स्वीडन चर्च के इतिहास में पहली बार पुरुष पुजारियों की तुलना में महिला पुजारी ज्यादा हो गई हैं। स्वीडन चर्च ने यह जानकारी दी है। देश में कुल 3060 पुजारी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें 1533 यानी करीब 50.1% महिलाएं हैं। स्वीडन चर्च की सेक्रेटरी क्रिस्टिना ग्रेनहोम के मुताबिक, यह ऐतिहासिक है।
हमने अनुमान लगाया था कि पुरुषों को पीछे छोड़ने का काम 2090 तक होगा, पर यह बदलाव बहुत तेजी से हुआ है।कैथोलिक चर्च के विपरीत स्वीडन में लूथरन चर्च ने महिलाओं को पूजा-प्रार्थना कराने की अनुमति 1958 में दी थी।
महिलाओं को धर्म से जुड़े पाठ्यक्रमों में ज्यादा महत्व दिया गया
1960 में पहली बार तीन महिलाओं ने यह जिम्मेदारी संभाली थी। इसके बाद 1982 में स्वीडन की संसद ने उस विशेष खंड को भी निरस्त कर दिया था, जिसमें पुरुष पुजारी को महिला को सहयोग देने से इनकार करने का अधिकार था। वर्ष 2000 में चर्चों को राज्य से अलग करने के बाद महिलाओं को धर्म से जुड़े पाठ्यक्रमों में ज्यादा महत्व दिया गया।
भगवान की सेवा में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए
ग्रेनहोम ने बताया कि रविवार की सेवा के दौरान हम पुरुष और महिलाओं प्रीस्ट को समान मौके देते हैं। इससे भी उनमें आत्मविश्वास बढ़ने लगा है। वैसे भी हम इस बात को मानते है कि भगवान ने महिला-पुरुष दोनों को बनाया है। तो फिर भगवान की सेवा में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। और ऐसा दिखना भी चाहिए।
जेनी होगबर्ग ने कहा- मील का पत्थर पार किया, फिर भी भेदभाव दूर नहीं हुआ
स्वीडन चर्च में भले ही महिला प्रीस्ट की संख्या पुरुषों से ज्यादा हो गई है, पर उनके साथ भेदभाव जारी है। पुरुष प्रीस्ट की तुलना में उनकी तनख्वाह 18 हजार रुपए तक कम है।
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