पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर सोमवार को हुए हमले की जिम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली। 1970 में यह संगठन अलग बलूचिस्तान की प्रांत की मांग के समर्थन में बना था। जब इसका दायरा और प्रभाव बढ़ने लगा तो जनरल जिया उल हक की तानाशाह सरकार के दौर में इससे बातचीत भी हुई। लेकिन, मसला हल नहीं हुआ। साल 2000 में संगठन पर बलूचिस्तान हाईकोर्ट के जस्टिस नवाब मिरी का आरोप लगा। एक नेता गिरफ्तार हुआ।
इसके बाद से बीएलए पर पाकिस्तानी फौज और सरकार के संस्थानों पर हमले के आरोप लगते रहे हैं। अमेरिका ने पिछली साल इसे आतंकी संगठनों की सूची में डाल दिया था।
नेताओं की ट्रेनिंग मॉस्को में होने का दावा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बलूच आर्मी में करीब 6 हजार लड़ाके हैं। इनमें से दो हजार जंग की ट्रेनिंग हासिल कर चुके हैं। 2006 के बाद बीएलए पाकिस्तान की फौज और सरकार के लिए बहुत मुश्किल चुनौती बन गई है। इसके हमलों में सैकड़ों पाकिस्तानी फौजी मारे जा चुके हैं। फरवरी में तो एक ही हमले में 30 पाकिस्तानी फौजी मारे गए थे। दावा किया जाता है कि बीएलए के कुछ लड़ाकों को ट्रेनिंग रूस की पूर्व खुफिया एजेंसी केजीबी ने मॉस्को में दी। बाद में इन लोगों ने अपने साथियों को ट्रेंड किया।
दो कबीलों के लोग
बलूचिस्तान में दो मुख्य कबीले हैं। इन दोनों का ही बीएलए पर दबदबा है। ये हैं मारी और बुगती। हालात ये हैं कि कई इलाकों में इनके डर की वजह से पाकिस्तानी फौज जमीन पर नहीं उतरती। इसलिए हवाई हमले किए जाते हैं। हाल ही बीएलए ने पाकिस्तानी सेना की कई चेक पोस्ट पर कब्जा कर लिया। सैनिक भी मारे गए। इसके बाद हवाई हमले हुए।
चीन की भी मुश्किल
2004 में चीन ने बलूचिस्तान में पैर पसारना शुरू किया। बीएलए ने इसका विरोध किया। उसने चीन को सीपैक और ग्वादर पोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स का विरोध किया। बीएलए का कहना है कि चीन के साथ मिलकर पाकिस्तान उनकी संस्कृति को खत्म करना चाहता है। चीनियों के सुरक्षा देने के लिए पाकिस्तान के करीब 30 हजार सैनिक यहां तैनात किए गए हैं। 2018 में कराची में चीनी कॉन्स्युलेट पर हमले की जिम्मेदारी बीएलए ने ही ली थी।
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