जोनाथन कोरम/कैथरीन जे वू/कार्ल जिमर. मॉडर्न मेडिसिन के सामने कोविड 19 से पहले इतना बड़ा संकट कभी नहीं आया। दुनियाभर के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक लगातार वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर तय समय में कोरोनावायरस वैक्सीन तैयार हो जाती है तो यह इतिहास का सबसे तेज वैक्सीन प्रोग्राम होगा। आमतौर पर वैक्सीन के निर्माण में कुछ साल से लेकर दशक तक का समय लग जाता है।
इस दौरान कुछ दवाओं ने वायरस के खिलाफ लड़ाई में अच्छे परिणाम मिले। जबकि कुछ ऐसी दवाएं भी थीं,जिन्होंने काफी सुर्खियां बटोरीं। हालांकि अमेरिकी हेल्थ एजेंसीएफडीए ने किसी भी ट्रीटमेंट को लाइसेंस नहीं दिया है, लेकिन इमरजेंसी उपयोग के लिए अनुमति दे दी है।
- यह रहे कोरोनोवायरस महामारी में सबसे चर्चित19 ड्रग्स औरट्रीटमेंट्सके नतीजे-
वे ट्रीटमेंट्स जिनके भरोसेमंद और बेहतरइलाज के सबूत मिले-
रेमेडेसिविर
- रेमेडेसिविर को गिलियड साइंसेज ने तैयार किया था। यह पहला ड्रग था, जिसे एफडीए ने कोविड 19 के मामलों में इमरजेंसी उपयोग के लिए अनुमति दी थी। यह नए वायरल जीन में जाकर वायरस को रेप्लिकेट करने से रोकता है। रेमेडेसिविर को मूल रूप से इबोला और हैपिटाइटिस सी के खिलाफ एंटीवायरल के तौर पर केवल अभाव वाले परिणाम देने के लिए टेस्ट किया गया था।
- ट्रायल से मिला शुरुआती डाटा बताता है कि यह ड्रग कोविड 19 के गंभीर मरीजों की हॉस्पिटल अवधि को कम कर 15 से 11 दिन कर सकता है। मौत के मामलों में शुरुआती परिणाम प्रभावी नहीं रहे, लेकिन जुलाई में जारी हुए रिजल्ट संकेत देते हैं कि यह ड्रग गंभीर मरीजों में मृत्यु दर को भी कम कर सकता है।
डेक्सामैथासोन
- यह सस्ता और आसानी से मिलने वाला ड्रग कई तरह के इम्यून रिस्पॉन्स को कमजोर कर देता है। डॉक्टर काफी समय से इसका उपयोग अस्थमा, एलर्जी और सूजन के इलाज के लिए करते हैं। जून में यह कोविड 19 की मौत का दर गिराने वाला यह पहले ड्रग बन गया।
- 6000 से ज्यादा लोगों पर की गई स्टडी में पाया गया है कि डेक्सामैथासोन ने वेंटिलेटर के मरीजों में एक तिहाई और ऑक्सीजन के मरीजों के पांचवे हिस्से में मौत कम हुई हैं। अभी तक यह स्टडी साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित नहीं हुई है।
- हो सकता है कि यह दवा उन मरीजों की मदद कम करे जो कोविड 19 संक्रमण के शुरुआती दौर में हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ ने अपने कोविड 19 ट्रीटमेंट गाइडलाइंस में डेक्सामैथासोन के उपयोग की सलाह केवल ऑक्सीजन और वेंटीलेटर के मरीजों को दी है।
इन ट्रीटमेंट्स का उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है
प्रोन पोजिशनिंग
- इसमें मरीज को पेट के बल लेटने को कहा जाता है, जिससे उनके फेफड़े खुलते हैं। यह तरीका मरीजों में वेंटीलेटर की संभावना को खत्म कर सकता है। फिलहाल क्लीनिकल ट्रायल्स में इलाज के फायदों की जांच की जा रही है।
वेंटिलेटर्स और दूसरे रेस्पिरेट्री सपोर्ट डिवाइसेज
- जो डिवाइस मरीजों की सांस लेने में मदद करती हैं, उन्हें खतरनाक रेस्पिरेट्री बीमारी के खिलाफ अहम हथियार माना जाता है। नाक या मास्क के जरिए ऑक्सीजन देने पर कुछ मरीजों में सुधार हुआ है। वेंटिलेटर सांस लेने में गंभीर परेशानियों का सामना कर रहे मरीजों की फेफड़े ठीक होने तक मदद करता है। वेंटिलेटर पर गए कोविड 19 के सभी मरीज ठीक नहीं हुए, लेकिन कुछ मामलों में इसने कई जीवन बचाए हैं।
वे ट्रीटमेंट्स जिनके सबूत अनिश्चित और मिले-जुले रहे-
फेविपिराविर
- मूल रूप से इंफ्लुएंजा के खिलाफ तैयार की गई फेविपिराविर वायरस को जैनेटिक मटेरियल की नकल करने से रोकती है। मार्च में हुई एक छोटी स्टडी संकेत देती है कि यह ड्रग हवा से कोरोनवायरस निकालने में मददगार हो सकता है, लेकिन अभी भी बड़े क्लीनिकल ट्रायल्स अटके हैं।
