Sunday, December 15, 2019

लंबे समय तक चली जलवायु वार्ता कार्बन मार्केट पर बिना समझौते के खत्म, महासचिव गुटेरेस निराश December 15, 2019 at 06:10PM

मैड्रिड. जलवायु को लेकर सबसे लंबे समय तक चली वार्ता रविवार को कार्बन मार्केट पर बिना किसी समझौते के खत्म हो गई। करीब 200 देशों के प्रतिनिधी 2015 के पेरिस समझौते की शर्तों को पूरा करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के लक्ष्य पर आम सहमति बनाने में विफल रहे। इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने निराशा जताई है। उन्होंने कहा-मैं सीओपी25 के रिजल्ट से बेहद दुखी हूं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय जलवायु संकट से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर खो दिया।

यह वार्ता करीब दो सप्ताह तक चली। 2015 के पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत देशों ने ग्लोबल कार्बन मार्केट सिस्टम बनाने पर सहमति जताई थी, जिससे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को कम लागत पर बेहतर की जा सके। हालांकि, कई देशों ने इस सिस्टम को मानने की कोशिश की और असफल रहे। 25 वार्षिक सम्मेलनों में सबसे ज्यादा लंबे समय तक चली चर्चा के बावजूद सबसे अहम मुद्दे को अगले साल ग्लासगो में होने वाले सम्मेलन के लिए छोड़ दिया गया।

‘विश्व स्तर पर ज्यादा से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जरूरत’

कई पर्यावरण समूहों और कार्यकर्ताओं ने विश्व के अमीर देशों पर जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे के प्रति प्रतिबद्धता नहीं दिखाने का आरोप लगाया। गुटेरेस ने कहा, ‘‘हमें हार नहीं माननी चाहिए और मैं हार नहीं मानूंगा।’’पेरिस समझौते तक पहुंचने के लिए कुछ देश इस साल बातचीत के लिए साथ आए हैं। यूरोपीय संघ ने भी 2050 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन तक पहुंचने के अपने दीर्घकालिक लक्ष्य पर सहमति जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि पेरिस समझौते के लिए विश्व स्तर पर ज्यादा से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जरूरत है।

‘दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश ही समझौते से गायब’

पेरिस समझौते के अनुसार, अमेरिका और अन्य देशों को बढ़ते वैश्विक तापमान को 2° सेल्सियस तक कम करना था। मैड्रिड में बेहतर नतीजे न आने के लिए पर्यवेक्षकों ने जी-20 देशों को दोषी ठहराया।

वैज्ञानिक संघ के नीति निदेशक एल्डन मेयर ने कहा कि लगभग 70 देशों में से अधिकांश ने जलवायु के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए पेरिस समझौतों को पूराकरने के लिए आगे आए हैं। लेकिन, दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश ही इससे गायब हैं। साथ ही समझौते काविरोध भी कर रहे हैं।

2015 का पेरिस जलवायु समझौता
समझौते के मुताबिक ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्री स्तर में बढ़ोतरी होने के लिए जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गरीब और अमीर देशों को कार्रवाई करने की जरूरत है। इसके तहत कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों का ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देशों को अपने उत्सर्जन पर लगाम लगानी थी। साथ ही विकासशील देशों को शुरुआत से ही कम कार्बन उत्सर्जक बनने लायक आर्थिक सहायता और मूलभूत ढांचा मुहैया कराना था। पेरिस समझौते को दिसंबर 2015 में दुनिया के 195 देशों ने स्वीकार किया था।

अमेरिका 4 नवंबर 2020 तक समझौते से अलग होजाएगा
अमेरिका ने इस साल 4 नवंबर को यूएन महासचिव को पेरिस समझौते से हटने की आधिकारिक सूचना दे दी। सूचना देने के एक साल के बाद यह प्रभाव में आएगा। यह समझौता 12 दिसंबर 2015 को हुआ था, जिस पर अमेरिका ने 2016 में हस्ताक्षर किए थे।



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संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा- 200 देशों के प्रतिनिधी 2015 के पेरिस समझौते की शर्तों को पूरा करने में विफल रहे।

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