा धौंस दिखा रहा है। वह न सुपर पावर है, न कभी बन सकता है।’ यह कहना है प्रो.जॉन ली का।
प्रो. ली सिडनी यूनिवर्सिटी औरअमेरिका के हडसन इंस्टीट्यूट में चीन की पॉलिटिकल इकॉनोमी व इंडो पैसिफिक रीजन के विशेषज्ञ हैं। वे कहते हैं चीन जताना चाहता है कि वह उभरता हुआ सुपर पावर है। पर सच्चाई अलग है। वहांं जल्द ही युवाओं से ज्यादा बूढ़ों की आबादी होगी। यह औसत 1.5 है, जबकि 2.1 होना चाहिए। भारत-चीन के तनाव पर भास्कर के रितेश शुक्ल ने प्रो. ली से बात की। पढ़िए प्रमुख अंश...
अर्थव्यवस्था का खोखलापन: चीन की कंपनियों का उधार भी देश की जीडीपी का दोगुना
चीन के पास 3 लाख कराेड़ डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व है। उसने इसका हिस्सा भी सैन्य ताकत बढ़ाने में खर्च किया, तो उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। एक और भ्रांति है कि चीन ने अमेरिका को इतना उधार दे रखा है कि वह उसे अपने चंगुल में फंसा सकता है। लेकिन असल में चीन के पास अमेरिका की मात्र 5% फाइनेंशियल सिक्योरिटी है।
चीन अमेरिका से उलझता है तो अमेरिका उसके डॉलर ऐसेट फ्रीज कर सकता है, जिसका खामियाजा चीन बर्दाश्त नहीं कर सकेगा। चीन की घरेलू अर्थव्यवस्था भी स्वस्थ नहीं है। साल 2000 के बाद से चीन सरकार ने बैंकों को कम और निगेटिव दरों पर उधार देने के लिए विवश किया है।
लिहाजा साल 2008 से वहां सरकारी उधार की वृद्धि दर 20% है, जो उसकी जीडीपी की वृद्धि दर से ज्यादा है। चीनी कंपनियों का उधार देश की जीडीपी का दोगुना है। वहीं उसका कुल उधार जीडीपी का तीन गुना से ज्यादा है।
घरेलू विरोधदबाने के लिए पुलिस का बजट 220 अरब डॉलर, रक्षा का 200 अरब डॉलर
चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसका रक्षा बजट उसके आंतरिक सुरक्षा बजट से कम है। उसकी आंतरिक व्यवस्था इतनी कमजोर है कि सरकार को आर्म्ड पुलिस पर सालाना 220 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च करना पड़ता है। जबकि उसका रक्षा बजट 200 अरब डॉलर है। इसमें पुलिस का खर्च नहीं जुड़ा है। चीन में सरकार के खिलाफ 1 लाख से ज्यादा हिंसक प्रदर्शन होते हैं और पुलिस इनका दमन करती है। दुनिया को अंदाजा भी नहीं है कि कम्युनिस्ट पार्टी का अस्तित्व कितने खतरे में है।
एलओसी पर कार्रवाई से भारत का संयम तोड़ा
चीन ने लद्दाख में भारत के साथ उलझकर बड़ी गलती कर दी है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान भारत के साथ मिलकर चीन को घेरने के मंसूबे बना रहे थे, लेकिन भारत इस आशा में संयम बरत रहा था कि वह चीन समेत बड़े देशों के साथ मिलकर विकास के रास्ते पर चल सकता है। लेकिन एलओसी पर कार्रवाई कर चीन ने भारत का संयम तोड़ दिया है।
चीन जताना चाहता है कि वह उभरता हुआ सुपर पावर है। लेकिन सच्चाई अलग है। कोई भी देश तब सुपर पावर होता है, जब वह दुनिया में कहीं भी-कभी भी सैन्य कार्रवाई में सक्षम हो। आर्थिक मजबूत हो। उसकी युवा आबादी अधिक हो। इन मापदंडों पर चीन की असल स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
तेजी से बूढ़ा हो रहा है चीन
युवा और वृद्धों में संतुलन के लिए अनिवार्य है कि औसतन प्रति परिवार 2.1 बच्चे पैदा हाें, ताकि हर साल जितने लोग रिटायर हों, उससे ज्यादा युवा काम करने की उम्र के हों। 2017 पहला ऐसा साल था, जब चीन में जितने लोग रिटायर हुए, उससे कम युवा रोजगार की उम्र तक पहुंच पाए थे।
चीन में औसतन प्रति परिवार करीब 1.5 बच्चे जन्म ले रहे हैं। यह अमेरिका से भी कम है। भारत में यह औसत 2.2 है। 2030 तक चीन की डेमोग्राफी पश्चिमी यूरोप जैसी होगी और 2040 तक जापान जैसी, लेकिन उसकी संपन्नता इन देशों जैसी नहीं होगी। तय है कि चीन अमीर होने से पहले बूढ़ा हो जाएगा।
चीन ने स्वास्थ्य सेवाओं और पेंशन सुविधाओं को नजरअंदाज किया है। इसलिए आने वाले समय में बूढ़ी हो रही आबादी को पालने की जिम्मेदारी चीन सरकार को उठानी पड़ेगी। ऐसी परिस्थिति में चीन की ताकत कम ही होगी।
भारत हिंद महासागर में चीन की मुश्किल बढ़ा सकता है
भारत चाहे तो हिंद महासागर में चीन को बड़ी मुश्किल में डाल सकता है। चीन समुद्री मार्ग से तेल आयात करता है। साथ ही जरूरत का 50% खाद्य पदार्थ भी इसी मार्ग से आता है। यह भारत के लिए एक अप्रत्याशित मौका है।
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