ईआईडीडी-2801
- फ्लू के इलाज के लिए तैयार की गई ईआईडीडी-2801 ने सेल्स और जानवरों पर हुए कोरोनावायरस स्टडीज में भरोसेमंद परिणाम दिए हैं। इसका परीक्षण इंसानों पर होना बाकी है।
रीकॉम्बिनेंट ऐस-2
- सेल के अंदर जाने के लिए कोरोनावायरस को पहले उन्हें अनलॉक करना होगा। साइंटिस्ट्स ने आर्टिफीशियल ऐस-2 प्रोटीन तैयार किया है, जो एक चारे की तरह काम कर सकता है। यह खतरे वाले सेल्स से कोरोनावायरस को दूर रखेगा। रीकॉम्बिनेंट ऐस-2 प्रोटीन ने सेल्स पर हुए प्रयोग में भरोसेमंद परिणाम दिए हैं, लेकिन अभी तक जानवरों या इंसानों में नहीं।
कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा
- एक सदी पहले डॉक्टर फ्लू से ठीक हुए मरीज के खून से प्लाज्मा निकालते थे। इस कथित कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा में एंटीबॉडीज होती थीं, जो बीमारी मरीजों की मदद करती थीं। शोधकर्ता इस तरीके को अब कोविड 19 के मरीजों पर भी अपनाकर देख रहे हैं। कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा के शुरुआती परिणाम भरोसेमंद रहे हैं। एफडीए ने भी कोरोनावायरस के गंभीर मरीजों पर इसके उपयोग की अनुमति दे दी है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज
- कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा में कई तरह की एंटीबॉडीज होती हैं। इनमें से कुछ कोरोनावायरस पर अटैक कर सकती है, कुछ नहीं। शोधकर्ता घोल के जरिए कोविड 19 के खिलाफ सबसे कारगर एंटीबॉडीज की जांच कर रहे हैं।
- इन मॉलेक्यूल्स की सिंथेटिक कॉपीज को मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कहा जाता है। इन्हें बड़े पैमाने पर तैयार किया जा सकता है और मरीजों को इंजेक्शन से लगाया जा सकता है। इस ट्रीटमेंट के लिए सेफ्टी ट्रायल्स अभी शुरू ही हुए हैं और कई शुरू होने वाले हैं।
इंटरफैरॉन्स
- इंटरफैरॉन्स आमतौर पर मॉलेक्यूल्स होते हैं, जिन्हें हमारे सेल्स वायरस के जवाब में बनाते हैं। सिंथेटिक इंटरफैरॉन्स की इम्यून डिसॉर्डर का इलाज है। शुरुआती स्टडीज बताती हैं कि इंटरफैरॉन्स इंजेक्ट करना कोविड 19 के खिलाफ मददगार हो सकता है। कुछ और सबूत भी हैं, जो बताते हैं कि मॉलेक्यूल्स स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित होने से बचा सकते हैं।
साइटोकीन्स इन्हिबिटर्स
- शोधकर्ताओं ने कई ड्रग्स तैयार किए हैं जो साइटोकीन तूफानों को रोक सकते हैं। यह ड्रग्स आर्थिराइटिस और दूसरे इनफ्लेमेट्री डिसॉर्डर्स में असरदार रहे हैं। कोरोनवायरस के खिलाफ इनमें से कई ड्रग्स कुछ ट्रायल्स में मददगार साबित हुए हैं, लेकिन कुछ में कमजोर रहे हैं।
साइटोसॉर्ब
- साइटोसॉर्ब एक उपकरण है जो खून से साइटोकीन्स को फिल्टर करता है। चूंकि साइटोकीन्स बीमारियों से लड़ने के लिए जरूरी है, यह कभी-कभी रनअवे रिस्पॉन्स को बढ़ावा देता है। शरीर में इतनी जलन होती है कि यह खुद को नुकसान पहुंचा लेता है। अतिरिक्त साइटोकीन्स को हटाकर साइटोसॉर्ब इसे शांत कर सकता है।
- यह मशीन 24 घंटे के अंतराल में इंसान के खून को 70 से ज्यादा बार साफ कर सकती है। यूरोप और चीन में बेहतर परिणाम के बाद एफडीए ने इसके इमरजेंसी उपयोग की अनुमति दे दी थी।
स्टेम सेल्स
- कुछ तरह के स्टेम सेल्स सूजन विरोधी मॉलेक्यूल्स छोड़ सकती हैं। पिछले कुछ सालों में शोधकर्ताओं ने इन्हें साइटोकीन तूफानों के इलाज में इस्तेमाल किया है। अब कोविड 19 के खिलाफ असर के लिए इसके क्लीनिकल ट्रायल्स जारी हैं। हालांकि पहले स्टेम सेल्स के इलाजों से बेहतर परिणाम नहीं मिले हैं। ऐसे में यह साफ नहीं है कि यह कोरोनावायरस के खिलाफ काम करेंगे।
