Friday, April 17, 2020

भारत में मानसिक रोग के मरीजों की संख्या 20 फीसदी तक बढ़ी, विशेषज्ञ बोले- मोबाइल से निगरानी जैसी तकनीक खोजें, ताकि लोग मजबूत बनें April 17, 2020 at 02:52PM

कोरोनावायरस से दुनियाभर में भय और चिंता का माहौल पैदा हो गया है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस त्रासदी के कारण पूरी दुनिया को खराब मानसिक सेहत का सामना करना पड़ सकता है और लंबे समय तक इसका प्रभाव रहेगा। न्यूराेसाइंटिस्ट, मनाेचिकित्सक और मनाेवैज्ञानिकों का कहना है कि लाेगाें की मानसिक स्थिति पर काेई असर न पड़े, इसके लिए सभी देशों को लक्षण आधारित इलाज और रिसर्च को बढ़ावा देने का काम तुरंत शुरू कर देना चाहिए। साथ ही ऐसे मामलों की दुनियाभर में एक साथ निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए।

ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोरी ओकॉनर ने कहा कि शराब, नशे की लत, जुआ, साइबर बुलिंग, रिश्तों का टूटना, बेघर होने के कारण चिंता और डिप्रेशन से असामान्य व्यवहार करने वालों की अनदेखी से आगे समस्या और बढ़ जाएगी। संकट के इस दौर में लोगों की ऐसी समस्याओं को नजरअंदाज करने से न केवल उनका जीवन, बल्कि समाज भी प्रभावित होगा। ऐसे लोगों पर नजर रखने की जरूरत है, जो गंभीर रूप से डिप्रेशन में हैं, या उनमें आत्मघाती कदम उठाने के विचार आते हैं। उनकी निगरानी मोबाइल फोन जैसी नई तकनीकी माध्यम से किए जाने की जरूरत है।

मानसिक स्वास्थ्य को जांचने के लिए स्मार्ट तरीके खोजने होंगे

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रो. एड बुलमोर ने कहा- हमें डिजिटल संसाधनों का उपयोग करना होगा। लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को जांचने के लिए स्मार्ट तरीके खोजने होंगे, तभी इस चुनौती का सामना कर पाएंगे।दरअसल, ब्रिटेन में ‘लैंसेट साइकेट्री’ ने मार्च के अंत में 1,099 लोगों का सर्वे किया था। इसमें पता चला कि लॉकडाउन और आइसोलेशन में रहने की वजह से लोगों में कारोबार डूबने, नौकरी जाने और बेघर होने तक का खौफ पैदा हो गया है।

देश में भी मानसिक पीड़ितों की संख्या 15 से 20 फीसदी बढ़ी
इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के सर्वे के मुताबिक, कोरोनावायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या 15 से 20 फीसदी तक बढ़ गई है। दुनियाभर में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में केवल 1 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स ही मेंटल हेल्थ के इलाज से जुड़े हुए हैं। भारत में इसका आंकड़ा और भी कम है।



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दुनियाभर में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में केवल 1 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स ही मेंटल हेल्थ के इलाज से जुड़े हुए हैं। भारत में इनकी संख्या और कम।

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