Tuesday, March 24, 2020

वैज्ञानिकों ने बताया- क्यों नहीं खोज पा रहे कोरोनावायरस का इलाज? March 24, 2020 at 02:54AM

वाशिंगटन.दुनियाभर में फैले कोरोनावायरस के बारे में वैज्ञानिकों ने कई खुलासे किए हैं। वैज्ञानिक इसे बमुश्किल जीवित जीव मानते हैं।अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी में वायरोलॉजी के प्रोफेसर गैरी व्हिटेकर के मुताबिक यह केमिस्ट्री और बायोलॉजी के बीच की कड़ी है। कभी इसकी वजह से रासायनिक क्रियाएं होती हैं, तो कभी यह माइक्रोब्स का आभास कराता है। यह वायरस सजीव और निर्जीव के बीच की कड़ी है। यही कारण है कि अभी तक इसका इलाज नहीं खोजा जा सका।


वायरस को नियंत्रित करना क्यों कठिन?

लक्षण देर में सामने आते हैं
वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी शरीर के बाहर वायरस निष्क्रिय है। इसमें प्रजनन, गति और मेटाबॉलिज्म जैसे लक्षण नहीं होते।लेकिन, जैसे ही यह हमारे शरीर में आता है। अपने जैसे लाखों वायरस बनाने के लिएहमारी कोशिकाएं हाईजैक कर लेता है। इसकी विशेषता यह है कि इसके लक्षण सार्स और मर्स की तुलना में बहुत देर से दिखते हैं। लोगों को जब तक संक्रमित होने का पता चलता है, तब तकवे दूसरों तक संक्रमण फैला चुके होते हैं।

डेंगू, जीका वायरस से तीन गुना बड़ा है कोरोना
कोरोनावायरस आकार में डेंगू, वेस्ट नाइल और जीका फैलाने वाले वायरसों से तीन गुना बड़ा है। टेक्सॉस मेडिकल ब्रांच के वायरोलॉजिस्ट विनीत मैनचेरी ने एक उदाहरण से इसे समझाया। उनके मुताबिक, अगर डेंगू के पास शरीर पर हमला करने के लिए एक हथौड़ा है तो कोरोनाके पास अलग-अलग आकार के तीन हथौड़े हैं। यह हालात बदलने पर अपनी प्रकृति बदलकर हमला करता है।

कोरोनावायर सामान्य रेस्पिरेटरी वायरस से बिल्कुल भिन्न है

यह वायरस सामान्य रेस्पिरेटरी (श्वसन) वायरस से बिल्कुल अलग है। आमतौर पर ये वायरस शरीर में एक समय पर एक जगह हमला करते हैं। अगर येगले और नाक पर हमला करते हैं तो वहीं तक रहते हैं और खांसी और छींक के माध्यम से दूसरों तक संक्रमण फैलाते हैं। कुछ वायरस फेफड़ों परहमला करते हैं।जहां वे संक्रमण तो नहीं फैलाते,लेकिन जानलेवा बन जाते हैं। कोरोनावायरस दोनों जगह एक साथ हमला करता है। यह गले और नाक के माध्यम से संक्रमण भी फैलाता है और फेफड़े में कोशिकाओं को मारकर जान भी ले लेता है।

कोरोनावायरस का आकार हमारी पलक की चौड़ाई के एक हजारवें भाग के बराबर है।

धीरे-धीरे सामान्य वायरस में बदल जाएगा कोरोना
कुछ वायरोलॉजिस्ट का मानना है कि कोरोनावायरस वास्तव में हमें मारना नहीं चाहता। अगर शरीर स्वस्थ रहता है तो यह उनके लिए फायदेमंद होता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि कि हजारों लोगों की जान लेने वाला कोरोनावायरस अपने जीवन के शुरुआती चरण में है। जब यह किसी शरीर में आता है तो अपनी आबादी को बेतहाशा बढ़ाता है। जिसकी वजह से व्यक्ति की मौत हो जाती है। ये वायरस के लिए भी नुकसानदायक होता है। लेकिन, समय के साथ इसका आरएनए बदल जाएगा। भविष्य में यह सामान्य वायरस में बदल जाएगा जो सिर्फ खांसने, छींकने तक ही सीमित रहेगा।

वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड
वायरस के संक्रमण से लक्षण दिखने तक के समय को इन्क्यूबेशन पीरियड कहते हैं। इतने समय में वायरस शरीर में जम जाता है। वायरस शरीर में दो स्थानों पर ज्यादा सक्रिय होते हैं। पहला गला और दूसरा फेफड़े। यहां वह अपनी संख्या बढ़ाता है और एक तरह की ‘कोरोनावायरस फैक्ट्रियां’ बनाता है। नए कोरोना वायरस बाक़ी कोशिकाओं पर हमले में लग जाते हैं।वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड भी लोगों में अलग-अलग हो सकता है। औसतन ये पांच दिन होता है।


यह वायरस लाखों साल तक निष्क्रिय पड़े रहते हैं
शोधकर्ताओं ने 2014 में पाया था कि एक वायरस पर्माफ्रॉस्ट में 30,000 साल से मौजूद था। लैब के टेस्ट में पता चला कि इतने सालों तक निष्क्रिय रहने के बाद भी वायरस किसी को भी संक्रमित करने की स्थिति में था। पर्माफ्रॉस्ट ऐसी धरती को बोलते हैं, जिसमें मिट्‌टी 0 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे के तापमान में होती है। यहां मौजूद पानी मिट्‌टी से मिलकर इसे इतनी मजबूती से जमा देता है कि यह पत्थर जैसी कठोर हो जाती है। इसके अलावा एक और अध्ययन में पाया गया कि मुंह में दाद करने वाला वायरस मानव वंश के साथ 60 लाख सालों से है।



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अमेरिका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के वैक्सीन रिसर्च सेंटर पर कोरोनावायरस पर शोध करते वैज्ञानिक।

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