एंटीकोएग्युलेंट्स
- कोरोनावायरस ब्ल्ड वेसल्स की लाइनिंग में जा सकता है। इससे छोटे थक्के बनते हैं, जो स्ट्रोक या कोई गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन थक्कों को एंटीकोएग्युलेंट्स से हटाया जा रहा है। इसका उपयोग पहले भी दिल के मरीजों पर किया जाता रहा है। कोविड 19 के मामले में इस दवा के कई क्लीनिकल ट्रायल्स जारी हैं।
वे ट्रीटमेंट्स जो बिल्कुल भरोसेमंद नहीं रहे-
लोपिनावीर और रिटोनावीर
- 20 साल पहले एफडीए ने इस जोड़ी को एचआईवी के ट्रीटमेंट के लिए अनुमति दी थी। हाल ही में शोधकर्ताओं ने इनका उपयोग कोरोनवायरस के मरीजों पर किया। उन्होंने पाया कि इससे वायरस की नकल बनना बंद हो गई। हालांकि कुछ क्लीनिकल ट्रायल्स के परिणाम निराशाजनक रहे हैं।
- जुलाई की शुरुआत में ही डब्ल्युएचओ ने अस्पताल में भर्ती कोविड 19 के मरीजों में इसके ट्रायल्स बंद कर दिए थे।
हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन
- जर्मन केमिस्ट ने 1930 में मलेरिया के खिलाफ ड्रग के तौर पर क्लोरोक्वीन सिंथेसाइज की थी। इसके बाद इसका कम टॉक्सिक वर्जन हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन का आविष्कार 1946 में हुआ। बाद में यह दवा ल्यूपस और रिह्युमैटॉयड आर्थिराइटिस जैसी बीमारियों में भी इस्तेमाल की जाने लगी। कोविड 19 महामारी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने पाया कि दोनों ड्रग्स कोरोनावायरस को सेल की नकल बनाने से रोक रहे हैं।
- वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का जमकर प्रचार किया। एफडीए ने भी आस्थाई रूप से इसके इमरजेंसी उपयोग की अनुमति दे दी। बाद में यह दावा किया गया कि यह राजनीतिक दबाव में आकर किया गया था।
- जब क्लीनिकल ट्रायल्स का डाटा सामने आया तो पता चला कि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन कोविड 19 के मरीजों और स्वस्थ लोगों के लिए मददगार नहीं है। एक बड़ी स्टडी ने यह भी बताया था कि यह दवा हानिकारक भी है। हालांकि बाद में यह स्टडी वापस ले ली गई थी।
- डब्ल्युएचओ, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और नोवार्टिस ने इसके ट्रायल्स बंद कर दिए हैं। अब एफडीए चेतावनी दे रही है कि इस ड्रग से दिल और दूसरे अंगों में गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
वे ट्रीटमेंट्स जोफर्जी नुस्खे और दावों वाले रहे-
ब्लीच और डिसइंफेक्टेंट्स को पीना या इंजेक्ट करना
- अप्रैल में राष्ट्रपति ट्रम्प ने सलाह दी थी कि अल्कोहल या ब्लीच जैसे डिसइंफेक्टेंट्स इंजेक्ट करने से मदद मिल सकती है। तुरंत बाद ही ट्रम्प के इस बयान का खंडन दुनियाभर के हेल्थ प्रोफेशनल्स और शोधकर्ताओं के साथ-साथ लायजॉल और क्लोरोक्स ने भी किया। डिसइंफेक्ट को इंजेस्ट करना घातक हो सकता है।
यूवी लाइट
- शोधकर्ता यूवी लाइट का इस्तेमाल सतहों को साफ और वायरस मारने के लिए करते हैं। यूवी लाइट किसी बीमार व्यक्ति के शरीर से वायरस को नहीं निकाल पाएगी। इस तरह का रेडिएशन स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादातरस्किन कैंसर का कारण सूरज की रोशनी में मौजूद यूवी किरणों के संपर्क में आना होता है।
चांदी
- एफडीए ने उन लोगों के प्रति कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है, जो दावा कर रहे हैं कि चांदी के प्रोडक्ट्स कोविड 19 के खिलाफ सुरक्षित और असरदार होते हैं। कई धातुओं में नेचुरल एंटीमाइक्रोबायल प्रोपर्टीज होती हैं, लेकिन कोरोनावायरस के संबंध में कोई भी परिणाम सामने नहीं आए हैं।
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